समाज शास्‍त्र / Sociology

सी. लेवी स्ट्रास का संरचनावाद | लेवी-स्ट्राउस के संरचनावादी परिप्रेक्ष्य का मूल्यांकन | लेवी-स्ट्राउस का संरचनावादी परिप्रेक्ष्य | लेवी-स्ट्राउस के संरचनावादी परिप्रेक्ष्य का मूल्यांकन

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सी. लेवी स्ट्रास का संरचनावाद

लेबी-स्ट्राउस एक प्रमुख संरचनावादी विद्वान है। उनकी कृति Structural Anthropology एक प्रमुख कृति मानी गई है। उन्होंने केवल सामाजिक संरचना की अवधारणा ही विकसित नहीं की बल्कि विनिमय का संरचनावादी सिद्धांत भी प्रतिपादित किया है। साथ ही, उन्होंने नातेदारी व्यवस्था के अध्ययन में सामाजिक संरचना की अवधारणा को अपनाया है और इसे उपयोगी माना है। इनकी दो अन्य कृतियाँ “The Elementary Structures of Kinship” तथा “The Savage Mind” इस दृष्टि से  प्रमुख कृतियाँ मानी जाती हैं। लेवी-स्ट्राउस की रचनाओं में संरचनावाद तथा प्रकार्यवाद काफी सीमा तक एक-दूसरे से पुनः जुड़े हुये दिखाई देते हैं। इन्होंने दुखम को प्रमुख आधार माना है तथा रेडक्लिफ-ब्राउन व मैलिनोवस्की का भी इन पर प्रभाव स्पष्टतः देखा जाता है। इनके अतिरिक्त इन पर अनेक अन्य विद्वानों, जैसे- रूसो, मार्क्स तथा फ्रॉड का सामान्य प्रभाव देखा जा सकता है। साउसर (Saussure), ट्रबेटोस्की (Trubelosk) एवं जैकबसन (Jakobson) का लेवी-स्ट्राउस के विचारों के विकास पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है।

लेवी-स्ट्राउस का संरचनावादी परिप्रेक्ष्य

(Structural Perspective of Levi-Strauss)

लेवी स्ट्राउस के अनुसार, ‘सामाजिक संरचना का संबंध किसी भी प्रकार की प्रयोग-सिद्ध वास्तविकता से नहीं है अपितु उन प्रारूपों से है जो संरचना को विकसित करते हैं। इससे उन दोनों अवधारणाओं में अंतर करने में सहायता मिलनी चाहिये जो एक-दूसरे के अत्यंत निकट हैं तथा बहुधा उलझा दी जाती हैं। वे अवधारणायें है सामाजिक संरचना तथा सामाजिक संबंध।’

“….the term social structure has nothing to do with emprical reality but with models built up after it. This should help one to clarify the difference between two concepts which so close to each other that they have often been confused, namely those of social structure and of social relation”.

– Levi Strauss, Structural Anthropology

संरचना के प्रारूप में व्यवस्था की विशेषतायें, परिवर्तनों के क्रम में व्यवस्था उत्पन्न करने की विशेषता, एक अंग में परिवर्तन के कारण संपूर्ण अथवा समग्र में परिवर्तन की विशेषता तथा अवलोकित तथ्यों को समझने की विशेषता होना अनिवार्य है। इन्होंने समष्टिता और सार्वभौमिकता को व्यक्तिवाद एवं अनिश्चितता की तुलना में प्रमुखता प्रदान की, पृथक इकाई की तुलना में संबंधात्मकता पर बल दिया तथा गैर-भाषाई प्रघटनाओं में चिन्हों की प्रयोज्यता को स्वीकार किया।

लेवी-स्ट्राउस- के लेखन को विषय-वस्तु के आधार पर गिडिन्स ने निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित किया है-

(1) नातेदारी व्यवस्थाओं का अध्ययन (Study of Kinship Systems)

(2) आदिम वर्गीकरण एवं टोटमवाद का सिद्धांत (Theory of Primitive Classification to Totemism)

(3) पुराण कथा के तर्क का विश्लेषण (Analysis of the Logic of Myth)

