अनुसंधान क्रियाविधि / Research Methodology

सामाजिक शोध की प्रकृति तथा सामाजिक शोध के उद्देश्य

सामाजिक शोध की प्रकृति | सामाजिक शोध के उद्देश्य

मानव एक सामाजिक प्राणी है तथा प्रारम्भ से ही वह एक जिज्ञासु प्राणी रहा है क्योंकि उसने प्रकृति को समझने एवं अपनी समस्याओं के समाधान के लिए सदैव सतत प्रयास किया है। वास्तव में, सभ्यता एवं संस्कृति का विकास मानव की इस जिज्ञासा द्वारा प्रेरित अपने पर्यावरण को अनवरत रूप से समझने के प्रयासों का ही परिणाम है। आज प्रकृति को समझने तथा सामाजिक जीवन के बारे में नवीन ज्ञान प्राप्त करने के प्रयासों को ही शोध कहा जाने लगा है। अतः शोध ज्ञान की खोज से सम्बन्धित है।

सामाजिक शोध की प्रकृति

शोध एवं सामाजिक शोध की अवधारणा के स्पष्टीकरण से सामाजिक शोध की प्रकृति का भी पता चल जाता है। सामाजिक शोध की प्रकृति निम्नांकित तथ्यों द्वारा स्पष्ट की जा सकती है-

  • सामाजिक सम्बन्धों, घटनाओं, तथ्यों एवं प्रक्रियाओं की व्याख्या

सामाजिक शोध के अन्तर्गत मानव-व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। समाज में रहने वाले अन्य सदस्यों एवं समूहों के साथ उसके सम्बन्ध, उनकी विभिन्न प्रक्रियाओं एवं अन्तक्रियाओं का अध्ययन तथा विभिन्न सामाजिक तथ्यों एवं घटनाओं, जो कि व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती हैं, का विश्लेषण सामाजिक शोध के अन्तर्गत किया जाता है।

  • सामाजिक घटनाओं के बारे में नवीन तथ्यों की खोज करना

सामाजिक शोध का उद्देश्य किसी घटना के सम्बन्ध या व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों में नवीन तथ्यों एवं नियमों की खोज करना है। इन नवीन तथ्यों की खोज द्वारा सामाजिक शोध सामाजिक सम्बन्धों द्वारा निर्मित संरचना एवं संगठन को भी समझने एवं इनका स्पष्टीकरण करने में सहायता देता है। नवीन तथ्यों की खोज के कारण अनेक विद्वान सामाजिक शोध का उद्देश्य केवल सैन्धान्तिक ज्ञान प्राप्त करने तक ही सीमित रखने का प्रयास करते हैं।

  • सामाजिक समस्याओं की प्रकृति एवं कारणों का अध्ययन करना

सामाजिक शोध में विविध प्रकार की सामाजिक समस्याओं की प्रकृति एवं उनके कारणों का पता लगाने का भी प्रयास किया जाता है। जब तक सामाजिक समस्याओं की प्रकृति एवं कारणों का पता न हो तब तक उनका उपचार सम्भव नहीं है। पीo वी0 यंग (P. V. Young) का कहना है कि सामाजिक शोध व्याधिकीय समस्याओं से केवल वहीं तक सम्बद्ध है जहाँ तक वे आधारभूत सामाजिक प्रक्रियाओं, मानव व्यवहार तथा व्यक्तित्व के विकास अथवा विघटन पर प्रकाश डालती हैं। सामाजिक शोध में कार्य-कारण सम्बन्धों की खोज करने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए- यदि शोध के आधार पर यह स्थापित हो जाए कि गन्दी बस्तियाँ बाल अपराध के लिए उत्तरदायी हैं, तो इसे कार्य-कारण सम्बन्धों की स्थापना कहा जाएगा।

  • प्राचीन तथ्यों का पुनर्परीक्षण एवं सुधार करना

नवीन नियमों तथा सिद्धान्तों के निर्माण के साथ-साथ सामाजिक शोध का उद्देश्य प्राचीन तथ्यों की पुनर्परीक्षा करना तथा उनमें सुधार करना भी है। समयानुकूल ज्ञान के आधार पर सामाजिक तथ्यों की व्याख्या करना मानव जीवन को समझने के लिए अनिवार्य है। उदाहरण के लिए-सामाजिक शोध के आधार पर ही यह धारणा परिवर्तित हुई है कि अपराधी जन्मजात होते हैं।

  • वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग

सामाजिक शोध में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जाता है। ताकि विश्वसनीय एवं प्रमाणित तथ्यों का संकलन किया जा सके और निष्पक्ष व्याख्या द्वारा मानव सम्बन्धों की प्रकृति को समझा जा सके। वैज्ञानिक पद्धति से अभिप्राय सामाजिक शोध में निरीक्षण, परीक्षण, तथ्यों के संकलन, वर्गीकरण तथा सामान्यीकरण हेतु व्यवस्थित विधि को अपनाना है। वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किए गए अध्ययनों की सत्यापनशीलता कभी भी की जा सकती है।

