फ्रांसीसी क्रान्ति का महत्व | क्रांति फ्रांस में क्यों हुई | फ्रांसीसी क्रान्ति के कारण | Importance of French Revolution in Hindi
फ्रांसीसी क्रान्ति का महत्व
(Importance of French Revolution)
फ्रांस की क्रान्ति न केवल फ्रांस और यूरोप के वरन् सारे संसार के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है । इसके द्वारा स्वतन्त्रता, समानता तथा विश्व-बन्धुत्व के सिद्धान्तों की स्थापना हुई। ये सिद्धान्त धीरे-धीरे सारे संसार में लोकप्रिय हो गए। नेपोलियन की पराजय के पश्चात् फ्रांस में क्रान्ति में परिवर्तन किया गया। परन्तु क्रान्ति के द्वारा जिन सिद्धान्तों का जन्म हुआ था, वे काफी समय बाद तक बने रहे, अनेक देशों का प्रजातन्त्र उन्हीं सिद्धान्तों की नींव पर रखा गया। आज वे सिद्धान्त सभी देशों के राजनयिकों को मान्य हैं।
(1) मानव अधिकारों की घोषणा-
फ्रांस की क्रान्ति के समय फ्रांस की राष्ट्रीय महासभा (National Assembly) ने मानव अधिकारों की एक घोषण की थी। उससे पहले साधारण नागरिक का कोई सम्मान नहीं था। यह घोषणा इंगलैण्ड के मैग्नाकार्टा तथा अमेरिका की स्वाधीनता के समान व्यक्ति को अत्याचारों तथा निरंकुशता से छुटकारा दिलाने का महामन्त्र था। आज संसार में इन मानव अधिकारों के बिना सरकार तथा समाज का कोई काम नहीं चल सकता।
(2) राष्ट्रीयता की भावना-
फ्रांस की महान् क्रान्ति ने लोकतन्त्र तथा राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया। राष्ट्रीयता का वास्तविक तात्पर्य होता है देश में एक राष्ट्र भाषा, एक धर्म, एक परम्परा वाले व्यक्तियों का सामूहिक रूप में संगठित होना। फ्रांस में क्रान्ति से पूर्व इस प्रकार की राष्ट्रीयता की भावना कहीं नहीं थी, लोगों को राजा या अपने जागीरदार के प्रति श्रद्धा का प्रदर्शन करना पड़ता था। परन्तु फ्रांसीसी क्रान्ति ने इस प्रकार की श्रद्धा के लिए एक लोकतन्त्रीय आधारशिला का उरेचन किया। अब यह माना जाने लगा कि व्यक्ति को राष्ट्र के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करना चाहिए।
(3) लोकतन्त्र का उदय-
देश में क्रान्ति के साथ-साथ लोकतन्त्र की भावना ने जन्म लिया। इसका मतलब था कि राज्य की प्रभुसत्ता जनता में निहित है न कि किसी राजा या जागीरदार में। इसलिए शासन जनता की इच्छानुसार और जनता की भलाई के लिए होना चाहिए। यह एक ऐसा मूलभूत तथा प्रबल मन्त्र था जिसने सारी दुनिया में धीरे धीरे राजतन्त्रों के ताले तोड़ दिए। आज विश्व में लोकतन्त्र शासन सबसे अच्छा शासन माना जाता है। जिन देशों में राजतन्त्र है, वहाँ शासन की पद्धति जनतन्त्र (लोकतन्त्र) पर आधारित है।
(4) सामूहिक जीवन-
फ्रांस की क्रान्ति से पूर्व व्यवस्था समूहों पर आधारित थी। उदाहरण के लिए चर्चे, वर्ग, विश्वविद्यालय, शिल्प श्रेणी आदि समूह शासन की बागडोर सम्भालते थे और जनता से अपने ढंग के कानूनों का पालन कराते थे। परन्तु क्रान्ति के पश्चात् व्यक्ति पर आधारित होने वाली व्यवस्था बनी। स्वतन्त्रता और समानता व्यक्तियों के लिए थी, समूहों के लिए नहीं । व्यक्ति का यह सम्मान फ्रांसीसी क्रान्ति के पश्चात् ही हुआ।
