विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता मूल्यांकन की विधियाँ

विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता मूल्यांकन की विधियाँ | विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता मूल्यांकन के तरीके

विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता मूल्यांकन की विधियाँ | विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता मूल्यांकन के तरीके | Methods of Evaluating the Effectiveness of Advertising in Hindi | Methods for evaluating the effectiveness of advertising in Hindi

विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता मूल्यांकन की विधियाँ या तरीके

(Methods of Evaluation Advertising Effectiveness)

फिलिप कोटलर (Philip Kotler) ने विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता के मूल्यांकन की निम्न दो विधियों का उल्लेख किया है- (i) संचार प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान, (ii) विक्रय प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान (Sales Effect Research)

(I) संचार प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान (Communication Effect Research)

 इस विधि द्वारा यह ज्ञात करने का प्रयास किया जाता है कि विज्ञापन अपेक्षित संचार या सम्प्रेषण प्रभाव उत्पन्न कर रहा है या नहीं। इस हेतु अनेक परीक्षण किये जाते हैं। इन परीक्षणों का उल्लेख करने से पूर्व यह स्पष्ट कर देना उचित है कि व्यवसाय में संचार कार्य विज्ञापन के अतिरिक्त अन्य साधनों से भी किया जाता है। दूसरे शब्दों में, केवल विज्ञापन का ही संचार के माध्यम के रूप में प्रयोग नहीं किया जाता। विक्रय संवर्द्धन, वैयक्तिक विक्रय, प्रदर्शन, प्रचार आदि भी संचार का कार्य करते हैं। एम्स्टरडम (Amsterdom) में, सितम्बर 1969 में हुए E S O M A R सम्मेलन में जर्को सेरहा (Jerko Cerha) ने ग्राहकों को संचार हेतु संचार के चार मुख्य माध्यमों का उल्लेख किया है जो निम्नांकित हैं :

(1) उत्पाद- संचार के माध्यम के रूप में।

(2) ग्राहकों के मध्य बातचीत।

(3) विक्रेता- संचार के माध्यम के रूप में।

(4) विज्ञापन और प्रचार-संचार के माध्यम के रूप में।

इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यवसाय में विज्ञापन के अतिरिक्त अन्य माध्यमों से भी संचार कार्य सम्पन्न होता है। अतः संचार प्रभाव के लिए पूर्ण रूप से विज्ञापन को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता को मापने के लिए संचार अनुसंधान के अन्तर्गत दो प्रकार के परीक्षण किये जाते हैं—प्रथम, ‘पूर्व परीक्षण’ (Pre-testing) और द्वितीय, ‘बाद परीक्षण’ (After-testing)। प्रथम परीक्षण के अन्तर्गत विज्ञापन जनता तक पहुँचाने से पूर्व यह ज्ञात किया जाता है कि विज्ञापन प्रभावशाली रहेगा या नहीं। द्वितीय परीक्षण के अन्तर्गत विज्ञापन को जनता तक पहुँचाने के बाद उसकी प्रभावोत्पादकता मापी जाती है। संचार प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान के अन्तर्गत विज्ञापन की फलोत्पादकता मापने के लिए मुख्य रूप से निम्नांकित तरीके काम में लाये जाते हैं:

(1) उपभोक्ता पंच परीक्षण (Test of Consumer Jury)- इसे सम्मति अनुसंधान  या सम्मति परीक्षण (Opinion Research) भी कहते हैं। इस विधि के अन्तर्गत उपभोक्ताओं की कुछ पेनलें (Panels) तैयार की जाती हैं जिनमें सभी प्रकार के ग्राहकों को सम्मिलित किया जाता है। प्रत्येक पेनल में 8 से लेकर 10 तक सदस्य होते हैं। यह पूर्व परीक्षण (Pre-testing) की विधि है। इसमें प्रस्तावित विज्ञापनों को पेनलों को दिखाया जाता है और उनकी प्रतिक्रियाएँ एवं टिप्पणियाँ आमंत्रित की जाती हैं। पेनल के सदस्यों से आशा की जाती है कि वे सम्भावित क्रेताओं की हैसियत से अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करेंगे, न कि विशेषज्ञों की हैसियत से ऐसे परीक्षण का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि यदि पेनलों की प्रतिक्रियाएँ पक्ष में नहीं हों तो उस विज्ञापन को उपभोक्ताओं तक न पहुँचाकर पर्याप्त राशि को व्यर्थ जाने से बचा लिया जाये। ऐसे परीक्षण के लिए या तो गोष्ठी का आयोजन किया जाता है जिसमें चुने हुए कुछ वर्तमान एवं सम्भावित क्रेताओं को आमंत्रित किया जाता है अथवा उनके पास विज्ञापन की प्रतिलिपियों को भेजा जाता है और उनसे अपनी प्रतिक्रियाएँ भेजने का अनुरोध किया जाता है। ऐसे परीक्षण के निष्कर्षों को निम्नांकित दो तरीकों द्वारा अभिलिखित किया जा सकता है:

