शिक्षाशास्त्र / Education

भावात्मक एकता के लिए भावात्मक एकता समिति द्वारा दिये गये सुझावों का वर्णन कीजिए।

भावात्मक एकता के लिए भावात्मक एकता समिति द्वारा दिये गये सुझावों का वर्णन कीजिए।

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भावात्मक एकता के लिए सुझाव-

किसी भी व्यक्ति में बदलाव लाने के लिए सर्वप्रथम उसके मस्तिष्क को बदलना होगा। किसी भी राष्ट्र की जनता के मष्तिष्क को बदलने का महत्वपूर्ण साधन शिक्षा है। भारत जैसे देश में शिक्षा का प्रारूप इस तरह का होना चाहिये कि वहाँ की जनता सभी तरह की विभिन्नताओं से ऊपर उठकर- भावात्मक एकता के सूत्र में बंध जाए। भावात्मक एकता बनाये रखने में शिक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए सन् 1961 ई. में डॉ0 सम्पूर्णानन्द की अध्यक्षता में भावात्मक एकता समिति का गठन किया गया। समिति के अनुसार “शिक्षा भावात्मक एकता को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है। यह अनुभव किया गया है कि शिक्षा का उद्देश्य न केवल ज्ञान देना होना चाहिये वरन् उसे छात्र के व्यक्तित्व के सब पक्षों का विकास करना होना चाहिए। इस दृष्टिकोण को विस्तृत करना चाहिये और एकता, राष्ट्रीयता, बलिदान तथा सहिष्णुता की भावना का विकास करना चाहिये, जिससे कि संकुचित सामुदायिक हितों का देश के विस्तृत हितों में समावेश हो जाये ।”

भावात्मक एकता समिति के सुझाव-

शिक्षा द्वारा भावात्मक एकता प्राप्त करने हेतु इस समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये-

  1. पाठ्यक्रम का नवनिर्माण- शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिए देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर नवीन पाठ्यक्रम की रचना की जाए। प्राथमिक स्तर पर राष्ट्रीय गीत तथा राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत गीतों व कहानियों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए। माध्यमिक स्तर पर सामाजिक अध्ययन, भाषा साहित्य, सांस्कृतिक, नैतिक व धार्मिक मूल्यों की शिक्षा बालकों को पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं द्वारा दी जानी चाहिये। जिसका उद्देश्यों छात्रों में उचित संवेग का विकास करना हो। विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न भाषाओं, कला, साहित्य, संस्कृति आदि का तुलनात्मक अध्ययन कराया जायेगा तथा सामाजिक विज्ञानों के अध्ययन पर बल दिया जायेगा। इस स्तर पर छात्रों व अध्यापकों को देश के विभिन्न भागों में भ्रमण के अवसर दिये जायेंगे।
  2. पाठ्य पुस्तकें- पाठ्य-पुस्तकों का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिये तथा इसमें इस बात का ध्यान देना चाहिए कि कोई घटना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों में नकारात्मक संवेगों को उत्पन्न करे या राष्ट्रीय एकता को आघात करे तो उस पाठ्य-पुस्तक से अलग करना चाहिये।
  3. भाषा- वह क्षेत्र जहाँ हिन्दी को क्षेत्रीय भाषा के माध्यम से सिखाया जाए। कुछ क्षेत्रों में हिन्दी भाषा को रोमन लिपि के माध्यम से सीखने की अनुमति दी जाये। संपूर्ण देश में भाषा को सीखने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय संकेतों का प्रयोग होना चाहिये। क्षेत्रीय भाषा व हिन्दी के शब्द कोष तैयार करना व अच्छी हिन्दी पुस्तकों का क्षेत्रीय भाषा में रूपान्तर करना। भाषा के सम्बन्ध में राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी नीति तैयार की जाए तो अल्पसंख्यक भाषाओं पर भी ध्यान दिया जाए।
  4. अन्य सुझाव-

(क) ऐसी क्रियाओं को पाठ्यसहगामी क्रियाओं के रूप में अपनाया जाए जो राष्ट्रीय अभिवृत्तियों तथा सकारात्मक संवेगों को विकसित कर सकें।

(ख) विद्यालय प्रारम्भ होने से पहले प्रार्थना सभा हो जिसमें एक समान गीत गाया जाए। इस सभा में किसी विद्वान या अध्यापक द्वारा नैतिकता, राष्ट्रीय एकता पर एवं देश में होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं पर विचार प्रकट होने चाहिये।

(ग) विद्यालय का प्रत्येक बच्चा वर्ष में कम से कम एक बार राष्ट्र सेवा की प्रतिज्ञा ल।

(घ) स्कूल में प्रत्येक छात्र के लिए समवस्त्र निश्चित किये जायें।

(ङ) सभी राष्ट्रीय दिवस विद्यालय में मनाये जायें। छात्रों को राष्ट्रीय गीत का प्रशिक्षण दिया जाए। छात्रों को राष्ट्रीय झण्डे का सम्मान सिखाना चाहिये।

(च) अखिल भारतीय युवक समिति की स्थापना की जाए।

(छ) प्रत्येक विद्यालय को साल सत्र में समय-समय में राष्ट्रीय भावना पर आधारित नाटकों का आयोजन करना चाहिये। साल में यदा-कदा भावात्मक एकता पर विशिष्ट व्यक्तियों के व्याख्यानों का आयोजन करना चाहिये।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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