इतिहास / History

भारत की भौगोलिक दशा | भारत की भौगोलिक स्थिति तथा विस्तार | भारत का भौगोलिक स्वरूप | भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति पर भौगोलिक प्रभाव

भारत की भौगोलिक दशा | भारत की भौगोलिक स्थिति तथा विस्तार | भारत का भौगोलिक स्वरूप | भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति पर भौगोलिक प्रभाव

भारत की भौगोलिक दशा

भारत देश की संस्कृति तथा सभ्यता को भूगोल ने किस सीमा तक प्रभावित किया है?

किसी भी देश की सभ्यता तथा संस्कृति पर उस देश की भौगोलिक दशा का केवल गहरा ही नही अपितु अमिट प्रभाव पड़ता है। बर्कले महोदय के अनुसार ‘मानव कार्यकलापों पर जितनी गहरी छाप उस देश की भौगोलिक दशा की पड़ती है उतनी गहरी छाप स्वयं उसके अपने चिन्तन तथा विचारों की भी नहीं पड़ती।” यह उचित ही है। भौगोलिक दशा किसी भी देश की संस्कृति तथा सभ्यता को विशिष्टताएँ एवं दिशा प्रदान करती है। भौगोलिक वातावरण की पृष्ठभूमि में ही मानव जीवन का विकास हुआ है। संस्कृति तथा सभ्यता के चरित्र, कार्यकलापों तथा उपलब्धियों की पृष्ठभूमि भौगोलिक दशा ही होती है। इस सन्दर्भ में जब हम भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता की भौगोलिक पृष्ठभूमि के विषय में विचार करते हैं तो हमें विदित होता है कि भारत की भौगोलिक विभिन्नताओं ने इस देश को अनेकानेक विशिष्टताएँ प्रदान की हैं। भारत की भौगोलिक दशा का वर्णन निम्नलिखित है-

भारत की भौगोलिक स्थिति तथा विस्तार

भारत उत्तरी गोलार्द्ध के दक्षिणी एशिया में 8° और 37° अक्षांश तथा पूर्वी देशान्तर के 68° एवं 97° के मध्य स्थित है। भारत के मध्य भाग से गुजरती हुई कर्क रेखा ने भारत को दो भागों में विभाजित किया हुआ है। भारत का दक्षिणी भाग ऊष्ण कटिबन्ध तथा उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है। भौगोलिक स्वरूप में भारत एक त्रिकोण के आकार का प्रायद्वीप है। प्राचीन काल में भारत का विस्तार पूरब से पश्चिम की ओर 2500 मील तथा उत्तर से दक्षिण की ओर 2000 मील तक था। इसकी स्थल सीमा 6000 मील तथा जलसीमा 5000 मील लम्बी थी। भारत का क्षेत्रफल बीस लाख वर्गमील था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त पाकिस्तान तथा बंगलादेश के निर्माण स्वरूप भारत का एक तिहाई भाग कम हो गया। वर्तमान भारत का विस्तार पूरब से पश्चिम की ओर 1977 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर 3220 किलोमीटर है।

भारत का भौगोलिक स्वरूप

भारत के भौगोलिक स्वरूप का वर्णन निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है-

(1) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश- भारत के उत्तरी भाग में पर्वतीय प्रदेश, तराई वाले भूभाग तथा वन खण्ड हैं। इनके अन्तर्गत काश्मीर, कांगड़ा, टेहरी, कुमायूँ, नेपाल, सिक्किम तथा भूटान आदि प्रदेशों की गणना की जाती है। इस प्रदेश में हिमालय पर्वत की ऊँची पर्वतीय श्रृंखलाएँ दूर-दूर तक विस्तृत हैं। हिमालय को भारत की ‘उत्तरी दीवार’ भी कहा जाता है। हिमालय के उस ओर तिब्बत तथा इस ओर सिन्ध, सतलज तथा ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम है। हिमालय के दक्षिणी भाग की ओर भारतीय भूभाग में गंगा तथा अन्य सहायक नदियों का उद्गम स्थल है हिमालय की अर्गला के पूर्वी कोने पर नाग, लुशाई तथा पटकोई पहाड़ियाँ तथा उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र में कुराकुर्रम पर्वत है। इसी के निकट हिन्दुकश है। जिसके उस पार सफेद कोह तथा दक्षिण में सुलमान पर्वत है। हिमालय की पूर्वी श्रृंखलाएँ भारत को बर्मा से अलग करती हैं।

