इतिहास / History

शाहजहाँ का शासन-काल मुगल इतिहास का स्वर्ण-युग ? | शाहजहाँ के शासन-काल की मुगल शासन का गौरव-काल कहा जाता है

शाहजहाँ का शासन-काल मुगल इतिहास का स्वर्ण-युग ? | शाहजहाँ के शासन-काल की मुगल शासन का गौरव-काल कहा जाता है

शाहजहाँ का शासन-काल मुगल इतिहास का स्वर्ण-युग ?

शाहजहाँ का काल स्वर्ण-काल था अथवा नहीं इस विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। कुछ विद्वान् उसके काल को गौरव-युग पुकारते हैं और कुछ उसके शासन-काल को स्वर्ण-युग मानने के लिए तत्पर नहीं हैं।

स्वर्ण-युग नहीं था

स्मिथ आदि विद्वान उसके काल को स्वर्ण युग मानने के लिए तैयार नहीं हैं। इस सम्बन्ध में वे निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करते हैं-

(1) आर्थिक ढाँचे का नष्ट होना- शाहजहाँ ने अत्यधिक धन भवनों के निर्माण और व्यर्थ के युद्धों में व्यय किया था। इसके फलस्वरूप आर्थिक ढाँचा बिगड़ता चला गया। सम्राट तथा अमीरों को फिजूलखर्ची और विलासप्रियता ने प्रजा को अपेक्षाकृत निर्धन बना दिया था। लोगों पर कर भार बहुत अधिक हो गया था। स्मिथ लिखते हैं-

“An insupportable burden wad laid upon the agricultural and industrial masses……Thus wad engendered the national insolvency.” -Smith.

(2) सैनिक दुर्बलता का काल- शाहजहाँ एक महान् सेनापति और कुशल संगठनकर्ता नहीं था। डॉ० स्मिथ ने लिखा है। सेनापति के नाते उसमें योग्यता बहुत ही कम थी। उनके शब्दों में-“He had little skill as a military leader.” -Dr. Smith.

शाहजहां के युग में सैनिक दृष्टि से मुगल साम्राज्य को बहुत बड़ा धक्का लगा। उसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा नीति और मध्य एशिया नीति सैनिक दृष्टि से बहुत हानिकारक रही। उसकी असफलता का लाभ मराठों ने उठाया। कन्धार के हाथ से निकल जाने के कारण मुगल साम्राज्य पुनः संभल नहीं सका । दक्षिण में मुगल साम्राज्य का विस्तार अवश्य हुआ, परन्तु उसका परिणाम अच्छा नहीं निकला।

(3) शासन-प्रबन्ध विश्रृंखलता का काल- कुछ इतिहासकारों का मत है कि शाहजहाँ के काल में शासन का संगठन बहुत अधिक बिगड़ गया था। अकबर ने जो सुदृढ़ व्यवस्था की थी, वह शाहजहाँ के काल में नहीं रही थी। यद्यपि यह ठीक है कि साम्राज्य में शान्ति थी, परन्तु फिर भी कुछ ऐसा भाग था जहाँ प्रान्तीय गवर्नर जनता पर तरह-तरह के अत्याचार किया करते थे। यद्यपि शाहजहाँ जनता से पुत्रवत् प्रेम करता था, परन्तु वह कुछ गवर्नरों पर इतना अधिक नियन्त्रण नहीं रख सकता था कि वे उसकी समस्त बातों को स्वीकार करते। यह गवर्नर अत्यधिक अत्याचारी थे । फलस्वरूप कुछ क्षेत्रों में शासन विश्वखलित हो गया था।

(4) धार्मिक असहिष्णुता का काल- शाहजहाँ कट्टर सुन्नी था और उसने असहिष्णुता नीति का पालन किया था। यद्यपि उसने कुछ हिन्दुओं को सरकारी कर्मचारी रखा था परन्तु हिन्दुओं के प्रति उसका व्यवहार अच्छा नहीं था। कहा जाता है कि अपने शासन के प्रारम्भिक काल में शाहजहाँ ने बने हुए हिन्दुओं के मन्दिरों को तोड़ने की आज्ञा दे दी थी आर केवल बनारस में ही 72 मन्दिर तोड़ दिये गये थे। हिन्दुओं पर उसने पुनः तीर्थयात्रा कर लगा दिया था और बहुत से हिन्दू इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिये बाध्य किये गये थे।

शाहजहाँ दक्षिण के शिया राज्यों से घृणा करता था और इसलिए ये राज्य उसके प्रबल विरोधी हो गये थे। एक इतिहासकार ने लिखा है, उसके युग को स्वर्णयुग के नाम से पुकारा जा सकता है। जिसके युग में सभी धर्म जाति में लोगों के साथ समता का व्यवहार किया जाय। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्य के अनुसार उन्नति करने का अवसर मिले और सभी व्यक्ति राज्य का पूर्ण रक्षण प्राप्त कर सकें। इस दृष्टि से शाहजहाँ के काल को स्वर्ण-युग कहना अनुचित होगा।

