हिन्दी की सांविधानिक स्थिति | प्रादेशिक भाषाएँ | राज्य की राजभाषा | राजभाषाएँ

हिन्दी की सांविधानिक स्थिति | प्रादेशिक भाषाएँ | राज्य की राजभाषा | राजभाषाएँ

हिन्दी की सांविधानिक स्थिति

26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान को क्रियान्वित किया गया था। इस संविधान के निर्माण के समय भारत में हिन्दी के स्थान को ध्यान में रखते हुए, 14 सितम्बर, 1949 को उसे राजभाषा घोषित करने के साथ ही संविधान में हिन्दी के लिए विशेष प्रावधान किये गये संविधान में हिन्दी प्रयोग के लिए अनुच्छेद 341 से 351 तक विशेष प्रावधान किये गये, जिनका संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है :-

(i) अनुच्छेद 343 में-‘संघ की राजभाषा’

(ii) अनुच्छेद 344 में ‘राजभाषा के लिए आयोग और संसद की समिति।’

(iii) अनुच्छेद 345, 346 तथा 347 में-‘प्रादेशिक भाषाएँ अर्थात राज्य की राजभाषा/ राजभाषाएँ

(iv) अनुच्छेद 348 में—’उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा अधिनियमों, विधेयकों आदि की भाषा’

(v) अनुच्छेद 349 में-भाषा सम्बन्धों कुछ विधियों को अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया।

(vi) अनुच्छेद 350 में-“व्यथा के निवारण के लिए प्रयुक्त भाषा प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ तथा भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकार।”

(vii) अनुच्छेद 351 में-हिन्दी भाषा के विकास के लिए निर्देश।’

अनुच्छेद 343-संघ की राजभाषा

  1. संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप, भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
  2. खण्ड (i) में किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की कालावधि के लिए संघ के उन सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग जारी रहेगा। जिनके लिए प्रारम्भ के ठीक पहले उनका प्रयोग होता था, परन्तु राष्ट्रपति उक्त कालावधि में, आदेश द्वारा, संघ के राजकीय प्रयोजनों में किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ हिन्दी भाषा का तथा भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप के साथ-साथ देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेंगे।
  3. इस अनुचछेद में किसी बात के होते हुए भी संसद विधि द्वारा उक्त पन्द्रह साल की अवधि के पश्चात

(क) अंग्रेजी भाषा का अथवा

(ख) अंकों के देवनागरी रूप का

ऐसे प्रयोगों के लिए प्रयोग उपबन्धित कर, सकेगी जैसा कि इस विधि में उल्लिखित हो।

अनुच्छेद 344- राजभाषा के लिए संसद का आयोग और समिति

  1. राष्ट्रपति इस संविधान के प्रारम्भ में पाँच वर्ष की समाप्ति पर तथा तत्पश्चात ऐसे प्रारम्भ से दस वर्ष की समाप्ति पर आदेश द्वारा एक आयोग गठित करेगा, जो एक सभापति और अष्टम अनुसूची में उल्लिखित भिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा, जैसे कि राष्ट्रपति नियुक्त करेगा तथा आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया का आदेश परिभाषित करेगा।
  2. राष्ट्रपति को-

(क) संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के लिए उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग के लिए,

(ख) संघ के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बन्धनों के लिए,

(ग) अनुच्छेद 348 में वर्णित प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए,

(घ) संघ के किसी एक या अधिक प्रयोजनों के लिए प्रयोग किये जाने वाले अंकों के रूप के लिए,

(ङ) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच संचार की भाषा तथा उनके प्रयोग के बारे में राष्ट्रपति द्वारा आयोग से पृच्छा किये हुए किसी अन्य विषय के बारे में सिफारिश करने का आयोग का कर्तव्य होगा।