(5) नई धारणा-
फ्रांसीसी क्रान्ति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो० हैजेन ने लिखा है कि “फ्रांस की क्रान्ति ने राज्य के सम्बन्ध में एक नई धारणा को जन्म दिया। राजनीति और समाज के बारे में नये सिद्धान्त प्रतिपादित किए। जीवन का एक नया दृष्टिकोण सामने रखा और एक नई आशा और विश्वास उत्पन्न किया।”
क्रांति फ्रांस में क्यों हुई
(Why the Revolution happened in France)
क्रांति की स्थिति यूरोप के अन्य देशों से अच्छी-
यदि हम 18वीं शताब्दी के यूरोपीय राज्यों के इतिहास का अध्ययन करें तो स्पष्ट हो जायेगा कि इस समय फ्रांस को जो स्थिति थी उससे भी खराब स्थिति यूरोप के अन्य देशों की थी। निरंकुश राजतंत्र, सुविधाप्राप्त वर्ग और करों के असहनीय भार से दबे हुए साधारण वर्ग प्रायः सभी यूरोपीय देशों में मौजूद थे। कई दृष्टियों से यूरोप के अन्य राज्य तो फ्रांस से काफी पीछे थे और वहाँ अत्यधिक शोषण होता था। फ्रांस की क्रांति सामंती व्यवस्था के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया थी, लेकिन सामंती व्यवस्था का स्वरूप फ्रांस में उतना विकसित नहीं था, जितना कि प्रशा आस्ट्रिया, रूस आदि देशों में था। फिर भी क्रांति फ्रांस में हुई, इसके कुछ प्रमुख कारण थे।
केटलबी ने लिखा है कि फ्रांसीसी सभ्यता क्रांति के समय गोवर ढेर पर एक कमल का खिला हुआ फूल था, अर्थात् यूरोपीय सभ्यता की तुलना में फ्रांसीसी जनता अधिक खुशहाल थी। गरीब आदमी में सामाजिक चेतना और राजनीतिक आकांक्षा का होना संभव नहीं है, क्योंकि वह हमेशा अपनी रोजी-रोटी के विषय में चिंतित रहता है। संयोग से फ्रांस का मध्यमवर्ग न केवल आर्थिक रूप से खुशहाल था, बल्कि उसमें बौद्धिक जागृति भी थी। हां, उसे समाणिक मान्यता अवश्य प्राप्त नहीं थी। इस अपमान को मिटाने के लिए वह कांतिकारी सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन चाहता था। नेपोलियन ने सेंट हेलेना में कहा था, “कांति स्वतन्नता के लिए नहीं बल्कि समानता के लिए, हुई। फ्रांस के किसान भी अन्य यूरोपीय देशों के किसानों से सुखी थे और वे भूमि खरीद रहे थे। उनकी चाह थी कि यदि उन्हें अन्यायपूर्ण कर नहीं देना पड़ेगा तो ये और अधिक भूमि खरीद सकेंगे। इस सम्बंध में यह कहा जाता है कि प्रॉस की क्रांति गरीबी के कारण नहीं, बल्कि सम्पन्नता के कारण दुई। उपर्युक्त दोनों कपन सही ढंग से विश्लेषण करने में सही प्रतीत होते हैं।
जागरूक पध्यमवर्ग-
जागरूक मध्यमवर्ग फ्रांस और इंगलैंड को छोड़कर यूरोप के अन्य देशों में नहीं था। किसी भी देश में तब तक क्रांति नहीं हो सकती, जब तक कि सामान्य जनता का मार्गनिर्देशन करने वाला कोई नहीं हो । फ्रांस का मध्यमवर्ग विशेष कारणों से असंतुष्ट था और अपने स्वार्थों के रक्षार्थ राजसत्ता पर नियन्त्रण कायम करने के लिए अत्यंत उतावला था। अन्य यूरोपीय राज्यों में इस प्रकार की स्थिति नहीं थी। जागरूक और शिक्षित मध्यमवर्ग ने अशिक्षित और शोषित कृषकों का मानिर्देशन किया। अन्य यूरोपीय देशों में अशिक्षित और शोषित जनता का कोई अच्छा मार्गनिर्देशन नहीं था।