स्वर्ण-युग था

अनेक तत्कालीन इतिहास लेखक जैसे राय बिहारी लाल, सफी खाँ और कुछ यूरोपीय व्यक्ति जैसे एलिफिंस्टन, बर्नियर आदि शाहजहाँ के काल को स्वर्ण-युग मानते हैं। मनूषी और लेनपूल आदि भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं । इस सम्बन्ध में ये विद्वान् निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करते हैं-

(1) शान्ति तथा सुव्यवस्था का बल- शाहजहाँ के काल में चतुर्दिक शान्ति थी। यद्यपि उसके काल में विद्रोह हुए थे परन्तु यह विद्रोह सम्राट के अत्याचारों के स्वरूप नहीं, वरन् महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के कारण हुए थे। शाहजहाँ ने इन विद्रोहों को दबा दिया। उसके 30 वर्ष के शासनकाल में किसी ने भी गम्भीरतापूर्वक चुनौती नहीं दी और इस प्रकार उसकी शान्ति भंग नहीं हुई। शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसने योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति की थी। लेनपूल ने उसके मन्त्रियों के विषय में लिखा है-

“His minister were men of the highest ability Sadallah Allami, a converted Hindu, was the most upright statesman of his age, and Ali Mardan and Asaf Khan were men of approved integrity and energy.” -Lane Pool.

इन मन्त्रियों के प्रयासों के कारण जनता ने कभी भी शान्ति-भंग करने का प्रयत्न नहीं किया। शाहजहाँ के शासन-काल में आये हुए एक यूरोपीय यात्री टवर्नियर ने उसके विषय में लिखा है-

“Like his father over his family he ensures security of the roads just administration of the laws.” -Tavernier.

(2) देश की आर्थिक उन्नति का काल- शाहजहाँ के काल में आर्थिक क्षेत्र में बहुत अधिक उन्नति हुई। उसके सुयोग्य शासन के कारण कृषि के क्षेत्र में अपार उन्नति हुई। मोटरलैंड महोदय ने लिखा है, “शाहजहाँ का शासन कृषकों के लिये सुख और कृषि की समृद्धि का युग था।”

आय का मुख्य साधन केवल कृषि नहीं बल्कि व्यापार भी था। उसके शासन काल में पश्चिमी एशिया तथा यूरोप के साथ भारत के घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो गये थे और भारत से रेशम, रूई और मोम इत्यादि बहुत सी वस्तुएँ विदेशों में जाती थीं। अनेक कारखाने खुले हुए थे जिससे राज्य को बहुत अधिक धन की प्राप्ति होती थी।

आय के निरन्तर बढ़ने के कारण देश बहुत अधिक धन-सम्पन्न हो गया था। सरकार को केवल भूमि से ही प्रतिवर्ष 45 करोड़ रुपये की आय होती थी। शाहजहाँ की बनवायी हुई अनेक इमारतें उसके युग की धन-सम्पन्नता की परिचायक हैं। कहा जाता है कि केवल ‘तख्तेताउस’ बनवाने में उसने एक करोड़ रुपया व्यय किया था। 60 लाख रुपया व्यय करके उसने दिल्ली के निकट ‘शाहजहांनाबाद’ नामक एक नगर बसाया था।

(3) सम-न्याय-व्यवस्था का काल- शाहजहां ने न्याय के क्षेत्र में अपने पितामह अकबर का अनुसरण किया था उसने ऐसे न्याय की व्यवस्था की थी कि जिसमें सभी समान थे। अपने कर्तव्यों का पालन न करने वाले अधिकारियों को वह कड़ा दंड देता था। वह सदैव इस बात के लिए उत्सुक रहता था कि उसकी प्रजा के साथ अन्याय न हो। मनूषी ने स्पष्ट लिखा है कि न्याय के क्षेत्र में वह किसी को नहीं छोड़ता था।

(4) भवन निर्माण-काल की चरमोन्नति का काल- शाहजहाँ के युग के भवन-अद्वितीय है। उसके वनवाये हुए ये भवन उसके काल को गौरवपूर्ण तथा ऐश्वर्यशाली बना देते थे। जो विद्वान् इस मत से सहमत नहीं हैं कि शाहजहाँ का काल स्वर्ण-युग था वह भी इतना अवश्य स्वीकार करते है कि इस कला के क्षेत्र में काल में जितनी अधिक उन्नति हुई उतनी अधिक किसी अन्य युग में नहीं । शाहजहाँ का बनवाया हुआ ‘तख्ताउस’ और ‘ताजमहल’ ही उसके काल को स्वर्ण-युग बनाने के लिए पर्याप्त हैं। शाहजहाँ को ‘निर्माताओं का राजकुमार कहा जाता है। उसकी बनवाई गई इमारतों में दिल्ली का लाल किला और जामा मस्जिद तथा आगरे का किला, दीवान ए-खास और दीवान-ए-आम आदि प्रसिद्ध हैं।

