शिक्षाशास्त्र / Education

माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण का अर्थ | व्यावसायीकरण का विकास | शिक्षा के व्यावसायीकरण में माध्यमिक शिक्षा आयोग के सुझाव

माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण का अर्थ | व्यावसायीकरण का विकास | शिक्षा के व्यावसायीकरण में माध्यमिक शिक्षा आयोग के सुझाव

माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण का अर्थ

(Meaning of Vocationalisation of Secondary Education)

अंग्रेजी काल में भारत में सामान्य अथवा उदार (Liberal) शिक्षा का प्रचलन था। शिक्षा के साहित्यिक पक्ष पर विशेष बल दिया जाता था। इसमें तकनीकी अथवा व्यावसायिक शिक्षा का कोई स्थान नहीं था। यह प्रायः एक मार्गी थी। छात्रों को विषयों में चयन की स्वतंत्रता नहीं थी। उनकी व्यक्तिगत सामर्थ्य अथवा रुचि पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण का अर्थ विभिन्न विद्वानों एवं शिक्षा शास्त्रियों ने विभिन्न प्रकार दिया है। कुछ शिक्षा शास्त्री इसे किसी व्यवसाय विशेष में ट्रेनिंग से अधिक नहीं समझते। इस दृष्टिकोण के अनुसार किसी विशेष पाठ्यक्रम की समाप्ति पर कार्य अनुभव को प्राप्त कर किसी कला कौशल, व्यापार अथवा किसी व्यवसाय आदि को सीखना शिक्षा में व्यवसायीकरण समझा जाता है। इसके विपरीत दूसरा दृष्टिकोण संकीर्ण है। इसके अनुसार माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण से अभिप्राय माध्यमिक स्तर पर व्यवसायीकरण की शिक्षा देने से हैं।

व्यावसायीकरण का विकास

(Growth of Vocationalisation)

पाठ्यक्रम के विभिन्नीकरण पर सर्वप्रथम 1882 के हण्टर कमीशन ने अपने आलेख में माध्यमिक स्तर पर दो प्रकार के कोर्सी की सिफारिश की और उन्हें अपनी रुचि तथा क्षमता के अनुसार चयन की स्वतंत्रता की बात कहीं। इसके पश्चात् 1929 को हर्टांग कमेटी व 1937 की एबट तथा वुड कमेटी ने पाठ्यक्रम को सामान्य तथा व्यावसायिक दो वर्गों में विभाजित करने की सिफारिश कोगाँवों के स्कूलों में कृषि की शिक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। उत्तर प्रदेश में 1953 को आचार्य नरेन्द्र देव कमेटी ने माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन की सिफारिश की और इस स्तर के पाठ्यक्रम को चार प्रमुख वर्गो-(i) साहित्यिक, (ii) वैज्ञानिक (iii) रचनात्मक तथा (iv) कलात्मक में विभाजित करने का सुझाव दिया। इसी प्रकार सार्जेन्ट रिपोर्ट, 1944 ने साहित्यिक तथा टैक्नीकल स्कूलों की स्थापना पर बल दिया।

स्वतंत्रता प्राप्ति पर 1944 में ताराचन्द्र कमेटी ने माध्यमिक शिक्षा के बहुमुखी (Multi-lateral) पक्ष को विकसित करने की सिफारिश की, जिसके फलस्वरूप 1950 के लगभग देश में बहुउद्देशीय माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की गई। इसी प्रकार आचार्य नरेन्द्र देव कमेटी, 1952 तथा मुदालियर कमीशन, 1952 की सिफारिश की और समस्त देश में औद्योगिक (Polytechnic), व्यावसायिक तथा बहुउद्देशीय विद्यालयों का जाल फैल गया। इस क्षेत्र में सेकेण्डरी स्तर पर मुदालियर आयोग की सिफारिशें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

शिक्षा के व्यावसायीकरण में माध्यमिक शिक्षा आयोग के सुझाव

(Suggestions of Secondary Education Commission in the field of Vocationalisation of Education)

माध्यमिक शिक्षा आयोग ने माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के व्यवसायीकरण पर अधिक बल दिया है। उसके अनुसार इस स्तर पर शिक्षा का व्यावसायीकरण करने के लिये अग्रलिखित कदम उठाए जाने आवश्यक है

