इतिहास / History

शेरशाह का प्रारम्भिक जीवन | शेरखाँ द्वारा किया कार्य | शेरखाँ का हुमायूँ से संघर्ष

शेरशाह का प्रारम्भिक जीवन | शेरखाँ द्वारा किया कार्य | शेरखाँ का हुमायूँ से संघर्ष

  1. शेरशाह का प्रारम्भिक जीवन-

हुमायूँ के राज्य से निर्वासन के पश्चात् शेरशाह हिन्दुस्तान का शासक बना । उसने 1540 से 1545 ई. तक राज्य किया। उसका पंचवर्षीय शासन भारत में महत्वपूर्ण माना जाता है। उसका जन्म किसी अमीर घराने में नहीं हुआ था। उसमें एक सम्राट, सेनापति, नेता और शासक के गुण मौजूद थे। उसके बचपन का नाम फरीद था। उसका जन्म 1472 ई० में होशियारपुर के समीप बजवाड़ा ग्राम में हुआ था। उसका पिता हसन साधारण अफगान था। हसन ने चार विवाह किये थे। वह उसकी सबसे बड़ी पत्नी से उत्पन्न हुआ था। कानूनगो के अनुसार उसका जन्म 1486 में हुआ था। हसन ने जमाल के यहाँ नौकरी की। जब जमाल खाँ जौनपुर गया तो हसन भी अपने परिवार सहित उसके साथ चला गया। फरीद ने अपना बाल्यकाल सहसराम में व्यतीत किया। हसन ने फरीद को वापिस बुलाया और अपनी जागीर का प्रबन्ध उसको सौंप दिया।

  1. सहसराम की जागीर का प्रबन्ध-

फरीद ने यहाँ योग्यता का परिचय दिया। उसने समस्त अधिकारियों को नियन्त्रण में रखा। उनके कार्य की वह स्वयं देख-रेख करता था। उसने अपनी जागीर में सुख-शान्ति की व्यवस्था की जिससे किसानों को अच्छा लगा तथा संतोष हुआ। वह 1518 ई. तक वहाँ रहा।

जागीर के प्रबन्धक के रूप में उसको सहसराम स्वासपुर का प्रबन्धक नियुक्त किया गया। यहाँ उसने 20 वर्ष कार्य किया। उसके कार्य को देखकर अन्य भाइयों में ईर्ष्या की ज्वाला भड़क उठी। परन्तु असफल रहे।

  1. शेरखाँ द्वारा कार्य-

जागीर प्रबन्धक के रूप में उसने निम्नलिखित कार्य किये-

(i) उसने किसानों के साथ अच्छा व्यवहार किया।

(ii) शेरशाह ने किसानों को लगान देने की सुविधा दी।

(iii) उसने किसानों की दशा सुधारने के लिए भूमि की पैमाइश की और लगान नियत करने का तरीका अपनाया और मुखियाओं से कहा, “यदि तुमने किसानों से नियत धनराशि से अधिक लगान लिया तो लगान तुम्हारे हिसाब से काट लिया जायेगा।”

(iv) उसने सेना के साथ अच्छा बर्ताव किया। योग्यता के आधार पर सैनिकों की भर्ती की।

(v) उसने प्रान्तों के शासकों पर नियंत्रण रखने के लिए अधिकारियों के तबादले की व्यवस्था की।

  1. फरीद का पुन: पलायन-

वह असंतुष्ट होकर घर से चला गया। उसने बिहार के शासक बहार खां लोहानी के यहाँ नौकरी की। वहाँ शेर मार कर शेर खाँ की उपाधि ली। बाद में उसे बिहार का उप-गवर्नर बनाया गया।