  1. खण्ड (2) के अधीन अपनी सिफारिशें करने में आयोग भारत की औद्योगिक सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का तथा लोकसेवाओं के बारे में हिन्दी भाषा भाषी क्षेत्रों में लोगों के न्यायपूर्ण दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा।
  2. तीस सदस्यीय एक समिति गठित की जायेगी, जिसमें बीस लोकसभा के सदस्य होगे तथा दस राज्य सभा के सदस्य होंगे, जो कि क्रमशः लोकसभा के सदस्यों तथा राज्यसभा के सदस्यों द्वारा अनुपाती प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
  3. खण्ड (1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों की परीक्षा करना तथा उन पर अपनी राय का प्रतिवेदन राष्ट्र को प्रस्तुत करना समिति का कर्तव्य होगा।
  4. अनुच्छेद 343 में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति खण्ड (5) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निर्देश निकाल सकेगा।

प्रादेशिक भाषाएँ

राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ

अनुच्छेद-345,346 और 347 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राज्य का विधान- मण्डल विधि द्वारा उस राज्य के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए प्रयोग के अर्थ उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अनेक को या हिन्दी को अंगीकार कर सकेगा, परन्तु जब तक राज्य के विधान-मण्डल विधि द्वारा इसे अन्यथा उपबन्ध न करें, तब तक राज्य के भीतर उन राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा प्रयोग की जाती रहेगी, जिनके लिए इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले वह प्रयोग की जाती थी।

एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में अथवा राज्य और संघ के बीच में संचार के लिए राजभाषा

अनुचछेद 346- संघ में राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य और संघ के बीच में संचार के लिए राजभाषा होगी, परन्तु यदि दो या अधिक राज्य करार करते हैं कि ऐसे राज्यों के बीच में संचार के लिए राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे संचार के लिए राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे संचार लिए वह भाषा प्रयोग की जा सकेगी।

किसी राज्य के जनसमुदाय के लिए विभाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में विशेष उपबन्ध

अनुच्छेद 347– तदविषयक माँग किये जाने पर यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाए कि किसी राज्य के जन-समुदाय का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभिज्ञात की जाए तो वह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को उस राज्य में सर्वत्र अथवा उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए जैसा कि वह उल्लिखित करें, राजकीय मान्यता दी जाए।

अनुच्छेद 348- उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा

उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली विकल्प चुनने की परीक्षार्थियों को सुविधा हो। प्रादेशिक भाषाओं के विकल्प पर भी विचार किया जाये।

(7) अखिल भारतीय सेवाओं तथा उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं में भर्ती के समय परीक्षा माध्यम अंग्रेजी आरंभ में बना रहे, परन्तु हिन्दी को बाद में वैकल्पिक माध्यम के रूप में अपना लिया जाये। परीक्षार्थी को परीक्षा की विकल्प भाषा हिन्दी या अंग्रेजी चुनने की छूट हो।

कुछ समय पश्चात वैकल्पिक माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग संघ लोक सेवा आयोग के साथ परामर्श करके गृह मंत्रालय सुनिश्चित करे।

(8) केन्द्रीय मंत्रालय के प्रकाशनों में हिन्दी के देवनागरी अंकों के सम्बन्ध में तथा अंतर्राष्ट्रीय अंकों के सम्बन्ध के एक आधारभूत नीति प्रकाशन के स्वरूप, विषय-वस्तु तथा उसकी जन-उपयोगिता के आधार पर निश्चित की जाये।

राजभाषा संकल्प-1968

राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रगामी को सुनिश्चित करने के लिए संसद के दोनों सदनों ने दिसम्बर, 1967 में एक संकल्प पारित किया जो ‘राजभाषा संकल्प-1968’ के नाम से जाना जाता है, इसे 18 जनवरी, 1968 में लागू किया गया। इसकी विशिष्ट बातें निम्नलिखित हैं-

  1. संविधान के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखी देवनागरी हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी।
  2. वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
  3. अष्टम अनुसूची में उल्लिखित 18 प्रादेशिक भाषाओं के विकास का भी ध्यान रखा जायेगा।
  4. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में हिन्दी को एक विषय के रूप में शामिल किया जाये।
  5. संघ लोक सेवा आयोग तथा अन्य परीक्षाओं का माध्यम हिन्दी या क्षेत्रीय भाषाएं रखा जाये तथा वैकल्पिक माध्यम के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जाये।
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