भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ | भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं | भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन के कारण
भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ | भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं | भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन के कारण | Features of Indian Economy in Hindi | Salient Features of Indian Economy in Hindi | Reasons for backwardness of Indian economy in Hindi
भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ
- प्रति व्यक्ति आय कम होना- प्रो. कुरिहारा के अनुसार, “अर्द्ध-विकसित अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण सूचक प्रति व्यक्ति आय का निम्न होना है।” विश्व की कुल जनसंख्या की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या की प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 300 डॉलर वार्षिक से कम है। भारतवर्ष की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (2001 में) 450 डॉलर थी।
प्रति व्यसक्ति आय कम होने के कारण अल्प-विकसित देशों में रहन-सहन का स्तर नीचा है, भोजन अपौष्टिक व अपर्याप्त है, शिक्षा, शिक्षा, चिकित्सा व आवास सुविधाओं का अभाव पाया जाता है तथा उत्पादकता का स्तर निम्न रहता है। इसलिये केयरनक्रास ने इन्हें ‘विश्व की गंदी बस्ती’ कहा है।
- अकुशल जन शक्ति- प्रशिक्षण सुविधाओं के अभाव के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में श्रम की कार्यकुशलता कम होती है।
- प्राकृतिक साधनों की अधिकता- भारत का कुल क्षेत्रफली 32,87,782 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ नाना प्रकार की उपजाऊ मिट्टियाँ तथा कृषि योग्य जलवायु पायी जाती है। इसके अतिरिक्त नदियों का बाहुल्य है जिसमें बारहों महीना जल भरा रहता है। भारतीय भूमि के भूगर्भ में प्राकृतिक साधनों की भी अधिकता है। खनिज वस्तुओं में तेल, कच्चा लोहा, कोयला, मैंगनीज, कोरोमाइट, फ्लूराइट, सोना, अभ्रक, तांबा, जस्ता, जिंक ऑक्साइड, माइका तथा जिप्सम इत्यादि प्रमुख हैं।
- प्राकृतिक साधनों के विदोहन का अभाव- यद्यपि अर्द्ध-विकसित देशों में प्राकृतिक साधन जैसे-जल, खनिज, वन, चालक शक्ति आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं परंतु ये साधन अप्रयुक्त, अर्द्ध-प्रयुक्त दुष्प्रयुक्त रहते हैं।
- ग्रामीण जीवन की प्रमुखता- भारत में ग्रामीण जीवन की प्रधानता है। कुल जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत भाग अब भी गाँवों में रहता है। गाँवों की प्रधानता का मुख्य कारण देश के नागरिकों की कृषि पर निर्भरता है। अन्य विकसित देशों में जनसंख्या का अधिक भाग नगरों में रहता है। ग्रामीण जीवन की प्रधानता के मुख्य कारण इस प्रकार हैं-
(क) कृषि जीवन का मुख्य आधार है। (ख) अशिक्षित जनसंख्या है। (ग) बड़े-बड़े नगरों में लोगों को कार्य करने के लिए अवसरों की विशेष कमी है। (घ) सामाजिक रीति-रिवाज तथा रूढ़िवादिता के कारण भारतीयों में गतिशीलता बहुत कम है इत्यादि।
- जनसंख्या में तीव्र वृद्धि- भारतीय जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर ऊंचा रहने के कारण जनसंख्या विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसके फलस्वरूप उत्पादन के साधनों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता है, बेरोजगारी की समस्या बढ़ती है एवं आर्थिक योजनाओं पर बाधा आती है।
- कृषि की प्रधानता- संपूर्ण जनसंख्या का लगभग तीन-चौथाई भाग कृषि कार्य में लगा हुआ है। अर्थव्यवस्था में अन्य रोजगारों की कमी के कारण लोगों को कृषि व्यवसाय को ही अपनाना पड़ता है। राष्ट्रीय आय का लगभग 45 से 50 प्रतिशत भाग कृषि से ही प्राप्त होता है। किंतु फिर भी कृषि पिछड़ी है क्योंकि, (1) भारत में भूमि का वितरण उचित नहीं है, (2) खेती करने का तरीका अति प्राचीन है, (3) सिंचाई के साधन अविकसित हैं, (4) अच्छे बीज, रासायनिक खादों का प्रयोग बहुत कम हो पा रहा है, इत्यादि।
- व्यापक-बेरोजगारी व अर्द्ध-बेरोजगारी- भूमि पर पर जनसंख्या का अधिक भार, औद्योगिकीकरण का अभाव तथा पूंजी निर्माण के अभाव के कारण अर्द्ध-विकसित देशों में बेरोजगारी एवं अर्द्ध बेरोजगारी व्यापक रूप से पायी जाती है। इन देशों में अदृश्य बेरोजगारी भी पायी जाती है। अनुमान लगाया गया है कि भारत, पाकिस्तान आदि में लगभग 25 प्रतिशत श्रम शक्ति को कृषि का कुल उत्पादन कम किये बिना अन्य व्यवसायों में लगाया जा सकता है।
