शिक्षाशास्त्र / Education

भारत में शैक्षिक तकनीकी का विकास | Development of Educational Technology in India in Hindi

भारत में शैक्षिक तकनीकी का विकास | Development of Educational Technology in India in Hindi

भारत में शैक्षिक तकनीकी का विकास

माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1952-53 ने सर्वप्रथम भारत में विदेशों की भाँति दृश्य-श्रव्य उपकरणों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करने पर बल दिया। भारतवर्ष में विज्ञान एवं तकनीकी का उपयोग पहली बार सेना व सुरक्षा के कार्यों के लिए किया गया। सन् 1965 में एक भारतीय अभिक्रमित अनुदेशन संगठन (IAPL) की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से शिक्षा तकनीकी  के विकास के प्रयास विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में किये गये। 1970 के लगभग तकनीकी के माध्यन में शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से प्रयत्न किये गये और राष्ट्रीय अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) तथा उच्च शिक्षा संस्थान, बड़ौदा सहित विभिन्न विश्वविद्यालय व शिक्षा विभागों ने इस क्षेत्र में शोध कार्यों को बढ़ावा दिया। एन० सी० ई० आर०टी० के अन्तर्गत एक शिक्षा-तकनीकी केन्द्र स्थापित किया गया। इस केन्द्र का कार्य शिक्षण-तकनीकी से ज्ञान का प्रसार करना तथा शोधकार्यों द्वारा शिक्षण प्रक्रिया का विकास करना है। शिक्षा मंत्रालय ने चतुर्थ योजना के तहत शैक्षिक तकनीकी कार्यक्रम केन्द्रीय स्तर पर 1972 में प्रारम्भ किया । इसका उद्देश्य शैक्षिक तकनीकियों को लागू कर शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार लाना, शिव का अधिकाधिक विकास करना और देश के विभिन्न प्रान्तों में शिक्षा के क्षेत्रों में जो असमानताएँ विद्यमान थीं उनको दूर करना था। यह योजना दूरदर्शन की सुविधाएँ व सैटेलाइट के प्रयोग की सम्भावनाओं के आधार पर बनाई गई थी, ताकि नवीन शिक्षण माध्यमों का लाभ शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्र तथा राज्य स्तर पर उपलब्ध हो सके।

सन् 1973 में सेन्टर फॉर एजूकेशनल टेक्नोलॉजी (CET) स्थापित किया गया। एन० सी० ई० आर० टी० का यह प्रभाग विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कार्य कर रहा है, जो निम्नलिखित है:

(1) शिक्षा तकनीकी में स्थूल वस्तु माध्यम (Hardware Approach) तथा कोमल वस्तु माध्यम (Software Approach) का प्रयोग किस प्रकार किया जाये इस विषय में शोध करना।

(2) एक अच्छी शिक्षण प्रणाली का निर्माण एवं विकास करना।

(3) शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में प्रयुक्त सानी एवं योजनाओं का मूल्यांकन करना।

(4) शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में विभिन्न प्रशिक्षणों द्वारा उपयुक्त योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास प्रशिक्षकों एवं अध्यापकों में करना ।

(5) विभिन्न स्थूल सूक्ष्म शिक्षण सामग्रियों का संकलन कर विभिन्न महाविद्यालयों में वितरित करना।

(6) विद्यालयों, महाविद्यालियों एवं प्रशिक्षण महाविद्यालयों में तकनीकी चेतना का विकास करना।