(5) चित्रकला की उन्नति के काल- शाहजहाँ के काल में मौलिक चित्रों का अभाव है, परन्तु इस काल के चित्रकारों की अनुकरणशीलता एवं कल्पना प्रशंसनीय है। शाहजहाँ ने स्वयं चित्रकला की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया परन्तु उसका पुत्र दारा चित्रकारी का विशेष शौकीन था। दारा के चित्र लन्दन के इंडिया आफिस में संग्रहीत हैं जो, अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक हैं। शाहजहाँ के युग में चित्रों के चारों ओर फूल-पत्ती और किनारे बनाये जाते थे। चित्रों को अच्छी तरह से सजाया जाता था। इतिहासकार विन्सेण्ट स्मिथ ने शाहजहाँ के काल की चित्रकला की उन्नति पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-

“The arts of drawing and painting reached their highest point at the same time in Shahjahan’s reign.” -Vincent Smith.

(6) संगीत कला की उन्नति का काल- शाहजहाँ बहुत अधिक संगीत प्रेमी था उसने संगीत-कला को विशेष प्रोत्साहन दिया। अवकाश के समय वह अपने ‘दीवान ए-खास’ में बैठकर संगीत का रसास्वादन करता था। उसके युग में रामनाथ जगन्नाथ, एवं जनार्दन भट्ट आदि प्रमुख संगीतकार हुए। कहा जाता है कि जगन्नाथ के संगीत से वह इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने जगन्नाथ की तौल का सोना उसे उपहार रूप में दिया था। शाहजहाँ को स्वयं भी गाने का शौक था और उसके स्वर में बहुत आकर्षण था। उसके गाने की प्रशंसा करते हुए जदुनाथ सरकार लिखते हैं-

“Many pure souled ‘sults and holymen, with hearts withdraw from the world who attended these evening assemblies lost their senses in the constancy produced by Shahjahan’s singing. -J. N. Surkar.

(7) साहित्य की उनति का काल- शाहजहाँ के काल में फारसी और हिन्दी दोनों भाषाओं के साहित्य की अपार उन्नति हुई। उसके युग में ही अब्दुल लाहौर ने ‘बादशाहनामा’ लिखा और अमीन-काजबानी ने ‘शाहजहाँनामा’ लिखा। दारा को साहित्य से विशेष प्रेम था और वह अरबी, फारसी एवं संस्कृत का प्रकाण्ड पण्डित था। अनेक संस्कृत की पुस्तकों का अनुवाद के द्वारा ही प्रोत्साहन से हुआ। शाहजहाँ के काल ही में हिन्दी साहित्य जगत् में सुन्दर, सेनापति तथा बिहारीलाल आदि कवियों का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने अपनी कलात्मक शैली से हिन्दी साहित्य के भण्डार में अपार वृद्धि की।

(8) जनता की चतुर्दिक उन्नति का काल– शाहजहाँ के शासन काल में जनता ने चतुर्दिक उन्नति की थी। अपनी उदार नीति के कारण शाहजहाँ अपनी जनता का प्रिय बन गया था। लेनपूल ने स्पष्ट लिखा है- “शाहजहाँ अपनी उदारता के लिए पसिद्ध था और इसी से वह अपनी प्रजा का भी काफी प्रिय बन गया था। उसने अपनी प्रजा से इस प्रकार व्यवहार किया। जिस प्रकार कोई पिता अपने पुत्र के साथ करता है।” ‘टेवर्नियर ने स्पष्ट लिखा है-

“Shah Jahan reigned not so much as at king over his subjects, but rather as a father over his family and children.” -Tavernier.

उसके इस प्रकार के व्यवहार के फलस्वरूप ही जनता ने सभी क्षेत्र में अपार उन्नति की और मुगल-साम्राज्य राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक आदि सभी दृष्टियों से उन्नति के शिखर पर पहुँच गया था। शाहजहाँ के गुणों के फलस्वरूप ही प्रसिद्ध इतिहासकार सफी खाँ ने अकबर से उसकी तुलना करते हुए लिखा-

“…. although Akbar was pre-eminent of his territory and finances and the good administration of every department of the state, no prince ever reigned in India that could he compared to Shanjahan.” -Safi Khan.

सत्य तो यह है कि शाहजहाँ के व्यक्तिगत गुणों ने ही उसके काम को स्वर्ण-युग बना दिया। उसके शासन के वैभव के कारण ही उसके काल को स्वर्ण-युग के नाम से पुकारा गया। यद्यपि शाहजहाँ के युग में कुछ बुराइयाँ अवश्य थीं परन्तु इसमें किंचित मात्र सन्देह भी नहीं कि विभिन्न क्षेत्रों में हुई उन्नति के फलस्वरूप उसे स्वर्ण युग कहा जा सकता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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