सिन्धु सभ्यता के प्रमुख निर्माण

सिन्धु सभ्यता के प्रमुख निर्माण | विभिन्न निर्माण सम्बन्धी विशेषताएं | सिन्धु घाटी की संस्कृति के मुख्य योगदान

सिन्धु सभ्यता के प्रमुख निर्माण | विभिन्न निर्माण सम्बन्धी विशेषताएं | सिन्धु घाटी की संस्कृति के मुख्य योगदान

सिन्धु घाटी की संस्कृति के मुख्य योगदान (सिन्धु सभ्यता के प्रमुख निर्माण)

पं० नेहरू ने सिन्धुघाटी सभ्यता का वर्णन करते हुए ‘हिन्दुस्तान की खोज’ नामक पुस्तक में लिखा है, ‘हिन्दुस्तान के बीते हुए युग की सबसे पहली तस्वीर हमें सिन्धुघाटी की सभ्यता में मिलती है, जिसके प्रभावशाली खण्डहर सिन्धु में मोहनजोदड़ो मैं और पश्चिमी पंजाब में हडप्पा में मिले हैं। यहाँ पर जो खुदाइयाँ हुई हैं, उन्होंने प्राचीन इतिहास के बारे में हमारे विचारों में क्रान्ति पैदा कर दी है।” सिन्धुघाटी की सभ्यता तथा संस्कृति निश्चय ही भारतीय इतिहास का एक क्रान्तिकारी अध्याय है। जैसा कि सर्वमान्य तथा सर्वविदित है-विश्व की महानतम सभ्यताओं का जन्म तथा विकास नदी-घाटियों में ही हुआ है। सिन्धु सभ्यता भी लगभग एक ऐसी ही सभ्यता है। अपनी भौगोलिक स्थिति तथा वातावरण की पृष्ठभूमि में सिन्धुघाटी में मानव सभ्यता ने ई० पू० लगभग पाँच हजार वर्ष पहले जो सांस्कृतिक तथा सभ्यतागत उपलब्धियों की प्राप्ति की, उसकी निर्माण सम्बन्धी विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

