शिक्षाशास्त्र / Education

इवान इर्लिच का जीवन परिचय |  इर्लिच का शैक्षिक योगदान | Ivan Irlich’s life introduction in hindi | Irlich’s educational contribution in hindi

इवान इर्लिच का जीवन परिचय

इवान इर्लिच का जीवन परिचय |  इर्लिच का शैक्षिक योगदान | Ivan Irlich’s life introduction in hindi | Irlich’s educational contribution in hindi

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इवान लिच का जन्म वियेना में 1926 में हुआ। उन्होंने गेगोरियन विश्वविद्यालय रो में धर्म और दर्शन का अध्ययन किया और साल्जवर्ग विश्वविद्यालय से इतिहास में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे 1951 में सं.रा. अमेरिका गये और न्यूयार्क हर में आईरिश-यूएटोरिकन में सहायक पादरी के पद पर पदस्थ हुए। 1956 से 1960 तक प्यूएटों रिका में कैथोलिक विश्वविद्यालय में वाइस रेक्टर बने, जहां उन्होंने अमेरिकी पादरियों के लिए लैटिन अमेरिकन संस्कृति के एक सघन प्रशिक्षण केन्द्र का आयोजन किया। वे क्यूएनवास में सेंटर फॉर इंटरक्ल्चरल डाकुमेंटेशन नामक विवादास्पद केन्द्र की स्थापना के कारण विख्यात हुए और 1964 से उन्होंने ‘टेकनालाजिकल समाज में संस्थायी वैकल्प’ (इन्स्टीट्यूशनल आल्टरनेटियूस इन अं टेक्नालाजिकल सोसाइटी) पर शोध के लिए सेमीनारों का संचालन किया जो लैटिन अमेरिका पर विशेषतया केन्द्रित थे। उनकी पहली पुस्तक ‘ सेलेब्रेशन ऑफ अवेरनेस’, 1971 में प्रकाशित हुई। उनके अन्य प्रकाशनों में ‘टूल्स फॉर कन्वाइवलिटी’ और ‘एनर्जी एंड इक्विटी’ शामिल हैं। उनकी पुस्तक ‘मेडिकल निमेसिस’ 1975 में प्रकाशित हुई।

इर्लिच का शैक्षिक योगदान

इवान इलिच बीसवीं शताब्दी का एक ऐसा विचारक है जिसने शिक्षा, चिकित्सा उद्योग, यौन विज्ञान एवं शैक्षिक मनोविज्ञान आदि क्षेत्रों में अनेक स्थापित मानदण्डों, मुहावरों एवं मान्यताओं को खण्डित किया है। नए दो दशकों में उनकी जो कृति सर्वाधिक चर्चित हुई, वह है “डी स्कूलिश सोसायटी”। शिक्षा के संस्थायीकरण ज्ञान के अनुशासन जन्म कारावासीकरण एवं कान्तीकरण के विरूद्ध यह रचना समग्र सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक एंव मूल्यगत सन्दर्भों के साथ जब आज के बौद्धिकों के बीच उपस्थिति होती है तो सदियों से प्रचलित प्रविधियों, प्रणालियों व प्रक्रियाओं के स्तम्भ हिल उठते हैं। स्कूल किस प्रकार के ज्ञान के प्रमाणपत्रकरण आर पाठ्यक्रमों के बेतुके श्रेणीकरण की प्रश्रय देते हैं और इस प्रकार सीखने के इच्छुक बालक की किस प्रकार उसकी सर्वजनात्मकता, चिन्तन शक्ति एवं अन्वेषण-क्षमता से उद् भुत सार्थक प्रयासी से वंचित करते हैं, इसकी एक अत्यन्त उत्तेजक बहस इस कृहित में उठाई गई है। पुस्तक में उठाए गये क्रांतिकारी एवं विध्वंसकारी विचार तरह-तरह से सोचने को मजबूर करते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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