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राष्ट्रीय एकता व भावात्मक एकता का सम्बन्ध | भारत में राष्ट्रीय एकता का संकट | निवारण हेतु कोठारी आयोग के सुझाव

राष्ट्रीय एकता व भावात्मक एकता का सम्बन्ध | भारत में राष्ट्रीय एकता का संकट | निवारण हेतु कोठारी आयोग के सुझाव

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राष्ट्रीय एकता व भावात्मक एकता के सम्बन्ध

राष्ट्रीय एकता का सामान्य अर्थ है देश के विभिन्न धर्मों, जातियों तथा भाषाओं के व्यक्तियों में देश के कल्याण के लिए देश-प्रेम एवं देश-भक्ति की भावनाओं में एकता। देश में निवास करने वाले देशवासियों की आन्तरिक तथा भावात्मक एकता को राष्ट्रीय एकता कहते हैं। राष्ट्रीय एकता ऐसा भाव अथवा शक्ति है जो देशवासियों को अपने व्यक्तिगत हितों को त्याग कर राष्ट्र-कल्याण के लिए प्रेरित करती है। राष्ट्र के समस्त निवासियों में ‘हम’ की भावना का विकास ही राष्ट्रीय एकता है। जब किसी राष्ट्र के व्यक्ति किसी भी आधार पर भावात्मक एकता का अनुभव्र करें तथा राष्ट्रीय हित के सम्मुख निजी हितों को त्यागने में बिल्कुल संकोच न करें तो इस भाव को हम राष्ट्रीय एकता की संज्ञा देते हैं।

राष्ट्र की प्रगति और राष्ट्रीय अस्मिता के लिए भावात्मक एकता अत्यन्त महत्वपूर्ण है।  भारतीय प्रजातंत्र की रक्षा के लिए देश के नागरिकों में सभी तरह की विभिन्नताओं से ऊपर उठकर भावात्मक एकता का होना आवश्यक हो गया है। भावात्मक एकता से तात्पर्य है सभी भेदों को भुलाकर विचारों और भावनाओं की एकता। राष्ट्र की विभिन्न जातियों, धर्मों तथा समूहों के लोगों के आपसी भेदभावों को मिटाकर सभी को भावात्मक रूप से समन्वित करते हुए एकता के सूत्र में बाँधना ही भावात्मक एकता है। भावात्मक रूप से राष्ट्र से जुड़े नागरिको से यह अपेक्षा की जाती है कि अपने हितों की अपेक्षा राष्ट्र की आवश्यकताओं, आदर्शों एवं आकांक्षाओं को सर्वोपरि समझेंगे।

इस प्रकार बिना भावात्मक एकता के स्थापित हुए राष्ट्रीय एकता देश के नागरिकों में विद्यमान नहीं हो सकती। राष्ट्रीय एकता एक-दूसरे के पूरक हैं।

भारत में राष्ट्रीय एकता का संकट-

भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात् अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। भारत में अनेक धर्म, सम्प्रदाय, जातियाँ, वर्ण तथा भाषायें हैं जिनके कारण राष्ट्रीय एकता में बाधा पड़ती है। आर्थिक विषमता तथा सामाजिक असमानताओं के कारण पृथकतावादी शक्तियाँ अपना सिर उठा रही हैं। इस समय अगर हम राष्ट्रीय एकता के महत्व को नहीं समझे तो हमारी स्वतंत्रता खतरे में आ जायेगी। नेहरू जी ने ढीक ही कहा था कि “अब निशिचित रूप से समय आ गया है कि प्रत्येक भारतीय को अपने अन्वर देखना चाहिये और अपने आप से यह पूछना चाहिये कि वह राष्ट्र के साथ है या किसी विशिष्ट समूह के साथ। यह हमारे समय की चुनती है जिसका प्रत्येक व्यक्ति व बच्चों को सामना करना है। हमने बड़े संघर्ष के बाद जो स्वतंत्रता प्राप्त की है उसकी सुरक्षा और समृद्धि के लिए राट्रीय एकता परम आवश्यक है। कोठारी औयाग ने राष्ट्रीय एकता के प्रश्न को बहुत ही गंभीरता से लिया। राष्ट्रीय एकता के विकास में निरम्नलिखित बाधक तत्व हैं।

  1. प्रान्तीयता
  2. साम्प्रदायिकता
  3. जातीयता
  4. भाषा सम्बन्धी विरोध
  5. राजनीतिक दलों की समस्या
  6. आर्थिक-विषमता
  7. कुशल नेतृत्व का अभाव

कोठारी आयोग द्वारा प्रस्तुत सुझाव-

कोठारी आयोग ने राष्ट्रीय एकता का शिक्षा के माध्यम से सुदृढ़ करने की दृष्टि से कहा कि हमें शिक्षा प्रणाली को राष्ट्रीय एकीकरण का शक्तिशाली साधन बनाना है जो जाति, सम्प्रदाय, धर्म, आर्थिक परिस्थितियों और सामाजिक प्रतिष्ठा का विचार किये बिना सभी बालकों को सुलभ हो। शिक्षा में समान विद्यालय तथा समान अवसर का सिद्धान्त अपनाना चाहिये।

पाठ्यक्रम के निर्माण के सम्बन्ध में आयोग ने सुझाव दिया कि प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर पर सामाजिक विषयों के अध्ययन में एकीकरण पर बल दिया जाए। उपयुक्त भाषा नीति अपनायी जाए। सभी छात्रों के लिए सैनिक प्रशिक्षण, सामाजिक सेवा, शारीरिक श्रम एवं राष्ट्रीय दृष्टिकोण की शिक्षा कुछ समय तक अनिवार्य रूप से दी जाए। उन्हें राष्ट्रीय जीवन के क्रिया-कलापों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। माध्यमिक स्तर पर भारत के इतिहास का अध्ययन विश्व इतिहास के संदर्भ में किया जाए। उच्चतर माध्यमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन विशेष विषयों के रूप में किया जाए। छात्रों को शिक्षा प्राप्ति के बाद एक वर्ष का राष्ट्रीय सेवा का कार्य कराया जाए।

उपर्युक्त सुझावों को आधार बनाकर शिक्षा कार्यक्रम निम्नलिखित तरह से तैयार किया जाना चाहिये।

  1. प्राथमिक स्तर- प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम में कहानियाँ, लोकगीतों तथा महापुरुषों के जीवन-चरित्रों को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिये। उन्हें राष्ट्र गीत, राष्ट्रीय झण्डे, राष्ट्रीय प्रतीकों तथा राष्ट्रीय त्योहारों का पूर्ण ज्ञान कराया जाए साथ ही उन्हें सामाजिक जीवन की दशाओं का ज्ञान भी कराया जाए।
  2. माध्यमिक स्तर- इस स्तर पर बालकों को भारतीय सामाजिक व सांस्कृतिक इतिहास पढ़ाने के साथ-साथ उन्हें विभिन्न देशों की संस्कृतियों व सामाजिक दशाओं से परिचित कराया जाए। उन्हें भारत के वेज्ञानिक तथा आर्थिक विकास के बारे में बताया जाए एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास किया जाए।
  3. विश्वविद्यालय स्तर- समय-समय पर अन्तर्विश्वविद्यालयी गोष्ठियों का अआयोजन किया जाए। छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों की भाषाओँ, साहित्यों एवं संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन कराया जाए। राष्ट्रीय एकता के विकास के लिए देश के विभिन्न भागों में का आयोजन किया जाय।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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