समस्या समाधान विधि

समस्या समाधान विधि | समस्या-समाधान विधि के पद | समस्या-समाधान विधि के गुण तथा दोष

समस्या समाधान विधि | समस्या-समाधान विधि के पद | समस्या-समाधान विधि के गुण तथा दोष

समस्या समाधान विधि का अर्थ

(Meaning of Problem-Solving Method)-

इस विधि के अन्तर्गत अध्यापक विद्यार्थियों के समक्ष समस्याओं को प्रस्तुत करता है तथा विद्यार्थी सीखे हुए नियमों, सिद्धान्तों तथा प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या का हल खोज लेते हैं। समस्याओं में विभिन्न तथ्य एवं परिस्थितियाँ होती हैं और इसका संकलन इनकी कठिनता के स्तर को ध्यान में रखकर किया जाता है। प्रत्येक समस्या में नवीनता होती है, जिसके कारण विद्यार्थियों को हल ज्ञात करने में निरन्तर प्रेरणा मिलती रहती है। इस विधि की सफलता समस्याओं में नवीनता एवं उन्हें निर्माण करने की क्षमता पर निर्भर करती है। प्रत्येक समस्या का सफल हल विद्यार्थियों को नवीन अनुभव प्रदान करता है और आगे की अन्य समस्याओं को हल करने की क्षमता उत्पन्न करता है। उदाहरणार्थ- छात्रों में नैतिकता की भावना का विकास कैसे करें ? अथवा छात्रों में नियमितता की भावना कैसे पैदा करें?

समस्या-समाधान विधि के पद (Steps of Problem-Solving Method) –

समस्या-समाधान विधि में निम्नलिखित पद प्रयोग किये जाते हैं-

  1. समस्या में दिये गये तथ्यों तथा उनके सम्बन्धों को समझना (Io understand the facts and their relationship given in problem)-

समस्या को प्रस्तुत करने के पश्चात् शिक्षक के लिये यह आवश्यक है कि कक्षा में वह छात्रों को इतना समय दें जिससे कि वे समस्या का भली-भाँति अध्ययन कर सकें। इससे विद्यार्थी को क्या, क्यों और कैसे का बोध होगा।

  1. समस्या का विश्लेषण (Analysis of Problem)

कक्षा में समस्या को प्रस्तुत करने के पश्चात् समस्या का प्रश्नोत्तर द्वारा विश्लेषण करना चाहिये तथा विद्यार्थियों के द्वारा यह स्पष्ट करना चाहिये कि समस्या में दिये गये तथ्यों में परस्पर क्या सम्बन्ध हैं तथा सम्पूर्ण परिस्थिति में उनका क्या महत्व है? इस पद के अन्तर्गत विद्यार्थी यह समझ जाते हैं कि कौन से तथ्य अनावश्यक हैं तथा कोन से आवश्यक हैं। समस्या को सफलतापूर्वक समझने के लिये आवश्यक हैं कि उनमें समस्या विश्लेषण करने की आदत का समुचित विकास हो।

  1. सम्भावित हल खोजना (To Find out Expected Solution)-

विश्लेषण  के पश्चात् विद्यार्थी यह भली-भोति समझ सकेगा कि जो हल ज्ञात करना है, उसे प्राप्त करने के लिये सामाजिक विज्ञान अथवा सामाजिक विज्ञान के कौन से नियम, सूत्र, सिद्धान्त आदि का प्रयोग आवश्यक है। इस स्तर पर ही वह यह निर्णय कर पाता है कि ज्ञातव्य बल को प्राप्त करने के लिये किस विशिष्ट विधि का प्रयोग करना अपेक्षित हैं।

  1. हल को प्राप्त करने के लिये सही गणना करना (To do the Accurate Calculation for Getting Solution)-

छात्र समस्या को समझते हुये भी कुछ त्रुटियाँ कर देते हैं या कुछ पदों का क्रम छोड़ जाते हैं, अत: उन्हें पर्याप्त अभ्यास कराया जाना चाहिये ताकि इस कमी को दूर किया जा सके।

