लिकर्ट की प्रबन्ध पद्धति | नेतृत्व की लिंकर्ट प्रबन्ध पद्धति की विवेचना | 3-डी सिद्धान्त

लिकर्ट की प्रबन्ध पद्धति | नेतृत्व की लिंकर्ट प्रबन्ध पद्धति की विवेचना | 3-डी सिद्धान्त | Likert’s Management Method in Hindi | Discussion of Linkert Management Method of Leadership in Hindi | 3-D theory in Hindi
लिकर्ट की प्रबन्ध पद्धति
(Likert’s Management System)
रेनासिस लिकर्ट तथा उसके सहयोगियों ने मिशागीन विश्वविद्यालय में नेतृत्व शैली एवं व्यवस्थाओं पर व्यापक शोध कार्य किया है। लिकर्ट ने नेतृत्व व्यवहार को समझने के लिये दृष्टिकोण का विकास किया है तथा सहभागी नेतृत्व का प्रबल समर्थन किया है। इसके अनुसार, प्रभावी प्रबन्धक वह है जो अधीनस्थों के प्रति गहन रूप से प्रेरित होते हैं तथा सभी कार्यरत् पक्षों से एक इकाई के रूप में काम लेता है। प्रबन्धक व नेता सहित समूह के सभी सदस्य एक संयोगात्मक सम्बन्ध ग्रहण करते हैं जिसमें वे आवश्यकताओं, मूल्यों, प्रत्याशाओं तथा सम्भावनाओं में वास्तविक रूप में समान रुचि पाते हैं। चूँकि यह व्यवस्था मानवीय अभिप्रेरणाओं को प्रेरित करती है, अतः लिकर्ट ने इस समूह का नेतृत्व करने की सबसे प्रभावी व्यवस्था के रूप में स्वीकार किया है।
लिकर्ट ने प्रबन्ध की चार प्रणालियों का निरूपण किया है। प्रणाली प्रथम में प्रबन्ध को विस्फोटक तानाशाह’ (Exploitive Authoritative) के रूप में व्यक्त किया गया है। यह प्रबन्धक अत्यधिक तानाशाह होता है, अपने अधीनस्थों में बहुत कम विश्वास रखता है, व्यक्तियों को सामाजिक परितोषकों के साथ दण्ड एवं भय से प्रेरित करता है, अवरोहात्मक संचार में संलग्न रहता है तथा निर्णय लेने का काम उच्च स्तर पर ही सीमित करना चाहता है। प्रणाली द्वितीय में प्रबन्ध को ‘दयालु तानाशाह’ (Benevolent Authoritative) के रूप में व्यक्त किया गया है। यह प्रबन्धक अपने अधीनस्थों में एक संरक्षणात्मक धैर्य एवं विश्वास रखता है, पारितोषिक एवं भय एवं दण्ड के द्वारा उनको अभिप्रेरित करता है, किसी सीमा तक आरोहात्मक सम्प्रेषण की आज्ञा देता है, अपने अधिनस्थों के कुछ परामर्श एवं विचारों की उपादेयता स्वीकार करता है तथा कुछ सीमा तक निर्णय लेने का अधिकार हस्तान्तरित करता है, परन्तु यह सब अपने प्रत्यक्ष नीति नियन्त्रण में करता है। प्रणाली तृतीय में प्रबन्धक को परामर्शदायी (Consultative) के रूप में व्यक्त किया गया है। यह प्रबन्धक अपने अधीनस्थों में पर्याप्त, लेकिन पूर्ण विश्वास नहीं रखता है तथा धैर्य एवं निष्ठा व्यक्त करता है। वह सामान्यतः अधीनस्थों के विचारों एवं परामर्शो को प्रयोग में लाने का प्रयास करता है तथा अभिप्रेरणा पुरस्कारों का प्रयोग कुछ सीमा तक दण्ड एवं भागीदारों के साथ करता है। सम्प्रेषण का प्रायः नीचे तथा ऊपर दोनो ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करता है तथा उच्च स्तर पर व्यापक नीति तथा