(अ) योग्यता क्रम परीक्षण (Order or Merit Test)- इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को विज्ञापन की अनेक प्रतिलिपियाँ दी जाती हैं और प्राथमिकताएँ देते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने को कहा जाता है। उपभोक्ता, योग्यता के अनुसार प्राथमिकताएँ देते हैं। दूसरे शब्दों में, सबसे अच्छी लगने वाली प्रति को प्रथम और सबसे खराब को अन्तिम स्थान पर प्राथमिकता दी जाती है। उपभोक्ताओं की इन प्राथमिकताओं के विश्लेषण द्वारा निष्कर्ष निकाल लिया जाता है।

(ब) तुलनात्मक युगल परीक्षण (Paired Comparison Test) — इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को विज्ञापन प्रतियों को जोड़े में दिया जाता है और सर्वोत्तम का चुनाव करने के लिए कहा जाता है। इसमें सभी विज्ञापन प्रतियों की एक दूसरे से तुलना जोड़ों के आधार पर की जाती है। जोड़ों के आधार पर तुलना का कार्य तब तक चलता रहता है जब तक कि सभी प्रतियों की एक दूसरे से तुलना न हो जाये। जो विज्ञापन की प्रति सबसे ज्यादा बार पसंद की जाये, उसे ही सर्वोत्तम प्रतिलिपि के रूप में चुन लिया जाता है।

(2) स्मृति या याददाश्त परीक्षण (Memory Tests ) – स्मृति परीक्षणों द्वारा भी विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता को मापा जा सकता है। इन परीक्षणों का विकास विज्ञापन के ध्यानाकर्षण सम्बन्धी महत्व को ज्ञात करने के लिए किया गया है। उदाहरण के लिए, उपभोक्ताओं को या विज्ञापन प्रत्यर्थी (Respondent) को कुछ सेकेण्ड (Second) के लिए विज्ञापन की प्रति को दिखाया जाता है फिर उस प्रति को उनके सामने से हटा दिया जाता है। इसके बाद प्रत्यर्थी से उस विज्ञापन प्रति के सम्बन्ध में जो कुछ याद रहा हो, बताने के लिए कहा जाता है। कुछ समय बाद उस प्रत्यर्थी से भेंट की जा सकती है और विज्ञापन के तत्वों को यथाशक्ति पुनः स्मरण करने का अनुरोध किया जा सकता है। इस प्रकार के इन परीक्षणों से यह ज्ञात हो जाता है कि विज्ञापन लोगों का ध्यान किस सीमा तक आकर्षित करने में सफल हो सकेगा। इन स्मृति परीक्षणों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है—(अ) पहचान परीक्षण (Recognition) एवं (ब) पुनः स्मरण परीक्षण (Recall Test)।

(अ) पहचान परीक्षण (Recognition Test)— यह विधि विज्ञापन के बाद के परीक्षण (After-testing) के अन्तर्गत आती है। इसमें पत्रिका या अन्य किसी माध्यम से उपभोक्ताओं को विज्ञापनों को दिखाया जाता है। बाद में उनसे यह प्रश्न किया जाता है कि क्या उन्होंने अमुक विज्ञापन देखा है? यदि उत्तर ‘हाँ’ में प्राप्त होता है तो यह माना जाता है कि विज्ञापन प्रभावशाली है।

(ब) पुनः स्मरण परीक्षण (Recall Test)— यह भी विज्ञापन के बाद के परीक्षण की विधि है। इसमें प्रत्यर्थी या उत्तरदाता को विज्ञापन को नहीं दिखाया जाता लेकिन उससे कुछ प्रश्न किये जाते हैं, जैसे—”नहाने के साबुन के सम्बन्ध में इन दिनों में आपने कौन-सा विज्ञापन देखा है” या “क्या आपको अमुक विज्ञापन का स्मरण हैं? यदि इन प्रश्नों के उत्तर ‘हाँ’ में मिलें या कम्पनी के विज्ञापन के पक्ष में मिलें तो यह समझा जाता है कि विज्ञापन प्रभावोत्पादक है।

इन परीक्षणों के अतिरिक्त अब कुछ कम्पनियाँ विज्ञापन के प्रति होने वाली ऐच्छिक एवं अनैच्छिक प्रतिक्रियाओं की अभिलिखित (Record) करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक विधियों का भी प्रयोग करने लगी हैं। इलेक्ट्रॉनिक विधियों में एक विधि को ‘साइको गेल्वानोमीटर’ कहते हैं। यह एक प्रकार का उपकरण होता है जिसे उत्तरदाता के बायें हाथ की दो अंगुलियों से सम्बद्ध कर दिया जाता है। इस यंत्र या उपकरण के द्वारा रक्त दबाव में होने वाले परिवर्तनों को रिकॉर्ड किया जाता है। ये रक्त दबाव के परिवर्तन विज्ञापन के प्रति ‘बलवान’ और ‘अनैच्छिक’ भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

