अनुसंधान क्रियाविधि / Research Methodology

अनुसंधान अभिकल्प का अर्थ | अनुसंधान अभिकल्प की परिभाषा | पद्धतिपूर्ण अभिकल्पित अनुसंधान | आदर्श अभिकल्प को व्यावहारिक रूप प्रदान करना | व्यावहारिक अनुसंधान अभिकल्प

अनुसंधान अभिकल्प का अर्थ | अनुसंधान अभिकल्प की परिभाषा | पद्धतिपूर्ण अभिकल्पित अनुसंधान | आदर्श अभिकल्प को व्यावहारिक रूप प्रदान करना | व्यावहारिक अनुसंधान अभिकल्प | Meaning of Research Design in Hindi | Definition of Research Design in Hindi | Methodologically Designed Research in Hindi | To give practical shape to the ideal design in Hindi | applied research design in Hindi

अनुसंधान अभिकल्प का अर्थ | अनुसंधान अभिकल्प की परिभाषा

अनुसंधान-अभिकल्प या प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Research Design)

प्ररचना का अर्थ है किसी प्रकार की रूपरेखा या पूर्व योजना बनाना जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके। यह एक पहले से सोची-समझी प्रक्रिया है जो किसी भावी परिस्थिति को नियन्त्रित करने के लिये अपनायी जाती है। इस अभिप्राय को अनुसंधान प्ररचना के सन्दर्भ में भी लागू किया जा सकता है। किसी भी अनुसंधान कार्य के प्रारम्भ करने से पहले उसके सभी पक्षों पर ध्यान देना आवश्यक होता है जिससे कि अनुसंधान के समय उपस्थित होने वाली कठिनाइयों को कम किया जा सके। यह तभी सम्भव हो सकता है जब अनुसंधान-कार्य से सम्बन्धित पूर्व-योजना बनाकर उसके अनुरूप कार्य-संपादन हो। इसी पूर्व- योजना को अनुसंधान-अभिकल्प या प्ररचना कहते हैं। इसे प्रारूप (Model) भी कहते हैं।

इस एक उदाहरण द्वारा और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। किसी भवन के निर्माण से पहले उसके विस्तार उसमें कक्षों की संख्या, उनके अनुपात, गलियारों की स्थिति, अन्य आवश्यकतायें, लागत आदि का पूर्व-निर्णय लिया जाता है। यदि इसमें कोई कठिनाई होती है तो आवश्यकता संशोधन भी कर लिया जाता है। ऐसा न करने की स्थिति में वित्तीय या अन्य कारणों से निर्माण कार्य में व्यवधान उपस्थित हो सकता है। यही स्थिति अनुसंधान कार्य की होती है।

सेल्टिज, जेहोदा, ड्यूश, और कुक के अनुसार, “अनुसंधान-अभिकल्पना तथ्यों के संकलन और विश्लेषण हेतु (अनुकूल) परिस्थितियों की ऐसी व्यवस्था है। जिसका उद्देश्य अनुसंधान को मितव्ययिता सहित उपयोगी बनाना है।”

प्ररचना या अभिकल्प के निर्माण के लिये निम्नलिखित आधार पर निर्णय लिये जाते हैं-

(1) किस विषय का अध्ययन करना है और किस प्रकार के दत्तों या तथ्यों की आवश्यकता है।

(2) अध्ययन की क्या उपयोगिता है?

(3) आवश्यक तथ्य कहाँ से प्राप्त हो सकते हैं?

(4) किसी क्षेत्र में अध्ययन कार्य किया जायेगा?

(5) अध्ययन किस कालावधि का होगा ?

(6) कितनी विषय-सामग्री आवश्यक होगी?

(7) निदर्शन-चयन के कौन से मानदण्ड (bases) प्रयुक्त होंगे।

(8) दत्तों के संग्रह में कौन सी विधियाँ अपनायी जायेंगी ?

(9) दत्तों का विश्लेषण किस प्रकार होगा?

(10) उपर्युक्त प्रश्नों के आधार पर कम से कम धन, समय और शक्ति के व्यय से अनुसंधान उद्देश्य की प्राप्ति कैसे हो सकती है?