धीरे-धीरे महाराष्ट्र, राजस्थान, उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु तथा उत्तर प्रदेश में भी शैक्षिक तकनीकी प्रकोष्ठों की स्थापना की गई, जिनका कार्य राज्यों में शैक्षिक तकनीकी विकास करना था। सन् 1972-73 में शैक्षिक तकनीकी परियोजना में राज्य व केन्द्र सरकार के सहयोग से भारत में आकाशवाणी, दूरदर्शन, चलचित्र, ऑडियो, वीडियो, रिकार्ड्स तथा अभिक्रमित अधिगम आदि का प्रयोग शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने हेतु किया गया। इस परियोजना में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्य (United Nations Development Project), यूनेस्को (United Nations Educational Scientific and Cultural Organisation), शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT), राज्य शिक्षा विभाग, राज्यीय शैक्षिक अनुसन्धान परिषद्, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, दूरदर्शन एवं फिल्म संस्थान, पूना भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षा विभाग भी सहयोगी थे। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 1980 में एक कार्यदल इन्सैट व शैक्षिक प्रौद्योगिकी केन्द्र ने 1974-75 के मध्य ‘उपमह शैक्षणिक दूरदर्शन प्रयोग’ (Satellite Instructional Television Experiment) प्रारम्भ किया। इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रान्तों जैसे, बिहार, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश के लगभग 2400 गांवों में शैक्षिक और विकासात्मक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दूरदर्शन का उपयोग किया गया। SITE के द्वारा अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये गये जैसे, प्राथमिक विद्यालय के अध्यापकों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण हेतु विभिन्न माध्यमों में कार्यक्रम शुरू किये गये जिनमें दूरदर्शन तथा आकाशवाणी प्रसारण, स्वाध्याय तथा स्वशैक्षणिक बाली मुद्रित पाठ्य-सामग्री तथा ट्यूटोरियल व्यवस्था पर कार्यशाला का आयोजन करना आदि कार्य सम्मिलित थे । SITE कार्यक्रमों के मूल्यांकन हेतु भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) को CET ने सहयोग दिया तथा ये संस्थाएँ इस बात पर बल देती थींकि ग्रामीण विकास हेतु ‘उपमग्रह दूरदर्शन प्रसारण अअधिक प्रभावशाली हो तथा विकासशील देशों में उपग्रह तकनीकी प्रसारण की क्षमता में वृद्धि हो ।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 1980 में एक कार्यदल इन्सट व दूरदर्शन की शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगिता के लिए स्थापित किया। कार्यदल इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कार्यक्रमों को सुसंगत, सार्थक व प्रभावशाली बनाने हेतु यह आवश्यक है कि कार्यक्रमों का विकेन्द्रीकरण कर शैक्षणिक संस्थाएँ स्वयं अपने कार्यक्रम प्रसारित करें इसलिए शिक्षा मंत्रालय ने यह निर्णय लिया कि शैक्षणिक दूरदर्शन कार्यक्रम का उत्तरदायित्व दूरदर्शन से हटाक: शैक्षिक प्राधिकारियों को सौंप दिया जाये।

उपर्युक्त निर्णय को ध्यान में रखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने मई, 1980 में इन्सैट टेलीविजन शिक्षा में उपयोगी कौन-कौन से तत्वों को लिया जा सकता है, इस विषय पर चिन्तन करने हेतु एक अध्ययन दल का गठन किया। अध्ययन दल द्वारा प्रस्तावित सुझावों में से केवल चार प्रस्तावों को कार्यान्वित करने के लिये शिक्षा मंत्रालय ने अपनी संस्तुति दो :

(1) शैक्षिक तकनीकी को केन्द्रीय संस्था (CIET) की स्थापना की जाये जो इन्सैट राज्यों में शैक्षिक दूरदर्शन कार्यक्रमों के प्रसारण को प्रोत्साहित व संयोजित कर सके।

(2) शैक्षिक तकनीकी की राज्य संस्था 6 इन्सैर राज्यों में स्थापित की जाये, जिससे शैक्षिक दूरदर्शन (ETV) का स्थानीय प्रसारण सम्भव हो सके।

(3) इन्सैट कार्यक्रमों का उपयोग अन्य राज्यों को भी मिल सके; इस दृष्टि से विस्तृत शैक्षिक तकनीकी कार्यक्रम शेष राज्यों में भी शुरू किया जाना चाहिए।

(4) विस्तृत शैक्षिक तकनीकी कार्यक्रम त्रिपुरा एवं नो केन्द्रशासित प्रदेशों में भी लागू किया जाना चाहिए।

