अर्थशास्त्र / Economics

भारतीय उद्योगों में निकीकरण से लाभ | नवीन आर्थिक नीति में निजीकरण एवं सुधार कार्यों का औद्योगिक उत्पाद पर प्रभाव

भारतीय उद्योगों में निकीकरण से लाभ | नवीन आर्थिक नीति में निजीकरण एवं सुधार कार्यों का औद्योगिक उत्पाद पर प्रभाव | Benefit from privatization in Indian Industries in Hindi | Impact of privatization and reforms on industrial product in new economic policy in Hindi

भारतीय उद्योगों में निकीकरण से लाभ

भारतीय अर्थव्यवस्था में नवीन आर्थिक नीति 1991 को शुरू किये लगभग 24 वर्ष हो चुके हैं, किन्तु आर्थिक स्थिति में परिवर्तन से इसके परिणामों या लाभों का अनुमान लगाया जा सकता हैं। इसके परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. विदेशी निवेश में वृद्धि : भारत वर्ष की नवीन आर्थिक नीति के परिणामस्वरूप विदेशी निवेश में भारी वृद्धि हुई हैं। क्योंकि भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का 49% प्राथमिकता क्षेत्र और 35% शेष गैर प्राथमिकता क्षेत्र में हुआ, जैसे (I) दिल्ली राज्य के दूर संचार में 24.5% (II) महाराष्ट्र के ऊर्जा क्षेत्र पर 15.7% (III) पं० बंगाल के तेल शोधन पर 7%, (IV) तमिलनाडु के परिवहन पर 5.1% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो चुका हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश वर्ष 1994-95 में 1,314 अरब डॉलर तथा 2013-14 ई० में 21564 मिलियन डॉलर पहुँच जाने पर सुखद अनुभव होता हैं। पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार ने 10 वर्ष के कार्यकाल में FDI वृद्धि पर विशेष बल दिया। उन्होंने दैनिक प्रयोग, उपभोक्ता वस्तुओं के लिए 51% FDI भी के लिए दरवाजा खोल दिया। 2014 ई0 में नरेन्द्र मोदी सरकार ने FDI को 49% विशिष्ट क्षेत्रों के लिए निर्देश दिये हैं।
  2. विदेशी मुद्रा प्रारक्षित भण्डार में वृद्धि : भारतीय अर्थव्यवस्था को नई आर्थिक नीति वरदान या अभिशाप कुछ भी समझा जाये, लेकिन विदेशी मुद्रा प्रारक्षित भण्डारों की स्थिति अब तक अत्यन्त सुदृढ़ हो गयी हैं क्योंकि विदेशी मुद्रा का संचय जो वष 1991 में 1.1 विलि० डॉलर था जो 2014 ई0 तक 304.2 बिलियन डालर हो चुका है। भारत सरकार निर्यात वृद्धि द्वारा विदेशी मुद्रा भण्डार की वृद्धि को निरन्तर प्रोत्साहित कर रही हैं।
  3. विदेशी व्यापार में उत्साहजनक वृद्धि : नई आर्थिक नीति को विदेशी व्यापार में उत्साहजनक एवं लाभकारी समझा जा रहा हैं क्योंकि आर्थिक नीति लागू होने वाले वर्ष 1991-92 में पूर्व वर्षों की तुलना में डॉलर मूल्यों में निर्यात से कमी दृष्टिगोचर हुई, वही वर्ष 1992-93 में विदेशी व्यापार में 2.3% की वृद्धि के दर्शन हुए। इतना ही नहीं, वर्ष 1993- 94 में निर्यात 19.9% तक बढ़ गये और आयातों को 1.3 प्रतिशत तक कम किया जा सका। विदेशी व्यापार की नवीनतम स्थिति पर ध्यान दें तो 2012-13 ई० में भारतीय निर्यातों से 11.5% में वृद्धि हुई, लेकिन भारतीय रुपये से अमेरिकी डालर मजबूत होने के कारण ऋणात्मक – 1.8% अमेरिकी डालर रहा, जबकि 2012-13 वित्तीय वर्ष में आयातों में 13.8% रुपये की बढ़ोत्तरी हुई। अत निर्यात की तुलना में आयात प्रतिशत ऊँचा रहा। लेकिन वर्ष 2013-14 में निर्यात वृद्धि 15.9% रु0 (या) 4.1% अमेरिका डालर जा पहुँचा और भारतीय आयातों में ऋणात्मक -8.3% अमेरिकी डालर तक कम करने से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अनुकूल Favourable स्थिति में पहुँच गया हैं। स्त्रोत – वाणिज्यिक सूचना एवं प्रोद्योगिकी महानिदेशाल भारत सरकार, आर्थिक समीक्षा 2013-14, Page 121.
  4. राजकोषीय घाटे में कमी : भारत सरकार की नई आर्थिक नीति का राजकोषिय घाटा कम करने में प्राप्त सफलता एक उत्साहजनक परिणाम कहा जा सकता है। क्योंकि राजकोषीय घाटा बढ़ने पर मुद्रा प्रसार में वृद्धि होती हैं। सरकार ने राजकोषीय घाटा वर्ष 1990- 91 के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का जो 8.4% था उसे घटाकर वर्ष 1991-92 में 6.5%, और वहीं सकल राजस्व घाटा 2012-13 ई० में 4.9% एवं 2013-14 में घटकर 4.5% तक पहुंच चुका हैं। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था एक अग्रणी विकासोन्मुखी दिशा की ओर अग्रसर हैं। Economic Survey, 2013-14

