इतिहास / History

गुप्त काल में कला का विकास | गुप्तकालीन गुफाएँ और स्तूप | गुप्तकालीन मन्दिर | गुप्तकालीन मन्दिरों की विशेषाएँ

गुप्त काल में कला का विकास | गुप्तकालीन गुफाएँ और स्तूप | गुप्तकालीन मन्दिर | गुप्तकालीन मन्दिरों की विशेषाएँ

गुप्त काल में कला का विकास

असाधारण उन्नति-

गुप्त काल प्राचीन भारत का ‘स्वर्ण युग’ था। इस काल में साहित्य, विज्ञान, तथा ललित कलाओं की असाधारण उन्नति हुई। श्री एम० एल० विद्यार्थी ने लिखा है कि “शताब्दियों के प्रयत्न से कला की तकनीके निर्दोष बना ली गई थीं, कुछ सुनिश्चित प्रारूप (टाइप) विकसित किये गये थे और सौन्दर्य के सही आदर्श बना लिये गये थे।” यहाँ हम गुप्तकालीन कला के विषय में ही विचार करेंगे।

कला के विभिन्न रूप-

गुप्त काल की कला हमें अनेक रूपों में प्राप्त होती है:

(1) स्थापत्य कला, जिसके अन्तर्गत मन्दिर तथा स्तूप आते हैं; (2) मूर्ति (तक्षण) कला, जिसमें पत्थर को गढ़कर मूर्तियों का निर्माण किया जाता है; (3) पृणमूर्ति कला, जिसमें पकाई गई मिट्टी की मूर्तियाँ सम्मिलित हैं; (4) चित्रकला, जिसमें कुँची और रंगों द्वारा दीवारों पर या कागज या कपड़े पर चित्र बनाय जाते हैं; (5) संगीत, नृत्य तथा अभिन्य कला। इनमें से पहले चार प्रकार की कला तो उस काल के अवशेषों में दृष्टिगोचर होती है, परन्तु पाँचवी अर्थात् संगीत, नृत्य एवं अभिनय कला का साहित्यिक वर्णनों और मूर्तियों तथा चित्रों से केवल अनुमान ही किया जा सकता है।

स्थापत्य कला-

गुप्त काल में, मौर्यकाल की भांति, अनेक विशाल तथा सुन्दर राजप्रसाद बने थे। इस प्रकार के भवनों का तत्कालीन साहित्य में वर्णन और अजन्ता तथा अमरावती केक्षचित्रों में अंकन मिलता है। परन्तु उनमें से कोई भी राजप्रासाद अवशिष्ट नहीं है। उस काल की अनेक गुफाएं, और मन्दिर अब भी विद्यमान हैं।

गुप्तकालीन गुफाएँ और स्तूप-

अजन्ता की विश्वविख्यात गुफाओं और मध्य प्रदेश में स्थित बाघ की गुफाओं की रचना गुप्त काल में हुई। भिलसा के निकट उदयगिरि की गुफा अपनी अनेक मूर्तियों के कारण विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। इनमें विष्णु के वराह रूप की एक विशाल प्रतिमा बहुत बढ़िया मानी जाती है। अजन्ता की गुफा सं० 16 और 17 दोनों ही लगभग 65 फुट लम्बी और इतनी ही चौड़ी हैं।

गुप्त काल में अनेक स्तूप भी बने थे। इनमें सारनाथ का धमेख स्तूप विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भित्ति पर लगे पत्थरों पर सुन्दर मूर्तियाँ, दृश्य तथा चित्रवल्लरियाँ अंकित हैं। सारनाथ में एक बौद्ध विहार के अवशेष भी मिले हैं।

गुप्तकालीन मन्दिर-

गुप्त काल में बने कई मन्दिर अब भी बचे हुए हैं। टूटी फूटी दशा होने पर भी इनसे उस काल के स्थापत्य का ठीक-ठीक अनुमान हो जाता है। इस काल के प्रमुख मन्दिर निम्नलिखित हैं:

(1) देवगढ़ का दशावतार मन्दिर- यह झांसी जिले में है। यह मन्दिर सुन्दर मूर्तियों से जटित है। इसे गुप्तकालीन मन्दिरों की रचना शैली का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है। यह एक ऊंचे चबूतरे के बीच में बना है। गर्भगृह में जाने के लिए चार द्वार हैं, जिनकी चौखटों पर मूर्तियाँ बनी हैं। इसमें विष्णु की प्रसिद्ध शेषशायी प्रतिमा है।

(2) तिगवा, भूमर और नचना-कूथर के मन्दिर-जबलपुर जिले में तिंगवा नामक स्थान पर विष्णु का मन्दिर, नागौद के निकट भूमर में शिव मन्दिर और अजयगढ़ के पास नचना-कूथर में पार्वती मन्दिर गुप्त काल के तीन अन्य प्रसिद्ध मन्दिर हैं। भूमरा के भान शिव मन्दिर में एकमुख शिवलिंग स्थापित है। मन्दिर द्वार स्तम्भ के दाईं ओर मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना की मूर्तियाँ पत्थर पर उत्कीर्ण हैं।

(3) भीतरगांव का ईटों से बना मन्दिर- कानपुर जिले में भीतरगांव का विशाल मन्दिर इस कारण महत्त्वपूर्ण माना जाता है कि यह ईटों से बना है। इसके अतिरिक्त गुप्तकाल के अन्य मन्दिर पत्थर के बने हैं। यह अपने ढंग का पहला मन्दिर है। इसकी ईटें सुन्दर डिजाइन में और अनेक रूपों में ढली हुई हैं। दीवारों के बाहरी भाग पर मिट्टी के पकाये हुए फलक लगाये गये हैं, जिन पर चित्रवल्लरियाँ बनी हैं।

(4) ऐहोलल तथा दह-परबतिया के मन्दिर-महाराष्ट्र में ऐहोल नामक स्थान पर एक पुराना मन्दिर और असम के दरंग जिले में दह-परबतिया नामक स्थान पर बना एक भग्न मन्दिर भी गुप्त काल की कृतियाँ हैं।

गुप्तकालीन मन्दिरों की विशेषाएँ-

श्री पी० एन० चोपड़ा ने लिखा है कि ‘गुप्तकालीन कलाकारों ने पौराणिक धार्मिक संकल्पनाओं को पत्थर, मिट्टी और चित्रकला के माध्यम से दृश्य रूप में अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया।” इस काल के मन्दिरों की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं: (क) मन्दिर एक ऊंची कुर्सी (प्लिथ) पर बनाए जाते थे। (ख) मन्दिर में एक वर्गाकृति गर्भगृह होता था, जिसमें देवता की प्रतिमा स्थापित होती थी। (ग) गर्भगृह के चारों ओर एक प्रदक्षिणा पथ बना होता था। (घ) गर्भगृह का प्रवेश द्वार सुन्दर मूर्तियों से अलंकृत होता था; द्वार-स्तम्भों के ऊपरी कोनों पर गंगा और यमुना की मूर्तियाँ बनी रहती थी. (ङ) पूर्व गुप्त काल में गर्भगृह के सामने एक छोटा सा द्वार-मंडप हुआ करता था, परन्तु उत्तर गुप्त काल में उसने स्तम्भयुक्त द्वारमंडप का रूप ले लिया। (च) पूर्व गुप्त काल में मन्दिरों की छतें चपटी होती थीं; बाद में शिखर बनने लगा। (छ) दीवारें सादी (अनलंकृत) होती थीं, परन्तु स्तम्भ मूर्तियों और बेल-बूटों से अलंकृत होते थे।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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