गुप्तकालीन चित्रकला | गुप्तकालीन चित्रकला की विशेषताएँ | अजन्ता के प्रमुख चित्र
गुप्तकालीन चित्रकला | गुप्तकालीन चित्रकला की विशेषताएँ | अजन्ता के प्रमुख चित्र
गुप्तकालीन चित्रकला-
यदि गुप्तकालीन मूर्तिकला सर्वोत्कृष्ट है, तो चित्रकला भी उससे कम नहीं है। अजन्ता की चित्रकला इसका सर्वोत्तम प्रमाण है।
अजन्ता में उनतीस गुफाएं हैं। पहले संभवतः इन सभी में भित्ति चित्र थे, परन्तु अब केवल छह गुफाओं (गुफा सं० 1, 2, 9, 10, 16 और 17) में ही चित्र हैं। ये छहों गुफाएं भी एक काल की नहीं है। गुफा सं० 9 और 10 ईसापूर्व की पहली शताब्दी की बनी मानी जाती हैं। जो चित्र गुस काल में बने, वे सर्वोत्तम माने जाते हैं।
अजन्ता के अतिरिक्त ग्वालियर के निकट बाघ नामक गांव में भी नौ गुफाएं हैं, जिनमें सुन्दर भित्ति चित्र बने हैं। ये भी गुप्त काल के हैं।
अजन्ता के प्रमुख चित्र-
अजन्ता की गुफाओं में बने चित्रों की संख्या काफी बड़ी है, परन्तु उनमें से कुछ चित्र बहुत प्रसिद्ध हो गये हैं।
(1) बुद्ध के महाभिनिष्क्रिमण का चित्र गुफा सं० 17 में है, जो गुप्त कल की है। यशोधरा और राहुल सोये हुए हैं और सिद्धार्थ चुपचाप घर छोड़ कर जा रहे हैं। उनकी मुख-मुद्रा उद्वेगहीन है। भगिनी निवेदिता का कथन है कि “संसार में संभवतः अन्यत्र कहीं भी बुद्ध का इतना महान् काल्पनिक चित्रण नहीं हुआ और न कहीं होने की संभावना ही है।”
(2) माता और पुत्र का चित्र भी गुफा सं० 17 में है। श्री रायकृष्णदास ने इसे यशोधरा और राहुल का चित्र माना है, परन्तु अन्य विद्वान् इसे सामान्य किसी भी माता और पुत्र का चित्र मानते हैं। माता बुद्ध को भिक्षा दे रही है। बालक नंगा है और माता पतला वस्त्र पहने गरीबी और सादगी की अवतार है। सभी के मुखों की स्वाभाविक तथा सजीव मुद्राओं ने चित्र को अत्यन्त अकर्षक बना दिया है।
(3) गुफा नं० 16 में मनणासन्न राजकुमारी का चित्रं अनुपम माना जाता है। मृत्यु शय्या पर पड़ी राजकुमारी कातर नेत्रों से आस-पास खड़े सम्बन्धियों को देख रही है और उन सम्बन्धियों की आंखों में, मुख पर विवशता घनीभूत हो उठी है। मृत्यु पर किसका वश है? प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ ग्रिफिथ्स का कहना है कि “करुणा तथा भावुकता की दृष्टि से और कथा को प्रस्तुत करने की अपनी प्रांजल विधि की दृष्टि से, मुझे लगता है कि, कला के इतिहास में इस चित्र से बढ़कर कोई चित्र नहीं है। सम्भव है कि लोरेंस का चित्रकार रेखांकन इससे अच्छा कर लेता और वेनिस का कलाकार इसमें रंग इससे अच्छे भर सकता, परन्तु उसमें से कोई भी भावों की अभिव्यंजना इससे अधिक नहीं कर सकता था।”
(4) राजा तथा सुनहले हंस का चित्र।
(5) हाथियों के जलूस और
(6) राजकीय जलूस के चित्र भी बहुत सुन्दर माने जाते हैं।
चित्र निर्माण की प्रक्रिया-
अजन्ता के कलाकारों का काम असाधारण रूप से कठिन था। सबसे पहले तो गुफा की पथरीली दीवार को काट कर और घिस कर समतल और चिकना करना पड़ता था। फिर उस पर गोबर, मिट्टी, चूने और शीरे को मिला कर उसका लेप किया जाता था। करनी से उस समतल करने के बाद उस पर सफेद चूने का लेप करके उसे सूखने दिया जाता था। उसके बाद उसे पर चित्रों की रूपरेखा खींची जाती थी। सबसे अन्त में रंग भरे जाते थे। दीवारों के ऊँचे भागों पर और छत पर इस सब को करने में काफी कठिनाई होती होगी। प्रकाश की भी उचित व्यवस्था करनी पड़ी होगी।
