दूरस्थ शिक्षा के उत्थान में केन्द्र सरकार की भूमिका

दूरस्थ शिक्षा के उत्थान में केन्द्र सरकार की भूमिका | Role of Central Government in the upliftment of distance education in Hindi

दूरस्थ शिक्षा के उत्थान में केन्द्र सरकार की भूमिका | Role of Central Government in the upliftment of distance education in Hindi

दूरस्थ शिक्षा के उत्थान में केन्द्र सरकार की भूमिका

केन्द्र सरकार दूरस्थ शिक्षा के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । दूरस्थ शिक्षा के उत्थान में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, राज्य मुक्त विश्वविद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय

मानव संसाधन विकास मंत्रालय दो भागों में विभाजित हैं- 1. स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग 2. उच्च शिक्षा विभाग तथा छात्रवृत्ति । स्कूली शिक्षा के अन्तर्गत प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा तथा साक्षरता आदि आते हैं। उच्च शिक्षा विभाग विश्वविद्यालय शिक्षा, तकनीकी शिक्षा तथा छात्रवृत्ति से सम्बन्धित है। केन्द्र सरकार यू.जी.सी. को अनुदान देती है और देश में केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करती है। केन्द्र सरकार ही यू.जी.सी. की सिफारिश पर शैक्षिक संस्थाओं को विश्वविद्यालय घोषित करती है। देश की मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में राज्य मुक्त विश्वविद्यालय, शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाएं तथा विश्वविद्यालय और पारम्परिक दोहरी पद्धति वाले विश्वविद्यालय में पत्राचार पाठ्यक्रम संस्थाएं शामिल हैं । दूरस्थ शिक्षा, कौशल उन्नयन तथा शैक्षिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण होती जा रही है। केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित संस्थाओं के माध्यम से दूरस्थ शिक्षा के उत्थान में सशक्त भूमिका निभा रही है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना 1948 में की गई थी। 1952 में केन्द्र सरकार ने यह फैसला किया कि सभी केन्द्रीय विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षा के संस्थानों के लिए सार्वजनिक ढंग से अनुदान सहायता के आवंटन से संबंधित मामलों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भेजा जाए। औपचारिक रूप से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना 1956 में हुई थी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अपने ऊपर शिक्षा से संबंधित सभी जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभा रहा है और यह शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने में सफल रहा है।

इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय

इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना 1985 में की गई। यह अनेक अर्थो में अन्य भारतीय खुले विश्वविद्यालयों से भिन्न और विशिष्ट है। यह विश्वविद्यालय पूर्ण रूप से स्वायत्तशासी विश्वविद्यालय है। यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के क्षेत्र से बाहर है। इसका सम्पूर्ण वित्तीय भार केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय वहन करता है। इन्दिरा गाँधी मुक्त विद्यालय में अनेक विभाग हैं, जिन्हें स्कूलों की संज्ञा दी गई है। ये स्कूल अपने-अपने क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम चलाते हैं। इन पाठ्यक्रमों के संचालन के लिए देश-विदेश में 2011 तक 61 क्षेत्रीय केन्द्र (Regional Centres), 7 उपक्षेत्रीय केन्द्र और अध्ययन केन्द्र (Study Centres) स्थापित किये जा चुके हैं। प्रत्येक क्षेत्रीय केन्द्र के अन्दर उसके आस-पास के उच्च शिक्षा केन्द्रों में अध्ययन केन्द्र (Study Centres) स्थापित हैं। प्रत्येक केन्द्र में एक पार्ट टाईम संयोजक और आवश्यकतानुसार अनेक पार्ट टाईम प्राध्यापक नियुक्त हैं। इन अध्ययन केन्द्रों से अभ्यर्थियों को मुद्रित सामग्री प्रदत्त की जाती है। सम्पर्क कार्यक्रम चलाए जाते हैं, और परीक्षा सम्पादित की जाती है। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के विभिन्न स्कूलों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार के डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वर्तमान में निम्नलिखित पाठ्यक्रमों की व्यवस्था है- जैसे- बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री, डिप्लोमा कोर्स, पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स, एडवांस डिप्लोमा कोर्स, सर्टिफिकेट कोर्स इत्यादि। अतः यह कहा जा सकता है कि इन्दिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

