हिंदी भाषा एवं लिपि

हिंदी शब्द की उत्पत्ति | भाषा की परिभाषा | हिंदी की विविध बोलियाँ | बुंदेली की व्याकरणिक विशेषतायें

हिंदी शब्द की उत्पत्ति | भाषा की परिभाषा | हिंदी की विविध बोलियाँ | बुंदेली की व्याकरणिक विशेषतायें

हिंदी शब्द की उत्पत्ति

हिंदी शब्द किस प्रकार हिंदी भाषा के लिए प्रयुक्त होने लगा, इसका एक लंबा इतिहास है। प्राचीन समय में उत्तरी भारत को ‘भारत खंड’ तथा जम्बू द्वीप के नाम से जाना जाता था। बौद्ध धर्म के पालि ग्रंथों से भी इस बात की पुष्टि होती है। हमारे देश का नाम ‘हिंद’ नाम वास्तव में ‘सिंघ’ का प्रारूप है। ईरान और फारस के निवासी सिन्लृजु सिंधु नदी तट के प्रदेशों को ‘हिंद’ तथा वहाँ के रहने वालों को हिंदू कहते थे। संस्कृत ‘स’ ध्वनि फारसी में ‘ह’ हो जाती है।

ग्रीक निवासियों द्वारा भी सिंधु नदी को ‘इन्दोस’ और यहाँ के निवासियों को ‘इन्दोई’ तथा प्रदेशों को ‘इंदिका’ कहा गया और यही शब्द आगे चलकर लैटिन में ‘इंडिया’ बना। प्रारंभ में शब्द (इंडिया) पश्चिमी उत्तर प्रदेश का परिचायक था परंतु कालांतर में इसके अर्थ में विस्तार हुआ तथा पूरे देश के लिए प्रयोग किया जाने लगा। इस प्रकार हिंदी शब्द का मूल शब्द ‘हिंद’ ही है। संस्कृत या प्राचीन, मध्यकालीन अथवा आधुनिक आर्य भाषाओं के किसी भी ग्रंथ में इस शब्द का प्रयोग नहीं मिलता। अतः हिंदी फारसी भाषा का है और आज भी सभी भारतीय प्रदेश व उसकी प्रमुख भाषा के लिए प्रयोग हो रहा है।

भाषा की परिभाषा

भाषा का विकास परंपरा तथा स्वरूप निर्माण की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विद्वानों ने भाषा की परिभाषा दी है-

डॉ0 पी0डी0 गुणे- अपने व्यापकतम अर्थ में भाषा के अंतर्गत विचारों और भावों को सूचित करने वाले वे सब अंकित किये जाएंगे जो बाहरी रूप में देखे जा सकें और इच्छानुसार उत्पन्न किए एवं दुहराए जा सके।

डॉ मंगलदेव- “भाषा मनुष्य की उस चेष्टा या व्यापार को कहते हैं जिससे मनुष्य अपने उच्चारणोपयोगी शरीरवयवों से उच्चारण किए गए वर्णनात्मक या व्यक्त शब्दों के द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं।”

डॉ० श्याम सुंदर दास- “मनुष्य मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते हैं।”

डॉ० बाबूराम सक्सेना- “जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य पर स्पष्ट विचार-विनिमय करता है उसको समष्टि रूप में भाषा कहते हैं।

पं0 किशोरीदास बाजपेयी- विभिन्न अर्थ में सांकेतिक शब्द समूह की भाषा है, जिसके द्वारा हम अपने विचार या मनोभाव दूसरों के प्रति बहुत सरलता से प्रकट करते हैं।”

डॉ० भोलानाथ तिवारी- “भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चारित यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है जिसके द्वारा एक समाज के लोग आपस में भावों और विचारों का आदान- प्रदान करते हैं।

पाश्चात्य विचारकों ने भी भाषा के स्वरूप का विवेचन करते हुए परिभाषाएँ दी हैं-

प्लेटो- “विचार जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर होते हैं तो उसे भाषा कहते हैं।”

वान्द्रिए- “भाषा चिन्ह है जिसके द्वारा मनुष्य अपने भाव प्रकट करता है।”

गार्डिनर- “भाषा विचारों की अभिव्यक्ति के लिए व्यक्त ध्वनि संकेत है।”

हेनरी स्टीव-“व्यक्त ध्वनियों द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति को भाषा कहते हैं।”

हिंदी की विविध बोलियाँ

कन्नौजी, खड़ी बोली, धौलपुरी, भरतपुरी, माथुरी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, राजस्थानी, बिहारी आदि अनेक बोलियाँ।

बुंदेली

परिचय- यह बुंदेलखंड की बोली है, इसलिए यह स्पष्ट है कि इसके नाम का आधार, स्थान विशेष है। बुंदेले राजपूतों के कारण इस भू-खंड का नाम बुंदेलखंड पड़ा। इसका क्षेत्र वर्तमान काल में विस्तृत है तथा ब्रजभाषा के दक्षिण में झाँसी, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, ओरछा, सागर, नृसिंहपुर, शिवानी तथा होशंगाबाद में यह शुद्ध रूप से वोली जाती हैं। दतिया, पन्ना, चरखारी, दमोह, बालाघाट, छिंदवाड़ा आदि स्थानों में इसका मिश्रित रूप मिलता है। इसकी अनेक उपबोलियाँ हैं, पर रूप सबका लगभग समान ही है। इसके उत्तरी क्षेत्र पर ब्रजभाषा पश्चिमी में राजस्थानी, उत्तर और पूर्व में कोसली तथा दक्षिण में मराठी बोली जाती है।

