चर के प्रकार | गुणात्मक चर एवं मात्रात्मक चर | Types of Variables in Hindi
चर के प्रकार | गुणात्मक चर एवं मात्रात्मक चर | Types of Variables in Hindi
पीछे स्पष्ट किया जा चुका है कि मापन के द्वारा वस्तुओं या व्यक्तियों के समूहों की विभिन्न विशेषताओं या गुणों का अध्ययन किया जाता है। इन विशेषताओं अथवा गुणों को चर राशि या चर (Variables) कहते हैं। अतः कोई चर बह गुण या विशेषता है जिसमें समूह के सदस्य परस्पर कुछ न कुछ भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए किसी समूह के सदस्य भार, लम्बाई, बुद्धि व आर्थिक स्थिति आदि में भिन्न-भिन्न होते हैं, इसलिए भार, लम्बाई, बुद्धि तथा आर्थिक स्थिति को चर कहा जायेगा। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि चर के आधार पर किसी समूह के सदस्यों को कुछ उपसमूहों में बाटा जा सकता है। यहाँ पर यह बात ध्यान रखने की है कि चर राशि पर समूह के समस्त सदस्यों का एक दूसरे से भिन्न होना आवश्यक नहीं है। यदि समूह का केवल एक सदस्य भी किसी गुण के प्रकार या मात्रा में अन्यों से भिन्न है तब भी उस गुण को चर के नाम से सम्बोधित किया जायेगा। चरों के सम्बन्ध में एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई गुण किसी एक समूह के लिए चर राशि हो सकता है जबकि दूसरे समूह के लिए स्थिर या अचर राशि (Constant) हो सकता है। जैसे लिंग भेद एक ऐसे समूह के लिए, जिसमें पुरुष तथा महिलाएं दोनों ही है, चर राशि है परन्तु केवल महिलाओं अथवा केवल पुरुषों वाले समूह के लिए एक स्थिर या अचर राशि है।
चर दो प्रकार के होते हैं-
- गुणात्मक चर (Qualitative Variables) तथा
- मात्रात्मक चर (Quantitative Variables)
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गुणात्मक चर (Qualitative Variables)
गुणात्मक चर वे चर है जो गुण के विभिन्न प्रकारों को इंगित करते हैं। इनके आधार पर समूह के सदस्यों को कुछ स्पष्ट वर्गों या श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति इनमें से किसी एक वर्ग या श्रेणी का सदस्य होता है। जैसे व्यक्तियों के किसी समूह को लिंगभेद के आधार पर पुरुष या महिला वर्गों में, छात्रों को उनके अध्ययन विषयों के आधार पर कला, विज्ञान व वाणिज्य वर्गों में अथवा किसी शहर के निवासियों को उनके धर्म के आधार पर हिन्दू, मूस्लिम, सिख व ईसाई वर्गों में बाटा जा सकता है। इन उदाहरणों में लिगरभेद, अध्ययन वर्ग व धर्म गुणात्मक प्रकार के चर हैं क्योंकि ये सम्बन्धित गुण के प्रकारों से बने विभिन्न वर्गों को अभिव्यक्त करते हैं ।
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मात्रात्मक चर (Quantitative Variables)
मात्रात्मक चर वे चर हैं जो गुण की मात्रा को व्यक्त करते है। इन चरों पर समूह के विभिन्न व्यक्ति भिन्न-भिन्न मात्रा में मान प्राप्त कर सकते हैं। जैसे छात्रों के किसी समूह के लिए परीक्षा प्राप्तांक, स्कूलों के किसी समूह के लिए छात्र संख्या अथवा व्यक्तियों के किसी समूह के लिए मासिक आय को संख्याओं के द्वारा इंगित किया जाता है। इन उदाहरणों में प्राप्तांक, छात्र संख्या व मासिक आय मात्रात्मक चर हैं। क्योंकि ये सम्बन्धित गुण की मात्रा को बताते हैं।
मात्रात्मक चरों को पुनः दो भागों में बाँटा जा सकता है –
(i) सतत् चर (Continuous Variables)
(ii) असतत् चर (Discrete Variables)
(i) सतत् चर (Continuous Variables) – सततू चर वे चर हैं जिनके लिए किन्हीं भी दो मानों के बीच का प्रत्येक मान धारण करना सम्भव होता है। जैसे भार व लम्बाई सतत चर हैं। व्यक्तियों का भार कुछ भी हो सकता है। भार के लिए यह आवश्यक नहीं कि याह पूर्णांक में ही हो। अतः किसी व्याक्त का भार 57.34 किग्रा. (अथवा इससे भी अधिक दशमलव अंकों में) हो सकता है। अतः भार एक सतत चर है। इसी प्रकार से लम्बाई एक सतत चर है। स्पष्ट है कि सतत चर किसी एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु के बीच कोई भी मान प्राप्त कर सकते हैं।