वर्साय और पेरिस का तनाय-
फ्रांस की राजधानी पेरिस वैभव, राजनीतिक और बौद्धिक चेतना के साथ-साथ फ्रांस के सांस्कृतिक जीवन का भी मुख्य केन्द्र था । यहाँ से कई समाचारपत्र निकाले जाते थे। कई राजनीतिक मंच भी यहाँ थे जहाँ देश की राजनीतिक समस्याओं पर विचार होता था, लेकिन जब वर्साय का महत्व बढ़ने लगा और वहाँ बड़े-बड़े सामंतों का जमघट होने लगा तो पेरिस के लोगों का राजतन्त्र के प्रति विश्वास घटने लगा। इस तनाव और अविश्वास के कारण क्रांति संभव हो सकी। इस तनाव की स्थिति पूरे देश में नहीं थी।
किसान स्वतन्त्र-
18 वीं शताब्दी तक फ्रांस के सामंती प्रथा के बहुत से अवगुण समाप्त हो गए थे। अब वहाँ अदुर्धदासों की संख्या नाममात्र की थी। यूरोप के अन्य देशों के किसान अभी अद्रर्धदास ही थे, लेकिन फ्रांस में अधिकांश किसान प्रायः स्वतन्त्र हो चुके थे। उनकी अपनी जमीन थी, अपना घर था, पर अभी तक उन पर सामंती कर तथा सामती सेवाओं का बिल्कुल अन्त नहीं हुआ था। फ्रांसीसी किसानों को यह बात बुरी लगती थी। किसान अपनी आमदनी से और अधिक भूमि खरीदना चाहते थे जिसमें सामंत एवं पादरी बाधा बने हुए थे।
अभिजातवर्ग की अनुपयोगिता-
अभिजात वर्ग को पहले विशेषाधिकार इसलिए दिए गए थे कि वे शासन चलाने में राजा की मदद करते थे और जनता की रक्षा करते थे। फ्रांस में अब इस काम को सीधे राजा के कर्मचारी करते थे। परन्तु समाज की कुलीनों के विशेषाधिकार में कमी नहीं आई थी। अतः मध्यमवर्ग और किसान अभिजात वर्ग से क्षुब्ध थे। अन्य यूरोपीय देश के किसानों की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी और न वहाँ सामतों ने अपनी उपयोगिता खोई थी।
राजनीतिक सहभागिता का अभाव-
इंगलैंड में जब मध्यम वर्ग जागरूक हुआ तो राजनीतिक रूप से जागरूक वर्ग को देश की राजनीति में भाग लेने का मौका दिया गया। इसके अलावे राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति के लिए स्थानीय तथा राष्ट्रीय मंच भी यहाँ मौजूद थे। यूरोप के अन्य देशों में प्रबुद्ध शासकों ने सुधारों का मरहम लगाया था। फ्रांस इसके विपरीत घोर केन्द्रीयकरण था। फ्रांस में मध्यमवर्ग या अन्य निम्नवर्ग के लोगों के लिए न तो राजनीतिक स्वतन्त्रता थी और न सत्ता में सहभागिता। ऐसी स्थिति में लोगों का असंतोष क्रांति की ओर अग्रसर हुआ।
अयोग्य राजा और प्रशासन में भ्रष्टाचार-
फ़्रांस की राजनीतिक व्यवस्था अति केन्द्रीकृत थी, मगर शासक अयोग्य थे। अतः प्रशासन में भ्रष्टाचार व्याप्त था। जागरूक मध्यमवर्ग इस भ्रष्टाचार को महसूस करता था और इसके विरुद्ध बगावत करने के लिए उद्यत था। यह स्थिति यूरोप के अन्य देशों के साथ नहीं थी। अन्य देशों में भी निरंकुश राजतन्त्र था, परन्तु वहाँ के राजाओं का शासन तन्त्र पर कठोर नियन्त्रण था और राजा योग्य थे। इसके अलावा न तो वहां के मध्यमवर्ग इतने जागरूक थे और न किसान इतने महत्वाकांक्षी ही। फलतः उन देशों में क्रान्ति न होकर फ्रांस में हुई।
राष्ट्रीय भावना का उदय-