विभिन्न निर्माण सम्बन्धी विशेषताएं

  1. नगर निर्माण तथा नियोजन- सिन्धु सभ्यता नगर प्रधान सभ्यता थी! मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा नगर क्रमशः सिन्धु तथा रावी नदी के तट पर स्थित थे। नदी तट पर होने के कारण बाढ़ का संकट सदैव आसन्न रहता था। फलतः इन नगरों के निर्माण तथा नियोजन में बाढ़ से बचाव तथा जल की निकासी के लिये पर्याप्त प्रबन्ध किये गये थे। प्रतीत होता है कि नगर निर्माण से पूर्व किसी वैज्ञानिक आधार पर नगर नियोजन किया गया था। सिन्धु नगरों में छोटी नालियों तथा बड़े नालों का जाल-सा बिछा हुआ है। नालियों में गन्दे जल का अनवरूद्ध बहाव, कचड़ा न इकट्ठा होने देने का प्रबन्ध, नालियों में पानी नीचे न रिसने पाये आदि के लिये पर्याप्त प्रबन्ध किये गये थे। सिन्धु सभ्यता के नगरों में बड़ी सड़कों का जाल-सा बिछा हुआ है। बड़ी सड़कों से मिली हुई– शाखा रूप में, अनेक गलियाँ भी बनाई जाती थीं। सड़कों का नियोजन सीधी रेखाओं के समान होने के कारण कई खण्डों में विभाजित कर दिया जाता था। प्रत्येक खण्ड आधुनिक मोहल्लों की भाँति था। वक्राकार तथा घुमावदार सड़कों का अभाव था। सड़कें प्रायः मिट्टी की बनी होती थीं। सड़कों की सफाई तथा नगर की स्वच्छता के लिये सड़कों के दोनों ओर एक नियत स्थान पर कूड़ा फकने या इकट्ठा करने के लिये गड्ढे बनाये जाते थे। मोहनजोदड़ो की एक सड़क के किनारे कुछ चबूतरे भी बने हुए मिले हैं। संभवतः इन पर दूकानें लगाई जाती थीं। नालियों तथा सड़कों के नियोजन के अलावा नगर नियोजन में इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता था कि नगर में अवस्थित गृहों, स्नानागारों तथा अन्य आवासीय तथा सार्वजनिक निर्माणों में कोई अनियमितता न हो । सारांश में कहा जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता में नागरिक चेतना, नगर निर्माण की सुव्यवस्था तथा इससे सम्बन्धित नियमों के परिपालन की नियमबद्धता थी।
  2. गृह निर्माण- सिन्धुघाटी के उत्खनन द्वारा प्राप्त घरों के ध्वंसावशेष इस बात के निश्चित प्रमाण हैं कि तत्कालीन गृहनिर्माण कला में उपयोगिता, टिकाऊपन, सरलता, भव्यता, विशालता, विविधता, आकर्षण तथा सुन्दरता आदि गुण समाविष्ट थे। सुनियोजित आधार पर बने हुए मकानों में रोशनी, हवा तथा जल व्यवस्था का पूरा प्रबन्ध था। प्राप्त अवशेषों में सबसे छोटा घर 30×27 फिट तथा सबसे बड़ा गृह 26×30 मीटर वर्ग क्षेत्र में बना हुआ मिला है। छोटे घरों में चार या पाँच कमरे तथा बड़े घरों में लगभग तीस कमरे होते थे। प्रयुक्त पकाई हुई लाल रंग की ईंटों में छोटी ईंट का आकार 10 5x 2 इंच तथा बड़ी ईंट का आकार 20x10x32 इंच है। मकान बनाते समय ईंटों को गारे तथा चूने से जोड़ा जाता था। भवनों की नींव गहरी तथा मजबूत होती थी तथा वे कई मंजिलों के होते थे। छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं तथा छत के चारों ओर सुरक्षात्मक चहारदिवारी बनाई जाती थी। मकानों की खिड़कियाँ प्रायः गली की ओर खुलती थीं। प्रवेशद्वार के सामने आवरण हेतु एक छोटी-सी दीवार बनाई जाती थी। कमरों का प्रवेशद्वार अपेक्षाकृत अधिक बड़ा होता था। मोहनजोदड़ो से शंखों तथा हड्डियों की खूटियाँ तथा चटखनियाँ प्राप्त हुई हैं। इनका प्रयोग वस्त्रादि टाँगने तथा दरवाजे बन्द करने के लिये किया जाता था। घर के बीचो-बीच रसोईघर होता था। चूल्हे ईंटों तथा मिट्टी द्वारा बनाये जाते थे। घड़े के आकार का बर्तन जमीन में बना होता था जिसमें खाद्यान्न संचय किया जाता था। प्रत्येक गृह में स्नानागार होता था। इनमें पक्की तथा चिकनी ईटों द्वारा बनाया हुआ फर्श होता था। पानी एकत्र करने के लिये गोलाकार या चौकोर बड़ा बर्तन प्रयुक्त किया जाता था। आधुनिक समय की तरह स्नानागार के साथ-साथ शौचालय होता था। प्रायः सभी मकानों में कुएँ होते थे। ये अण्डाकार होते थे तथा इनके चारों ओर की अन्दरी दीवार को ईंटों द्वारा चुना जाता था। कतिपय कुओं के अन्दर सीढ़ियाँ भी बनाई जाती थीं। निवास गृहों को एक दूसरे से पृथक् करने के लिये संकीर्ण गलियाँ बनाई जाती थीं।
  3. विशाल निर्माण- मोहनजोदड़ो, हड़प्पा तथा चन्दूदड़ो के ध्वंसावशेषों में हमें कतिपय विशाल निर्माणों के स्वरूप प्राप्त हुए हैं। इनमें भव्य भवन, विशाल गोदाम तथा स्नानागार आदि हैं।