साहित्य- बुंदेली भी कन्नौजी के समान ब्रज की ही एक बोली है अतः इसका साहित्य भी ब्रज के अंदर ही गिना जाता है। भिन्न भिन्न प्रांतों में इसके भिन्न-भिन्न रूप मिलते हैं। इसका आधार इसे मानने वालों की स्मरण शक्ति रहा है। बुंदेली कवियों ने क्षेत्रीय शब्दों का प्रयोग बहुत किया है। सामान्यतः साहित्य भाषा में नहीं होता। केशव के साहित्य में इस प्रकार के शब्द मिलते हैं। बिहारी और केशव का संबंध बुंदेलखंड से रहा है। इसलिए इनके साहित्य में इन भाषाओं के शब्द मिल जाते हैं।

बुंदेली में अलग से रचना अप्राप्य है। आल्हखंड मूलतः बुंदेली में लिखा गया होगा, किंतु इसका वर्तमान रूप फर्रुखाबाद के कलेक्टर ने अनेक वर्ष पूर्व गवाकर तैयार कराया था। इस कारण इसमें विभिन्न बोलियों का समावेश हो गया है। ‘केशव कृत रामचंद्रिका में भी यत्र तत्र बुंदेली शब्द मिलते हैं। किंतु छत्रप्रकाश की भाषा अधिकांशा रूप में बुंदेली है, इसे लाल कवि ने लिखी थी।

विभिन्न बोलियाँ- बुंदेली की कई बोलिया हैं – (1. पंवारी 2. राठोरी, अथवा लोधान्ती, 3. खटोला, 4. बनाफरी, 5. निमट्ठा, 6. तिरहारी, 7. कुंडी, 8. भदावरी, 9. सहेरिया, 10. छिंदवाड़ा 11. लोधी 12. कुम्हारी, 13. कोष्टी, 14. नागपुरी।

भाषागत सीमा- बुंदेली के पूरब में बघेली बोली उत्तर तथा उत्तर पश्चिमी में कन्नौजी तथा ब्रजभाषा तथा यमुना नदी के दक्षिण वाले भाग पर स्थित हमीरपुर की तिरहारी बोली बोली जाती है।

बुंदेली का शब्दकोश

बुंदेली में ऐसे अनेकों शब्द है जिनका हिंदी में व्यवहार नहीं होता उसमें से कुछ निम्न है-

बाबा बड़े बाबा  =   पितामह

दाई          =    पितामही

दादू          =       चाचा

भोभी, भोजी        =    बड़े भाई की पत्नी, भाभी

महेरिया, लुगाई, दुल्हन, बसही, जुरूआ, गोटानी   =    पत्नी

पाहुन          =     दामाद

सारा, सारो      =     साला, पत्नी का भाई

खोरा, खोखा, खोरिया, बोलिया    =              कटोरा

आदि ऐसे बहुत से शब्द हैं।

बुंदेली की व्याकरणिक विशेषतायें

(i) जब ‘ए’ तथा ‘ओ’ ह्रस्व रूप में उच्चरित होते हैं, तो वे क्रमशः ‘इ’ तथा ‘उ’ में परिणित हो जाते हैं। यथा- बेटी बिटिया, धारो धुरवा।

(ii) अ के स्थान पर कभी-कभी ‘इ’ का व्यवहार होता है। यथा- बरोबर (हिंदी > बराबर) > बिरोबर

(iii) व्यंजनों में ड्र का उच्चारण ‘र’ हो जाता है। यथा- पड़ो> परो (दौड़ के दौरे के (घुड़वा > घुरवा।

(iv) ब्रज के ‘ऐ’ और औ बुंदेली में ए ओ हो जाते हैं, यथा और > ओर, जैसो-जेसो।

(v) कभी-कभी कर्ता के साथ ‘ने’ अनुसर्ग का प्रयोग बड़े ही अद्भुत ढंग से होता है।

यथा-बाने बैठो (वह बैठा) इसके साथ-साथ वर्तमान-क्रिया बोधक-विश्लेषण के साथ भी ने का प्रयोग मिलता है। बा न चाउत तो- (वह चाहता था)।

(vi) घटमान सहायक क्रियाओं में भी वचन, लिंग ओर पुरुष के अनुसार परिवर्तन हो जाता है। यथा-मारत हुतो या मारतो इत्यादि (मैं मार रहा था)

(vii) वर्तमान रिचार्थ में सहायक क्रिया का लोप हो जाता है। यथा- “मैं मार रहा हूँ- मारत हो या मारताव।

इस प्रकार वर्तमान क्रिया बोधक के रूपों का ही सभी पुरुषों और वचनों में प्रयोग होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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