आधुनिक शिक्षा पर प्रकृतिवाद का प्रभाव | आधुनिक शिक्षा पर प्रकृतिवाद क्या प्रभाव पड़ा

आधुनिक शिक्षा पर प्रकृतिवाद का प्रभाव | आधुनिक शिक्षा पर प्रकृतिवाद क्या प्रभाव पड़ा
प्रकृतिवाद का अर्थ तथा परिभाषा-प्रकृतिवाद के अनुसार प्रकृति ही मूल तत्व है। यह अलौकिक (Metaphysics) और पारलौकिक (Super Natural) में विश्वास न करके प्रकृति को ही पूर्ण वास्तविक मानता है। प्रकृतिवाद को भौतिकवाद तथा पदार्थवाद की संज्ञा भी दी जाती है। प्रकृतिवाद की निम्नलिखित परिभाषाएँ इसके विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालती हैं-
डॉ० सिन्हा का कथन है कि, “प्रकृतिवादी या प्रकृतिवादी दर्शन ईश्वर की सत्ता, इच्छा की स्वतन्त्रता, आत्मा की अमरता तथा जगत की जीवनोत्तर सत्ताओं को नहीं मानता। यह प्रकृति को ही सम्पूर्ण तत्व मानता है।”
वार्ड के शब्दों में, “प्रकृतिवाद वह सिद्धान्त है जो प्रकृति को ईश्वर से पृथक् करता है, आत्मा को पदार्थ के अधीन करता है और परिवर्तन नियमों को सर्वोच्च मानता है।”
थामस तथा लैंग के अनुसार, “प्रकृतिवाद आदर्शवांद के विपरीत मस्तिष्क को पदार्थ के अधीन मानता है और यह विश्वास करता है कि अन्तिम यथार्थ भौतिक है, आध्यात्मिक नहीं।”
आधुनिक शिक्षा पर प्रकृतिवाद का प्रभाव
प्रकृतिवाद ने शिक्षा के सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है। शिक्षण विधियों के क्षेत्र में प्रकृतिवाद के कारण क्रान्तिकारी परिवर्तन आये। शिक्षा के निम्नांकित क्षेत्रों को प्रकृतिवाद ने प्रभावित किया है-
- अनुभव प्रधान पाठ्यक्रम- पाठ्यक्रम के क्षेत्र में प्रकृतिवाद की सबसे बड़ी देन वैज्ञानिक विषयों का समावेश है। इसके अलावा अनुभव पर आधारित पाठ्यक्रम पर बल देने के कारण पाठ्य सहगामी क्रियाओं पर भी विद्यालयों में बल दिया जाने लगा।
- नवीन शिक्षण विधियाँ- शिक्षण पद्धतियों के क्षेत्र में प्रकृतिवाद अन्य सभी दर्शनों से अग्रणी रहा है। करके सीखना, अनुभव द्वारा सीखना तथा खेल द्वारा सीखने पर आधारित अनेक नई-नई शिक्षण विधियों का जन्म प्रकृतिवाद की देन है। ह्यूरिस्टिक पद्धति, डाल्टन पद्धति, निरीक्षण पद्धति, खेल पद्धति, माण्टेसरी पद्धति आदि विधियों का प्रयोग सर्वप्रथम प्रकृतिवादियों ने ही किया।
- बाल केन्द्रित शिक्षा- प्रकृतिवादियों के प्रयास के फलस्वरूप ही शिक्षा-शिक्षक तथा पाठ्यक्रम के बंधनों से मुक्त होकर बाल-केन्द्रित हो सकी। बालक की आन्तरिक प्रकृति अर्थात् उसकी नैसर्गिक शक्तियाँ, भावों, उद्देगों, योग्यताओं, रुचियों आदि पर आधारित शिक्षा की संकल्पना ने मूर्त रूप ग्रहण किया। व्यक्तिगत भिन्नताओं को स्वीकार किया जाने लगा। बालक को बालक माना जाने लगा और उससे वयस्कों जैसे व्यवहार की प्रत्याशा का परित्याग कर दिया गया इसके कारण ही बाल-मनोविज्ञान का जन्म हुआ तथा आधुनिक शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियाँ विकसित हुईं। व्यवहारवादी मनोविज्ञान का प्रारम्भ भी प्रकृतिवाद की ही देन है।
- विद्यालयों में स्वशास्त्रन- प्रकृतिवादियों ने ही सर्वप्रथम बालक को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की तथा विद्यालयों में ‘स्वशासन’ की परिकल्पना को स्वीकार किया। बालक विद्यालय के प्रांगण में सभी व्यवस्था स्वयं करने योग्य है, उसे किसी भी सहायता की जरूरत नही है।
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