वैज्ञानिकता का सशक्त आधार प्रदान करने के लिये अनुसंधान-अभिकल्प के निर्णय स्वीकृति पद्धति पर ही आधारित होने चाहिये। शत-प्रतिशत पद्धतिपूर्ण अभिकल्प केवल वैज्ञानिक आदर्श है फिर भी इसे प्राप्त करने के लिये अनुसंधानकर्त्ता को निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिये।

पद्धतिपूर्ण अभिकल्पित अनुसंधान

(Methodologically Designed Research)

अनुसंधान किसी पद्धति के अनुसार अभिकल्पित होना चाहिये ऐसा आवश्यक है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-

(1) बहुत से अनुसंधान-कार्यों में अनुसंधानकर्त्ता को यह पता नहीं रहता कि उपयोगिता की दृष्टि से अध्ययन के निष्कर्ष किस सीमा तक शुद्ध होने चाहिये। ऐसी परिस्थितियों में अनुसंधानकर्ता को निश्चित करना होता है कि कितनी अशुद्धि उपयोगी निष्कर्ष प्राप्त करने में बाधक नहीं होगी। अनेक अध्ययनों में उसे यह भी ज्ञात हो सकता है कि उसके द्वारा अपनायी गये अनुसंधान-विधि कितनी अशुद्ध होगी। दोनों दशाओं में उपयोगी परिणामों की प्राप्ति हेतु उसे अनुसंधान कार्य की अभिकल्पना करनी चाहिये। यदि आवश्यक शुद्धता कम धन, समय और श्रम के खर्च से प्राप्त हो जाती है तो उससे अधिक शुद्धता प्राप्त करने के लिये समय, श्रम और धन की बर्बादी का कोई महत्व नहीं है।

(2) बहुत से अनुसंधान कार्यों में तथ्यों के संकलन के बाद उनको कैसे उपयोग में लाया जाये, यह एक समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसके विपरीत, यदि अनुसंधान की अभिकल्पना पहले से करके तथ्यों का संकलन किया जाये तो कम समय में सुगमता से लक्ष्य की ओर बढ़ जा सकता है।

(3) अनुसंधान की विधि की वैज्ञानिकता को बनाये रखने के लिये उसमें अनुकूल और सम्भव सुधार के सदा प्रयास करने चाहिये। एक बार अनुसंधान समस्या के निरूपण के पश्चात् अनुसंधानकर्त्ता इस स्थिति में होता है कि समाधान का उपाय निश्चित कर सके। इसके लिये उसे आदर्श अनुसंधान-विधि की अभिकल्पना करनी होती है। यही आदर्श अनुसंधान-अभिकल्प होता है। एकॉफ (Ackoff) के शब्दों में, “आदर्श अनुसंधान अभिकल्प का सम्बन्ध अधिकतम संभावित अनुसंधान विधि (Optimum research procedure) से है जिसका व्यावहारिक प्रतिबन्धों के बिना पालन किया जा सके।”

(4) आदर्श परिस्थितियाँ या विधियाँ मानदण्डों का कार्य करती हैं जिनके द्वारा अनुसंधान की व्यावहारिक परिस्थितियों का आकलन कर उनकी कमियाँ ज्ञात की जा सकती है। इसने कमियों की समीक्षा करने पर अवलोकित निष्कर्षा (observed results) पर इनके विपरीत प्रभाव का पता लगाया जा सकता है और उनके आधार पर उनके विपरीत प्रभाव को कम किया जा सकता है।

आदर्श अभिकल्प को व्यावहारिक रूप प्रदान करना

(Translation of the Ideal Model of Design into a Practical one)

आदर्श, अभिकल्प एक मार्गदर्शक के रूप में नितान्त उपयोगी है, किन्तु इसकी आदर्श परिस्थितियाँ सम्भवतः कभी भी उपलब्ध नहीं होतीं अतः इसमें आवश्यक परिवर्तन कर इसे व्यावहारिक रूप प्रदान किया जाता है, जिससे कि यह अनुसंधान में अधिकाधिक उपयोगी हो सके।

आदर्श अभिकल्प को व्यावहारिक रूप देने के निम्नलिखित कारण है-

(1) व्यावहारिक अनुसंधान अभिकल्प इसलिये आवश्यक है, क्योंकि किन्हीं कारणों से अनुसंघानकर्त्ता आदर्श परिस्थितियों का साक्षात् अनुभव नहीं कर पाता। किसी तत्यपरक अनुसंधान में व्यावहारिक कठिनाई के कारण अनुसंधानकर्त्ता के प्रयास सीमित हो सकते हैं। अनुसंधान के विषयों या घटनाओं की संख्या इतनी अधिक हो सकती है कि उसके लिये निर्धारित समय, धन और श्रम अपर्याप्त साबित हो। ऐसी दशा में अनुसंधानकर्ता सम्पूर्ण में से उसके किसी एक भाग का अध्ययन कर सकता है। यदि ऐसा प्रतिबन्ध लागू कर दिया गया तो सांख्यिकी और निदर्शन का उपयोग आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार आदर्श प्रारूप का सांख्यिकीय प्रारूप में परिवर्तन अनुसंधान कार्य के वास्तविक निष्पादन के लिये आवश्यक हो जाता है।

