शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा में मापन की आवश्यकता | मापन एवं मूल्यांकन में अन्तर

शिक्षा में मापन की आवश्यकता | मापन एवं मूल्यांकन में अन्तर | Need for Measurement in Education in Hindi | Difference between measurement and evaluation in Hindi

शिक्षा में मापन की आवश्यकता

(Need of measurement in Education)

वर्तमान ज्ञान विज्ञान के विभिन्न विशिष्ट क्षेत्रों से लेकर जनसाधारण के दैनिक जीवन के विभिन्न सामान्य क्षेत्रों तक अन्य व्यावहारिक आवश्यकताओं की भाँति मापन क्रिया की व्यावहारिक आवश्यकता को भी समान रूप से स्वीकृत किया जाता है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही मनुष्य विभिन्न ठोस, तरल एवं वायवीय पदार्थों अथवा समय आदि अमर्त विषयों के मापन हेतु विभिन्न प्रकार को इकाइयों का प्रयोग करता चला आ रहा है। आधुनिक प्रगति के साथ-साथ स्कल पदार्थों एवं विषयों के अतिरिक्त मापन क्रिया का प्रयोग सूक्ष्म तथा अमूर्त मानवीय व्यवहार भावनाओं एवं सामाजकि सम्बन्धों के विभिन्न स्रोतों में निरन्तर बढ़ता जा रहा है।

जन्म स मृत्यु तक मनुष्य प्राय: अपने जीवन एवं व्यवहार के पहलुओं में निरन्तर मापन क्रिया का प्रयोग करता है। बच्चे के जन्म का समय अंकित करना, उसका भार मापन कम या अधिक मात्रा में अथवा मापांकित बोतल द्वारा उसे दूध पिलाना, इसके कपड़े का माप भार ल० आदि शारीरिक विकास का मापन प्रकृति अवधान शिक्षण एवं स्मरण शक्ति, बौद्धिक योग्यता, सहनशीलता, स्वभाव सामाजिकता, ईमानदारी आदि व्यक्तित्व के विभिन्न तत्वों के मापन से लेकर आकाशीय ग्रह नक्षत्रों की गति, अन्तरिक्ष यात्रा सम्बन्धी अत्यन्त सूक्ष्म एवं जटिल प्रक्रियाओं के मापन तक जीवन व्यवहार ज्ञान आदि के प्राय: समस्त क्षेत्रों में मापन क्रिया का प्रयोग किया जाता है।

समय मापने के लिए घण्टा, मिनट, सेकेण्ड, मिली सेकेण्ड, भार नापने के लिए किलो ग्राम, दूरी नापने के लिए किलोमीटर, सेण्टीमीटर, ताप मापने के लिए डिग्री, भौगोलिक स्थिति मापने के लिए अक्षांश और देशान्तर विद्युतीय शक्ति मापने के लिए वोल्ट, शक्ति मापने के लिए अश्व शक्ति (हार्स पावर) धन मापन के लिए रुपया, पैसा, पौण्ड, डालर आदि मापन इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। यहां तक कि व्यक्ति का चरित्र एवं आचरण भी विभिन्न आदशों (नायक सिद्धान्तों) की तुलना से मापा जाता है।

मापन एवं मूल्यांकन में अन्तर

(Difference between Measurement and Evaluation)

शिक्षा एवं मनोविज्ञान दोनों ही क्षेत्रों में मापन एवं मूल्यांकन का विस्तारपूर्वक प्रयोग किया जाता है। मापन एवं मूल्यांकन में निम्नलिखित अन्तर स्पष्ट होते हैं।

(1) मापन में व्यक्ति की योग्यताओं एवं व्यवहार का कुछ अलग-अलग खण्डों में अध्ययन किया जाता है जबकि मूल्यांकन में व्यक्ति को योग्यताओं एवं व्यवहार का समग्र रूप से अध्ययन किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- जब हम एक मेज खरीदते हैं तो उसका मापन लम्बाई, ऊंचाई व चौड़ाई में करते हैं जो मेज के विभिन्न मापन पहलू कहे जाते हैं। इसके विपरीत, उसी मेज का मूल्यांकन करते समय हम उसका पूर्णरूपेण अवलोकन करते हैं। हम यह ध्यान देते हैं कि क्या यह हमारे उद्देश्य को पूर्ण करेगी, क्या यह उपयुक्त अथवा ठीक है। इसको लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई ठीक है अथवा नहीं है।

(2) मापन में धन का अपव्यय होता है क्योंकि इसमें केवल एक ही परीक्षण का प्रयोग होता है जबकि मूल्यांकन में अत्यधिक धन व्यय होता है क्योंकि इसमें कई परीक्षणों के अतिरिक्त विभिन्न मूल्यांकन पद्धति जैसे-साक्षात्कार, निरीक्षण, प्रश्नावली, संचयी प्रपत्र आदि का प्रयोग किया जाता है।

(3) मापन का क्षेत्र अत्यन्त संकचित है, जबकि मूल्यांकन का अत्यधिक व्यापक है। मापन में किसी व्यक्ति के केवल एक गुण परीक्षा की जा सकती है, जबकि मूल्यांकन में अनेक गुणों की परीक्षा सम्भव होती है। उदाहरणार्थ-किसी व्यक्ति के किसी गुण विशेष जैसे- अंग्रेजी बोलने की क्षमता या इतिहास के ज्ञान की परीक्षा को मापन कहते हैं, जबकि मूल्यांकन में व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक व नैतिक आदि गुणों की परीक्षा की जाती है।

(4) मापन उन निरीक्षणों की ओर इंगित करता है जो भावात्मक रूप से प्रदर्शित किये गये हों जबकि मूल्यांकन के अन्तर्गत भावात्मक एवं गुणात्मक दोनों ही प्रकार के निरीक्षणों को स्थान दिया जाता है ।

(5) मापन में समय कम तथा मूल्यांकन में अधिक लगता है, क्योंकि मापन में हम व्यक्ति के किसी भी क्षेत्र में योग्यता को जानने हेतु केवल एक परीक्षण प्रयोग करते हैं, जबकि  मूल्यांकन में केवल एक परीक्षण पर निर्भर नहीं होते बल्कि उस विषय से सम्बन्धित कई परीक्षणों का प्रयोग करते हैं। उदाहरणार्थ- यदि हम एक बालक की गणित योग्यता का मापन करना चाहें तो किसी एक गणित के परीक्षण द्वारा उसकी उस विषय में योग्यता का मापन किया जा सकता है किन्तु गणित योग्यता के मूल्यांकन में हमें उसकी रुचियों, अभियमता, कौशल आदि के विषय में ज्ञात करना होगा। अतएव इससे हमें अपेक्षाकृत अधिक समय व्यय करना होता है।

(6) मापन में वस्तु कितनी है (How much) का उत्तर तथा मूल्यांकन में वस्तु का क्या मूल्य Whiit value) का उत्तर दिया जाता है। यह घड़ी कितनी अच्छी है, मापन की समस्या है तथा क्या मैं उन्नति कर रहा हूँ मूल्यांकन की समस्या है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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