  1. समस्या का हल ज्ञात करना एवं पुनः जाँच करना (To find out the Solution of Problem and to Test Again)

समस्या का हल ज्ञात करने के पश्चात् प्रत्येक विद्यार्थी को उत्तर की पुनः जाँच करनी चाहिये, जिससे हल में गणना अथवा अन्य विधि (क्रिया) सम्बन्धी त्रुटियों को ठीक किया जा सके।

समस्या-समाधान विधि के गुण (Merits of Problem-Solving Method)

पर्यावरणीय अध्ययन विषय के शिक्षण में समस्या-समाधान विधि निम्नलिखित गुणों के कारण उपयोगी हैं –

(1) इस विधि से विद्यार्थियों में सही चिन्तन तथा तर्क का समुचित प्रयोग करने की आदत पड़ जाती हैं।

(2) इस विधि के प्रयोग से विद्यार्थियों में समस्या से जूझने की आदत का विकास होता है, जो उसके जीवन में सफलता हेतु आवश्यक है।

(3) विद्यारथी में समस्या का विश्लेषण करने की क्षमता का विकास होता है तथा आवश्यक एवं अनावश्यक तथ्यो में विभेद कर सकता है।

(4) समस्या के द्वारा अध्यापक विद्यार्थियों को जीवन से सम्बन्धित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं। इस प्रकार इस विषय का सामाजिक महत्व कक्षा में प्रस्तुत करने में सहायता मिलती है।

(5) विद्यार्थियों में आत्म-विश्वास एवं आत्म- निर्भरता का विकास होता है।

(6) यह विधि बालक को सक्रिय बनाने एवं उच्च कक्षाओं के लिये उपयोगी हैं।

समस्या-समाधान विधि की सीमाएँ (दोष) (Limitations or Demerits of Problem-Solving Method) –

उपरोक्त गुणों के होते हुए भी इस विधि की कतिपय सीमाएँ (दोष) हैं –

(1) पाठ्य-पुस्तकों से प्रायः अधिकांश भाग परम्परागत समस्याओं का संकलन होता हैं, उत्तेजक समस्या के बिन्दु स्पष्टतः नहीं दिये होते हैं।

(2) जीवन की परिस्थितियों में इतनी तीव्रता से परिवर्तन हो रहे हैं कि सही तथ्यों का संकलन सम्भव नहीं है।

(3) जीवन पर आधारित समस्याओं का निर्माण प्रत्येक अध्यापक के लिये सरल नहीं है।

(4) कभी-कभी समस्याओं की भाषा इतनी कठिन एवं लम्बी होती है, जो बालकों के लिये कठिनाई लाती है।

(5) पर्यावरणीय अध्ययन के सभी प्रकरणों में जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का निर्माण असम्भव है।

समस्या प्रस्तुत करने के नियम (Laws to represent the problem)-

समस्या जीवन से सम्बन्धित ली जानी चाहिए। उसमें छात्रों की रुचियों एवं आयु का ध्यान रखा जाये, समस्या लम्बी एवं जटिल नहीं हो, तो उसे दो या तीन भागों में विभक्त कर देना चाहिए। समस्या के आँकड़े इस प्रकार हों जिसे कि छात्र सुविधापूर्वक समझ सकें एवं तदनुरूप क्रियाएँ कर सकें। इसके लिये किसी संकेत, चित्र, सारणी आदि को समस्या के साथ दें। समस्या के हल को ज्ञात करने के पश्चात् विद्यार्थी इस बात की जाँच करें कि दी हुई परिस्थितियों में क्या उत्तर तर्क संगत हैं?

समस्या का अध्ययन (Study of Problem)-

बालक ‘समस्या’ का अध्ययन दो प्रकार की पद्धति से करते हैं- (1) अन्तः अनुशासन पद्धति, (2) बहु-अनुशासनात्मक पद्धति ।

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