समाज शास्‍त्र / Sociology

सामाजिक संरचना | सामाजिक संरचना की परिभाषा | सामाजिक संरचना में प्रमुख विचारकों के विचार

सामाजिक संरचना | सामाजिक संरचना की परिभाषा | सामाजिक संरचना में प्रमुख विचारकों के विचार | Social structure in Hindi | Definition of social structure in Hindi | Ideas of major thinkers in social structure in Hindi

सामाजिक संरचना

जीवशास्त्र में संरचना का अर्थ किसी सावयव का निर्माण करने वाले विभिन्न अंगों में पायी जाने वाली अपेक्षाकृत स्थायी व्यवस्था है। निश्चित स्थितियों, निश्चित प्रकार्यों को पूर्ण करने वाले विभिन्न अंगों की निचित व्यवस्था और उनके निश्चित पारस्परिक सम्बन्धों से जो एक क्रियाशील आकृति स्पष्ट होती है उसी को हम शारीरिक संरचना कहते हैं। कोजर के शब्दों में संरचना एक प्रतिमानात्मक व्यवस्था है।

सामाजिक संरचना (Social Structure)-

सामाजिक जीवन एक सम्पूर्णता है सावयवी सम्पूर्णता जिसका निर्माण विभिन्न व्यक्तियों, समूहों और संस्थाओं के व्यवस्थित संकलन से होता है। ये समाज की विभिन्न इकाइयाँ हैं समाज का निर्माण करने वाले अंग एक-दूसरे से पृथक और सम्पूर्ण समाज से पृथक कोई अस्तित्व नहीं रखते। समाज के प्रत्येक अंग की स्थिति और प्रकार्य निश्चित होते हैं, जिनके कारण इसमें पारस्परिक सम्बन्ध विद्यमान रहते हैं। समाज के विभिन्न अंगों की स्थितियों और कार्यों की निश्चित व्यवस्था से उत्पन्न सम्बद्धता को सामाजिक संरचना कहा जाता है। समाजशास्त्र में इस अवधारणा को प्रारम्भ करने का श्रेय हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer) को है जिसने जैवकीय सावयव और समाज को समान रूप से समझने का प्रयत्न किया।

सामाजिक संरचना की परिभाषा (Definition of Social Structure)-

सामाजिक संरचना की अत्यन्त सरल परिभाषा कार्ल मैन्हीम ने दी है। उसके अनुसार, “सामाजिक अन्तःक्रिया में संलग्न सामाजिक स्वरूपों का जाल है।” विभिन्न सामाजिक अंग जब परस्पर अन्तःक्रिया करते हैं, तो उनमें कुछ निश्चित सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। इन सम्बन्धों को मैन्हीम ने सामाजिक संरचना कहा है। मैकाइवर ने सामाजिक संरचना की परिभाषा करते हुए लिखा है। “समूहों के विभिन्न प्रकारों से मिलकर सामाजिक संरचना की जटिल प्रतिमान का निर्माण होता है।” बाटोमार ने भी सामाजिक संरचना के निर्माणक इकाइयों के रूप में संस्थाओं और समूहों को मान्यता दी है। उसके शब्दों में, सामाजिक संरचना मूल्य संस्थाओं और समूहों की जटिलता है। रेडक्लिफ ब्राउन ने सामाजिक संरचना की निर्माणक इकाइयों के रूप में व्यक्तियों को स्थान दिया है। व्यक्तियों के बीच पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों से ही संरचना की स्थापना होती है।

विचारकों के विचार:

  1. दुर्खीम के विचार (Emile Durkheim)-

दुर्खीम के विचार से समाज एक संरचना है जो विभिन्न अंगों से मिलकर बनी है। जिस प्रकार किसी जैवकीय रचना के भिन्न- भिन्न अंगों की निश्चित स्थितियाँ होती हैं और उनके अनुसार इन अंगों के प्रकार्यों के आधार पर उनमें पारस्परिक सम्वद्धता रहती है। समाज भी एक सावनी संरचना है। जिसका निर्माण विभिन्न सामाजिक तथ्यों से मिलकर होती है। प्रत्येक सामाजिक तथ्य की सामूहिक उत्पत्ति होती है। जिस प्रकार शरीर के अंगों का विकास सम्पूर्ण शरीर के विकास के निश्चित होता है उसी प्रकार सामाजिक संरचना के विकास के अनुसार ही सामूहिकका का विकास होता है। सामाजिक संरचना का निर्माण व्यक्तियों के संकलन मात्र से नहीं होता। सामाजिक संरचना का आधार तो वे सामूहिक भावनाएँ हैं जो किसी समाज के सदस्यों में सामान्य रूप से पायी जाती है। इन सामाजिक भावनाओं के आधार पर व्यक्तियों में  पारस्परिक सम्बन्धों की निरन्तरता बनी रहती है।

