अवरोधन का अर्थ | अवरोधन के कारण | अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या को दूर करने का उपाय

अवरोधन का अर्थ | अवरोधन के कारण | अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या को दूर करने का उपाय

अवरोधन का अर्थ

(Meaning of Stagnation)

जब कोई बालक एक ही कक्षा में एक से अधिक बार अनुत्तीर्ण हो जाता है या एक ही कक्षा में एक वर्ष से अधिक रहता है तो उसे अवरोधन में सम्मिलित किया जाता है।

हर्टांग समिति के अनुसार – “अवरोधन से हमारा तात्पर्य छोटी कक्षाओं में बालक को एक वर्ष से अधिक रखने से है।”

अवरोधन से बालक की क्षमता, योग्यता का तो व्यय होता ही है, साथ ही राष्ट्र के धन का भी दुरुपयोग होता है।

अवरोधन के कारण

(Causes of Stagnation)

अवरोधन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

(1) अनुपयुक्त विद्यालयी वातावरण- प्राथमिक विद्यालयों का वातावरण दोषयुक्त होता है। प्राथमिक विद्यालयों में प्रवेश के समय बालकों की आयु स्तर की अवहेलना की जाती है। फलस्वरूप नया प्रवेश करने वाले बालक एक ही कक्षा में अनेक बार अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की कुसंगति से प्रभावित होते हैं, जिससे उनमें भी शिक्षा के प्रति कोई रूचि नहीं रहती है।

(2) उपस्थिति के नियमों की उपेक्षा- प्राथमिक स्तर पर सबसे पहले बालकों में नियमितता का अभ्यास डालना चाहिये जिससे उन्हें कक्षा में बैठने की आदत पड़ जाये, परन्तु इस बारे में शिक्षक अभिभावक दोनों की उदासीन मनोवृत्ति दिखलाई पड़ती है। परिणामस्वरूप बालकों में विद्यालय से भागकर अन्य स्थानों पर घूमने-फिरने और विद्यालय में न जाने की आदत विकसित हो जाती है।

(3) कक्षा में बालकों की संख्या अधिक होना- कक्षा में बालकों की संख्या अधिक होने से कक्षा में बैठने तथा पाठ को समझने में कठिनाई होती है। कक्षा में संख्या अधिक होने के कारण शिक्षक भी बालकों पर वैयक्तिक रूप से ध्यान नहीं दे पाते हैं। फलस्वरूप प्रतिवर्ष कक्षा में अनुत्तीर्ण छात्रों की संख्या में वृद्धि होती रहती है।

(4) कम आयु में बालकों को पढ़ाना- कुछ अभिभावक अपने बालकों को 2 या 3 वर्ष की अवस्था में ही पढ़ने बैठा देते हैं, परंतु इस आयु में बालकों की बुद्धि अपरिपक्व होती है। फलस्वरूपं वे प्राथमिक स्तर पर कठिन विषयों को नहीं समझ पाते हैं और वे कक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाते हैं।

(5) दोषयुक्त शिक्षा प्रणाली- प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक, वैयक्तिक भिन्नताओं पर ध्यान दिये बिना ही शिक्षा प्रदान करते हैं। कक्षा में प्रतिभासम्पन्न, मंदबुद्धि सभी प्रकार के बालक होते हैं। सभी को एक प्रकार की ही शिक्षा प्रदान की जाती है। फलस्वरूप मंद बुद्धि बालक पिछड़ जाते हैं तथा वे कक्षा में अनुत्तीर्ण होते जाते हैं।

(6) पाठ्यक्रम का कठिन होना- प्राथमिक स्तर पर पाठ्यक्रम अत्यधिक कठिन है। परिणामस्वरूप बालक विषयों को भली-भांति समझ नहीं पाते हैं और अनुत्तीर्ण हो जाते हैं।

(7) अनुपयुक्त शैक्षिक व्यवस्था- प्राथमिक स्तर पर नियुक्त शिक्षक अनुभवहीन तथा अप्रशिक्षित होते है। उन्हें मनोवैज्ञानिक विधियों का ज्ञान नहीं होता है, जिससे बालकों का न तो समुचित विकास होता है और न ही बालकों को पढ़ने में रूचि उत्पन्न हो जाती है।

(8) सामाजिक तथा धार्मिक कारण– आज भी हमारे समाज में छुआछूत, रुढ़िवादिता आदि कुरीतियाँ व्याप्त है। इसीलिए अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के बालकों को विद्यालयों में निरादर किया जाता है, जिससे इन बालकों में हीन भावना का विकास हो जाता है। परिणामस्वरूप वे अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं और कक्षा में अनुत्तीर्ण होते जाते हैं।

अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या को दूर करने का उपाय

(1) प्राथमिक स्तर पर बालकों को उनके आयु स्तर के आधार पर ही प्रवेश दिया जाये।

(2) शिक्षा पद्धति में तत्काल सुधार किया जाये।

(3) प्राथमिक शिक्षा की स्थिति तथा प्रगति से सरकार को परिचित कराया जाये।

(4) प्राथमिक विद्यालयों में योग्य, प्रशिक्षित तथा अनुभवी शिक्षकों को नियुक्त किया जाये।

(5) उपस्थिति सम्बन्धी नियमों का कठोरता से पालन किया जाये।

(6) प्राथमिक विद्यालयों में बालगों के शारीरिक विकास के लिए खेलकूद की व्यवस्था की जाये।

(7) प्रत्येक गाँव में जनसंख्या के अनुपात को ध्यान में रखकर प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना की जाये।

(8) बालकों के मनोरंजन के लिये विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाये।

(9) प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य तथा नि:शुल्क बनाया जाये।

(10) कक्षा में बालकों की संख्या कम की जाये।

(11) बालकों के स्वास्थ्य का परीक्षण किया जाये।

(12) प्रौढ़ शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जाये।

(13) प्रशासनिक स्तर पर ईमानदार तथा कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को नियुक्त किया जाये।

(14) प्राथमिक विद्यालयों में कक्ष-कक्षाओं, खेल के मैदान आदि की समुचित व्यवस्था की जाये।

(15) पाठ्यक्रम को व्यावहारिक तथा जीवन सम्बन्धी बनाया जाये।

(16) विद्यालय के वातावरण को आकर्षक, स्वच्छ तथा रुचिपूर्ण बनाया जाये।

(17) आवश्यक शैक्षिक साधनों को उपलब्ध कराया जाये।

(18) प्राथमिक स्तर पर शिक्षण के लिए सरल मनोवैज्ञानिक विधियों का उपयोग किया जाये।

कोठारी कमीशन ने अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या को दूर करने के लिये निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये-

(1) सभी राज्यों में प्राथमिक शिक्षा को समरूपता प्रदान की जाये।

(2) प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन तथा निर्देशन की सुविधायें सुलभ करायी जायें।

(3) प्रथम कक्षा की पढ़ाई समाप्त होने पर आयोजित की जाने वाली परीक्षा को समाप्त किया जाये।

(4) 11 से 14 वर्ष तक की आयु के बालकों के लिए साक्षरता कक्षायें प्रारंभ की जायें।

(5) समाज में प्रौढ़ शिक्षा का प्रसार किया जाये।

(6) प्रथम कक्षा को खेल-विधि द्वारा पढ़ाया जाये।

(7) प्राथमिक शिक्षा पर होने वाले व्यय की पूर्ति करने के लिये स्थानीय कर लगाया जाये।

(8) प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता हाईस्कूल अथवा उसके समकक्ष हो तथा उसने दो वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त किया हो।

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