अर्थशास्त्र / Economics

निजी विदेशी विनियोग के प्रति सरकार की नीति | भारत में निजी विदेशी विनियोग को प्रोत्साहित करने हेतु सरकार द्वारा प्रयास | विदेशी पूंजी के सम्बन्ध में सरकार की नीति की विवेचना

निजी विदेशी विनियोग के प्रति सरकार की नीति | भारत में निजी विदेशी विनियोग को प्रोत्साहित करने हेतु सरकार द्वारा प्रयास | विदेशी पूंजी के सम्बन्ध में सरकार की नीति की विवेचना

निजी विदेशी विनियोग के प्रति सरकार की नीति

6 अप्रैल 1949 को तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने विदेशी पूँजी के सम्बन्ध में सरकारी नीति की घोषणा की थी, जिसकी प्रमुख बातें यह हैं-

  • विदेशी पूँजी नियमन का उद्देश्य यह होगा कि विदेशी पूँजी इस प्रकार से उपयोग की जाये कि वह देश के लिए अधिक लाभप्रद हो सके।
  • विदेशी पूँजी आन्तरिक पूँजी के अनुपूरक का कार्य करेगी तथा कई क्षेत्रों में अत्यावश्यक वैज्ञानिक, प्राविधिक और औद्योगिक ज्ञान व पूँजीगत वस्तुएँ उपलब्ध कराने में सहायक होगी।
  • देशी एवं विदेशी पूँजी में कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा तथा सरकार विदेशी हितों पर कोई विशेष प्रतिबन्ध नहीं लगायगी।
  • देश की विदेशी मुद्रा सम्बन्धी आवश्यकताओं का ध्यान में रखते हुए सरकार, विदेशी विनियोजकों की लाभ व पूँजी को स्वदेश भेजने के लिए उचित सुविधाएँ देंगी।
  • भविष्य में उद्योग का राष्ट्रीयकरण होने पर विदेशी विनियोजकों को न्यायोचित हर्जाना दिया जायेगा।
  • कुछ दशाओं को छोड़कर अन्य सब दशाओं में स्वामित्व और प्रभावपूर्ण नियन्त्रण भारतीयों के हाथ में रहे। इस प्रकार से विदेशी पूँजी व तत्सम्बन्धी व्यवसाय सरकार द्वारा नियन्त्रित किया जायेगा।
  • यदि विदेशी कम्पनियाँ भारतीयों के हितों के अनुकूल तथा सहयोगी व रचनात्मक ढंग से कार्य करती रहें, तो सरकार उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचायेगी।

1977 और 1980 में घोषित औद्योगिक नीतियों में स्पष्ट किया गया है कि

  • यदि विदेशी कम्पनियों द्वारा अपनी कुछ पूँजी में, विनियोजित विदेशी पूँजी के भाग को 40% या इससे कम कर लिया जाता है, तो उन्हें भारतीय कम्पनियों के समकक्ष ही विकास एवं विस्तार की सुविधाएँ दी जा सकती हैं।
  • नये विदेशी विनियोग तथा विद्यमान सहयोग समझौतों के नवीनीकरण के प्रश्नों पर राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर विचार किया जायेगा।
  • सामान्य तथा विदेशी कम्पनियों की स्वामी-पूंजी में भारतीय पूँजी का भाग 50% से अधिक होना चाहिए लेकिन यदि कोई विदेशी कम्पनी अपने उत्पादन का निर्यात करती है, तो ऐसी स्थिति में शत-प्रतिशत विदेशी पूंजी की अनुमति दी जा सकती है।
  • विदेशी कम्पनियों को लाभांश या रायल्टी आदि की धनराशि विदेशों में भेजने की सुविधा जारी रहेगी।
  • जिन प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों में देशी तकनीक का अभाव है, उनमें विदेशों से तकनीक का आयात करने को अनुमति दी जा सकती है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि वर्तमान में सरकारी नीति विदेशी पूँजी को प्रोत्साहन देने की नहीं है। 1990 के बाद केन्द्र में श्री पी0वी0 नरसिम्हाराव के प्रधानमन्त्री बन जाने के बाद से भारत का नीतियों में मूलभूत परिवर्तन आये हैं। सार्वजनिक क्षेत्रों की बिगड़ी हालत को देखते हुए अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में निजीकरण की नीति को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसी नीति के अन्तर्गत विदेशी निवेशकर्ताओं तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत में पूँजी निवेश करने पर अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की गयी हैं। विदेशी निवेश की सामान्य अधिकतम सीमा कुल इक्विटी पूँजी का 40 प्रतिशत थी, लेकिन प्रौद्योगिकी के परिष्कृत होने और इसके देश में उपलब्ध न होने की स्थिति में अथवा यदि उद्यम अधिकांशतः निर्यातोन्मुख हों तो प्राथमिक उद्योगों के सम्बन्ध में विदेशी इक्विटी की उच्च प्रतिशत पर भी विचार किया गया