(2) सिन्ध तथा गंगा-यमुना का विस्तृत मैदान- इस क्षेत्र में सिन्ध, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा अन्य सहायक नदियों का जाल सा बिछा हुआ है। इस क्षेत्र को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- (1) वह भूभाग-जिसे सिन्धु नदी तथा उसकी सहायक नदियाँ सींचती हैं। (2) वह भूभाग जिले गंगा-यमुना तथा उनकी सहायक नदियाँ सींचती हैं। इन दोनों के बीच अरावली कपरवत श्रृंखलाएँ तथा राजस्थान का मरुस्थल है। अरावली पर्वत के उत्तर में कुरुक्षेत्र के बाँगर के रूप में वह तंग मार्ग स्थित है जिसके द्वारा पंजाब में से होकर गंगा-यमुना के मैदान में प्रवेश किया जा सकता है। यह मार्ग भारतीय इतिहास के अनेक दुखदायी प्रसंगों का कारण रहा है। अध्ययन की सुविधा के लिये सिन्धु तथा गंगा-यमुना के विस्तृत मैदान को पाँच प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है- (1) पंजाब, (2) सिन्ध, (3) राजस्थान, (4) गंगा तथा यमुना द्वारा सींचा जाने वाला प्रदेश, तथा (5) गंगा का मुहाना और ब्रह्मपुत्र की घाटी वाला प्रदेश।

(3) विन्ध्याचल पर्वत श्रृखलाएँ तथा दक्षिणी पठार- उत्तरी भारत के मैदान के दक्षिण की ओर विन्ध्याचल पर्वत श्रृंखलाएँ हैं। ये श्रृंखलाएँ उत्तरी दक्षिणी भारत के मध्य एक प्राकृतिक प्राचीन के रूप में अवस्थित हैं। जो पूर्व से पश्चिम की ओर विस्तृत है। इन श्रृंखलाओं के उत्तर में स्थित प्रदेश मध्य प्रदेश तथा दक्षिण की ओर स्थित प्रदेश दक्षिण भारत कहलाता है। अपने पूर्ण स्वरूप में यह भूभाग तीन ओर से सागर द्वारा तथा उत्तर की ओर विन्धाचल पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। इस प्रदेश में पूर्वी तथा पश्चिमी घाट तथा उनके मध्यवर्ती पठार सम्मिलित हैं। इसी ओर कृष्णा नदी के नीचे वाले प्रदेश को ‘धुर दक्षिण’ कहा जाता है। दक्षिण पठार के उत्तर में महाराष्ट्र तथा दक्षिण में कर्नाटक प्रदेश हैं। सम्पूर्ण दक्षिणी भारत का प्राकृतिक दृश्य बड़ा ही सुन्दर तथा मनोहारी है। विशिष्ट भौगोलिक पृथकता के कारण दक्षिणी भारत की सभ्यता तथा संस्कृति बहुत कुछ भिन्न रही है।

(4) पूर्वी तथा पश्चिमी घाट एवं तटीय मैदान- भारत के इस भौगोलिक भाग में गोदावरी, कावेरी तता कृष्णा नदियों की उर्वरा भूमि है। पश्चिमी घाट की पर्वत श्रेणियाँ दक्षिण भारत के अरब सागर तट के समानान्तर तटीय मैदान की लगभग 45 मील की पट्टी को छोड़ कर, उत्तर से दक्षिण की ओर लगभग 650 मील तक विस्तृत हैं। इस मैदान का दक्षिणी भाग मलाबार अथवा केरल कहलाता है। इसके उत्तर में कोंकण स्थित है। इस क्षेत्र में मानसून अपेक्षाकृत अधिक पहले आ जाता है फलतः यहाँ पर अच्छी उपज होती है। इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौन्दर्य भी बड़ा मनोहारी है।

भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति पर भौगोलिक प्रभाव

भारत की उपरोक्त भौगोलिक रचना ने भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति पर जो प्रभाव डाला है, उसका वर्णन निम्नलिखित है-

(1) आत्मनिर्भरता- भारत के भौगोलिक पृथकत्व द्वारा इस देश को वे समस्त भौगोलिक उपादान प्राप्त हैं-जिनकी प्राप्ति विश्व के किसी एक देश में अप्राप्य हैं। दूसरे शब्दों में भारत को विश्व का संक्षिप्त प्रतिरूप’ कहा जा सकता है। लिली के अनुसार ‘सत्य तो यह है कि भारतवर्ष की उपज में सभी मानवोपयोगी वस्तुएँ प्राप्य हैं।” अपनी इस भौगोलिक उपलब्धि के परिणामस्वरूप भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का विकास स्वच्छन्द रूप से हुआ। भारतीयों के आत्मनिर्भर होने के कारण यहाँ की प्रारम्भिक सभ्यता तथा संस्कृति का जो स्वरूप विकसित हुआ उसके समस्त गुण मूल तथा विशिष्ट हैं।

