शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा के सम्बन्ध में लार्ड कर्जन के उद्देश्य | शिमला शिक्षा सम्मेलन 1901 | लॉर्ड कर्जन के शिक्षा सम्बन्धी कार्यों का मूल्यांकन

शिक्षा के सम्बन्ध में लार्ड कर्जन के उद्देश्य | शिमला शिक्षा सम्मेलन 1901 | लॉर्ड कर्जन के शिक्षा सम्बन्धी कार्यों का मूल्यांकन

शिक्षा के सम्बन्ध में लॉर्ड कर्जन के उद्देश्य

(Objectives of Lord Curzon About Education)

1899 में लॉर्ड कर्जन (Lord Curzon) ब्रिटिश भारत के नए गवर्नर जनरल और वायसराय नियुक्त हुए। वे उच्च कोटि के विद्वान और कुशल प्रशासक थे। उनमें कुछ महत्त्वपूर्ण व असाधारण कार्य करने का बलवती इच्छा थी। उन्होंने यहाँ कार्यभार सम्भालते ही हर क्षेत्र में सुधार के प्रयत् प्रारम्भ किए शिक्षा के क्षेत्र में भी। उन्होंने देखा कि ब्रिटिश शासन के 40 वर्ष लम्बे कार्यकाल में भी यहाँ की शिक्षा में न तो उतनी संख्यात्मक वृद्धि हो पाई है और न उतनी गुणात्मक उन्नति हो पाई है, जितनी होनी चाहिए थी।

शिमला शिक्षा सम्मेलन, 1901

(Shimla Accord, 1901)

लॉर्ड कर्जन ने सितम्बर, 1901 में ला में एक शिक्षा सम्मेलन आयोजित किया जिसे ‘शिमला शिक्षा सम्मेलन’ कहते हैं। इस सम्मेलन में सभी प्रान्तों के जन शिक्षा निदेशकों और मुख्य ईसाई मिशनरियों के कुछ प्रतिनिधियों को आमन्त्रित किया गया था । यह सम्मेलन 15 दिन तक चला था। इसकी अध्यक्षता स्वयं लॉर्ड कर्जन ने की थी।

इस सम्मेलन में भारतीय शिक्षा पर विस्तारपूर्वक विचार किया गया और 150 प्रस्ताव पारित किए गये थे, परन्तु प्रमुख दोष यह था कि इस सम्मेलन में न तो किसी भारतीय को आमन्त्रित किया गया था और न ही इसकी कार्यवाही को प्रकाशित किया गया था परिणामतः भारतीयों में इसके प्रति भय और रोष दोनों थे।

अत: वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे- “सम्मेलन, भारतीयों को यातना देने वाली सभा थी जिसने उनके विरुद्ध किसी भयंकर षडयन्त्र की रचना की थी। “

‘शिमला शिक्षा- सम्मेलन में भारतीय शिक्षा से सम्बन्धित सभी महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार-विमर्श किया गया और उसी के आधार पर कर्जन ने अपनी सुधार-योजना का निर्माण किया।

लॉर्ड कर्जन के शिक्षा सम्बन्धी कार्यों का मूल्यांकन

(Evaluation of Lord Curzon’s Education Works)

लॉर्ड कर्जन ने भारत में गवर्नर जनरल और वायसराय का कार्यभार सम्भालते ही हर क्षेत्र में प्रारम्भ किए। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने हेतु उन्होंने सर्वप्रथम 1901 में शिमला में एक सम्मेलन का आयोजन किया।

तत्पश्चात् लॉर्ड कर्जन ने उच्च शिक्षा में सुधार हेतु सुझाव देने के लिए 1902 में ‘भारतीय विश्वविद्यालय आयोग’ की नियुक्ति की। प्रारम्भ में इसमें भी कोई भारतीय सदस्य नहीं था और बाद में भी केवल दो भारतीय सदस्य रखे गये थे। इसलिए भारतीय इस आयोग के प्रति भी सशंक्ति रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि आयोग की सिफारिशों के आधार पर लॉर्ड कर्जन ने जो ‘शिक्षा नीति, 1904’ और ‘भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904’ की घोषण की, उन्हें भी सम्देह की दृष्टि से देखा गया। पर जब कर्जन ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने शुरू किए तो कुछ व्यक्तियों को उनमें विश्वास जागृत हुआ।

लॉर्ड कर्जन की देन (Contribution of Lord Curzon )-

लॉर्ड कर्जन की भारतीय शिक्षा को जो मुख्य देन हैं, उनका वर्णन निम्न प्रकार है-

(1) केन्द्रीय शिक्षा विभाग की स्थापना से शिक्षा की नीति को लागू करना और शिक्षा की व्यवस्था सुव्यवस्थित ढंग से करना सम्भव हुआ।

(2) प्राथमिक शिक्षा में संख्यात्मक वृद्ध्धि और गुणात्मक उन्नयन के लिए आर्थिक सहायता की धनराशि के बढ़ाए जाने से प्राथमिक शिक्षा में संख्यात्मक वृद्धि हुई और उसका गुणात्मक उन्नयन हुआ।

(3) माध्यमिक शिक्षा के विस्तार और उन्नयन के लिए आर्थिक सहायता की धनराशि में वृद्धि के कारण उसका प्रसार हुआ।

(4) लॉर्ड कर्जन ने ‘भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904’ पास किया और उसे लागू किया। परिणायतः, विश्वविद्यालयों के प्रशासन में सुधार हुआ, उनमें शैक्षिक गृतिविधियाँ बढ़ी, महाविद्यालयों के स्तर में सुधार हुआ और इस प्रकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ।

(5) लॉर्ड कर्जन ने शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा के विवाद को ‘धार्मिक’ शब्द हटाकर हल किया। उन्होंने केवल नैतिक शिक्षा पर बल दिया।

हानिकारक निर्णय (Harmful Decisions) –

लॉर्ड कर्जन के कुछ निर्णय भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिकूल सिद्ध हुए। उनमें से मुख्य निर्णय निम्न प्रकार हैं-

(1) लॉर्ड कर्जन ने माध्यमिक विद्यालयो को मान्यता देने और सहायता अनुदान देने की शर्तें कुछ कठोर कर दी थी, इससे माध्यमिक शिक्षा का वांछनीय तेजी से विस्तार नहीं हो सका।

(2) महाविद्यालयों को सम्बद्धता देने के नियम कठोर कर दिए जाने से उच्च शिक्षा के प्रसार में भी बाधा पड़ी।

(3) विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 में विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता कम हुई, उन पर सरकारी नियन्त्रण अधिक हो गया| परिणामतः उसमें सुधार के लिए प्रयास कम हुए।

(4) इस शिक्षा नीति में न ही सरकार द्वारा नए विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रस्ताव किया और न महाविद्यालयों की स्थापना की बात सोची।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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