शिक्षाशास्त्र / Education

उच्च शिक्षा के उद्देश्य | उच्च शिक्षा का महत्त्व एवं आवश्यकता

उच्च शिक्षा के उद्देश्य | उच्च शिक्षा का महत्त्व एवं आवश्यकता

उच्च शिक्षा के उद्देश्य

(Objectives of Higher Education)

वस्तुतः भारत में विभिन्न स्तरों की शिक्षा के उद्देश्य निश्चित करने का कार्य सर्वप्रथम ‘वुड के घोषणा पत्र’ (1854) में किया गया। इसके बाद भारत में जो भी शिक्षा आयोग गठित हुए सभी ने विभिन्न स्तरों की शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट करने का कार्य जारी रखा।

सन् 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि, “विश्वविद्यालय का दायित्व मानवता, सहनशीलता, तर्क, विचारों के विकास तथा सत्य की खोज करना है।”

उपरोक्त शब्दों से विश्वविद्यालय शिक्षा के उद्देश्य परिलक्षित होते हैं। एच० हेदरिंगटन ने अपनी पुस्तक “दि सोशल फंक्शन ऑफ दि यूनिवर्सिटी” में विश्वविद्यालय का कार्य, ज्ञान के उस व्यापक रूप का अन्वेषण करना बताया है जो मानव संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में विकास तथा उन्नति में सहायक हो सके

उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि उच्च शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान का संकलन, खोज तथा प्रसार करना है।

राधाकृष्णन आयोग (1952-53) ने विश्वविद्यालय शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नवत् बताये थे-

(1) ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना जो शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ एवं मानसिक दृष्टि से प्रबुद्ध हों।

(2) व्यक्तियों के आनुवंशिक गुणों को ज्ञात कर उनका विकास करना।

(3) प्रजातंत्र की सफलता के लिए कुशल नागरिक तैयार करना।

(4) विभिन्न व्यवसायों, वाणिज्य, कृषि, उद्योग, राजनीति, प्रशासन आदि के लिए छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान करना।

(5) छात्रों के नैतिकता, सदाचार व आदर्श नागरिकता का विकास करना।

(6) छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना।

(7) सभ्यता व संस्कृति का संरक्षण व प्रसार करना।

(8) ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना जो दूरदर्शी, बुद्धिमान और बौद्धिक दृष्टि से श्रेष्ठ हों और समाज सुधार के कार्यों में सहयोग दे सकें।

(9) ऐसे विवेकशील नागरिक तैयार करना जो प्रजातंत्र को सफल बनाने के लिए शिक्षा का प्रसार करें, ज्ञान की सदैव खोज करें, व्यवसाय का प्रबन्ध करें और देश में भौतिक अभावों की पूर्ति करें।

(10) ऐसे नवयुवकों का निर्माण करना जो अपनी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करें, उसमें योगदान दें।

(11) विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण करना।

(12) विद्यार्थियों में राष्ट्रीय अनुशासन की भावना का विकास करना।

(13) विद्यार्थियों में विश्वबन्धुत्व और अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास करना।

(14) विद्यार्थियों का आध्यात्मिक विकास करना।

इसके बाद कोठारी आयोग (1964-66) ने उसके द्वारा प्रतिपादित उद्देश्यों को अपेक्षाकृत कुछ संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में उच्च शिक्षा के उद्देश्यों के विषय में निम्न प्रकार कहा गया है-

(1) उच्च शिक्षा उच्च ज्ञान की प्राप्ति और नवीन ज्ञान की खोज है।

(2) राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशेषज्ञों की तैयारी है।

(3) यह युवकों में विस्तृत दृष्टिकोण के विकास और राष्ट्र के बहुमुखी विकास का साधन है।

आज भारत में उच्च शिक्षा के ये ही लक्ष्य हैं। इन उद्देश्यों को निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है-

(1) राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशेषज्ञों-प्रशासक, संगठनकर्ता, डॉक्टर, वकील, वैज्ञानिक, इंजीनियर और तकनीशियन आदि का निर्माण करना।

(2) युवकों में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने की कुशलता और नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता को विकसित करना।

(3) युवकों में विस्तृत दृष्टिकोण-सामाजिक समानता, सांस्कृतिक एवं धार्मिक सहिष्णुता और अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध को विकसित करना।

(4) युवकों को राष्ट्र के बहुमुखी विकास के लिए तैयार करना।

(5) निम्न कार्य करना- (i) नवीन ज्ञान की खोज करना, (ii) सत्य की प्राप्ति के लिए निर्भय होकर कार्य करना तथा (iii) नवीन आवश्यकताओं व अन्वेषणों के संदर्भ में प्राचीन ज्ञान का विश्लेषण करना।