- औद्योगिक पिछड़ापन- अल्प-विकसित देश मुख्यतः कृषि प्रधान होते हैं। ये देश औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े होते हैं। इन देशों में केवल उपभोक्ता उद्योगों का ही विकास होता है और आधारभूत व पूँजी उत्पादक उद्योगों का अभाव होता है। इसके अतिरिक्त इन देशों में औद्योगिक उत्पादकता भी न्यून होती है।
- पूँजी निर्माण की निम्न दर- अर्द्ध-विकसित देशों में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय कम होती है और वह भी उपभोग पर व्यय कर दी जाती है। इस कारण बचत व विनियोग की दर नीची होती है। पूँजी निर्माण की दर कम होने के कारण इन देशों का विकास तीव्र गति से नहीं किया जा सकता।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था- भारतीय अर्थव्यवस्था में समाजवादी एवं पूँजीवादी दोनों का मिश्रण होने के कारण पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन के कारण
भारतवर्ष एक विकासशील देश है अतः यहाँ की आर्थिक संरचना में अन्य विकासशील राष्ट्रों के भाँति पिछड़ापन है। अर्थव्यवस्था के संरचनात्मक अध्ययन के लिए निम्न तथ्यों पर प्रकाश डालना आवश्यक है-
- आधारभूत संरचना का अभाव- आधारभूत संरचना का तात्पर्य परिवहन एवं संचार, विद्युत, स्वच्छ जल, शक्ति के साधन, आवास आदि से है। इन्हीं संरचनाओं के आधार पर देश में आर्थिक एवं औद्योगिक विकास की आधारशिला रखी जाती है।
- जनाधिक्य- किसी भी देश के आर्थिक विकास में मानव संसाधन उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितने प्राकृतिक संसाधन। यहाँ जनसंख्या प्रतिवर्ष 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि के कारण भारतवर्ष में प्रति व्यक्ति उत्पादकता कम है। अर्थव्यवस्था की संरचना में जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक विकास की दर कम है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था- भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती है अर्थात् प्रत्येक 5 व्यक्तियों में से 4 व्यक्ति गाँवों में रहते हैं। यहाँ लगभग 6 लाख, 5 हजार, 224 गाँव हैं। ग्रामीण जनसंख्या देश की अर्थव्यवस्था की संरचना को पर्याप्त रूप से प्रभावित करती है।
- आर्थिक विषमता- यहाँ 37 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रही है साथ ही यहाँ आर्थिक विषमता भी है। यहाँ कुछ प्रतिशत लोगों की आय बहुत अधिक है जो कुल आय का अधिकांश भाग प्राप्त कर लेते हैं। शेष को आय का कुछ ही हिस्सा मिल पाता है।
- कृषि की प्रधानता- भारत की 67 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या कृषि या उससे संबंधित कार्यों में लगी है। जो राष्ट्रीय आय का केवल 34 प्रतिशत, ही उत्पादित कर पाती है जबकि निर्यात में इसका हिस्सा केवल 25 प्रतिशत ही है।
- बेरोजगारी- भारत में सन् 1981 की जनगणना के अनुसार 41.10 करोड़ लोगों की बेरोजगारी की व्यापकता उसकी संरचना को पूर्णरूपेण प्रभावित की है। वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार 40.13 मिलियन लोग बेरोजगारी हैं।
- पूँजी का अभाव- देश में प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण देश की जनता पूँजी को नहीं जुटा पाती है। पूंजी ही किसी देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करती है परंतु भारत में पूँजी के अभाव के कारण ही विकास की दर बहुत धीमी है।
भारत विकासशील देश है
अर्थव्यवस्थाओं को अल्पविकसित कहने की बजाय संयुक्त राष्ट्र के प्रकाशनों में इन्हें ‘विकासशील अर्थव्यवस्थाओं’ के रूप में संबोधित किया जाता है। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के शब्द से यह बोध होता है कि चाहे ये अर्थव्यवस्थाएं अल्पविकसित हैं, किंतु इनमें विकास प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। अतः भारत विकासशील देश है।
विकासशील देश की एक आदर्श परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है- “विकासशील अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ जनसंख्या की वृद्धि की दर अपेक्षाकृत अधिक हो, पर्याप्त मात्रा में प्राकृतिक साधन उपलब्ध हो परंतु उसका संपूर्ण विदोहन नहीं हुआ हो, लोगों का जीवन स्तर अत्यंत नीचा हो, जहाँ विनियोग के विस्तृत क्षेत्र हों, परंतु पूँजी-निर्माण की गति अत्यंत धीमी हो, जनता की उपभोग-वृत्ति बहुत ऊँची हो, जबकि बचत न्यूनाधिक शून्य हो, छिपी हुई बेरोजगारी विद्यमान हो, कृषि अत्यंत प्राचीन ढंग से की जाती हो, उद्योग व्यापार एवं यातायात तकनीकी दृष्टिकोण से अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में हों, परंतु फिर भी उस देश के निवासी रहन-सहन के स्तर में वृद्धि करने हेतु राष्ट्रीय साधनों का सर्वोत्तम ढंग से उपयोग करने में कार्यरत हों।”
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