(2) जब एक ही विषय, घटना या विशेषता का अवलोकन या निरीक्षण करना होता है तो त्रुटि-निवारण के लिये अनुसंधानकर्त्ता चर-मूल्यों के प्रत्येक समूह के लिये एक से अधिक निरीक्षण चाहता है। उसे अकेले विषय के लिये अनन्त निरीक्षण करने पड़ेंगे जो असम्भव कार्य है और अन्ततः सम्भावित निरीक्षणों (Observations) के निदर्शन पर निर्भर होना पड़ेगा। निदर्शन-संभाव्य-निरीक्षणों के लिये आदर्श प्रारूप को व्यावहारिक सांख्यिकीय प्रारूप में परिवर्तित करना आवश्यक हो जाता है।

(3) यदि अनुसंधानकर्त्ता अनन्त निरीक्षण कर भी सकता है तो यह स्रोतों की बर्बादी ही होगा। उसे इतनी शुद्धता की आवश्यकता भी नहीं हो सकती जितनी इन अनन्त निरीक्षणों द्वारा प्राप्त होगी। ऐसी दशा में आवश्यक शुद्धता के लिये संभाव्य निरीक्षणों के निदर्शन से ही अनुसंधानकर्ता का उद्देश्य पूरा हो जायेगा। इसका अभिप्रायः यह होगा कि उसने आदर्श अनुसंधान अभिकल्प या प्रारूप को सांख्यिकीय प्रारूप में परिवर्तित कर दिया।

(4) अनेक सामाजिक परिस्थितियों में सभी चरों को आवश्यकता के अनुरूप ढाला नही जा सकता जिससे अनुसंधान कार्य आदर्श परिस्थितियों से हटकर करना होता है। इस प्रकार के अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर यह तय किया जाता है कि आदर्श परिस्थितियों में निष्कर्षों का क्या स्वरूप होता। इसके लिये भी आदर्श अनुसंधान अभिकल्प को सांख्यिकीय में परिवर्तित करना होता है और वास्तविक अनुसंधान कार्य के लिये अनुसंधान प्रक्रिया का निरूपण किया जाता है।

विविध पक्ष:

व्यावहारिक अनुसंधान अभिकल्प

(Practical Research Design)

व्यावहारिक अनुसंधान अभिकल्प निम्नलिखित चार अवस्थाओं से मिलकर बनता है-

(1) निदर्शन अभिकल्प (The sampling design)- दिये हुये अध्ययन के लिये अवलोकित या निरीक्षण किये जाने वाले विषयों का चयन करने की विधि का पता लगाता है।

(2) अवलोकनात्मक या निरीक्षणात्मक अभिकल्प (The observational design)- इसका सम्बन्ध उन परिस्थितियों से होता है जिनके अन्तर्गत निरीक्षण किये जाते हैं।

(3) सांख्यिकीय अभिकल्प (The statistical design) – इसका सम्बन्ध इस बात से होता है कि कितने विषयों का अवलोकन किया जाता है और अवलोकनों या निरीक्षणों को कैसे विश्लेषित किया जाना है।

(4) कार्यात्मक अभिकल्प (The operational design)- इसका सम्बन्ध विशिष्ट विधियों से होता है जिनके द्वारा निदर्शन, सांख्यिकीय और अवलोकनात्मक अभिकल्पों के लिये नियम विधियों को उपयोग में लाया जाता है।

इन सभी अभिकल्पों में कोई भी स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं रखता। किसी एक अवस्था के बारे में लिया गया निर्णय अन्य दूसरी अवस्था के निर्णय को प्रभावित करता है। फलस्वरूप सभी अवस्थायें परस्पर घुली मिली होती हैं।

यह स्पष्ट है कि व्यावहारिक अनुसंधान अभिकल्प अनुसंधान की वास्तविक परिस्थितियों के अनुरूप निर्मित होता है। ई.ए. शुमैन (E.A. Schuman) के अनुसार, “अनुसंधान- अभिकल्प कोई ऐसी अतिविशिष्ट योजना नहीं है जिसका अक्षरशः पालन करना होता है बल्कि यह उन मार्गदर्शक (guide posts) के क्रम की भाँति है जो एक निश्चित और उचित दिशा की ओर संकेत करते हैं।” अनुसंधान-अभिकल्प अनुसंधान के उद्देश्यों के अनुरूप परिवर्तित होते रहते हैं।

अनुसंधान क्रियाविधि – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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