लेवी-स्ट्राउस के लिये संरचनायें मानवशास्त्रीय अवलोकनकर्ता द्वारा बनाये गये प्रारूपों से आवंष्टित होते हैं। वे सामाजिक क्रिया या विचारों की प्रतिरूप नहीं होती, अपितु सामाजिक जीवन की सतही प्रघटनाओं के नीचे खोज का एक प्रारूप है ताकि उन संबंधों का पता लगाया जा सके जिनसे वे संगठित होती हैं, ठीक उसी प्रकार जिस रूप में भाषा-विज्ञान में संयोजित तत्वों को उघारा जाता है। लेवी-स्ट्राउस ने, वस्तुतः अपने परिप्रेक्ष्य को भाषा विज्ञान के सिद्धांत में ‘स्वरविज्ञान आंदोलन (Phonological Revolution) पर आधारित किया जिनके अनुसार संस्कृति के तत्वों को ध्वनिग्रामों के समानार्थक माना जाता है, जिनकी महत्ता को उनके पारस्परिक संबंधों द्वारा ही जाना जाता है।

लेवी-स्ट्राउस के अनुसार, संरचनाओं में निम्नलिखित तीन प्रमुख बातें निहित होती हैं-

(1) संरचनायें अंतसंबंधी तत्वों से बनती हैं जिनमें से किसी एक में अन्य सभी तत्वों को प्रभावित किये बिना परिवर्तन नहीं हो सकता। अन्य शब्दों में संरचनायें व्यवस्थायें होती हैं।

(2) संरचनायें रूपांतरणें (Transformations) को सम्मिलित करती हैं जिनसे भिन्न सामग्री (Divergent Materials) में समानता (सम संयोजकता) की व्याख्या की जा सकती है।

(3) संरचनायें यह भविष्यवाणी संभव बनाती है कि किस प्रकार एक तत्व में रूपांतर (परिवर्तन) संपूर्ण मॉडल (प्रारूप) को परिवर्तित कर देगा।

इस प्रकार लेवी-स्ट्राउस के अनुसार संरचना का प्रारूप सेवा होना चाहिए जो सभी अवलोकित तथ्यों को अनिलम्ब समझने में सहायक हो सके। संरचनात्मक अध्ययनों से हमें सर्वप्रथम यह निश्चित करना पड़ता है कि हम किन तथ्यों का अध्ययन करेंगे एवं उनका अवलोकन कैसे करेंगे। संरचना के यांत्रिक व सांज्यिकीय प्ररूप हो सकते हैं और दोनों में विभेद (Discrimination) करना भी आवश्यक है। यहाँ यह भी स्मरणीय है कि सामाजिक संरचनात्मक अध्ययनों को जो तथ्य महत्व प्रदान करता है वह यह है कि संरचनायें ऐसे प्रारूप होते हैं जिनकी स्वरूपीय विशेषताओं की उनके तत्वों से स्वतंत्र रूप से तुलना की जा सकती है। अतः लेवी-स्ट्राउस ने संरचनात्मक अध्ययनों के दोहरे महत्व पर प्रकाश डाला है, और प्रथम, इस प्रकार के अध्ययन किन्हीं महत्वपूर्ण स्तरों को पृथक करने में सहायक होते हैं और द्वितीय, इनकी सहायता से ऐसे प्रारूपों का निर्माण करना संभव है जिनकी स्वरूपीय विशेषताओं की ऐसे दूसरे प्रारूपों की विशेषताओं से तुलना की जा सकती है जो दूसरे स्तर पर महत्वपूर्ण हो।

लेवी-स्ट्राउस के अनुसार संरचनावादी विश्लेषण का उद्देश्य ‘सुबोधगम्य यथार्थता’ (Intelligible Reality) की अंतर्वस्तु को पुनः प्राप्त करना है। इनके शब्दों में ‘अंतर्वस्तु एवं स्वरूप दो भिन्न तत्त्व नहीं हैं, अपितु किसी अध्ययन वस्तु को गहराई से समझने हेतु पूरक दृष्टिकोण हैं। अतः संरचनाओं को उनकी अंतर्वस्तु (content) की पहचान भी है। इन विचारों के कारण ही लेवी-स्ट्राउस प्रत्यक्षवाद से हट जाता है। उनका विचार है कि वैज्ञानिक ज्ञान संवेदी अवलोकन द्वारा उत्पन्न नहीं होता, बल्कि उन विन्यासों के निर्माण से संभव है जिनसे अवलोकनों को बोधगम्य बनाया जाता है।

