बुनियादी शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त | basic principles of basic education in Hindi
बुनियादी शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त | basic principles of basic education in Hindi
बुनियादी शिक्षा (वर्धा योजना) के आधारभूत सिद्धान्त
(Fundamental Principles of Basic Education)
बुनियादी शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
(1) निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा (Free and Compulsory Education)- गाँधीजी ने भारत के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की।
(2) जनसाधारण की शिक्षा (Education of the Masses)- भारत की अधिकांश साधारण जनता अज्ञानता के अन्धकार से आवृत्त है। यही कारण है कि बुनियादी शिक्षा का सर्वप्रथम सिद्धान्त जनसाधारण को शिक्षित बनाना निर्धारित किया गया है। इस प्रकार, गाँधीजी के निम्नांकित कथन के अनुसार कार्य किया जा रहा है- “जनसाधारण की अशिक्षा भारत का पाप और कलंक है। अत: उसका अन्त किया जाना अनिवार्य है।”
(3) स्वावलम्बी शिक्षा (Self-Supporting Education)- गाँधीजी ने बुनियादी शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त की ओर संकेत करते हुए कहा-“सच्ची शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि शिक्षा से पूँजी के अतिरिक्त वह सब धन मिल जाना चाहिए, जो उसे प्राप्त करने में व्यय किया जाये।”
बुनियादी शिक्षा के इस स्वावलम्बी पहलू के प्रति विशेष ध्यान देकर उसे स्वावलम्बी बनाया गया है। डॉ० एम० एस० पटेल के अनुसार, बुनियादी शिक्षा दो प्रकार से स्वावलम्बी है-(i) बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने वाला बालक किसी हस्तशिल्प को सीखकर, उसे अपने भावी जीवन के निर्वाह का साधन बनाए और (ii) विद्यालय के बालकों द्वारा बनाई जाने वाली वस्तुओं को बेचकर, अध्यापकों को वेतन दिया जाये। इस प्रकार, बालक अपने विद्यालय-जीवन और भावी जीवन दोनों में अपने ऊपर निर्भर होकर, स्वावलम्बी बन सकता है।
(4) शिक्षा का माध्यम, ‘मातृभाषा’ (Mother-Tongue as Medium of Instruction)- बुनियादी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा है। इतिहास हमें बताता है कि किसी देश की संस्कृति का विनाश करने के लिए, उसके साहित्य का विनाश किया जाता है। इसी सिद्धान्त का अनुगमन करके, अंग्रेजों ने हमारे देश में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया। बुनियादी शिक्षा में अंग्रेजी को कोई स्थान नहीं दिया जाता है और मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया है।
(5) शारीरिक श्रम (Manual Labour)- बुनियादी शिक्षा में हस्तशिल्प के माध्यम से शारीरिक श्रम को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है। इससे अग्रांकित चार लाभ होते हैं-(i) इससे बालकों की शिक्षा का व्यय निकल आता है; (ii) इससे उनको किसी व्यवसाय का प्रशिक्षण प्राप्त हो जाता है; (iii) इससे उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न होता है और उनमें शारीरिक श्रम के प्रति घृणा नहीं रह जाती है; और (iv) गाँधीजी के शब्दों में- “बालक के शरीर के अंगों का विवेकपूर्ण प्रयोग उसके मस्तिष्क को विकसित करने की सर्वोत्तम और शीघ्रतम् विधि है।”
(6) सामाजिक शिक्षा (Social Education)- बुनियादी शिक्षा के द्वारा एक ऐसे समाज का नव-निर्माण करने का प्रयत्न किया जा रहा है, जो स्वार्थ एवं शोषण विहीन हो, जो प्रेम एवं न्याय पर आधारित हो, और जिसके मूलमन्त्र सत्य एवं अहिंसा हों। यही कारण है कि बुनियादी विद्यालयों में बालकों को इसी प्रकार के समाज में रहने का प्रशिक्षण दिया जाता है। रायबर्न (Ryburn) का कथन है-“बुनियादी विद्यालय एक वास्तविक सामाजिक इकाई बन जाता है और बच्चों को साथ-साथ रहने की कला का वास्तविक प्रशिक्षण मिलता है।”
(7) हस्तशिल्प की शिक्षा (Training in Handicraft)- बुनियादी शिक्षा में हस्तशिल्प का केन्द्रीय स्थान है और सब विषयों की शिक्षा उसी के माध्यम से दी जाती है। हस्तशिल्प को केन्द्रीय स्थान प्रदान करने का कारण गाँधीजी के निम्नलिखित शब्दों में विदित हो जाता है- “साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है। अतः मैं बच्चे की शिक्षा उसे एक उपयोगी हस्तशिल्प सिखाकर और जिस समय से वह अपनी शिक्षा आरम्भ करता है, उसी समय से उत्पादन करने के योग्य बनाकर आरम्भ करना चाहता हूं।”
शिक्षाशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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