समाज शास्‍त्र / Sociology

आधुनिक औद्योगिक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ | औद्योगिक संगठन से आशय

आधुनिक औद्योगिक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ | औद्योगिक संगठन से आशय | Main features of modern industrial organization in Hindi | Meaning of industrial organization in Hindi

आधुनिक औद्योगिक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ

संगठन क्या है तथा इसकी कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं-

इस प्रश्न पर प्रचुर मत-मतांतर टहो सकते हैं। एक मनोविज्ञानी द्वारा दी गई परिभाषा शायद वैसी नहीं होगी, जो एक समाजशास्त्री, राजनीतिज्ञ, मानवशास्त्री, अर्थशास्त्री तथा गणितज्ञ द्वारा दी जाती है क्योंकि सबके दृष्टिकोण में भिन्नता है। फिर भी, इतना तो कहा जी जा सकता है कि प्रत्येक संगठन की दो प्रमुख विशेषताएँ होती है-एक संरचना (Structure) एवं दूसरा उद्देश्य (Purpose)। दोनों ही दृष्टि से संगठन कई प्रकार के हो सकते हैं, यथा-सामाजिक संगठन, राजनीतिक संगठन, सैनिक संगठन, व्यापार संगठन, धार्मिक संगठन इत्यादि। बेक (Bakke) ने किसी संगठन के लिए अद्योलिखित विशेषताओं का होना आवश्यक बताया-

संगठन का नाम, उसके विशिष्ट कार्य, प्रधान उद्देश्य, जिनकी प्राप्ति के लिए सभी सदस्य यथाशक्ति सचेष्ट हों, स्पष्ट नीतियाँ, सदस्यों का परस्पर अधिकार तथा कर्तव्य, संगठन के मूल्य और आदर्श, प्रतीक एवं संचार व्यवस्था इत्यादि।

इस तरह, हम देखते हैं कि संगठन की कई विशेषताएँ हैं। हर संगठन की अपनी पृथक् संचार-व्यवस्था और संचार प्रतिकृति होती है। जिन-जिन तत्वों से संगठन की संरचना होती है, वे सारे तत्व परस्पर संबंधित हुआ करते हैं। संगठन के सदस्य किस प्रकार परस्पर संबंधित होते हैं, संचार-व्यवस्था में कौन सदस्य किससे संबंधित है, किस प्रकार कौन-सा दायित्व है, इत्यादि कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनके द्वारा संगठन का निर्माण होता है। यदि संगठन की संरचना अथवा बनावट पर ध्यान दिया जाए, तो यह ज्ञात होगा कि यह ‘पिरामिड’ की तरह त्रिभुजाकार है और सदस्यगण अलग-अलग इकाई के रूप में अलग-अलग स्थानों पर अवस्थित होते हैं। सभी स्थान या इकाइयाँ संगठनात्मक सूत्रों से जुड़ी होती हैं। सच पूछें, तो हर दो इकाइयों के बीच उपस्थित संबंध-सूत्र की प्रतिकृति पर ही पूरी संगठन-व्यवस्था की संरचना निर्भर करती है। निम्नांकित चित्र से यह अधिक स्पष्ट हो सकेगा-

दूसरे शब्दों में, इकाइयों के बीच जिस तरह का संबंध होता है वही अपने-आप में इस बात का प्रमाण है कि उक्त सदस्यों मध्य परस्पर संबंध कैसा होगा। सेल्स तथा स्ट्रॉस (Sayles and Strauss, 1966) ने यह बताया कि ‘पिरामिड’ आकार वाले संगठन में कुल पाँच प्रकार के संबंध देखे जा सकते हैं-

(क) लगभग सभी संपर्क ऐसे आदेशों का रूप लेते हैं, जो नीचे की ओर निर्दिष्ट होते हैं और परिणाम की सूचना पिरामिड से ऊपर की ओर निर्दिष्ट होती है।

(ख) प्रत्येक अधीनस्थ व्यक्ति सिर्फ एक ही अधिपुरुष (Boss) से आदेश ग्रहण करता है।

(ग) महत्वपूर्ण निर्णय ‘पिरामिड’ के मात्र शीर्षस्य पदाधिकारियों द्वारा लिये जाते हैं।

(घ) हर उच्च व्यक्ति का निर्णय-प्रसार सीमित होता है, वह एक साथ कुछ ही व्यक्तियों को पर्यवेक्षित कर पाता है।

(ड.) सबसे नीचे तथा शीर्ष को छोड़कर बीच का हर व्यक्ति ठीक अपने से ऊपर के अधिपुरुष तथा अपने से नीचे के अधीनस्थ के साथ संपर्क रखता है।

हर औपचारिक (Formal) संगठन की रूपरेखा तथा उसके परस्पर संबंधों का प्रारूप कुछ ऐसा ही होता है और परंपरागत रूप से ऐसी धारणा चली आ रही है कि उद्योगों में कोई संपर्क यदि महत्वपूर्ण है, तो यह सिर्फ शीर्षस्थ तथा अधीनस्थों के बीच का संबंध होता है किन्तु यह धारणा दोषपूर्ण सिद्ध हुई है। हाल के अनुसंधानों से यह स्पष्ट हो चुका है कि संगठन के सफल संचालन में क्षैतिजीय संपकों (Horintal Contact) का विशेष महत्व होता है। दलनिष्ठावाले कार्य-समूह में तो ऐसा संपर्क अधिक सहायक होता है। संगठन की संरचना पर उसकी कार्य-कुशलता आधारित होती है। इस तथ्य की जाँच सर्वप्रथम लिविट (Leavitt, 1951) ने अपने प्रयोगत्मक अध्ययनों के आधार पर की। उसने व्यक्तियों को विभिन्न रीतियों से संगठित किया और उनके कार्य संपादन पर विविध संचार- व्यवस्था के प्रभावों को देखा। व्यक्ति-समूहों को निम्नलिखित चार रूपों से संगठित किया गया-

यह देखा गया कि संरचनात्मक भिन्नता के कारण व्यक्ति समूहों का कार्य संपादन तथा मनोबल-स्तर अत्यधिक ऊँचा था। ‘वॉइ’ तथा ‘चक्रनुमा’ संगठन अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुए। ‘किन्तु, ‘वृत्त’ व्यवस्था में काम करने वाले व्यक्तियों ने कार्य-तोष का अनुभव सबसे अधिक किया। इन लोगों ने अपने-अपने कामों को अत्यधिक पसंद किया, पर इनका कार्य-निष्पादन बड़ा ही असंतोषजनक रहा। लिविट (Leavitt) ने हर समूह के लिए केन्द्रीयता (Centrality) तथा सीमांतता (Peripherality) का मापक पृथक् रूप से प्रस्तुत किया और यह प्रदर्शित किया कि इन मापकों पर ही संगठन की स्थिरता कायम रहती है। अर्थात् समूह के केन्द्रीय स्थान पर जब कोई एक व्यक्ति स्थित होता है और दूसरे लोग सीमित-स्थलों पर रहते हैं, तो ऐसी स्थिति में उक्त समूह को सर्वाधिक प्रभावशाली माना जाता है। ऐसे समूहों में नेता शीघ्र उभरते हैं और इन समूहों की संगठनात्मक क्षमता भी प्रबल होती है। किंतु, जहाँ तक मनोबल-स्तर का प्रश्न है, यह उसी समूह में ऊंचा दीखता है, जहाँ के सभी सदस्यों की स्थिति लगभग समान रूप से केन्द्रीय हो। लिविट के अध्ययन परिणाम का समर्थन हीस तथा मिलर (Heise and Miller, 1951) के अध्ययन से भी मिलता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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