संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

प्रबन्ध विचारधारा के अन्य स्कूल | प्रबन्ध के विभिन्न विचारधारा

प्रबन्ध विचारधारा के अन्य स्कूल | प्रबन्ध के विभिन्न विचारधारा | Other Schools of Management Thought in Hindi | different ideologies of management in Hindi

प्रबन्ध विचारधारा के अन्य स्कूल (Other Schools of Management Thought)

प्रबन्धविचार धारा विभिन्न अन्य स्कूल निम्नलिखित है-

(i) सन्देशवाहन केन्द्र स्कूल (The Communication Centre School)

अर्थ (Meaning)-प्रबन्ध के सन्देशवाहन केन्द्र स्कूल के अनुसार प्रबन्धक सन्देशवाहन का केन्द्र है। उसे संस्था सम्बन्धी समस्त सूचनाएँ प्रदान की जाती हैं जिसके अनुसार वह अपने प्रबन्धकीय कार्य का निष्पादन करता है। उसे ये सूचनाएँ विभिन्न सन्देशवाहन के साधनों द्वारा प्रदान की जाती हैं। इन्हीं सन्देशवाहन के साधनों द्वारा वह आदेश-निर्देश अपने अधीनस्थों को देता है। इसी कारण प्रबन्ध में प्रभावी सन्देशवाहन प्रणाली की स्थापना पर विशेष बल दिया जाता है।

विशेषताएँ (Characteristics) – प्रबन्ध के सन्देशवाहन केन्द्र स्कूल की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-(1) प्रबन्धक सन्देशवाहन का केन्द्र-बिन्दु होता है। (2) प्रबन्ध का प्रमुख कार्य विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त करना एवं उन्हें सम्बन्धित व्यक्तियों तक पहुँचाना है। (3) सन्देशवाहन प्रणाली के विकसित होने पर ही प्रबन्ध सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है। (4) प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण अच्छी तरह से किया जाना चाहिए। (5) सूचनाओं का विश्लेषण करने के लिए आधुनिक विधियों एवं कम्प्यूटर का उपयोग किया जा सकता है। (6) प्रबन्धकीय ज्ञान के विश्लेषण करने का माध्यम सन्देशवाहन है।

(ii) निदेशात्मक स्कूल (Directive School)- प्रबन्ध के निवेशात्मक स्कूल के अनुसार प्रबन्ध का कार्य निर्देश देना है। यह स्कूल इस मान्यता पर आधारित है कि प्रबन्धक का प्रमुख कार्य केवल नीति निर्धारित करना एवं लक्ष्य निर्धारित करना ही नहीं है अपितु इससे अधिक महत्वपूर्ण कार्य इन नीतियों एवं लक्ष्यों को कार्यान्वित करना है। इस उद्देश्य से एक प्रबन्धक अपने अधीनस्थों को आदेश-निर्देश देने का कार्य करता है। इन आदेश-निर्देशों के अन्तर्गत अधीनस्थों को यह बताया जाता है कि उन्हें क्या कार्य, कैसे, कब, क्यों एवं कितने समय में पूरा करना है। इस प्रकार प्रबन्ध के निदेशात्मक स्कूल निर्देशन को प्रबन्ध का एक आवश्यकीय कार्य मानता है।

(iii) परीक्षण एवं सन्तुलन (Check and Balanace School)- इस स्कूल की यह मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति को पद और शक्ति दोनों प्राप्त हो जाती हैं तो वह सामान्य रूप में भ्रमित हो जता है एवं उसके पद भ्रष्ट होने का भय उत्पन्न हो जाता है। ऐसी अवस्था में ऐसे व्यक्ति की क्रियाओं पर पर्याप्त नियन्त्रण स्थापित करना आवश्यक है। नियन्त्रण का यह कार्य निरीक्षण एवं सन्तुलन द्वारा सम्पन्न किया जाता है अर्थात् निरीक्षण एवं सन्तुलन स्कूल के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कोकी क्रियाओं का निरीक्षण करना एवं उनमें सन्तुलन स्थापित करना होता है। ऐसा करने से वह व्यक्ति नियन्त्रण में रहता है और अपनी क्रियाओं का सुचारु रूप में निष्पादन करता रहता है। इस प्रकार अधीनस्थों की क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए प्रबन्धकों को निरीक्षण एवं सन्तुलन का कार्य निरन्तर करते रहना चाहिए।

(iv) भागिता स्कूल (The Participative School)- प्रबन्ध का भागिता स्कूल प्रजातान्त्रिक विचारधारा पर आधारित है तथा इसका उद्देश्य संस्था के प्रबन्ध में कर्मचारियों को भी भागिता प्रदान करना है। इस स्कूल की यह मान्यता है कि यदि कर्मचारियों को प्रबन्ध में हिस्सा दिया जाये एवं निर्णय के कार्य में उनको भी सम्मिलित किया जाये तो ऐसी स्थिति में लिये गये निर्णय अधिक ठोस एवं प्रभावी होंगे तथा उन्हें सरलता से क्रियान्वित किया जा सकेगा। संस्था के प्रबन्ध में भागिता स्कूल को लागू करने से कर्मचारियों को उत्प्ररेणा मिलती है एवं उनका मनोबल ऊंचा उठता है तथा उनमें संस्था के प्रति अपनत्व की भावना जाग्रत होती है।

(v) नियमनिष्ठ स्कूल (The Formalistic School)- प्रबन्ध के नियमनिष्ठ स्कूल की यह मान्यता है कि किसी भी संगठन का कार्य सुचारु रूप से चलाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके सदस्यों के अधिकारों एवं दायित्वों का स्पष्ट रूप में विभाजन हो। इससे कार्यकुशलता में वृद्धि होती है तथा कर्मचारियों में टकराव के स्थान पर सहयोग का वातावरण उत्पन्न होता है तथा परस्परिक सम्बन्धों में मधुरता आती है ऐसा करने से संगठन प्रत्येक व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि संगठन में उसकी क्या स्थिति है, वह किसके नीचे है और कौन उसके नीचे है, उसके अधिकार उत्तरदायित्व एवं कार्य क्षेत्र की सीमा क्या है? इसका प्रर्दशन संगठन चार्टी आदि के द्वारा किया जा सकता है।

(vi) तुलनात्मक प्रबन्ध स्कूल (The Comparative Management School) – तुलनात्मक प्रबन्ध स्कूल के अनुसार प्रबन्ध संस्कृति से प्रभावित होता है, अतः प्रबन्ध के सिद्धान्तों परका प्रयोग एक विशेष संस्कृति तक ही सीमित रहता है। इसलिए प्रबन्ध के सार्वभौमिक सिद्धान्तों का निर्माण एवं उनकी कल्पना करना व्यर्थ है। इसे भी प्रबन्ध की एक आधुनिक विचारधारा का रूप प्रदान किया जाता है। इस विचारधारा का प्रतिपादन एवं विकास हरविन्स एवं मायर्स मैकमिलन, ओवर्ग गोन्जालेज जैसे विद्वानों ने किया है। इस सम्बन्धर में पीटर एफ. ड्रकर का भी यह स्पष्ट मत है कि प्रबन्ध संस्कृति से मुक्त नहीं हो सकता। चूँकि प्रबन्ध का व्यवहार समाज में किया जाता है, अतः यह समाज से और समाज इससे प्रभावित होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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