समाज शास्‍त्र / Sociology

औद्योगिक समाजशास्त्र की उत्पत्ति और विकास | औद्योगिक समाजशास्त्र का क्रमिक विकास | द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकास

औद्योगिक समाजशास्त्र की उत्पत्ति और विकास | औद्योगिक समाजशास्त्र का क्रमिक विकास | द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकास | Origin and development of industrial sociology in Hindi | Gradual development of industrial sociology in Hindi | Development after World War II in Hindi

औद्योगिक समाजशास्त्र की उत्पत्ति और विकास

औद्योगिक समाजशास्त्र यद्यपि आजकल अध्ययन का एक प्रमुख विषय बन गया है परन्तु इस विषय का विकास पिछले कुछ दशकों में ही हुआ है। सन् 1939-40 में सर्वप्रथम पेन्सिलवेनिया स्टेट कालेज में इस विषय को समाजशास्त्र का अंग प्रोफेसर के० डेविस के सुझाव पर माना गया। इसके बाद सन् 1946 में विश्व के अनेक विद्यालयों में इस विषय को मान्यता दी गयी। सन् 1946 से अब तक इस विषय का विकास होता रहा है और होता जा रहा है। समाजशास्त्र के विद्यार्थी इस क्षेत्र में अधिकाधिक शोध कार्य करते रहते हैं।

सन् 1933 में एल्टन मेयो (Eltren Mayo) नामक विद्वान ने उद्योगों से सम्बन्धित सामाजिक समस्याओं पर विचार किया और सन् 1933 और 1934 में उन्होंने ‘एक औद्योगिक सभ्यता की मानवीय समस्यायें (The Human Problems of an Industrial Civilization) तथा ‘औद्योगिक समाज की सामाजिक समस्यायें (The Social Problems of an Industrial Society) नाम पुस्तकें लिखीं।

श्री मेयों के बाद श्री टी.एन. हाइटहेड (T. N. Whitehead) और श्री बी0एम) सेलेकमेन (B. N. Selekmen) ने भी औद्योगिक समाज और सभ्यता पर खोज की ओर इस विषय में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया। मेयो और रूथलिस्वर्ग ने अपने शोधों के आधार पर बल दिया कि श्रमिक कोई भी कार्य व्यक्तिगत श्रमिक के रूप में नहीं करता, वरन यह कार्य एक सामूहिक रूप में करता है। अतः श्रमिक स्वयं तो तभी कार्य के लिए अग्रसर होते हैं, जब वह अपने आपको एक संगठन के रूप में पाते हैं। मेयो और उसके अनुयायियों की इस विचारधारा ने इस दिशा में एक नया मार्ग खोजा। यद्यपि मेयो की यह विवेचना मौलिक नहीं थी क्योंकि कुछ समाजशास्त्रियों ने यह विवेचना उससे अनेक वर्षों पूर्व ही कर डाली थी परन्तु फिर भी मेयो की इस विवेचना ने व्यापारियों, श्रमिक नेताओं और शोधकर्ताओं का ध्यान समूह के महत्व की ओर आकृष्ट किया। इसके साथ-साथ मेयो का यह भी योगदान है कि उसने कार्य प्रणाली के रूप में इस सिद्धान्त को प्रमाणित किया।

औद्योगिक समाजशास्त्र का क्रमिक विकास

1940 ई0 में बाद से यह विषय इतना लोकप्रिय हुआ कि विभिन्न विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी इस पर शोधकार्य कर रहे हैं। उनका मुख्य विषय उद्योगों के मानवीय सम्बन्धों में उत्पन्न होने वाली सामान्य समस्याओं की विवेचना है। समाजशास्त्री ही नहीं वरन् मानवशास्त्री (Anthropologists), मनोवैज्ञानिक (Psychologists) तथा कर्मचारी शोधकर्ताओं की दृष्टि श्रम संगठनों की समस्याओं पर केन्द्रित रहती है।