 हड़प्पा से समानान्तर चतुर्भुज के आकार की एक गढ़ी मिली है। यह 15 फिट ऊँची, 415 मीटर लम्बी तथा 165 मीटर चौड़ी है। नदी तट पर बनी इस गढ़ी की बाहरी दीवार में अनेक द्वार तथा ऊपर अनेक मीनारे बनी हुई थीं। गढ़ी के अन्दर चबूतरे पर अनेक भवन बनाये गये थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त गढ़ी एक कृत्रिम पहाड़ी पर बनाई गई है। बाढ़ से रक्षा के निमित्त इसके चारों ओर 21 मीटर चौड़ा बाँध बनाया गया है। अपने आकार-प्रकार में यह निर्माण एक दुर्ग प्रतीत होता है। मोहनजोदड़ो की गढ़ी के भीतर स्थित विशाल भवन में या तो कोई शासकीय अधिकारी निवास करता रहा होगा अथवा इसका उपयोग छावनी के लिये किया जाता रहा होगा। इस भवन का वर्ग क्षेत्र 24×70 मीटर, बाहरी दीवार 2 मीटर चौड़ी तथा भीतर का आँगन 10×10 मीटर वर्गक्षेत्र का है। इसके अतिरिक्त एक अन्य विशाल भवन भी प्राप्त हुआ है जिसका वर्गक्षेत्र 24×70 मीटर तथा दीवार डेढ़ मीटर चौड़ी है। इसमें दो विशाल आंगन, अनेक कक्ष तथा भण्डारागार थे। यह भवन राजा के महल के स्वरूप का है। यहीं से प्राप्त एक अन्य विशाल भवन 71×71 मीटर वर्गक्षेत्र का है। इसमें एक विशाल प्रांगण है जो 20 स्तम्भों पर टिका हुआ था। इस प्रांगण के चारों ओर अनेक स्थानों पर कुर्सियों के आकार की चौकियाँ बनी हुई हैं। यह सभा भवन प्रतीत होता है । हड़प्पा से प्राप्त विशाल गोदाम में बारह-बारह दीवारों के दो समूह हैं, एक पूर्व की ओर तथा दूसरा पश्चिम की ओर। इन दोनों के बीच लगभग पाँच मीटर का अन्तर है। प्रत्येक गोदाम का मुख न की ओर है। प्रतीत होता है कि इनमें जलमार्ग से आने वाली सामग्री.का संचय किया जाता था। विशाल गोदाम से लगभग 85 मीटर दूर दक्षिणी दिशा में अनेक गोलाकार चबूतरे बने हुए मिले है । प्रत्येक चबूतरे का व्यास 3 1/2 मीटर है। इस चबूतरे के बीच में एक छेद बना हुआ है जिसका प्रयोग कदाचित अनाज पीसने के लिये किया जाता रहा होगा।

  1. सार्वजनिक स्नानागार- सिन्धुघाटी सभ्यता के निर्माणों में ‘विशाल स्नानागार’ या सार्वजनिक स्नानागार प्रमुख स्थान रखता है। इस स्नानागार का क्षेत्र’ फल 180×108 फिट है। इसके चारों ओर गैलरी, कक्ष तथा कमो इत्यादि बने हुए हैं। प्रांगण के मध्य में बने स्नानकुण्ड की लम्बाई 30 फिट, चौड़ाई 23 फिट तथा गहराई 8 फिट है। स्नानकुण्ड के निकट स्थित कुएं से जल पूर्ति की जाती थीं। स्नानकुण्ड के गन्दे जल को बाहर निकालने के लिये तथा नीचे उतरने के लिये सीढ़ियों की व्यवस्था है। स्नानकुण्ड के चारों ओर बने चबूतरों पर बैठकर स्नान किया जाता था। सीलन से बचाव तथा पानी न रिसने हेतु स्नानकुण्ड की दीवारों को मजबूत ईंटों द्वारा बनाकर उन पर चिकना प्लास्टर किया गया है। सार्वजनिक स्नानागार के निकट कई छोटे-छोटे स्नानागार भी मिले हैं। इनमें आवश्यकतानुसार गर्म तथा ठण्डा जल रखा जाता था। विशाल स्नानागार की प्रशंसा करते डा० मजूमदार ने लिखा है-

“The solidity of the construction is amply borne by the fact that it has successfully with stood the ravages of live thousand years.’

  1. सुरक्षा सम्बन्धी निर्माण तथा छोटी बस्तियाँ- सिन्धु सभ्यता से प्राप्त ध्वंसावशेषों से विदित होता है कि नगरों की सुरक्षा के लिये विभिन्न उपाय किये जाते थे। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा नगरों के चारों ओर चहारदीवारी बनाई गई थी। इसका उद्देश्यन बाहरी आक्रमण से रक्षा करना था। उपरोक्त दोनों नगरों के बाहर अनेक छोटी-छोटी बस्तियों के अवशेष मिले हैं। इन बस्तियों में या तो समाज का निम्नस्तरीय वर्ग निवास करता था अथवा जनसंख्या में वृद्धि होने के कारणं इन बस्तियों को बसाया गया था।
  2. निर्माण सम्बन्धों विशेषताओं की समीक्षा- सिन्धु सभ्यता के उपरोक्त वर्णित निर्माणों की विविधता, वास्तुकला का अपूर्व ज्ञान, योजनाबद्धता, स्वच्छ एवं स्वास्थ्यकारी दृष्टिकोण आदि गुणों से विभूषित आदिम सभ्यता का वह युग आधुनिक निर्माण कार्यों के लिये एक आदर्श चुनौती प्रस्तुत करता है। निश्चय ही, सिन्धु सभ्यता के नागरिकों को वे सब सुविधायें प्राप्त थीं जो तत्कालीन समय में तो क्या. आज के भी अनेक नागरिकों को उपलब्ध नहीं हैं।
इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

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