अजन्ता के चित्रों की कलामर्मज्ञों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। इनकी गणना विश्व के सर्वोत्तम चित्रों में होती है।
गुप्तकालीन चित्रकला की विशेषताएँ-
गुप्त काल की कला की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(क) अज्ञात कलाकार- इतने सुन्दर चित्रों के निर्माताओं ने अपना नाम कहीं नहीं लिखा। कलाकारों का गुमनाम होना इस कला की एक प्रमुख विशेषता है।
(ख) भावाभिव्यंजकता- गुप्तकालीन चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी भावाभिव्यंजकता है। प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति की स्थिति और मुद्रा अभीष्ट भावों को प्रबल रूप में प्रकट करने के लिए बनाई गई है।
(ग) अश्लीलता का अभाव- गुसकालीन चित्रों में कहीं भी अश्लील या कामोत्तेजक दृश्य अंकित नहीं किये गये। सर्वत्र सौन्दर्य के साथ उदात्तता, और आध्यामित्मकता का पुट है।
(घ) धार्मिकता और धर्म-निरपेक्षता- अधिकांश चित्र बौद्ध जातकों की कथाओं को प्रस्तुत करते हैं। उनमें धार्मिक भावना प्रधान है। फिर भी उसे इस ढंग से प्रकट किया गया है कि कला धर्म-निरपेक्ष जान पड़ती है। बाशम (Basham) ने लिखा है कि “यद्यपि अजन्ता के चित्र धार्मिक दृष्टि से बनाये गये थे, फिर भी वे धर्म-निरपेक्ष भावना के प्रतीक हैं। उनमें प्राचीन भारत की समस्त सभ्यता की झलक है।”
(ङ) विषयों की विविधता- अजन्ता के चित्रों के विषय इतने विविध हैं कि ऐसा लगता है कि इन कलाकारों ने मानव जीवन के किसी भी पक्ष को अछूता नहीं छोड़ा है। विभिन्न प्रकार के नर-नारी, राग-वैराग्य, विविध मानव-व्यापार तथा जीव-जन्तु इनमें चित्रित किये गये हैं।
संगीत, नृत्य एवं अभिनय कला-
गुप्तकालीन साहित्य, चित्रों तथा मूर्तियों से और उस काल की मुद्राओं से सुनिश्चित अनुमान होता है कि उस काल में संगीत, नृत्य एवं अभिनय कलाएं खूब विकसित एवं लोकप्रिय थीं। कालिदास के ग्रन्थों में तथा उस काल की अन्य रचनाओं में संगीत, नृत्य और अभिनय का उल्लेख है। कालिदास ने तीन नाटक लिखे थे और उनका अभिनय किया गया था। इन नाटकों में गीत भी हैं।
गुप्त नरेशों की संगीतप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण समुद्रगुप्त की वह मुद्रा है, जिस पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। प्रयाग की हरिषेण प्रशस्ति में समुद्रगुप्त को वीणावादन में नारद और तुम्बरू से भी बढ़ कर बताया गया है। गुप्तकालीन मूर्तियों और चित्रों में नृत्य करती और वाद्य बजाती हुई स्त्रियों का अंकन है। बाघ की गुफाओं में भी दो नृत्य मंडलियों के चित्र हैं। भूमरा के शिव मन्दिर में शिव के गणों को भेरी आदि विविध प्रकार के वाद्य बजाते दिखाया गया है। इससे स्पष्ट है कि गुप्त काल में इन तीनों ही कलाओं का अच्छा प्रचार था।
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