बाघ गुफा | बाघ गुफा की विशेषताएँ | tiger cave in Hindi | Features of Bagh Cave in Hindi
बाघ गुफा | बाघ गुफा की विशेषताएँ | tiger cave in Hindi | Features of Bagh Cave in Hindi
बाघ गुफाएँ
बाघ गुफा की खोज पर सन् 1818 ई० में लेफ्टिनेन्ट डन्गरल फिल्डको ने सबसे पहले प्रकाश डाला। फिल्डको महोदय कला और बौद्ध धर्म के विद्वान नहीं थे और न ही उस समय फोटोग्राफी थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने एक दिन की यात्रा में बाघ गुफा के बारे में टिप्पणी लिखकर ‘Literary Transaction of Bombay’ नामक पत्रिका में छपवाया। इसके पश्चात् डा० एम्पे ने ‘जनरल आफ दी बोम्बे ब्रान्च ऑफरायल एशियाटि सोसायटी, के पाँचवें अंक में गुफा के चित्रों के सम्बन्ध में सम्पूर्ण विवरण प्रकाशित कराया। सन् 1907-1908 में भारत ‘ऐन्टी क्यूरी’ नामक पत्रिका में खोज का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया गया जो डाक्टर एम्पे के लेख पर आधारित था। कर्नल ल्वारडबाध गुफा पर प्रकाश डालने वाले सबसे बड़े ज्ञाता थे। इनकी खोज सराहनीय है।
सन् 1923 में श्री असित कुमार हलधर ने बर्लन्गिट मैगजीन में बाघ यात्रा का लेख प्रकाशित कराया। मुलकचन्द ने बाघ गुफा चित्रावली 1925 में प्रकाशित की। बाघ गुफा की चौथी पाँचवीं गुफा के चित्रों की प्रतिलिपियाँ एस० एन० कार, एन० एल० बोस, ए० के हलधर, बी० ए० आप्टे, ए० बी० भोंसले, बी० वी० जगटव, एम० एस० मान ने चित्रित की। जिनको हम ग्वालियर संग्रहालय में प्राप्त कर सकते हैं।
- बाघ गुफा की स्थिति- यह गुफा बाघ नदी के किनारे बाघ गाँव विन्ध्याचल में अमझेड़ जिले में स्थित है। बाघ गुफा महुँ स्थान से लगभग छोटी लाइन के स्टेशन से 90 मील की दूरी पर पश्चिमी धार.होते हुए मोटर मार्ग पर पड़ती है। यह पर्वत 150 फीट चौड़ा, 750 गज लम्बा और 200 फीट ऊँचा है। इस पर्वत में 9 गुफाएँ हैं।
- बाघ गुफा का काल निर्धारण- बाघ गुफा अजन्ता की समकालीन है। जिस समय अजन्ता के चित्रों का निर्माण हो रहा था उसी काल में बाघ की गुफाओं में चित्रों का निर्माण हो रहा था। बाघ में 9 गुफाओं के चित्रों का वर्णन आता है। इसमें 3, 4, व 5 की गुफाओं के चित्र अच्छी अवस्था में हैं। फर्ग्युसन और बर्गेस ने इसका काल 450-500 माना है। डा० स्मिथ के मत से ये चित्र अजन्ता की गुफा 1 व 2, 626-628 ईसवी से पूर्व के नहीं हैं। डा० वी० बी० मिराशी का भी यही मत है। ये चित्र चौथी शताब्दी के बाद के नहीं हो सकते। इन सभी मतों से किसी निश्चित समय का निर्धारण नहीं किया जा सकता।
- बाघ गुफा का विवरण- इन गुफाओं की संख्या नौ है। पहली गृहगुफा, दूसरी पाडुव, तीसरी हाथीखाना, चौथी रंगमहल आदि के नाम से सम्बोधित होती है। चौथी और पाँचवीं गुफा के चित्र अच्छी दशा में हैं। चौथी गुफा के चित्रों की अनेक प्रतिलिपियाँ प्राप्त होती हैं। चौथी और पाँचवीं गुफा को जोड़ते हुए 220 फीट लम्बा बरामदा है जो 20 खम्भों पर टिका है। छठी गुफा में भी चित्र पाए जाते हैं। सातवी, आठवीं और नवीं गुफा के चित्र समय के थपेड़ों से प्रायः नष्ट हो गए हैं।
