अमरावती का स्तूप | बोध गया का स्तूप

अमरावती का स्तूप | बोध गया का स्तूप

अमरावती का स्तूप

अभरावती का स्तूप, मूलरूप में ईंटों से निर्मित था। लेकिन कुषाणकाल में इस स्तूप को संगमरमर की चित्र खचित पट्टियों से आच्छादित कर दिया गया। इस स्तूप की रेलिंग भी संगमरमर से निर्मित है। अमरावती के स्तूप की रेलिंग, स्तूप निर्माण की तकनीकी दृष्टि से अत्यन्त उच्च कोटि की है। इसका व्यास 193 फुट, परिधि 600 फुट तथा ऊंचाई 13 अथवा 14 फुट है। इसमें लगे स्तम्भों की ऊँचाई 9 फुट है। यह स्तम्भ 2 फुट 10 इंच चौड़े हैं। स्तम्भों के ऊपर गोल उष्णीय है। इसमें कुल 136 स्तम्भ थे। इस स्तूप में चार प्रवेश द्वार थे। इन चारों प्रवेश द्वारों पर एक-एक तोरण था। इस स्तूप के अन्दर का प्रदक्षिणा पथ 5 फुट ऊंचा था। 20 फुट की ऊँचाई पर स्तूप से निकलते हुए 32 x 6 फुट के आर्यक मंच निर्मित थे। इनमें से प्रत्येक मंच के किनारे पर पाँच आठ पहलू स्तम्भ थे। धर्मचक्र, स्तूप, कमल, बोधिवृक्ष इत्यादि प्रतीक इन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं। स्तूप व वेदिका पर तत्कालीन मूर्तिकला के आदर्श अंकित हैं।

नागार्जुनीकोण्डा इक्ष्वाकु वंश की राजधानी थी। नागार्जुनीकोण्डा का पुराना नाम विजयपुरी है। यह स्थान अमरावती से लगभग 60 मील दूर है। वहाँ की गई खुदाई में प्राप्त ब्राह्मी अभिलेखों से इक्ष्वाकु रानियों की बौद्ध धर्म के प्रति निष्ठा एवं आकर्षक का ज्ञान होता है। अतः यह सम्भव है कि यहाँ का स्तूप किसी इक्ष्वाकु रानी द्वारा ही निर्मित कराया गया हो। यह स्तूप ईंट व मिट्टी से निर्मित था। इस स्तूप में प्रयोग में लाई गई ईंटों का आकार 20 x 10 x 10 इंच है। तदुपरान्त उत्कीर्ण शिलापट्टी से इसे अलंकृत करने का प्रयास किया गया। प्राप्त अवशेषों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस स्तूप का व्यास लगभग 106 फुट तथा ऊँचाई लगभग 80 फुट रही होगी। इस स्तूप के अन्दर तल विन्यास में 40 बड़े प्रकोष्ठ थे। सबसे नीचे प्रदक्षिणा मार्ग की चौड़ाई 13 फुट थी। प्रदक्षिणा के चारों ओर वेदिका थी। इसमें आर्यमंच के समतल ही लघुवेदिका से वेष्टित मध्य का प्रदक्षिणा मार्ग 7 फुट चौड़ा था। स्तूप के ऊपर हर्मिका थी, इसमें तीन छत्र लगे थे। साँची के सदृश ही, यहाँ पर भी अनेक छोटे स्तूप प्राप्त हुए हैं, ये छोटे स्तूप अलंकृत रहित हैं। यहाँ की कला, अमरावती की कला के समान उच्च कोटि की नहीं है।

गुप्तयुग में भी स्तूप बनाने की परम्परा प्रचलित रही। गान्धार एवं मध्यप्रदेश में स्तूपों को बनाने की परम्परा अत्यधिक थी। यहाँ अधिकांश स्तूप ईंटों से निर्मित थे, जो अब प्रायः नष्ट हो चुके हैं। सिन्ध के मीरपुर खास का बौद्ध स्तूप, चौकोर भूमि पर निर्मित है। यह अर्द्धवृत्ताकार है तथा ईंटो से निर्मित है। इसके आधार में तीन कुटियाँ हैं। निर्माण शैली अलंकरण की दृष्टि से यह स्तूप चौथी सदी ईसवी का माना गया है। ह्वेनसांग एवं फाह्यान ने अफगानिस्तान में निर्मित प्राचीन व नवीन अनेक स्तूपों का उल्लेख किया है। गुप्त युगीन स्तूपों से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्तूप है—छठी सदी में निर्मित धमेख स्तूप, यह स्तूप सारनाथ में आज भी यथावत् खड़ा है। यह स्तूप अत्यन्त विशाल है। इस स्तूप के ऊपर वर्तुलाकार ईंट का सम्भार है, इसकी ऊँचाई 128 फुट है। इसके तीन अंग हैं-(1)आधार, (2) मध्य भाग तथा (3) गुम्बज। आधार प्रस्तर का ऊपर से आठ पहल बना हुआ है। प्रत्येक पहल पर महात्मा बुद्ध की प्रतिमा हेतु आला निर्मित है। प्रस्तर को घेरती पट्टिकाओं से यह सम्बद्ध है। इन पट्टिकाओं पर ज्यामितिक एवं पुष्पित रेखाओं से अलंकरण किया गया है। राजगीर की जरासन्ध की बैठक के निकट दो स्तूपों में से एक स्तूप इसी काल का है। इसका स्वरूप ऊपर से लम्बा होने के कारण ह्वेनसांग ने इसे स्तूप स्तम्भ कहा है। इसके अतिरिक्त तक्षशिला का झल्लर स्तूप भी गुप्तयुगीन ही माना जाता है।

बोध गया का स्तूप

यह स्तूप शुंगयुग की देन है। यह स्तूप अब प्राप्त नहीं है। इस स्तूप के चतुर्दिक चहारदीवारी थी जिसके शेष भाग आज भी सुरक्षित हैं। बोध गया के स्तूप में भरहुत के स्तूप की कला की आरम्भिक कला व साँची के स्तूप की कला की पराकाष्ठा के मध्य के दर्शन होते हैं। संक्षेप में, बोधगया के स्तूप की कला भरहुत एवं साँची के मध्य की है। भरहुत के स्तूप की अपेक्षा बोधगया के स्थापत्य मूर्तियों में अधिक गहराई एवं उभार परिलक्षित होता है। बोधगया के स्तूप में सजीव नमनीयता है।

इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

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