शिक्षाशास्त्र / Education

भारतीय शिक्षा आयोग-1882 | हण्टर कमीशन | आयोग के सुझाव व संस्तुतियाँ

भारतीय शिक्षा आयोग-1882 | हण्टर कमीशन | आयोग के सुझाव व संस्तुतियाँ

भारतीय शिक्षा आयोग-1882 (हण्टर कमीशन)

(Indian Education Commission, 1882 [Hunter Commission])

ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने सन् 1880 में लार्ड रिपन को भारत के नए गवर्नर जनरल के रूप में मनोनीत किया। लार्ड रिपन को भारत-स्थित अंग्रेज अधिकारियों ने भारत की अनुदार शिक्षआ-नीति से अवगत कराया और यह अनुरोध किया कि भारतीय शिक्षा की गतिविधियों की जाँच कैरके, उसके विकास का मार्ग प्रशस्त किया जाये।

लार्ड रिपन ने उनकी इच्छा को पूर्ण करने का वचन दिया अपने इसी वचन का पालन करने के लिए, उसने भारत पहुँचने के कुछ समय पश्चात् सन् 1882 में “भारतीय शिक्षा-आयोग” (Indian Education Commission ) की नियुक्ति की। इस “आयोग” का अध्यक्ष- गवन्नर जनरल की कार्यकारिणी सभा का सदस्य सर विलियम हण्टर (Sir William Hunter) था। अत: इसके नाम से इस “आयोग” को “हण्टर कमीशन” (Hunter Commission) कहकर भी पुकारा जाता है।

आयोग के जाँच विषय

(Terms of Reference of The Commission)

“आयोग” को निम्नांकित विषयों की जाँच करके, उनके सम्बन्ध में अपने सुझावों और सिफारिशों को प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया-

(1) प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है? और उसके सुधार एवं विकास के लिए क्या उपाय अपनाए जाने चाहिए?

(2) देश की शिक्षा-प्रणाली में राजकीय विद्यालयीं की क्या स्थिति है और भारतीय शिक्षा-प्रणाली में उनकी आवश्यकता है या नहीं ?

(3) क्या सरकार ने उच्च एवं माध्यमिक शिक्षा के प्रति अधिक ध्यान देकर प्राथमिक शिक्षा की अवहेलना की है ?

(4) शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रयासों के प्रति सरकार की नीति क्या होनी चाहिए?

(5) माध्यमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या हैं? और उसका प्रसार किन साधनों के द्वारा किया जाना चाहिए?

(6) देश की शिक्षा व्यवस्था में मिशन स्कूलों का क्या स्थान होना चाहिए ?

(7) “आयोग” को दो विशेष आदेश दिए गए-“(i) इस बात की जाँच करना कि 1854 के आदेश पत्र के सिद्धान्तों को किस प्रकार क्रियान्वित किया गया है? (ii) ऐसे उपायों का सुझाव देना, जिनको ‘आयोग’, ‘आदेश-पत्र’ में निर्धारित की गई नीति को क्रियान्वित करने के लिए उचित समझता है।” “आयोग” ने सम्पूर्ण देश का भ्रमण करके, शिक्षाविदों से भेंट करके और शिक्षा-सम्बन्धी राजकीय लेखो का अध्ययन करके मार्च, सन् 1883 मे अपना 600 पृष्ठों का प्रतिपादन सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया।

आयोग के सुझाव व संस्तुतियाँ (सिफारिशें)

(Suggestions and Recommendations of the Commission)

“आयोग” ने भारतीय शिक्षा के सभी अंगों और क्षेत्रों का गहन अध्ययन करने के पश्चात् उनके सम्बन्ध में अपने सुझावों और सिफारिशों को लिपिबद्ध किया। हम यहाँ शिक्षा के प्रमुख अंग से सम्बन्धित उसके विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं।

(1) शिक्षा-नीति (Educational Policy)-“आयोग ने शिक्षा-नीति के विषय में पाँच सुझाव दिए-

(i) सरकार को सहायता अनुदान के नियमों को अधिक उदार बनाकर, शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रयासों को प्रोत्साहन देना चाहिए।

(ii) सरकार को माध्यमिक स्कूलों और कॉलेजों का प्रबन्ध क्रमश: कुशलतापूर्वक कार्य करने वाली व्यक्तिगत संस्थाओं को सौंप देना चाहिए।

(iii) सरकार को राजकीय विद्यालयों की स्थापना की गति को शनै: -शनै: मन्द करके, इन विद्यालयों के प्रत्यक्ष उत्तरदायित्व से पृथक् हो जाना चाहिए।

(iv) सरकार को भविष्य में केवल सहायता-अनुदान के आधार पर स्थापित किए जाने वाले माध्यमिक स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना को प्रोत्साहन देना चाहिए।

(v) सरकार को प्राथमिक विद्यालयों का स्वयं संचालन न करके, उनका उत्तरदायित्व स्थानीय निकायों पर छोड़ देना चाहिए।

सारांश में, “आयोग” ने शिक्षा-नीति के सम्बन्ध में सरकार को सन् 1854 के “आदेश-पत्र” के अग्रांकित सुझाव का अनुसरण करने का परामर्श दिया-” राजकीय शिक्षा-संस्थाओं को उन स्थानों में चलने दिया जाये, जहाँ उनकी आवश्यकता है। किन्तु सरकार का मुख्य कर्त्तव्य व्यक्तिगत शिक्षा-संस्थाओं की उन्नति और प्रसार करना होना चाहिए।’

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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