सरकार ने जुलाई 1991 में घोषित नई औद्योगिक नीति के भाग के रूप में अधिक उदार विदेशी नीति स्थापित की है। नई विदेशी निवेश नीति के प्रमुख तत्व निम्न प्रकार हैं-

(i) प्रत्येक मामले के आधार पर सभी विदेशी निवेशों के बारे में पिछली नीति को देखते हुए और कुल इक्विटी निवेश की 40 प्रतिशत की सामान्य अधिकतम सीमा के भीतर ही, नई नीति में 34 निर्धारित उच्च प्राथमिकता प्राप्त, पूँजी प्रदान उच्च प्रौद्योगिकी वाले उद्योगों में 51% विदेशी इक्विटी धारिता तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेशके लिए स्वतः अनुमोदन प्रदान करने की व्यवस्था है, बशर्ते कि विदेशी इक्विटी में पूँजीगत विदेशी माल के आयात में विदेशी मुद्रा विनिमय शामिल हो और लाभांश की अदायगियों बाह्य प्रवाह इसमें आते हैं, जो उत्पादन के शुरू होने के 7 वर्ष की अवधि में निर्यात अर्जन द्वारा सन्तुलित हो गये हैं।

(ii) 34 उद्योगों के लिए, विदेशी प्रौद्योगिकी कारकों को भी उदार बनाया गया है, जिसमें फर्मों को अपने वाणिज्यिक निर्णयों के आधार पर और विदेशी तकनीकी व्यक्तियों को और देशीय रूप से विकसित प्रौद्योगिकी की विदेशी परीक्षण सम्बन्धी व्यवस्था को किराये पर लेने के लिए सरकार के पूर्व-अनुमोदन के बिना प्रौद्योगिकी के अन्तरण की शर्तों पर बातचीत करने के लिए स्वतन्त्र हैं।

(iii) विदेशी उत्पादनों के लिए विश्व बाजारों की व्यवस्था खोज के लिए व्यावसायिक बाजार गतिविधियों का लाभ उठाने के उद्देश्य से व्यापारिक कम्पनियों को भी 51 प्रतिशत तक विदेशी इक्विटी धारिता की अनुमति दी गयी।

(iv) विदेशी निवेश सम्बर्द्धन बोर्ड की स्थापना की गयी है जो वृहत् विदेशी निवेश परियोजना के लिए 51% से अधिक की विदेशी ‘इक्विटी’ के बारे में अनुमति देगा।

1992-93 के बजट में 6 माह से अधिक तक विदेश में रहने वाले भारतीयों अथवा अनिवासी भारतीयों को अपने साथ 5 कि0ग्रा0 तक सोना लाने की छूट प्रदान की गयी है। इसी वर्ष विदेशी मुद्रा के साथ रुपये की आंशिक परिवर्तन दर की व्यवस्था को लागू किया है। अब निर्यातकों तथा अन्य विदेशी मुद्रा धारकों को अपनी कुल विदेशी मुद्रा का 40 प्रतिशत रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित दर पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास जमा करना होगा, जबकि शेष 60 प्रतिशत विदेशी मुद्रा को वे खुले बाजार में बाजारी दरों पर बेचने के लिए स्वतन्त्र होंगे।

