शिक्षाशास्त्र / Education

भारतीय करारोपण के सुधार के बारे में शिक्षा के विभिन्न प्रतिफलों को स्पष्ट कीजिए

भारतीय करारोपण के सुधार के बारे में शिक्षा के विभिन्न प्रतिफलों को स्पष्ट कीजिए

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शिक्षा के विभिन्न प्रतिफल

  1. वैकल्पिक लागत (Optional Cost)-

शिक्षा की वैकल्पिक लागत में वे सभी यार्थाथ संसाधन सम्मिलित होते हैं जिन्हें उपयोग शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया में किया जाता है। जहाँ इन संसाधनों को धन के रूप में नहीं मापा जा सकता वहाँ उनके वैकल्पिक उपयोग में मिलने वाले मूल्य के रूप में उनकी अनुमानित लागत सम्मिलित की जा सकती है। इसका एक स्पष्ट उदाहरण है छात्रों का समय जो वे शिक्षा प्राप्त करने लिए लगाते हैं। इस समय की वैकल्पिक लागत निकालने के लिए हमें यह मालूम करना होगा कि यदि यही समय वे किसी वैतनिक कार्य करने के लिए लगाते तो उन्हें क्या आर्थिक लाभ होता। कुछ विद्वान वैकल्पिक लागत’ पद का प्रयोग ऐसे संसाधनों का मूल्य व्यक्त करने के लिए करते हैं जो खरीदे या बेचे नहीं जाते, बल्कि उनका मूल्य त्यागी गई आय या अन्य माप द्वारा आंका जाता है। वस्तुतः ‘वैकल्पिक लागत’ के अन्तर्गत सभी संसाधनों का समावेश होता है चाहे वे बेचे और खरीदे गये हों अथवा नहीं। वेतन रहित मानव का सक्रिय योगदान इसी श्रेणी में आता है।

  1. पूँजीगत तथा आवर्ती लागत (Capital and Recurrent Costs)-

शिक्षा की लागत में चालू तथा पूंजीगत व्यय-दोनों ही सम्मिलित किये जाते हैं। इनमें महत्वपूर्ण अन्तर है। आवर्ती अथवा चालू व्यय में उपभोग्य वस्तुओं (जैसे पुस्तकें, स्टेशनरी इत्यादि) पर तथा ऐसी सेवाओं पर व्यय सम्मिलित है जिनसे जल्दी ही लाभ मिलता है तथा उन्हें नियमित रूप से नवीन करना होता है। पूंजीगत व्यय के अन्तर्गत भवन, मशीनें आदि ऐसी स्थायी वस्तुओं की खरीद आती है जो लम्बी अवधि तक लाभ देती है। पूंजीगत माल की खरीद को निवेश कहा जा सकता है।

शिक्षा अर्थशास्त्रियों के अनुसार चालू तथा पूंजीगत दोनों ही व्यय को यार्थाथ अथवा चालू मूल्य या स्थिर मूल्य स्तर के रूप में मापा जा सकता है। उदाहरणार्थ शिक्षा व्यय की प्रवृत्ति का विश्लेषण यथार्थ व्यय की प्रवृत्ति के रूप में अथवा स्थिर क्रयशील के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

  1. औसत तथा सीमान्त लागत (Average and Marginal Costs)-

लागत विश्लेषण के अन्तर्गत शिक्षा की कुल लागत का अथवा प्रति इकाई लागत का अध्ययन किया जा सकता है। प्रति इकाई लागत के अन्तर्गत एक छात्र की शिक्षा पर लगी लागत को मापा जाता है। प्रति इकाई लागत को मापने की दो विधियाँ हैं। यदि एक शिक्षण-संस्था के कुल छात्रों की शिक्षा की लागत को उस संस्था के कुल छात्रों की संख्या से विभाजित किया जाये तो इससे प्रति छात्र औसत लागत निकल आती है। विकल्प के रूप में यदि स्नातक शिक्षा पर लगी लागत स्नातक कक्षा-के कुल छात्रों की संख्या से विभाजित कर दिया जाए तो इससे प्रति यदि स्नातक शिक्षा पर लगी लागत को स्नातक कक्षा के कुल छात्रों की संख्या से विभाजित कर स्नातक औसत् लागत ज्ञात हो जाती है। ये दोनों ही प्रति इकाई लागत के उदाहरण हैं। समय के सन्दर्भ (जैसे औसत आय प्रति छात्र इत्यादि) में भी औसत लागत निकाली जा सकती है।