यूरोप में फ्रांस ही एक ऐसा देश था, जहाँ पर सामाजिक विषमता के बावजूद एक राष्ट्र की भावना का सूत्रपात हो चुका था। अन्य देशों में इस तरह की भावना का सर्वथा अभाव था। अतः परेशानी होते हुए भी उसके विरुद्ध आवाज उठाना संभव नहीं हो पाया, जबकि यह फ्रांस में हो गया।
लोग खुशहाल मगर राज्य में आर्थिक स्थित खराब-
फ्रांस के नागरिक संपन्न थे, मगर राज्य गरीब था। मध्यमवर्ग साधनसम्मन्न था और किसान भी खुशहाल थे। सामंत और कुलीन की स्थिति भी बुरी नहीं थी। लेकिन, राजकोष खाली हो गया था। ऐसा अनियन्त्रित खर्च और राज्य को आय दिन-प्रतिदिन घटने के कारण हुआ था। राज्य को अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सुविधा प्राप्त वर्ग जैसे शक्तिशाली एवं प्रभावशाली लोगों पर कर लगाना था, किन्तु ये लोग कोई भी कर देने को तैयार नहीं थे। ऐसी स्थिति यूरोप के अन्य देशों के साथ नहीं थी। वहाँ राज्य मजबूत था और उसकी आज्ञा का उल्लंघन करना भी किसी वर्ग के लिए संभव न था।
दार्शनिकों की भूमिका-
फ्रांस की राज्यक्रांति का एक प्रमुख कारण यहाँ की विचारधारा थी। फ्रांस के दार्शनिकों ने लोगों को स्वतन्त्रता और समानता का महत्व बताया। इन्होंने राजा, कुलीनों, पादरियों के अत्याचारों की कटु आलोचना की, लोगों को उनकी स्थिति से अवगत दुराया, अपनी शक्ति से परिचित कराया और स्थिति को बदलने के लिए प्रोत्साहित किया। ऐसे दार्शनिक यूरोप के अन्य देशों में नहीं थे, फलतः फ्रांस में ही क्रांति हुई।
अमेरिकी स्वातन्त्र्य युद्ध का प्रभाव-
फ्रांस के सैनिकों ने अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया था। वहाँ इन्हें इस बात का अनुभव हुआ कि युद्ध करने पर भी स्वतन्त्रता मिल सकती है और स्वतन्त्रता से सुख मिल सकता है। फ्रांस आकर इन्होंने देखा कि जिस स्वतन्त्रता के लिए इन्होंने अमेरिका में लड़ाई की है, उनके अपने देश फ्रांस में इसका सर्वथा अभाव है। अत: ये क्रान्ति पर उतारू हो गए। यह स्थिति यूरोप के अन्य देशों के साथ नहीं हुई थी।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि फ्रांस में क्रांति दरिद्रता के कारण नहीं हुई, बल्कि सम्पन्नता के कारण हुई । फ्रांसीसी किसान और धन इक्ट्ठा करने के चक्कर में सामंती करों से मुक्त होने के लिए क्रांति के पथ पर अग्रसर होने के लिए तैयार थे। फ्रांसीसी मध्यमवर्ग काफी महत्वाकांक्षी और दार्शनिकों के दर्शन को अपने हित में अर्थ लगाकर जनता को क्रांति के पथ पर बढ़ने को ललकार रहा था। इतना ही नहीं, 1788-89 के अकाल और पाले ने पेरिस में भीड़ इकट्ठा करने के लिए सुअवसर प्रदान किया। 1788 ई. को फ्रांस की इंगलैंड के साथ हुई इडेन की संधि से फ्रांसीसी कारखाने बन्द होने लगे, क्योंकि इंगलैंड के उन्नत औद्योगिक उत्पादनों के सामने फ्रांस के नव-औद्योगिक उत्पादन नहीं ठहर् पाए। फलतः ये कारखाने बन्द होने लगे और अन्त में बेकारों की सेना पेरिस में जमा होने लगी और इस भीड़ ने क्रांति के होने में काफी योगदान दिया।
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