(2) पृथकत्व- भारत की भौगोलिक परिस्थितियों ने इस देश को विश्व के अन्य देशों से भौगोलिक रूप से अलग रखा है। हिमालय की दुर्गम पर्वत श्रृंखलाओं ने उत्तर में तथा सागर की लम्बी सीमा ने दक्षिण में, सागर की ही ऊबड़-खाबड़ उत्ताल तरंगों ने पश्चिम में इस देश को प्राकृतिक पृथकता प्रदान की हुई है। इस प्रकार एक लम्बे समय तक भारत विदेशों के प्रभाव से मुक्त रहा तथा इस बीच इस देश की संस्कृति का विकास भारत के ही स्वतन्त्र वातावरण में होता रहा। अपना मूल रूप स्थापित होने के उपरान्त जब अन्य संस्कृतियों ने भारत के भौगोलिक अवरोधों को पार करके इस देश की संस्कृति से सांस्कृतिक टक्कर ली तो भारतीय संस्कृति ने उन सभी को आत्मसात कर लिया तथा अपने मूल गुणों में वह तब भी अप्रभावित  ही बनी रही।

(3) समागम इस बात को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिये कि सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रभावित करना अथवा प्रभाव ग्रहण करना कोई विशेष उपलब्धि या अनुपलब्धि नहीं है। श्रेष्ठ का स्वागत करना तथा दोष का परित्याग करना संस्कृति का विशेष लक्षण है। इस सन्दर्भ में हम यह कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति ने भौगोलिक प्रभाव स्वरूप अपनी संस्कृति का स्वच्छन्द तथा स्वतन्त्र विकास तो किया ही था साथ ही साथ उसने अन्य आगन्तुक संस्कृतियों के श्रेष्ठ गुणों के साथ समागम भी किया।

(4) विभिन्नता अथवा विविधता– विन्ध्याचल पर्वत श्रृंखलाओं ने उत्तर तथा दक्षिणी भारत की संस्कृति में अलगाव की स्थिति के रूप में अपना भौगोलिक प्रभाव स्थापित रखा है। आज भी हमें उत्तर तथा दक्षिण भारत के जनजीवन, रहन-सहन, भाषा, वेष-भूषा आदि में पर्याप्त विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। डा० बेनी प्रसाद के अनुसार ‘उत्तर और दक्षिण की सभ्यता के मूल सिद्धान्त एक ही थे, परन्तु उनके सांस्कृतिक चक्र अलग-अलग घूमते रहे।” भारतीय संस्कृति पर भौगोलिक प्रभाव केवल उत्तर तथा दक्षिणी भारत की विभिन्नता में ही नहीं, वरन् अन्य क्षेत्रों में भी परिलक्षित होता है। भारत के कृषि, उद्योग धन्धों, व्यवसाय व्यापार आदि जातिगत मान्यताओं, परम्परागतं विचारों आदि, धार्मिक मान्यताओं, क्रिया- अनुष्ठानों आदि, भाषा, शिक्षा तथा ललित कलाओं आदि के क्षेत्र में भी पर्याप्त विभिन्नता का कारण बहुत कुछ सीमा तक भौगोलिक प्रभाव ही है।

(5) एकता- उत्तर में हिमाच्छादित हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं ने लेकर सुदूर दक्षिण में सागर तटीय सीमाओं तक, पश्चिम की ऊबड़-खाबड़ सागर के तट से लेकर पूर्व के गहन वन प्रदेशों तक भारत का मानचित्र एक है। यद्यपि इन सीमाओं के मध्य में बसे भारत में अनेक भौगोलिक अवरोध हैं परन्तु वे उतने प्रभावशाली नहीं हैं कि इस समस्त भारत की संस्कृति को पूर्ण रूप से विभिन्न कर सकें । फलस्वरूप भारत की संस्कृति में यत्र-तत्र विविधता के विपरीत एकता का सूत्र सदैव से ही बना रहा है। भौगोलिक अलगाव होते हुए भी भारतीय संस्कृति में अद्भुद एकता भी है।

निष्कर्ष

भारतीय संस्कृति पर भौगोलिक प्रभाव के उपरोक्त वर्णन द्वारा हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि भारत की भौगोलिक परिस्थितियों ने भारतीय संस्कृति के विकास को पर्याप्त रूप से प्रभावित किया है। संस्कृति का भौगोलिक परिस्थियाँ द्वारा प्रभावित होना स्वाभाविक ही है। प्रत्येक देश की संस्कृति भौगोलिक वातावरण तथा प्रभाव के अन्तर्गत ही विकास करती है। जब कि भौगोलिक प्रभावों के कारण विश्व के विभिन्न देशों की संस्कृति समान नहीं है तो भारत इसका अवादि कैसे हो सकता है? यथा भारतीय संस्कृति पर इस देश की भौगोलिक परिस्थितियों की अमिट छाप है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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