भ्रमण विधि

भ्रमण विधि | भ्रमण-विधि से लाभ | भ्रमण या पर्यटन की योजना

भ्रमण विधि | भ्रमण-विधि से लाभ | भ्रमण या पर्यटन की योजना

  1. भ्रमण या पर्यटन प्रविधि

पर्यावरणीय अध्ययन में भ्रमण विधि का अपना विशेष महत्व है। कक्षा में छात्र केवल पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करते हैं और वे बाह्य जगत की यथार्थता के ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। इस दोष को दूर करने के लिये ही आजकल भ्रमण को एक विशेष विधि के रूप में प्रमुख स्थान दिया जाता है। वास्तव में पर्यावरणीय अध्ययन का शिक्षण केवल कक्षा तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता, वरन् उसका वास्तविक क्षेत्र कक्षा से बाहर है। सामुदायिक जीवन का अध्ययन करने के लिये यह विशेष लाभप्रद है। इस विधि के द्वारा बालक प्रत्यक्ष रूप से स्थानीय वातावरण की

प्रत्येक बात का सूक्ष्मातिसूक्ष्म अध्ययन कर सकता है। यह कथन पूर्णतया सत्य है कि “भूगोल का अधिकांश भाग मस्तिष्क की अपेक्षा पैरों द्वारा सीखा जाता है।” अधिकांश भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल शिक्षण के लिये पर्यटन या भ्रमण विधि को सर्वोत्तम माना है। भ्रमण विधि एक प्रकार से निरीक्षण विधि की पूरक है। निरीक्षण विधि का प्रयोग उस समय ही सफल हो सकता है, जबकि पर्यटन विधि को अपनाया जाये।

एक समय था जबकि पर्यटन विधि का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में कोई नहीं करता था। भूगोल के तथ्य छात्रों को कक्षा में ही नीरस ढंग से बता दिये जाते थे। इस प्रकार भूगोल-शिक्षण का स्वरूप पूर्णतया सूचनात्मक था। शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान के प्रवेश ने भ्रमण विधि को विशेष महत्व दिया। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक पेस्टालॉजी का कथन था कि “पुस्तकों द्वारा प्राप्त किये ज्ञान की अपेक्षा क्षेत्रीय कार्य (Field work) या भ्रमण द्वारा प्राप्त किये गये ज्ञान का अधिक महत्व है।” इसी प्रकार रूसो का विचार भी था कि “पुस्तकें पढ़कर ज्ञान प्राप्त करने की अपेक्षा प्रकृति निरीक्षण द्वारा जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है, वह कहीं अधिक उत्तम तथा श्रेष्ठ होता है।”

भ्रमण विधि से छात्र भौगोलिक वास्तविकताओं से परिचित होते हैं और वे विभिन्न वस्तुओं का निरीक्षण करके ही ज्ञान प्राप्त करते हैं। जेम्स फेयरग्रीव के शब्दों में, “वस्तुओं के सही निरीक्षण पर ही भूगोल का वास्तविक ज्ञान आधारित है । भूगोल का अधिकांश भाग मस्तिष्क की अपेक्षा पैरों द्वारा सीखा जा सकता है।”

भ्रमण-विधि का सर्वाधिक लाभ छोटे बालकों को होता है। वे कक्षा के बाहर जाकर विभिन्न भौगोलिक तथ्यों तथा प्राकृतिक स्थानों को देखते हैं, तो उनमें विशेष उत्साह का संचार होता है। अध्यापक का कर्तव्य है कि वह छात्रों को आस-पास के पर्वत, नदी, पार्क, खेत तथा कारखानों आदि का निरीक्षण कराने के लिये भ्रमण का आयोजन करे।

भ्रमण-विधि से लाभ (Advantage of Field Trip Device) –

इस प्रविधि के निम्नलिखित लाभ है-

(1) यह विधि पर्यावरणीय अध्ययन की निरसता को दूर कर उसे सरस और आकर्षण बनाती है।

(2) प्रमण के द्वारा बालकों की सामान्य बुद्धि का विकास होता है।

(3) यह विधि पाठ्यक्रम के अनुभवों को समृद्ध बनाती है।

(4) इस विधि से बालक सामाजिक वातावरण का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते हैं।

(5) छात्रों को सामाजिक संस्थाओं का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है।

(6) इससे छात्रों की निरीक्षण शक्ति विकसित होती है।

(7) छात्रों की गलत धारणाएँ स्पष्ट होती हैं और उनका ज्ञान पूर्णतया आधुनिक होता है।

(8) भ्रमण के द्वारा मौखिक पाठों की पूर्ति रोचक ढंग से होती है।

(9) भूगोल के प्रति जो छात्र नीरसता अनुभव करता है, वह इस विधि से पर्याप्त दूर हो जाती है।

(10) यह विधि छात्रों की जिज्ञासा को तृप्त करती है।

(11) भ्रमण विधि से छात्र प्रकृति के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आते हैं।

(12) यह विधि कक्षा कार्य की पूरक होती है, जो बातें छात्र कक्षा में ठीक प्रकार नहीं समझ पाते, वे प्रत्यक्ष देखकर सरलता से समझ जाते हैं।