परिणाम (Result) : मुद्रा प्रसार पर भारी नियन्त्रण जो वर्ष 1991 में 17 प्रतिशत था, 1994 में घटकर 8.5% प्रतिशत और 2013-14 ई० में 60% रह गया हैं। अनुमान हैं कि 2015-16 ई0 तक मुद्रा प्रसार 3.5% रह जायेगा।

  1. ‘हवाला नियंत्रण’ : यद्यपि ‘हवाला’ प्रकरण विवादास्पद हैं। किन्तु फेरा (FERA) प्रावधानों में संशोधन एवं रुपये की पूर्ण परिवर्तननीयता के कारण विदेशी बाजार में ही हवाला गतिविधियों पर नियन्त्रण कर लेने के संकेत रहे हैं। इससे सोना-चाँदी का आयात सुगम होने के कारण इसकी तस्करी न्यूनतम हो गई हैं।
  2. शेयर बाजार की धोखाखाड़ी पर नियन्त्रण: यद्यपि शेयर घोटाला प्रकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नासूर हैं, तथापि इस प्रकरण को प्रतिबिन्धित करने हेतु आर्थिक नीति में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ‘सेबी की स्थापना कर देने से शेयर बाजार को धोखाधड़ी नियंत्रित हो रही हैं।
  3. आर्थिक विकास दर में वृद्धि : नवीन आर्थिक विकास की दर में वृद्धि हुई हैं। ध्यान दें 1991-92 में आर्थिक विकास वृद्धि दर मात्र 1.1 प्रतिशत थी जो 2011-12 ई० में 15.7 प्रतिशत और 2013 एवं 2014 के दो वर्षों में आर्थिक विकास की वृद्धि दर 12.3% है।
  4. विश्व आर्थिक मंच पर भारत की साख वृद्धि : भारतीय नई आर्थिक नीति ने उत्साहजनक परिणाम दिये हैं, विदेशी निवेश से लेकर विदेशी व्यापार तक, औद्योगिक विकास से लेकर कृषि विकास तक, आर्थिक विकास दर के साथ-साथ विश्व आर्थिक मंच पर भारत की साख में भारी वृद्धि हुई हैं।

नवीन आर्थिक नीति में निजीकरण एवं सुधार कार्यों का औद्योगिक उत्पाद पर प्रभाव

विदेशी निवेश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश, औद्योगिक उत्पादों के लिए विस्तृत विदेशी बाजार, आधारभूत उद्योगों के उत्पादन में तीव्र वृद्धि के लक्षण आदि से अनुमान किया जा सकता हैं कि नई आर्थिक नीति से भारतीय उद्योगों के लिए भविष्य में उत्साहजनक परिणाम मिलेंगे।