दूरस्थ शिक्षा परिषद्

दूरस्थ शिक्षा परिषद् का निर्माण 1991 में हुआ था। दूरस्थ शिक्षा परिषद् खुली शिक्षा प्रणाली के विकास में मदद करता है तथा शिक्षा की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करता है। यह शिक्षा परिषद्, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय का एक भाग है। दूरस्थ शिक्षा परिषद का कार्य दूरस्थ अध्ययन प्रणालियों को बढ़ावा देना है, दूरस्थ शिक्षा परिषद् देश में मुक्त शिक्षा दूरस्थ शिक्षा संस्थाओं को तकनीकी और वित्तीय सहायता देता है। तकनीकी सहायता में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु कम्प्यूटरीकरण, व्यावसायिक विकास और प्रशिक्षण द्वारा सहायता सेवाएं तथा संस्थागत सुधार आदि शामिल हैं। वित्तीय सहायता में राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों व अन्य मुक्त व दरस्थ अध्ययन, संस्थानीं को वित्तीय सहायता देना, अनुसंधान अनुदान, अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनो में भाग लेने के लिए अनुदान व विभिन्न संस्थाओं को सेमिनार आयोजन करने हेतु निधियां उपलब्ध करवाना शामिल है।

राज्य मुक्त विश्वविद्यालय

रोज्य स्तर पर सन् 1982 में प्रथम मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना आंध्र प्रदेश में की गई थी। इसके पश्चात सन् 1985 में इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना आन्ध्र प्रदेश में की गई थी। इसके पश्चात् सन् 1985 में इन्दिरा गांधी मृक्त विश्वविद्यालय की स्थापना हुई यह सबसे खुला विश्वविद्यालय है। भारत में अभी तक 14 मृक्त विश्वविद्यालय हैं, जो पारम्परिक विषयों जैसे की बी.ए., बी.कॉम, बी.एस.सी.,बी.एड. एम.एड., एल. एल. बी. के अतिरिक्त अन्य पाठ्यक्रमों जैसे कि अंग्रेजी शिक्षण में डिप्लोमा, बैकिंग, श्रम अधिनियम, निजी प्रबंधन, जनसंपर्क, पत्रकारिता, पुस्तकालय विज्ञान, पर्यटन तथा होटल प्रबंधन, सहयोग तथा ग्रामीण अध्ययन में डिप्लोमा आदि का संचालन कर रहे हैं। यह विश्वविद्यालय उन लोगों की जरूरतें पूरी करते हैं जो विभिन्न कारणों से नियमित पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने में असमर्थ हैं। भारत में अभी तक 14 मुक्त विश्वविद्यालय हैं तथा इनमें एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है। मुक्त विश्वविद्यालयों की सूची-

  1. इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (दिल्ली)
  2. डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय आन्ध्रप्रदेश
  3. वर्धमान महावीर मुक्त विश्वविद्यालय कोटा (राजस्थान)
  4. नालन्दा मुक्त विश्वविद्यालय-बिहार (पटना)
  5. यशवन्त राव चौव्हाण मुक्त विश्वविद्यालय- (महाराष्ट्र) नासिक
  6. मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय – मध्यप्रदेश (भोपाल)
  7. डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय-गुजरात (अहमदाबाद)
  8. कर्नाटक स्टेट मुक्त विश्वविद्यालय कर्नाटक (मैसूर)
  9. नेताजी सुभाष मुक्त विश्वविद्यालय पश्चिम बंगाल (कोलकाता)
  10. यू.पी. राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश इलाहाबाद
  11. तमिलनाडु मुक्त विश्वविद्यालय-चेन्नई
  12. पं. सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय-छत्तीसगढ़
  13. उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय उत्तराखंड (नैनीताल)
  14. के. के. हान्डीक स्टेट विश्वविद्यालय, असम (गुवाहाटी)
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