भ्रमण या पर्यटन की योजना (Planning of Excursion)-

भूगोल-शिक्षण में भ्रमण उस समय ही सफल हो सकता है, जबकि एक निश्चित योजना बनाकर उसका प्रयोग किया जाये। इस दृष्टि से अध्यापक को निम्नलिखित बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए-

  1. भ्रमण स्थल का चुनाव(Selection of Field Trip place) –

भ्रमण के लिये सर्वप्रथम अध्यापक को स्थल के चुनाव पर ध्यान देना चाहिए। प्राथमिक स्तर के छात्रों को अधिक दूर के स्थल का भ्रमण नहीं कराया जाये सर्वप्रथम विद्यालय के पास-पड़ौस के वातावरण का ही निरीक्षण कराय जाय । छात्रों को कक्षा के बाहर ले जाकर आस-पास के भौगोलिक वातावरण का परिचय कराया जा सकता है। विद्यालय के आस-पास की भौगोलिक बनावट कैसी है? कौन-कौन सी फसलें खेतों में उगाई जाती है? कौन-कौन से मार्ग गाँव से सम्बन्धित है? पड़ौस में रहने वाले लोगों के उद्योग-धन्धे क्या हैं? आदि प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिये सर्वप्रथम भ्रमण की योजना बनायी जाये।

यूनियर स्तर के छात्रों का ज्ञान प्राथमिक स्तर के छात्रों की अपेक्षा अधिक विस्तृत होता है। अतः छात्रों को वास्तविकता से सीधा सम्पर्क स्थापित कराने के लिये उन्हें एक दिन या दो दिन की यात्रा पर बाहर ले जाया जा सकता है। छात्रों को प्रदेश के प्रमुख उद्योग स्थलों पर ले जाना उचित है। छात्रों को नदी, झील, तथा पर्वत का निरीक्षण कराया जा सकता है। देश के प्रमुख बाँधों, विद्युत योजनाओं आदि के दिखाने के लिये ही भ्रमण की योजना बनायी जा सकती है।

भ्रमण के लिये स्थल वही छाँटा जारये जो भौगोलिक तथ्यों तथा वातावरण से सम्बन्धित हो।

  1. भ्रमण की तैयारी (Preparation of Field Strip)-

भ्रमण स्थल का चुनाव करने के पश्चात् अध्यापक द्वारा छात्रों को भ्रमण का उद्देश्य बता देना चाहिए। भ्रमण के विषय में छात्रों को पर्याप्त काल पूर्व सूचना देना उचित है, जिससे वे ठीक प्रकार से भ्रमण कर सर्कें।

  1. आवश्यक सामग्री (Necessary Meterial)-

भ्रमण में जिन वस्तुओं का उपयोग करना हो उनकी सर्वप्रथम सूची बना ली जाये; जैसे- नोटबुक, पेन्सिल, पानी की बोतलें, मानचित्र, ग्राफ पेपर, दूर-दर्शन यन्त्र, प्राथमिक चिकित्सा का सामान आदि।

  1. पर्यटन का मूल्यांकन (Evaluation of Field Trip) –

पर्यटन का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना ही न हो। भ्रमण करने के पश्चात् उसका उचित ढंग से मूल्याकन भी किया जाये। जिन-जिन भौगोलिक स्थलों का छात्रों ने निरीक्षण किया हो, उन पर अध्यापक को प्रश्न अवश्य करने चाहिए। आवश्यकतानुसार वाद-विवाद भी किया जा सकता है और पर्यटन पर निबन्ध भी लिखाया जा सकता है।

भ्रमण की योजना तथा आवश्यकता सावधानियाँ (Planning of Field Trip & Necessary Precaution)-

(I) छात्रों को जिस स्थान का भ्रमण कराना हो वहाँ यह देखना आवश्यक है कि क्या वहाँ जाने से शिक्षण का उद्देश्य पूरा होता है।

(2) यह पहले से निश्चित कर लिया जाये कि भ्रमण के समय कितना किन वस्तुओं या स्थलों का भ्रमण करना है।

(3) भ्रमण का काल निश्चित कर लेना चाहिए।

(4) प्राथमिक स्तर के छात्रों को सर्वप्रथम आस-पास का ही भ्रमण कराया जाये।

(5) भ्रमण अधिक व्ययपूर्ण न हो।

(6) भ्रमण के समय छात्रों को प्रश्न करने या किसी तथ्य को समझने की पूरी-पूरी छूट दी जाये।

(7) छात्रों को निरीक्षण के पूरे-पूरे अवसर दिये जायें।

(8) यदि किसी कारखानें, मिल, न्यायालय आदि को छात्रों को ले जाकर दिखाना है, तो प्रबन्धकों से पहले बात-चीत कर ली जाये।

(9) अन्त में प्रमण का उचित ढंग से मूल्यांकन किया जाये।

बाह्य अध्ययन (Outdoor Study)

बालक विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किसी पर्यावरणीय उद्देश्य (वस्तु के बारे में) अध्ययन करते हैं; जैसे झील, नदी, गुफा, मिट्टी का टीला, गाँव का दृश्य। बाह्य अध्ययन में दल के सदस्यों में योजनाबद्ध कार्य करने तथा सहयोग की भावना से कार्य करने की आवश्यकता होती है। बालक किसी अध्ययन के बारे में तैयारी करते हैं, योजना बनाते हैं, क्षेत्रीय कार्य करते हैं और निरीक्षण के आधार पर निष्कर्ष निकालते हैं।

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