नई आर्थिक नीति के औद्योगिक उत्पादन पर निम्न प्रभाव पड़े

औद्योगिक क्षेत्र में विदेशी निवेश (Foreign Investment in Industrial Sec- tor) : भारतीय अर्थव्यवस्था की नई आर्थिक नीति का औद्योगिक क्षेत्र पर प्रमुख प्रभाव विदेशी निवेश के रूप में परिलक्षित होता हैं। क्योंकि भारत वर्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश वर्ष 1995- 96 तक 1,269 अरब डालर हो गया हैं। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रतिवर्ष बढ़ रहा हैं, यह विशेषक निर्माण क्षेत्र, संचार क्षेत्र, कम्प्यूटर साफटवेयर एवं हार्डवेयर क्षेत्र, औषधि निर्माण, आटोमोबाइल क्षेत्र, धातु उद्योग, होटल एवं पर्यटन क्षेत्र में आकर्षित हुआ हैं। इससे सिद्ध हैं कि विदेशी निवेश से भारतीय उपक्रम तीव्र गति प्राप्त कर सकेंगे, क्योंकि केवल 51 प्रतिशत विदेशी पूंजी प्रस्तावित है।

भावी औद्योगिक उत्पाद पर प्रभाव (Its Impact on Future Industrial Growth) : भारतीय राजनैतिक अस्थिरता के चलते विदेशी निवेशक (बहुर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ)  बेहिचक निवेश करने से कतरा रहे हैं। किन्तु नई आर्थिक नीति का भावी औद्योगिक उत्पाद पर अनुमान है, कि सुरक्षित क्षेत्र को छोड़कर यदि शेष क्षेत्रों पर विदेशी निवेश होता हैं तो आर्थिक समृद्धि प्राप्त हो सकेगी।

सुखद तथ्य यह है कि वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार विदेशी निवेश को विशेष प्रोत्साहन दे रही हैं। इसके अपेक्षित पणिामों का मूल्यांकन आगे हो सकेगा।

औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि (Increase in Industrial Growth) : भारतीय अर्थव्यवस्था में नई आर्थिक नीति ने औद्योगिक उत्पादन में विशेष वृद्धि जनक परिणाम दिये हैं, क्योंकि वर्ष 1991-92 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक जो शून्य था उसमें वर्ष 1992-93 में 1.8% की वृद्धि हुई, जबकि 1993-94 में औद्योगिक उत्पादन में 4% वृद्धि, लेकिन औद्योगिक उत्पादन में वर्ष 1995-96 में अभूतपूर्व वृद्धि दर 8.6% वही वर्ष 1995-96 में बढ़कर 12% तक पहुँच गयी हैं, लेकिन 2009 की वैश्विक मन्दी के कारण भारतीय उद्योग भी अछूते नहीं रहें। परिणामस्वरूप औद्योगिक उत्पादन में कमी हुई हैं। अत पूँजीगत माल औद्योगिक क्षेत्र में 2012-13 ई0 में -60% और 2013-14 ई० में ऋणात्मक -3.4% की कमी हुई है। वर्तमान भारत सरकार 2014 में इसे चुनौती मानकर औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हेतु विदेशी पूँजी सहित आन्तरिक निवेश बढ़ाने पर विशेष बल दे रही हैं।

भावी औद्योगिक संवृद्धि पर प्रभाव (Its Impact on Future Industrial Growth) : औद्योगिक उत्पाद के आंकड़ों के आधार पर भारतीय औद्योगिक उत्पादकता में वृद्धि के लिए आधार भूत ढाँचा को सुसज्जित करना होगा। क्योंकि आर्थिक संवृद्धि दर के माध्यम से ही समस्या का निराकरण सम्भव हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र का स्व-मूल्याकन (Self-Evaluations of Public Section) : अर्थव्यवस्था की नई आर्थिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को स्वमूल्यांकन का विशेष अवसर प्रदान किया हैं, जिससे ऐसे उद्योग अपनी उत्पादकता को प्रमुखता देते हुए औद्योगिक जगत में क्रान्ति करें ताकि 75 प्रतिशत घाटे में चल रहे उद्योग स्व-विवेक से वृद्धि के प्रयास करें। आज सार्वजनिक क्षेत्र गुणवत्ता सुधार, ISO-2009-10 एवं उत्पादकता वृद्धि का नारा दे रहे हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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