(3) अन्य विधियाँ (Other Methods)– सामान्य रूप से संचार प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान विधियों में उपर्युक्त को ही सम्मिलित किया जाता है परन्तु इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विधियों का भी उल्लेख किया जा सकता है जो निम्न हैं:

(अ) नेटप्स विधि (Nettaps Method) — इस विधि के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। प्रथम, वे उपभोक्ता जो विज्ञापन पुनः स्मरण करते हैं और वस्तु का प्रयोग कर रहे हैं और द्वितीय, वे उपभोक्ता जो विज्ञापन का पुनः स्मरण नहीं। करते और उत्पाद का प्रयोग भी नहीं करते। यह माना जाता है कि इन दोनों प्रकार के उपभोक्ताओं का अन्तर विज्ञापन की देन है। पुनः स्मरण और प्रयोग करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या जितनी ज्यादा होगी, विज्ञापन उतना ही प्रभावशाली माना जायेगा।

(ब) पाठकों का सर्वेक्षण (Readership Surveys) — इस विधि में सामान्यतः साक्षात्कार का सहारा लिया जाता है या प्रश्नावलियाँ तैयार की जाती हैं और उपभोक्ताओं को उन्हें भरने के लिए कहा जाता है। उनके उत्तरों के आधार पर विज्ञापन के प्रभाव को मापा जाता है।

(II) विक्रय प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान (Self-effect Research)

विक्रय प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान द्वारा भी विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता को मापा जा सकता है। विज्ञापन का सामान्य उद्देश्य विक्रय वृद्धि करना होता है। अतः विक्रय वृद्धि को विज्ञापन प्रभावशीलता के मूल्यांकन का आधार बनाया जा सकता है। यदि विज्ञापन के फलस्वरूप विक्रय में पर्याप्त वृद्धि हो तो विज्ञापन को प्रभावी कहा जा सकता है परन्तु प्रश्न यह उठता है कि एक विशिष्ट समय में होने वाली विक्रय वृद्धि क्या विज्ञापन का ही परिणाम होती है? वास्तव में, एक संस्था की विक्रय वृद्धि विज्ञापन के अतिरिक्त अन्य विपणन तत्वों से भी प्रभावित होती है। अतः यदि इन अन्य विपणन तत्वों के प्रभावों को स्थिर रखा जा सके, तभी विक्रय वृद्धि विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता के मापन का आधार बन सकती है।

यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है कि क्या चालू विक्रय (Current Sales) चालू, विज्ञापन (Current Advertising) का ही प्रभाव है? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जा सकता है कि यह सही है कि विज्ञापन का विक्रय से सम्बन्ध होता है परन्तु इतना प्रत्यक्ष नहीं होता। हो सकता है कि चालू विज्ञापन का विक्रय पर तुरंत प्रभाव न पड़कर भविष्य में पड़े अथवा भूतकालीन विज्ञापन का लाभ संस्था को वर्तमान में मिला हो और उसके चालू विक्रय की मात्रा में वृद्धि हो जाय। डाक द्वारा विज्ञापन की अवस्था को छोड़कर विज्ञापन के विक्रय पर होने वाले प्रभावों का मूल्यांकन कठिन होता है।

विक्रय प्रभाव सम्बन्धी अनुसंधान विधि में दो क्षेत्रों को चुना जाता है जिन्हें परीक्षण  क्षेत्र और नियंत्रण क्षेत्र कहा जाता है। परीक्षण क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जहाँ विज्ञापन किया जाता है और नियंत्रण क्षेत्र वह होता है जहाँ विज्ञापन नहीं किया जाता। मान लीजिये कि विज्ञापन प्रारम्भ करने से पूर्व दोनों क्षेत्रों में विक्रय की मात्रा समान हो तो यदि विज्ञापन प्रारम्भ करने से परीक्षण क्षेत्र में विक्रय की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है तो यह माना जाता है कि विज्ञापन प्रारम्भ करने से परीक्षण क्षेत्र में विक्रय की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है तो यह माना जाता है कि विज्ञापन प्रभावशाली रहा। यह उल्लेखनीय है कि परीक्षण क्षेत्र में नियंत्रण क्षेत्र की तुलना में विक्रय की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि होनी चाहिए, तभी विज्ञापन प्रभावोत्पादक कहलायेगा।

निष्कर्ष-

निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि यद्यपि विज्ञापन प्रभावोत्पादकता मूल्यांकन हेतु अनेक विधियाँ उपलब्ध हैं तथापि किसी भी विधि को सर्वोत्तम या पूर्णतः उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। सभी के अपने-अपने गुण दोष है। इस कमी को दूर करने के लिए भविष्य में हमें मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय विधियों के प्रयोग को प्रोत्साहन देना चाहिए।

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