  1. पद से निवृत्त-

दक्षिण बिहार के अफगान सरदार ने कुछ शिकायत पर शेरशाह को हटा दिया।

  1. पद पुनः प्राप्त करना-

अफगानों के कुचक्र के कारण शेरखा गृह विहीन हो गया। उसने जागीर पाने के लिए गवर्नर को सहायता ली। उसने अपनी प्रतिष्ठा अफगानों में प्राप्त की। इस सहायता के कारण उसकी प्रतिष्ठा को धक्का लगा था। बाबर उससे प्रभावित हुआ। 1527 में वह आगरा गया। बाबर के सेवकों में उसे स्थान प्राप्त हुआ। मुगलों की शासन व्यवस्था का उस पर प्रभाव पड़ा। शेर खाँ ने बाबर को बिहार के आक्रमण में सहायता दी जिसके कारण उसके सहसराम में जागीर मिल सकी। कुछ समय रहकर उसने अफगानों की सहायता प्राप्त की। वह सुल्तान महमूद के पास गया जो दक्षिण बंगाल में था। उसे जलाल खां का शिक्षक नियुक्त किया। सुल्तान महमूद की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा पत्नी ने शेर खाँ को अपना वकील नियुक्त किया। अब उसने शासन व्यवस्था को उन्नत करने की कोशिश की और अफगान सैनिकों का संगठन किया। अपने समर्थकों का दल बनाया। 1529 में इब्राहीम लोदी का भाई महमूद विहार आया। उसके नेतृत्व में अफगानों ने मुगलों का विरोध किया। उसमें शेर खाँ शामिल हो गया। मुगलों के आने के समाचार से अफगान भयभीत हो गये। शेर खां को जागीर मिल गई।

  1. उपगवर्नर का पद-

शेर खाँ उपगवर्नर के पद पर नियुक्त हुआ। जलाल खाँ की माँ को मृत्यु के कारण शासन की व्यवस्था शोचनीय हो गई। शासन की सत्ता शेर खाँ के पास आ गई। सेना का पुनर्गठन किया। शेरखाँ जलाल खाँ के संरक्षक के रूप में कार्य करता रहा।

  1. बंगाल पर आक्रमण-

बंगाल के शासक ने दक्षिण बिहार को अपने अधिकार में करना चाहा। शेरखा इसको सहन कर सका। उसने बंगाल के शासक नुसरत शाह को दो बार परास्त किया। जलाल खाँ दक्षिण विहार से चला गया और सारी सत्ता शेर खाँ के हाथों में आ गई। अब वह दक्षिण बिहार में शासन करने लगा।

  1. चुनार पर अधिकार-

1530 में शेरखाँ ने चुनार पर अधिकार कर लिया। चुनार के शासक ताज खाँ और उसके पुत्र में झगड़ा हो गया। पुत्र ने उसका वध कर दिया। शेर खाँ ने उसकी विधवा पत्नी लाड मलिका से विवाह किया और चुनार को अधिकार में ले लिया। उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई। अब वह सुल्तान बनने की इच्छा करने लगा।

  1. शेरखाँ का हुमायूँ से संघर्ष-

नुसरतशाह की मृत्यु के पश्चात् महमूद बंगाल का शासक बना। वह बिहार पर आक्रमण करना चाहता था। शेरखाँ ने उसे परास्त किया। कुछ समय पश्चात् उसने पुनः बंगाल की सेना को परास्त किया। “शेर खाँ की बढ़ती ताकत को देख कर बंगाल के शासक महमूद शाह को ईर्ष्या हुई। वह बिहार आया। 1534 में शेर खों ने बंगाल पर आक्रमण किया। जून 1534 में शेर खाँ और महमूद में सूरजगढ़ नामक स्थान पर भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में परिणाम शेरखाँ के लिए अच्छे सिद्ध हुए।” (कानूनगो)। इससे शेरखाँ को लाभ हुआ। 1535 में उसने बंगाल पर पुनः आक्रमण किया। 1537 ई० में एक बार फिर बंगाल को अपने अधिकार में किया। अब हुमायूँ शेरखाँ की शक्ति का दमन करने के लिए बंगाल आया। हुमायूँ ने अपना प्रभाव बंगाल में स्थापित किया। शेरखाँ फिर बिहार आ गया और उसने मुगल साम्राज्य के प्रान्तों पर आक्रमण शुरू किये। हुमायूँ बिहार की ओर गया। वहाँ उसे चौसा का युद्ध लड़ना पड़ा, जिसमें हुमायूँ परास्त हुआ। दिल्ली और आगरा प्राप्त करने के बाद वह शेरशाह के नाम से दिल्ली सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने पाँच साल शासन किया। 1545 में उसकी मृत्यु हुई। 1540 में उसने मालवा, रणथम्भौर, रायसेन, सिन्ध, सुलतान व राजपूताना पर सफल अभियान किये। कालिन्जर अभियान में उसकी मृत्यु हुई।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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