(6) जीवन के सभी क्षेत्रों में उचित नेतृत्व प्रदान करना। इसके लिए प्रतिभाशाली युवकों को खोजकर उनमें मानसिक शक्ति, अभिरुचि, सुप्रवृत्ति एवं नैतिकता को विकसित करना।

(7) शिक्षा के द्वारा समानता व सामाजिक न्यायको प्रोत्साहन देना तथा सांस्कृतिक व सामाजिक विभिन्नताओं को कम करना।

(8) अध्यापकों तथा छात्रों में एवं उनके माध्यम से समस्त समाज में सत जीवन के लिए आवश्यक मूल्य विकसित करना।

उच्च शिक्षा का महत्त्व एवं आवश्यकता

(Importance and need of Higher Education)

उच्च शिक्षा का वास्तविक अर्थ है “उच्च प्रतिभा के व्यक्तियों की उच्च शिक्षा, विशिष्ट शिक्षा; एक ऐसी शिक्षा जिसके द्वारा समाज अथवा राष्ट्र के विभिनाभा के लिए विशेषज्ञ तैयार किये जाते हैं।’ उच्च शिक्षा के इस महत्त्व को अग्र प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-

  1. उच्च ज्ञान की प्राप्ति तथा नए ज्ञान की खोज (Gaining Higher Knowledge And Discovery of New Knowledge) उच्च शिक्षा में युवकों को मानविकी, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान और अन्य क्षेत्रों का उच्च ज्ञान कराया जाता है इसके अतिरिक्त, उन्हें नए ज्ञान की खोज और वास्तविक तथ्यों का पता लगाने के अवसर दिए जाते हैं। युवकों को ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए अविष्कार करने के योग्य बनाया जाता है।
  2. विशेषज्ञों का निर्माण (Making Experts)- उच्च शिक्षा द्वारा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों-धर्म, दर्शन, इंजीनियरिंग, अध्यापन, ज्ञान, विज्ञान, मेडिकल, विधि, संगठन और प्रशासन आदि के लिए विशेषज्ञ तैयार किए जाने के अतिरिक्त उच्चतम श्रेणी के मानव संसाधन तैयार किये जाते हैं।
  3. कार्य कुशलता और नेतृत्व शक्ति का विकास (Development of working Efficiency and Power of Leadership)- उच्च शिक्षा युवकों को अपनी रुचि, रुझान, योग्यता और क्षमता के अनुसार किसी कार्य को कुशलतापूर्वक करने योग्य बनाती है। यह मान्यता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति ही प्राय: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करते हैं।
  4. युवकों में विस्तृत दृष्टिकोण का विकास (Development of Wide Attitude Among The Youths)- सामान्य शिक्षा मनुष्य को सामान्य ज्ञान कराती है, जबकि उच्च शिक्षा निम्न कार्य करती हैं-

(i) यह युवकों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों का समुचित ज्ञान कराती है।

(ii) यह युवकों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ज्ञान कराती है, जितना विस्तृत ज्ञान, उतना विस्तृत दृष्टिकोण।

(iii) उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् व्यक्ति संकुचित क्षेत्र से निकलकर विस्तृत क्षेत्र में प्रवेश करते हैं।

(iv) उच्च शिक्षा प्राप्त कर व्यक्ति संकीर्णता से निकलकर सहिष्णुता के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं।

(v) उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों में सामाजिक समानता, सांस्कृतिक एवं धार्मिक सहिष्णुता और अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध का विकास होता है।

वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय युग में तो उच्च शिक्षा का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है, उसकी और भी अधिक आवश्यकता हो गयी है।

  1. राष्ट्र का बहुँमुखी विकास (All-round Development of the Nation)- राष्ट्र के विकास के लिए दो मूलभूत साधनों की आवश्यकता होती है-

(i) प्राकृतिक संसाधन और (ii) मानव संसाधन।

उच्च शिक्षा उच्च स्तर के मानव संसाधनों का निर्माण करती है। जिसे राष्ट्र में उच्चस्तरीय मानव संसाधन की जितनी अधिक उपलब्धता होती है, वह राष्ट्र उतनी ही तीव्रगति से विकास करता है। राष्ट्र का आर्थिक विकास औद्योगीकरण पर निर्भर करता है-वैज्ञानिक एवं तकनीशियनों पर, इंजीनियर और प्रशासकों पर। उच्च शिक्षा द्वारा ही इनका निर्माण किया जाता है। इस प्रकार उच्च शिक्षा किसी भी राष्ट्र के बहुमुखी विकास का साधन होती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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