इन नीतियों के परिणामस्वरूप भारत में विदेशी निवेशकों को पूँजी निवेश के लिए अच्छा वातावरण प्राप्त हो गया है जिसके अच्छे परिणाम प्राप्त होने की आशा है।

भारत में निजी विदेशी विनियोग को प्रोत्साहित करने हेतु सरकार द्वारा प्रयास

भारत सरकार ने विदेशी पूँजी को भारत में प्रोत्साहित करने हेतु निम्नंकित प्रयास किये हैं-

(1) भारतीय विनियोग केन्द्र की स्थापना- फरवरी 1961 में दिल्ली में एक विनियोग केन्द्र (Indian Investment Centre) स्थापित किया गया है। इसका कार्य विनियोग से सम्बन्धित पहलुओं का प्रचार एवं प्रसार करना है। केन्द्र को अपने प्रयत्नों में काफी सफलता मिली है। कनाडा, इंग्लैण्ड, अमेरिका, पं0 जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड, बेल्जियम और जापान के अनेक उद्योगपतियों ने केन्द्र के माध्यम से भारतीय उद्योगो में पूँजी सहयोग के समझौते किये गये है।

(2) विदेशों को प्रतिनिधि मण्डल भेजना- पिछले वर्षों में कई प्रतिनिधि मण्डल भी विदेशों में गये हैं और उन्होंने विदेशियों को भारत में पूँजी लगाने के लिए प्रोत्साहन दिया है।

(3) कर सम्बन्धी छूटें-विदेशी एवं देशी विनियोगों को उत्साहित करने के लिए सरकार ने आयकर अधिनियम के अधीन अनेक छूटे प्रदान की हुई हैं, जैसे- नये उपक्रमों के लिए कर- अवकाश, विकास छूट, वैज्ञानिक अनुसंधान, विदेशी तकनीशियनों को कर छूट आदि।

(4) दुहरे करारोपण की छूट- करदाता को एक ही आय पर दो-दो देशों में कर न देना पड़े, इस हेतु सरकार ने जर्मनी अमेरिका, स्वीडन, फिनलैण्ड, डेनमार्क आदि देशों से दुहरे करारोपण (Double taxation) की छूट देने सम्बन्धी समझौते किये हैं।

(5) विदेशी सहायता के सम्बन्ध में गारण्टी- भारत सरकार (एवं अन्य विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं) ने विदेशी निजी वित्त संस्थाओं को गारण्टी देकर विदेशी पूँजी को भारत आने के लिए उत्साहित किया है। सरकार के ही आश्वासन पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक आदि ने भी विदेशी पूँजी को गारण्टी देकर भारत आने के लिए उत्साहित किया है।

(6) रुपये का अवमूल्यन- 1966 एवं 1991 में भारत सरकार ने रुपये का जो अवमूल्यन किया था, उसका एक उद्देश्य भारत में विदेशी पूँजी को अधिक मात्रा में आकर्षित करना था।

(7) अन्य उपाय- देश में विनियोग के वातावरण को सुधारने के लिए सामान्य उपाय करने के अतिरिक्त सरकार ने अन्य कदम उठाये हैं, जो इस प्रकार हैं-

(i) विदेशी विनियोग या सहयोग वाले मामलों पर जल्दी ही निर्णय दिये जा सकें, इस हेतु जाँच पड़ताल सम्बन्धी विद्यमान कार्य विधियों में सुधार करना।

(ii) कैपिटल प्रोजेक्ट आरम्भ करने के लिए विदेशी कम्पनी को ही लैटर्स ऑफ इन्टैन्ट (Letters of Intent) देना। अब तक यह होता था कि सरकार विदेशी कम्पनी से कोई भारतीय साझेदार ढूँढ़ने को कहती थी और फिर ऐसे साझेदार को ही लैटर ऑफ इन्टैक्ट प्रदान करती थी। इन उपक्रमों के लिए भारतीय मुद्रा की व्यवस्था करने हेतु औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) की सेवाएँ उपलब्ध करा दी गई हैं। यह भी घोषित किया गया है कि विदेशियों द्वारा किसी भारतीय बैंक में जमा कराई गई रकम पर जो ब्याज प्राप्त होगा, उस पर कर नहीं लिया जायेगा।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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