(ii) असतत् चर (Discrete Variables) -असतत् चर को खण्डित चर भी कहते हैं यह वे चर हैं जिनके लिए किन्ही दो मानों के बीच के प्रत्येक मान धारण करना सम्भव नहीं होता है। जैसे परिवार में बच्चों की संख्या पूर्णांकों में ही हो सकती है। किसी परिवार में बच्चों की संख्या 3.5 या 8.7 होने की संकल्पना नहीं की जा सकती है। अतः परिवार में बच्चों की संख्या एक असतत चर है। इसी प्रकार से पुस्तक में पृष्ठों की संख्या अथवा विद्यालय में कमरों की संख्या एक असतत् चर है। स्पष्ट है कि असतत चर का मान केवल पूर्णांक संख्याएं ही हो सकती हैं।
शिक्षा शास्त्र, समाज शास्त्र तथा मनोविज्ञान के अधिकांश चर प्रायः सतत चर होते हैं। जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है, सतत चर सैद्वान्तिक सीमा के अन्दर कोई भी मान प्राप्त कर सकता है तथापि व्यवहार में प्रायः सतत चरों को भी किसी सुविधाजनक इकाई से छोटी इकाई में व्यक्त नहीं करते हैं। जैसे भार को प्रायः किग्रा में, ऊंचाई को सेमी में अथवा बुद्धिलब्धि को पूर्णांक में व्यक्त करते हैं परंतु भार को किग्रा व ग्राम में, ऊँचाई को सेमी व मिमी में तथा बुद्धिलब्धि को दशमलव अंकों में भी लिखा जा सकता है। अतः यदि कहा जाये कि अमुक छात्र की ऊँचाई 144 सेमी है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उस छात्र की ऊँचाई ठीक 144 सेमी है वरन यह है कि उस छात्र की ऊँचाई को सेमी में सन्निकट करने पर 144 सेमी है जिसका अर्थ है कि उस छात्र की ऊँचाई 143.5 से लेकर 144.5 सेमी के बीच है। स्पष्ट है कि 143.5 सेमी से लेकर 144.5 सेमी को 144 से व्यक्त करेंगे तथा 143.5 को 144 की निम्न सीमा (Lower Limit) तथा 142.5 को 142 की उच्च सीमा (Upper Limit) कहा जायेगा। किसी अंक की निम्न व उच्च सीमाओं के बीच के सभी मानों को उस अंक से व्यक्त करते हैं। ठीक यही बात छात्रों को प्रदान किये जाने वाले अंकों के लिए है। उदाहरणार्थ यदि किसी छात्र को 75 अंक प्रदान किये जाते हैं तो इसका अर्थ है कि उस छात्र के 74.5 से लेकर 75.5 के बीच हैं।
सतत चरों के सम्बन्ध में उपरोक्त का अर्थ यह कदापि नहीं है कि सतत चरों को दशमलव संख्याओं के द्वारा इंगित नहीं किया जाता है। सतत चरों को आवश्यकतानुसार दशमलव संख्याओं के द्वारा भी व्यक्त किया जाता है जैसे लम्बाई को वन्नियर कैलीपर्स के द्वारा सेमी में दशमलव के दो स्थानों तक नापा जा सकता है। अतः किसी वस्तु की लम्बाई 25,43 सेमी हो सकती है परन्तु इसकी भी उच्च सीमा व निम्न सीमा हैं। वास्तव में 25.43 सेमी के द्वारा 25.425 से लेकर 25.435 सेमी की सभी लम्बाइयों को व्यक्त किया जायेगा सतत चरों को किसी भी परिमार्जितता से क्यों न मापा जायें, सदैव ही उनकी व्यक्त माप की उच्च व निम्न सीमाएं अवश्य होंगी।
यहाँ यह स्पष्ट करना भी आवश्यक प्रतीत हो रहा है कि असतत चर के मापन में प्रयुक्त संख्याएं यथार्थ संख्याएं (Exact Numbers) प्रकृति की होती है जबकि सतत चर के मापन में प्रयुक्त संख्याएं निकटस्थ संख्याएं (Approximate Numbers ) होती है। जैसे यदि कहा जाये कि किसी सर्वेक्षण में 175 व्यक्तियों से सूचनाए सकलित की गई थी तब 175 की यह संख्या एक यथार्थ संख्या है क्योंकि इसमें त्रुटि की कोई संभावना नहीं है। परन्तु यदि ऊंचाई को पूर्ण सेमी में मापते हुए कहा जाये कि अमुक व्यक्ति की ऊँचाई ।75 सेमी. है तब इसका अर्थ 174.5 से 175.5 सेमी. के बीच की कोई भी ऊँचाई हो सकता है। वस्तुतः सतत चरो की माप सदैव ही निकटस्थ संख्याओं के रूप में होती है। विस्तृत यथार्थता (Detailed Accuracy) की आवश्यकता न होने पर कभी-कभी असतत चर की माप को निकटस्थ संख्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तब यथार्थ संख्या की यथार्थता कम हो जाती है। ऐसे समंकों को अल्पित समक (Degraded Data) कहते हैं। जैसे सन् 1991 की जनगणना में प्राप्त भारत की जनसंख्या, जो 84,39,30861 थी, को केवल 84 करोड़ कहना अल्पित समंक का एक उदाहरण है।
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