(1) पहला दृश्य- रंगमहल में सीधे हाथ पर घुसते ही भित्ति चित्रों की श्रेणी में पहला दृश्य महत्त्वपूर्ण है। दो स्त्रियाँ एक मण्डप में बैठी हुई हैं। एक नारी शोकास्त अवस्था में श्वेत वस्त्र धारण किये बैठी है और अपने मुख को एक हाथ से ढके हुए है, दूसरे हाथ से अपनी मानसिक अवस्था को प्रकट कर रही है। इस नारी के हाथों में कंगन व सिर पर जूड़ा है। दूसरी नग्न वेश में इसकी सखी है और शोकग्रस्त नारी को सान्त्वना दे रही है। इस चित्र को देखकर कुछ लोग भगवान बुद्ध के विरह में दुखित यशोधरा की अनुभूति करते हैं।
(2) दूसरा दृश्य- चार पुरुष पालथी मारे बैठे हैं। शरीर पर धोती है। ये आपस में एक- दूसरे से वार्तालाप कर रहे हैं। सबके गले में मोतियों की मालाएँ हैं, बाहुओं में बाजूबन्द, कलाई में कड़े हैं। दो व्यक्तियों के सिर पर मुकुट हैं, जिनसे ये सम्भ्रान्त व्यक्ति प्रतीत होते हैं। पाँचवाँ व्यक्ति बौना है।
(3) तीसरा दृश्य- दो पंक्तियों मानवाकृतियों में ऊपर-नीचे चित्रित हैं। ऊपर वाली पंक्ति में छः व्यक्तियों के चित्र हैं, जो बादलों में विहार कर रहे हैं। इन आकृतियों का ऊपरी भाग स्पष्ट और नीचे का भाग अस्पष्ट है। ऊपर के व्यक्ति या तो नीचे के व्यक्तियों को वरदान दे रहे हैं। इन व्यक्तियों के सिर मुंड़े हुए हैं। इससे प्रतीत होता है कि ये साधु-सन्त हैं। नीचे के व्यक्तियों में 5 गायिकाएँ हैं, जिसमें से एक के हाथ में वीणा है। सभी गायिकाओं ने अपने बालों के जूड़े को डोरी से बाँध रखा है। कानों के कर्ण फूल, गले में मोतियों का हार और बदन पर चोलियाँ बाँध रखी हैं।
(4) चौथा दृश्य- गायिकाओं का समूह है। बाईं ओर वाले समूह में एक स्त्री बीच में खड़ी है और सात स्त्रियाँ उसके चारों ओर घेरा बनाए खड़ी हैं। केन्द्र में खड़ी स्त्री बहुत सुन्दर वस्त्रों से सज्जित है। उसने अपने अंगों को अलंकारों से सुसज्जित कर रखा है। इसको मुख्य नायिका माना जा रहा है। चारों ओर की स्त्रियाँ मंजीरे, डण्डे और मृदंग से ताल दे रही हैं। दो स्त्रियों को छोड़कर सभी कटि तक दिगम्बरा हैं। दूसरे समूह की महिलाएँ भी एक गायिका को चारों ओर से घेरे मंजीरे, डण्डे, मृदंग से ताल दे रही हैं। इन दोनों आकृति के समूह को एक दीवार का चित्र बनाकर अलग किया गया है।
(5) पाँचवाँ दृश्य- इसमें 17 घुड़सवार हैं जो पाँच या छः पंक्तियों में प्रस्थान करते हुए दिखाए गए हैं। बीच के एक सवार के सिर पर छत्र है। घोड़े के सिर पर पक्षी के बालों की कलंगी है। सवारों के सिर पर पगड़ी हैं, कमर तक अंगरखे हैं, टाँगों में पाजामे हैं। सबसे विचित्र बात इस चित्र में घोड़ों का चित्र अवलोकनीय है। इससे बढ़कर घोड़ों का सजीव चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है। यह दृश्य मौलिकता का अपूर्व उदाहरण है।