सामान्य निर्णय तथा विशेष प्रकार के निर्णय नीचे के स्तर पर लेने की व्यवस्था करता है तथा अन्य तरीकों से परामर्श के साथ कार्य निर्वाह करता है। लिकर्ट ने प्रणाली चतुर्थ को सहभागिता समूह (Participative Group) के नाम से पुकारा है। इस प्रणाली में प्रबन्धक प्रत्येक मामले में अधीनस्थों में विश्वास एवं निष्ठा व्यक्त करता है, सदैव उनके विचारों एवं परामर्शो को सम्मान प्रदान करता है तथा उनका रचनात्मक उपयोग करता है। लक्ष्य निर्धारण एवं उद्देश्य पूर्ति की दिशा में प्रगति का मूल्यांकन जैसे क्षेत्रों में उनको सम्मिलित करके तथा सामूहिक भागीदारी द्वारा आर्थिक पुरस्कार प्रदान करता है, बराबरी के साथ नीचे ऊपर दोनों ओर को सम्प्रेषण करता है। यह प्रबन्धक सम्पूर्ण उपक्रम में निर्णय लेने को प्रोत्साहित करता तथा स्वयं अपने अधीनस्थों के मध्य कार्य का संचालन सामूहिक रूप में करता है।
संक्षेप में, प्रथम प्रणाली कार्य-अभिमुखीं, अत्यधिक संरचित तानाशाही प्रबन्ध शैली है, जबकि चतुर्थ प्रणाली सम्बन्ध अभिमुखी प्रबन्ध शैली है जो समूह कार्य, पारस्परिक विश्वास तथा आत्म-विश्वास पर आधारित है। द्वितीय एवं तृतीय प्रणाली इन दोनों (Two extremes ) के बीच की स्थितियाँ हैं जो मैकग्रेगर की ‘थ्योरी एक्स’ एवं ‘ थ्योरी वाई’ की मान्यताओं के अत्यधिक निकट हैं। लिकर्ट ने अपने अध्ययन एवं खोज के आधार पर यह प्रतिपादित किया है कि औद्योगिक संगठन के उन विभागों का निष्पादन अत्यधिक ऊँचा होता है जहाँ नेतृत्व एवं प्रबन्ध की चतुर्थ प्रणाली के आधार पर कार्य किया जाता है।
3-डी सिद्धान्त (3-D Theory)
विलियम जे० रेडिन द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धान्त ‘प्रबन्धकीय ग्रिड का ही संशोधित रूप है जिसमें ‘कार्य तथा ‘सम्बन्ध’ के साथ ‘प्रभावशीलता’ (Effectiveness) चर को भी जोड़ दिया गया है। इस विचारधारा के अर्न्तर्गत कार्य एवं सम्बन्ध के विभिन्न संयोजनों के आधार पर नेतृत्व की चार आधारभूत शैलियों को प्रस्तुत किया किया गया है- (1) निम्न स्तर का कार्य एवं निम्न स्तर का सम्बन्ध, (2) निम्न स्तर का कार्य एवं उच्च स्तर का सम्बन्ध, (3) उच्च स्तर का कार्य एवं उच्च स्तर का संबंध, (4) उच्च स्तर का कार्य एवं निम्न स्तर का संबंध। इन शैलियों की प्रभावशीलता पर कार्य वातावरण की अपेक्षाओं, अधीनस्थ सहकर्मियों एवं उच्चाधिकारियों की प्रत्याशाओं तथा संगठनात्मक वातावरण में प्रयुक्त टैक्नोलाजी का प्रभाव पड़ता है। इनका मत है कि यदि कार्य वातावरण की अपेक्षायें तथा नेतृत्व की शैली एक दूसरे के अनुकूल हैं तो प्रभावशीलता में वृद्धि होगी। इसके विपरीत, यदि दोनों कारण एक-दूसरे के प्रतिकूल हैं तो प्रभावहीनता की प्राप्ति होगी। संगठन में नियोजित परिवर्तन एवं विकास हेतु आज इंस विचारधारा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है।
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