  1. रेडक्लिफ ब्राउन के विचार (Redcliff Brown)-

रेडक्लिफ बाटन के विचार से सामाजिक संरचना का निर्माण मनुष्यों के द्वारा होता है। ये मनुष्य कुछ विशिष्ट संस्थाओं के द्वारा नियन्त्रित और निर्देशित होते हैं। इन मनुष्य में पारस्परिक सम्बन्ध होते हैं जिनकी स्थापना और निरन्तरता संस्थाओं के संरक्षक और नियन्त्रण पर आधारित होता है।

सामाजिक संरचना एक स्थिर अवस्था नहीं हैं। विभिन्न प्रकार की प्रक्रिया सामाजिक संरचना के स्वरूप और स्वभाव में परिवर्तन उत्पन्न करती है। जिस प्रकार जैवकीय संरचना में निरन्तर गतिशीलता होती है। परिवर्तनशीलता पायी जाती है।

प्रत्येक सामाजिक संरचना गतिशील होने के कारण विशिष्ट समयावधि के सन्दर्भ में ही समझी जा सकती है। इस प्रकार सामाजिक संरचना का सम्बन्ध स्थान से भी होता है। सामाजिक संरचना संस्थाओं और सम्बन्धों की व्यवस्था है।

  1. मैलिनोवस्की का विचार (Malinowski)-

मैलिनोवस्की ने रेडक्लिफ ब्राउन के विचारों की आलोचना इस आधार पर की कि उसने सामाजिक संरचना को सामाजिक संरचना की व्याख्या में स्थान नहीं दिया। मैलिनोवस्की ने संस्कृति के संरचना की व्याख्या जैवकीय संरचना के आधार पर की है।

  1. नैडल के विचार (Nadel)-

नैडल ने संरचना की व्याख्या प्रकार्य की अवधारणा पर नहीं की। संरचना कुछ अंगों की केवल व्यवस्थित क्रमबद्धता है। उसकी अन्तर्वस्तु से उसे नहीं जाना जाता और न स्वयं संरचना अन्तर्वस्तु का बोध कराती है। संरचना अपने में अवधारणा है। संरचना का सम्बन्ध न व्यवस्था से है और न प्रकार्य से। वह तो एक स्वतन्त्र स्वरूप मात्र है जो विभिन्न अंगों का व्यवस्थित सकलन है। नैडल के शब्दों में, “संरचना अंगों की क्रमबद्ध व्यवस्था की ओर संकेत करती है तथा स्थानान्तरित होने योग्य समझी जा सकती है और अपेक्षाकृत स्थायी है जबकि उसके अंग परिवर्तनशील होते हैं।”

सामाजिक संरचना की व्याख्या करते हुए नैडल कहता है कि इसका निर्माण वे मनुष्य करते हैं जो सामान्य नियमों और प्रतिमानों के अन्तर्गत परस्पर अन्तःक्रिया करते हैं और निरन्तर तथा व्यवस्थित सम्बन्ध शृंखला में

  1. पारसन्स के विचार

आधुनिक समाजशास्त्रीय पारसन्स ने सामाजिक संरचना को परस्पर सम्बन्धित संस्थाओं, अभिकरणों तथा सामजिक प्रतिमानों की विशिष्ट व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया है। संरचना व्यक्तियों की स्थितियों और भूमिकाओं, की व्यवस्था भी है। सामाजिक संरचना का स्थायित्व और व्यवस्था नैतिक नियमों के पालन में निहित है। प्रत्येक समाज का एक आदर्शात्मक प्रतिमान होता है जिसके अनुसार सदस्यों से व्यवहार करने की आशा की जाती है। इस प्रतिमान के आधार पर ही लोगों की क्रियाओं का मूल्यांकन किया जाता है और इसके अनुसार उन्हें संरचना में ऊँची या नीची स्थिति प्राप्त होती है। समाजों की संरचनाओं में इन प्रतिमानों की व्यवस्थाओं के आधार पर भिन्न हो जाती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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