लेवी-स्ट्राउस ने संरचनावादी प्रारूपों की प्रयोज्यता के विषय में प्रायः प्रतिबंधों की भी विवेचना की है। इनका कहना है कि यह सोच लेना हास्यास्पद है कि सरचनावादी पद्धति समाजों के बारे में ‘सर्वांगीण ज्ञान’ (Exhaustive Knowledge) प्राप्त करने में सहायक है।’ यह उन समाजों के बारे में भी संभव नहीं है जो कि अपेक्षाकृत गतिहीन हैं। इसीलिये उन्होंने अपने विश्लेषण को भी प्रारंभिक बताया है। लेवी-स्ट्राउस का अपने अध्ययनों में भी प्रमुख उद्देश्य ‘अचेतन आत्मिक संरचनाओं’ (Unconscious Psychical Sutures) अथवा मस्तिष्क की अचेतन सोउद्देश्यता (Unconscious Teleology of Mind) का पता लगाना रहा है।

लेवी स्ट्राउस ने इतिहास व संरचनावादी विश्लेषण में संबंधों की भी चर्चा की है। उनके अनुसार इतिहास भिन्न समयों में होने वाली घटनाओं का वर्णन (Account of occurrence in time) है तथा इसमें सामान्यतः ज्ञान-मीमांसा संबंधी प्रमुखता नहीं पायी जाती है। इसमें केवल घटना से पहले और ‘बाद’ का ही वर्णन किया जाता है। इन्होंने जीन पॉल सार्च (Jean Paul Sarte) द्वारा पश्चिमी चिंतन में ऐतिहासिक चेतना की प्रमुख भूमिका का भी उल्लेख किया है। इनके शब्दों में ‘सार्त्र केवल मात्र ऐसा समकालीन दर्शनशास्त्री नहीं है जिसने इतिहास को अन्य मानवीय विज्ञानों से ऊपर रखा है तथा इसके बारे में मुख्यतः रहस्यवादी धारणा निर्मित की है। घटनाओं के क्रम के रूप में इतिहास मानव अनुभवों को संगठित करने वाला माध्यम नहीं है। ऐतिहासिक ज्ञान द्वारा सामाजिक जीवन के मौलिक तत्वों का भी पता नहीं लगाया जा सकता है।

लेवी-स्ट्राउस के संरचनावादी परिप्रेक्ष्य का मूल्यांकन

(Evaluation of Levi- Strauss Structural Perspective)

प्रकार्यवादियों के समान लेवी-स्ट्राउस ने ‘संरचना’ (Structure) तथा ‘व्यवस्था’ (System) में स्पष्ट भेद नहीं किया है। इन्हें अंतर्वदल शब्दों के रूप में प्रयोग किया गया है। इसके लिये लेवी- स्ट्राइस की आलोचना भी की गयी है। लेवी-स्ट्राउस के विचारों की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है- (1) लेवी-स्ट्राउस ने ‘संरचना’ तथा ‘व्यवस्था’ में कोई स्पष्ट अंतर नहीं किया है। (2) उन्होंने अपने विचारों की पुष्टि हेतु जो आनुभाविक तथ्य प्रस्तुत किये हैं वे पूर्णतः विश्वासोत्पादक नहीं हैं।

(3) लेवी-स्ट्राउस का अचेतन के संरचनावादी गुणों का निरूपण अधिक स्पष्ट नहीं है।

कुछ भी हो, लेवी-स्ट्राउस का संरचनावादी विचारकों में एक प्रमुख स्थान है। उनके अनुसार संरचनावादी अध्ययन महत्वपूर्ण स्तरों अथवा अंगों को पृथक करने में ही सहायक नहीं होते अपितु उनसे ऐसे प्रारूपों का निर्माण करना भी संभव हो जाता है जो तुलनात्मक अध्ययनों में सहायक हैं। लेवी-स्ट्राउस समूह संरचनाओं, सामाजिक-स्थैतिकी तथा सामाजिक गत्यात्मकता का स्पष्टीकरण करने में सफल रहे हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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