(6) छठा दृश्य- इसमें हाथियों का एक चित्र है। भारतीय मूर्तिकला में हाथियों का ऐसा सजीव चित्रण विश्व में अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। साँची, अजन्ता इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। एक हाथी पर एक सम्मानित व्यक्ति हाथ में कमल पुष्प और सिर पर छत्र धारण किए हैं। इसके पीछे एक व्यक्ति चंवर ढाल रहा है। पिछले दो एक हाथियों पर महावत के पीछे तीन- तीन स्त्रियाँ पैर लटकाए बैठी है, इनमें से तीन कमर तक दिगम्बरा हैं, हाथियों पर झूलें लटक रही हैं। हाथियों की गति आकर्षक एवं वास्तविक प्रतीत होती है।
(7) सातवाँ दृश्य- यह चित्र फाटक पर है जो अस्पष्ट है। आठवों चित्र भी समय के थपेड़ों से नष्ट हो गया है। इस चित्र में महात्मा बुद्ध की मूर्ति है और कुछ दासियों उन्हें झुकवर नमस्कार कर रही हैं।
राय कृष्णदास ने बाघ गुफा का महत्त्व इस प्रकार व्यक्त किया है- ‘इस काल के बाघ गुफा के चित्र सन् 1907-8 में पुनः संसार के सामने आए हैं, विन्ध्य पर्वत का यह अंश मालवा में ग्वालियर राज्य के अन्तर्गत है। पास ही एक छोटी सी करद नदी जिसका नाम बाघ या बाय है, बहती है, उसी के कारण यहाँ की गुफाओं का नाम और पास के गाँव का नाम भी बाध पड़ा है। यहाँ कुल नौ गुफाएँ हैं जिनका सामना साढ़े सात सौ गज लम्बा है। किन्तु नवी गुफाएँ आपस में मिली हुई नहीं है। यहाँ के चित्रों की शैली अजन्ता से भिन्न नहीं है एव वहाँ के पूर्व मध्यकालीन चित्रों की तुलना में ये हन्नीस नहीं बैठते।”
बाघ गुफा की विशेषताएँ-
(1) प्रकृति चित्रण- बाय की गुफाओं में प्रकृति का मनोहारी चित्रण है विभिन्न लताओं पुष्पों का कलात्मक सृजन किया गया है।
(2) पशु-पक्षियों का चित्रण- तोता-मैना, कबूतर, हंस, मोर, सारस आदि के अंकन में अजन्ता की कला से समानता है। हाथी, घोड़े, बैल को सुन्दर आकृतियों में चित्रित किया गया है।
(3) नारी सौन्दर्य एवं अलंकरण- नारी की विभिन्न मुद्राओं तथा अंग सौष्ठव में अजन्ता का ही दूसरा रूप दिखाई देता है किन्तु शारीरिक दृष्टि से ये कुछ स्थूल हैं। केश विन्यास तथा वस्त्राभूषण में विविधता दिखाई देती है जिससे उस समय की सम्पत्रता तथा समृद्धि का स्पष्ट ही आभास होता है।
(4) विविधता- जीवन के विविध पक्षों का चित्रण किया गया है। कहीं वादन-गायन तो कहीं हाथी घोड़ों के जुलूस तथा विरह-विदग्धा नारी का भावपूर्ण चित्रण किया गया है।
अतः स्पष्ट है कि बाघ गुफाओं में अपर कलाकार अपनी तूलिका से मानव चित्रण को इतना सफल बना गए कि उनमें प्राणों का स्पन्दन होता है। कल्पना जागृत होती है और भारतीय जन मानस में प्रचलित प्रतीकों के माध्यम से उन्होंने युग को बाँधा है।
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