प्रायः लागतों का नियत तथा परिवर्तनीय होना समय की अवधि पर निर्भर करता है। अल्प-अवधि में अध्यापकों तथा भवनों की लागत नियत हो सकती है यद्यपि पुस्तकों, स्टेशनरी तथा अन्य सामग्री की संख्या छात्र – संख्या के साथ-साथ बढ़ सकती है। दीर्घ-अवधि में नियुक्त किए गए अध्यापकों की संख्या परिवर्तनशील हो सकती है। दीर्घ-अवधि की सीमान्त लागत की अपेक्षा शिक्षा की अल्प-अवधि की सीमान्त लागत निम्न रहने की सम्भावना रहती है। छात्र संख्या में अतिरिक्त वृद्धि के कारण अतिरिक्त लागत में वृद्धि होना भी इस बात पर निर्भर करेगा कि परिवर्तन किस परिणाम में करना है। एक अतिरिक्त छात्र के प्रवेश के कारण अतिरिक्त लागत को मापना असम्भव हो सकता है। परन्तु 50 अथवा 100 अतिरिक्त छात्रों के कारण लागत में अतिरिक्त लागत को मापना पूर्णतः सम्भव हो सकता है, विकल्प के रूप में 50 या 100 छात्रों की संख्या कम करने के कारण सीमान्त बचत को भी मापा जा सकता है। यहाँ पर यह बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि यूनाइटेड किंगडम में विदेशी छात्रों की सीमान्त लागत के अध्ययन में बताया गया है कि- स्पष्ट विदेशी छात्रों के विषय में सीमान्त लागत अथवा सीमान्त बचत जैसी कोई बात नहीं है। सीमान्त लागत तथा सीमान्त बचत पृथक संख्या नहीं है बल्कि क्रमगत कार्य है। 100 अतिरिक्त छात्रों की सीमान्त लागत शून्य हो सकती है जबकि 200 अतिरिक्त छात्रों की सीमान्त पर्याप्त अधिक हो सकती है। इसके अतिरिक्त 1000 अतिरिक्त छात्रों की सीमान्त लागत 500 छात्रों की सीमान्त लागत से दोगुनी नहीं होती है। सीमान्त बचत पर भी यह बात लागू होती हैं।

“कम विदेशी छात्रों की दीर्घ-अवधि की सीमान्त बचत अधिक विदेशी छात्रों की दीर्घ- अवधि सीमान्त लागत के एकदम प्रतिलोम नहीं है। कम विदेशी छात्रों की सभी सम्भावित बचतों को मालूम करने में वर्षों लग सकते हैं।”  -ब्लाग

इस प्रकार नियत तथा परिवर्तनशील लागतों का परस्पर अनुपात सीमान्त तथा औसत लागतों के सम्बन्ध को निर्धारित करता है। आकार तथा औसत एवं सीमान्त लागतों में निम्नलिखित तीन सम्बन्ध है।

(1) समानुपातिक प्रतिफल का आयलर (Constant Returns to Scale)- इसके अन्तर्गत औसत सीमान्त लागतें समान होती है तथा औसत तथा औसत लागत पूर्ववत् रहती है, चाहे इकाइयों की संख्या में भले ही परिवर्तन हो जाए।

(2) परिमाण मूलक सुलाभ (बड़े पैमाने की किफयतें ) ( Economics of Scale ) – इसके अन्तर्गत इकाई- संख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप औसत लागत गिर जाती है क्योंकि औसत लागत की अपेक्षा सीमान्त लागत कम होती है।

(3) परिमाण मूलक सुलाभ (Dis-economies of Scale )- इसके अन्तर्गत औसत लागत की अपेक्षा सीमान्त लागत अधिक आ है, अतः इकाइयों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ औसत लागत भी बढ़ती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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