प्रारम्भिक अध्ययन समाजशास्त्र में श्रम समस्याओं का अध्ययन करने वाले प्रारम्भिक विद्वानों में अरेन्सबर्ग (Arensberg), वेक्की (Bekke), चेपिल (Chapple), गार्डनर (Gardner), ब्लमर (Blumer), स्काट और होमन्स (Scott and Homans), फार्म (Form), ड्यूबिन (Dubion), ह्वाइट (White), मिलर (Miller), मूरे (Moore), वार्नर (Warner) और मेडोज (Meadows) आदि के नाम प्रमुख हैं। इन्हीं के शोधकार्यों के फलस्वरूप ‘अमेरिकन शोसियोलोजिकल सोसाइटी’ ने 1946 में औद्योगिक समाजशास्त्र का एक विभाग स्थापित किया।

विविध संस्थाओं की स्थापना इसी प्रकार औद्योगिक सम्बन्धों के अध्ययन के विषय में अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई। शिकागो विश्वविद्यालय में ‘कमेटी ऑन ह्यूमन रिलेशन्स इन इंडस्ट्री इनमें से ही एक हैं 1944 में कुर्ट लेविन (Kurt Lewin) के निर्देशन में समूह गतिशीलता (Group Dynamics) और अन्य मानवीय समस्याओं पर विचार करने के लिए मैसाचुयेट्स में एक संस्था की स्थापना हुई, इसी वर्ष औद्योगिक और श्रम समस्याओं के अध्ययन के लिए न्यूयार्क राज्य की ओर से कारनेल विश्वविद्यालय में एक स्कूल की स्थापना हुई। आजकल औद्योगिक तथा श्रम सम्बन्धों के शोधकार्य के लिए एवं शिक्षण के लिए इलिनायस, मिनेसोटा, होहियो, पेन्सिलवेनिया, पिन्सेटन, वाशिंगटन मिशिगन एवं कैलिफोर्निया आदि विश्विविद्यालयों में संगठन है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकास

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह विचार किया गया कि उत्पादन की उच्च दर प्राप्त करने के लिये व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को जानना आवश्यक है। यही कारण था कि इस काल में उद्योगों का विकेन्द्रीकरण तेजी से हुआ। सन् 1941 में काउन्सिल ऑफ नेशनल साइन्स के सलाहकार आयोग के अन्तर्गत श्रम आयुक्त श्री सिडनी हिलमैन ने ‘नेशलन रिसर्च काउन्सिल’ (National Research Council) के पास एक प्रश्न भेजा जो इस प्रकार था, कार्य-स्तर पर ज्ञान में वृद्धि करने तथा निरीक्षण कार्य में सुधार के लाने के लिए क्या किया जा सकता है? कैंटिंग लेबोरेटरी के निदेशक डॉ० लारेन्स हैण्डरसन ने इस प्रश्न को अनुमोदित करते हुये लिखा कि निर्देशन में सुपरवाइजरों के प्रशिक्षणों में सुधार किया जाय जिससे वे मानवीय परिस्थितियों का सही प्रकार का विश्लेषण कर सकें। इससे अधिक सहयोग की भावना मिल सकती है। डॉ0 लारेन्स के अनुमोदन के आधार पर प्रशिक्षण के विना कार्य T.W.I. को दिया गया। इस कार्य के लिए रूथलिसबर्गर (Rocthlisberger) और जान फॉक्स एवं सरकी को हावर्ड से बुलाया गया। T.W.I. में इनकी मुलाकात डूली, डीटज और कोनेवट से हुई। इन लोगों के सहयोग से एक यूनिट बनी जिसका नाम ‘जाब रिलेशन्स ट्रेनिंग’ पड़ा। इस संस्था द्वारा दस घंटे तक प्रशिक्षण कार्य चलता था।

टी0डब्लू0 आई0 की भूमिका- इसके बाद T.W.I. सर्विस ने अपने संघटनात्मक यन्त्र को और अधिक तीव्र कर दिया, अतः प्रत्येक बड़े नगर में इस संस्था के क्षेत्रीय प्रतिनिधि, काम चाहने वालों को प्रशिक्षण देने गये। इस प्रकार दो वर्ष में ही लगभग पाँच लाख व्यक्ति प्रशिक्षित किये गये। मानवीय सम्बन्धों के विषय में इतने बड़े और व्यापक क्षेत्र में प्रशिक्षण देने का यह प्रथम प्रयास था। इस प्रकार औद्योगिक समाजशास्त्र के विकास में T.W.I. की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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