  • सांख्यिकीय विश्लेषण का प्रयोग

सामाजिक शोध में सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग भी किया जाता है जिससे कि विभिन्न चरों (Variables) अथवा घटनाओं में सह सम्बन्ध का पता चल सके और अधिक विश्वसनीय निष्कर्ष निकाले जा सकें। यदि शोध का उद्देश्य केवल घटनाओं का वर्णन करना है, तो उसे गुणात्मक शोध कहा जाता है तथा ऐसे शोध में सांख्यिकीय विश्लेषण की आवश्यकता नहीं होती है। गणनात्मक शोध सदैव सांख्यिकीय विश्लेषण पर आधारित होता है। गुणात्मक एवं गणनात्मक शोध को विस्तार से इसी खण्ड की दूसरी इकाई में समझाया गया है।

सामाजिक शोध की प्रकृति से हमें पता चलता है कि इसका अध्ययन-क्षेत्र अति व्यापक है। वास्तव में, यह क्षेत्र इतना ही व्यापक है जितना कि स्वयं सामाजिक वास्तविकता का। इसके अन्तर्गत विभिन्न सामाजिक समस्याओं का विष्लेशण करना, उनके कारणों का पता लगाना, घटनाओं का समाधान प्रस्तुत करना, वर्तमान ज्ञान का परिवर्तित परिस्थितियों के सन्दर्भ में मूल्यांकन करके उपयुक्तता का पता लगाना इत्यादि विविध प्रकार के अध्ययनों को रखा जा सकता है।

सामाजिक शोध के उद्देश्य

सामाजिक शोध सामाजिक वास्तविकता से सम्बन्धित है। अतः इसका उद्देश्य सामाजिक वास्तविकता को यथा सम्भव वस्तुनिष्ठ एवं क्रमबद्ध रूप में समझना है। इसका उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है अपितु ज्ञान को व्यावहारिक जीवन में पाई जाने वाली समस्याओं के समाधान के लिए प्रयोग में लाना भी है अत: सामाजिक शोध के निम्नलिखित तीन प्रमुख उद्देश्य हो सकते हैं-

(1) सामाजिक वास्तविकता के बारे में विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करना तथा सिद्धान्तों का विकास अथवा विस्तार करना,

(2) विशिष्ट समस्याओं का समाधान करना, तथा

(3) प्रचलित एवं वर्तमान सिद्धान्तों की पुनर्परीक्षा करना।

यह अनिवार्य नहीं है कि शोध का केवल एक ही उद्देश्य हो अपितु, वास्तव में, सामाजिक शोध का उद्देश्य नवीन तथ्यों की खोज, प्राचीन तथ्यों की नवीन ढंग से विवेचना करते हुए वर्तमान सिद्धान्तों की उपयुक्तता का परीक्षण करना तथा उनमें आवश्यक संशोधन करके नवीन सिद्धान्तों का निर्माण करना हो सकता है।

सामाजिक शोध का उद्देश्य अन्य शोधों की तरह ज्ञान की प्राप्ति करना है जिसे सैद्धान्तिक

उद्देश्य (Theoretical objective) कहते हैं। इस प्रकार के शोध में सामाजिक घटनाओं के बारे में नवीन तथ्यों की खोज, पुराने नियमों की जाँच या पहले से उपलब्ध ज्ञान में वृद्धि केवल मात्र मानव जिज्ञासा की सन्तुष्टि के लिए की जाती है। परन्तु सामाजिक शोध का व्यावहारिक उद्देश्य (Applied or utilitarian objective) भी हो सकता है अर्थात् इसका उद्देश्य प्राप्त ज्ञान का प्रयोग व्याधिकीय एवं विघटनकारी समस्याओं के समाधान के लिए करना हो सकता है। यंग (Young), लैजरफेल्ड (Lazarsfeld) तथा रोजनबर्ग (Rosenberg) ने सामाजिक शोध के व्यावहारिक पक्ष पर अधिक महत्व दिया है। ज्ञान सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों ही दृष्टियों से तभी अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है, जबकि इसके अन्तर्गत भविष्यवाणी करने की क्षमता हो क्योंकि इससे परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

अतः स्पष्ट है कि अनेक विद्वानों ने सामाजिक शोध के उद्देश्यों को सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक उद्देश्यों की दृष्टि रो प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया है यदि हम इसे केवल नवीन ज्ञान प्राप्त करने अथवा वर्तमान ज्ञान में वृद्धि करने तक ही सीमित रखें, तो निश्चित रूप से यह इसके सैद्धान्तिक महत्व का द्योतक है। दूसरी ओर, यदि हम सामाजिक शोध द्वारा प्राप्त ज्ञान का प्रयोग समाज में विद्यमान समस्याओं के निराकरण हेतु करने का प्रयास करें अथवा इसका प्रयोग समाज कल्याण एवं समाज सुधार कार्यों हेतु करें, तो यह शोध का व्यावहारिक महत्व है। व्यावहारिक महत्व के कारण ही सामाजिक शोध नीति-निर्माण में सहायक माना जाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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