(1) शिल्प तथा विविध कार्यों का प्रबंध (Provision of Craft and Diversified Courses)-  सभी विद्यालयों में शिल्पों तथा उत्पादन कार्यों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। इसके साथ-साथ माध्यमिक स्तर पर अनेक प्रकार के कोर्सी (Diversified Course) को लागू किया जाना चाहिए ताकि एक बड़ी संख्या में विद्यार्थी कृषि सम्बन्धी, तकनीकी, वाणिज्य अथवा अन्य व्यावहारिक कोर्स ले सकें, जिससे उनकी अभिरुचियों (Aptitudes) को प्रशिक्षण प्राप्त हों और जो माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् व्यावहारिक प्रयासों को आरंभ करने अथवा तकनीकी सस्थाओं (Technical Institutes) में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त करने के योग्य बन सकें।

(2) तकनीकी शिक्षा (Technical Education)—यदि इसे एक व्यवसाय के रूप में अपनाया जाये तो भी यह आत्म-अभिव्यक्ति (Self-expression) का साधन हो सकती है तथा इसे एक हॉबी (Hobby) के तौर पर अपनाया जा सकता है। तकनीकी शिक्षा उद्योगों से सम्बन्धित होनी चाहिये। विद्यार्थियों को प्रौद्योगिक केन्द्रो(Industrial Centres) में शिक्षार्थी प्रशिक्षण (Apprenticeship) दिया जाना चाहिए। तकनीकी विद्यालयों में तकनीकी तथा सामान्य दोनों प्रकार की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। तकनीकी संस्थानों को औद्योगिक केन्द्रों के निकट स्थापित किया जाना चाहिए और उन्हे इन औद्योगिक केन्द्रों के सहयोग से काम करना आवश्यक है। अनिवार्य शिक्षार्थी प्रशिक्षण के लिये कानून बनाये जाने चाहिये। औद्योगिक कर के रूप में थोड़ा-सा कर लगाया जाना चाहिए। केन्द्र सरकार द्वारा व्यावसायिक शिक्षा को धन की सहायता देने के लिये संसद को एक कानून पास करना चाहिए। व्यावसायिक शिक्षा सम्बन्धी एक संघीय मंडल (Federal Board) की भी स्थापना की जानी चाहिए।

(3) माध्यमिक स्कूलों में कृषि की शिक्षा (Agricultural Education in Secondary Schools)-  सभी राज्यों को ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि की शिक्षा सम्बन्धी और अधिक अवसर प्रदान करने  चाहिये। यह शिक्षा केवल सैद्धांतिक (Theoretical) ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि विद्यार्थियों को यथार्थ परिस्थितियों (Realistic.Conditions) के अधीन काम करने के अवसर दिये जाने चाहिये। कृषि के साथ बागवानी (Horticulture) तथा पशु-चिकित्सा विज्ञान (Animal husbandary) को निकटता से जोड़ दिया जाना चाहिए। कृषि की पढ़ाई वैज्ञानिक आधार पर की जानी चाहिए। कृषि स्कूल ग्रामीण बहुमुखी स्कूलों के अंग होने चाहिये।

(4) बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना (Establishment of multipurpose Schools)- ऐसे विविध कोसों (Diversified Courses) को लागू करने के लिये बहुउद्देशीय विद्यालय स्थापित किये जाने चाहिये, जिससे व्यावसायिक विषयों से जुड़ी तथाकथित हीन भावना (Sense of Inferiority)  को समाप्त कर भिन्न-भिन्न पाठ्यक्रमों के अध्ययन में लगे विद्यार्थियों में से अन्तर को समाप्त किया जाये। किसी कोर्स के चुनाव के लिये उचित शैक्षिक मार्ग दर्शन की सुविधा दी जाये तथा विद्यार्थियों को एक स्कूल से दूसरे स्कूल में भेजने की बजाय एक कोर्स से दूसरे कोर्स में आसानी से बदला जा सकें।

कोठारी आयोग के सुझाव (Recommendations of Kothari Commission)-

कोठारी आयोग के अनुसार, “इस समय भारत के भाग्य का निर्माण उसके अध्ययन कक्षों में हो रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित आज के विश्व में शिक्षा ही व्यक्तियों की सम्पन्नता, समृद्धि एवं सुरक्षा के स्तर को निश्चित करती है।”

“The density of India is now being shaped in her class-rooms in a world based on science and technology, it is education that determines the level of prosperity, welfare and security of the people.” “-Kothari Commission

हमारे देश की सम्पन्नता, समृद्धि एवं सुरक्षा का दायित्व नि:संदेह रूप से युवा पीढ़ी पर है और वह उस जिम्मेदारी को तभी पूरा कर सकती है, जब शिक्षा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित हो ताकि उसे प्राप्त करने वाले छात्र जीवन में प्रवेश करने पर बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि न करें, अपितु किसी व्यवसाय में प्रवेश करके देश के योग्य एवं उपयोगी नागरिक बन सकें।

शिक्षाशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!