शिक्षा मंत्रालय ने सन् 1980 में एक राष्ट्रीय कार्यशाला शैक्षिक प्रसारण से सम्बन्धित आयोजित की, जिसमें आकाशवाणी, दूरदर्शन, एन० सौ० ई० आर० टी० और अन्य संगठनों को भी साथ में लिया गया। इस कार्यशाला को मुख्य उपलब्धि यह रही कि इसमें शैक्षिक प्रसारण से सम्बन्धित प्रारूप की रूपरेखा तैयार की गई। शिक्षा मंत्रालय ने एक अध्ययन दल गठित किया जिसका उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में आकाशवाणी का उपयोग किस प्रकार किया जाये: यह ज्ञात करना था। इसके प्रतिवेदन के आधार पर एक विस्तृत प्रायोजना शैक्षिक आकाशवाणी प्रसारण से सम्बन्धित लोग NCERT के तहत संचालित चार क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालयों जैसे अजमेर श्रीपाल, भुवनेश्वर एवं मैसुर में प्रस्तावित किया गया ताकि वे राज्य के शिक्षा विभागों और आकाशवाणी को सम्बन्ध कर सकें। इस तरह भारतवर्ष में शैक्षिक तकनीकी के विविध कार्यकलापों में एन० सी० ई० आर० टी० बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है जिसने औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए कई प्रायोजनाएँ प्रारम्भ की है। रेडियो तथा दूरदर्शन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 5 से 12 साल तक के बच्चों के लिए आवश्यकता आधारित पाठ(Need Based Curriculum) तथा विभिन्न निर्देश तथा सुझावों सहित पाठ्य सामग्री भी तैयार की है। वह शिक्षा तकनीकों के स्थूल उपागम (Hardware Approach) तुथा सूक्ष्म उपागम (Software Approach) दोनों रूपों का भी प्रयोग सुन्दर ढंग से कर रही है।

इसके अतिरिक्त नेशनल इन्स्टीट्यूट आफ बैंक मैनेजमेंट, बम्बई व जीवन बीमा निगम जैसे दोनों संगठन भी शैक्षिक तकनीकी का प्रभावशाली उपयोग विभिन्न प्रशिक्षण देने में कर रहे हैं। ‘इण्डियन एसोसिएशन फॉर प्रोग्राम एण्ड लर्निंग एण्ड एज्यूकेशनल इनोवेशन्स अपने वार्षिक सम्मेलन एवं प्रकाशन के माध्यम से पाठ्य सामग्री का संकलन एवं सूचनाओं का प्रसारण करती है तथा शैक्षिक तकनीको का शिक्षा और पशिक्षण में कैसे प्रयोग किया जाए: इस विषय पर विचार करती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने भारत के शैक्षिक इतिहास में पहली बार इस विषय पर विशेष बल दिया कि शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग शिक्षा में गुणात्मक एवं परिमाणात्मक सुधार लाने हेतु कैसे किया जाये। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में स्पष्ट रूप से बताया गया कि ‘शैक्षिक तकनीकी उपयोगी सूचनाओं के प्रसारण, अध्यापकों के प्रशिक्षण तथा पुनः प्रशिक्षण, औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा में गुणात्मक सुधार, कला एवं संस्कृति के प्रति सजगता, जीवन मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करने में सहायक होगी।’

प्रोग्राम ऑफ एक्शन (POA), 1986 में पृष्ठ 180 पर बताया गया कि शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से राज्य एवं केन्द्र स्तर पर दृश्य-श्रव्य चलचित्र, फिल्म पुस्तकालय (Film Library) आदि इस उद्देश्य से स्थापित किये गये कि जिनके माध्यम से शैक्षिक चलचित्रों, प्रक्षेपी तथा अप्रक्षेपी शिक्षण सहायक सामग्रियों के प्रयोग को प्रोत्साहन मिलेगा। यह देखने में आया है कि आकाशवाणी व दूरदर्शन ने चाहे कितना भी विकास किया है, लेकिन यह सुनिश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये अभी भी शैक्षणिक संस्थाओं में अपनी अहं भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। अनेक राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में स्टेट इन्स्टीट्यूट्स ऑफ एजूकेशनल टेक्नोलॉजीज’ (SIET’s) और राष्ट्रीय स्तर पर सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ एजूकेशनल टेक्नोलॉजी’ (CIET) जैसी संस्थाएँ शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने हेतु आकाशवाणी व दूरदर्शन के द्वारा प्रसारित किये जाने वाले कार्यक्रमों का निर्माण कर रहे हैं। ‘ऑडियो विजुअल सेन्टर्स’ (AVRCS) एवं ‘एजूकेशनल मोडिया रिसर्च सेन्टर’ (EMRC’s) भी विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय के छात्रों के लिए शैक्षिक दूरदर्शन कार्यक्रमों का निर्माण कर रहे हैं। ‘टेक्निकल टीचर ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूशन्स’ (ITTI’S) भी दूरदर्शन एवं अन्य माध्यमों के कार्यक्रमा के विकास के लिए सुविधाएँ प्रदान कर रहे हैं। आई० आई०टी० (IIT) एवं अन्य तकनीकी संस्थाओं में शोधकार्य हेतु, बी० टैक (B.Tech) एवं एम० टैक (M. Tech) में कम्प्यूटर्स का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अलावा अनेक विश्वविद्याल, महाविद्यालयों एवं विद्यालगों में भी कम्प्यूटर के प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। प्रोग्राम ऑफ एक्शन (POA), 1986 इस बात पर जोर दिया कि चार्ट्स, स्लाइड्स एवं ट्रांसपेरेन्सीज आदि का प्रयोग शिक्षण में किया जाये।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 को प्रभावशाली रूप से कार्यान्वित करने हेतु सातवीं पंचवर्षीय योजना में निम्नलिखित प्रावधानों को प्राथमिकता दी गई जिनको कि आठवीं योजना में और अधिक प्रभावशाली बनाना था, वे इस प्रकार हैं:

(1) दूरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रमों के प्रसारण का विस्तार :

(अ) सन् 1990 तक न्यूनतम लक्ष्यों की पूर्ति हेतु शैक्षिक दूरदर्शन (ETV) तथा आकाशवाणी के कार्यक्रम विविध मुख्य भाषायी क्षेत्रों में प्रसारित किये जाएँ।

(ब) सातवीं योजना के तहत विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय में शिक्षण हेतु आकाशवाणी केन्द्रों की स्थापना की जाए।

(स) 1991-92 तक शैक्षिक दूरदर्शन चैनल प्रदान किया जाये।

(द) आवश्यकतानुसार शैक्षिक कार्यक्रमों में सैटेलाइट का भी प्रयोग किया जाए।

(2) 1990 तक मुख्य भारतीय भाषाओं में कार्यक्रमों के निर्माण की सुविधा प्रदान की जाए एवं अन्य भाषाओं के लिए आठवीं योजना में सुविधाएँ दी जायँ।

(3) सन् 1995 तक समस्त प्राथमिक विद्यालयों में दूरदर्शन की सुविधा एवं सातवीं योजना के तहत  रेडियो रिसीवर्स की सुविधा प्रदान की जाए।

(4) विद्यमान कार्यक्रमों का विस्तार कर नवीन कम्प्यूटर कार्यक्रमों का विकास सातवीं योजना में कर वांछनीय स्तर तक 1995 तक पहुँचाये जाएँ ।

(5) प्रथम उपाधि स्तर (First Degree Level) तक कम्प्यूटर शिक्षा का प्रयोग व्यावसायिक एवं सामान्य शिक्षा के पाठ्यक्रम में किया जा सके, इसके लिए प्रयत्न सातवीं योजना में प्रारम्भ किये जाएँ ताकि 1995 तक इन्हें पूर्णतः प्राप्त किया जा सके।

(6) 1991 तक उच्च माध्यमिक स्तर में ‘इलेक्टिव कम्प्यूटर साइन्स कोर्स’ का प्रारम्भ किया जाए, माध्यमिक स्तर पर 1995 तक तथा प्राथमिक स्तर पर इसे लागू करने हेतु धीरे धीरे प्रयत्न किया जाये।

(7) 1991 तक ‘संगणक साक्षरता कार्यक्रमों’ (Computer Literacy Programs) का विस्तार सभी उच्च माध्यमिक विद्यालयों में किया जाए, माध्यमिक विद्यालयों में 1995 तथा प्राथमिक विद्यालयों में समय के साथ-साथ लागू किया जाये।

(8) 1990 तक दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों में विद्युत पूर्ति की जाये जिससे शैक्षिक तकनीकी के नवीनतम उपकरणों का लाभ विद्यालयों को मिल सके।

आज भी INSAT-1B की सहायता से अनेक शैक्षिक कार्यक्रम दूरदर्शन द्वारा प्रसारित किये जा रहे हैं तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा ली गयी ETV परियोजना के अन्तर्गत उच्च शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न कार्यक्रम दूरदर्शन पर प्रसारित किये जाते हैं जिनका प्रस्तावित समय लगभग इस प्रकार है : प्रातः 6.30 बजे से ‘इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से लगभग 25 मिनट का प्रसारण, दोपहर लगभग एक से दो बजे तक तथा शाम चार बजे से पाँच बजे तक का प्रसारण दूरदर्शन केन्द्र द्वारा प्रस्तुत किया जाता है तथा इन कार्यक्रमों के स्तर में भी निरन्तर वृद्धि की जा रही है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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