इतिहास / History

इटली के एकीकरण में सहायक तत्व | Auxiliary elements in the unification of Italy in Hindi

इटली के एकीकरण में सहायक तत्व | Auxiliary elements in the unification of Italy in Hindi

इटली के एकीकरण में सहायक तत्व-

इटली के एकीकरण में विभिन्न विकट बाधाओं के बावजूद वहाँ स्वतंत्रता, समानता तथा देश प्रेम की भावनाएँ अधिक समय तक दबी नहीं रह सकी। इटली के कुछ देशभक्तों और लोकतंत्र के समर्थकों ने मिलकर स्वतंत्रता और उदारवाद की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने का निर्णय किया । इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इटली में कई गुप्त संस्थाओं की स्थापना हुई। इनमें कार्बोनरी प्रमुख थी।

(i) कार्बोनरी-

इटली के कोयला झोंकने वाली की इस गुप्त संस्था की स्थापना 1810 ई. में नेपिल्स में हुई थी। कार्बोनरी की शाखाएँ समस्त इटली में फैली हुई थी और उसमें सभी वर्गों के लोग सम्मिलित थे। इसमें कुलीन वर्ग, सैनिक अफसर, किसान, धर्मगुरु, यहाँ तक कि बुर्जुआ वर्ग ने भी इस संस्था की सदस्यता अर्जित की। इस संस्था के कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं थे फिर भी इसके दो मुख्य उद्देश्य थे- विदेशियों को इटली से बाहर निकालना और वैधानिक स्वतंत्रता की स्थापना करना। इस संस्था के तिरंगे-काला, लाल और नीले रंग वाले झण्डे ने शीघ्र ही लोकप्रियता प्राप्त कर ली और लोग उसकी पूजा करने लगे। उद्देश्यों में एकरूपता एवं सूत्रबद्धता तथा स्पष्ट एवं प्रभावशाली नेतृत्व के अभाव में कार्बोनरी असफल सिद्ध हुई।

(ii) आर्थिक विकास-

अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक इटली दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ देश था। यहाँ की 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि में लगी हुई थी। भूमि उपजाऊ नहीं थी। खेती- बाड़ी इटली के केवल आधे हिस्से में ही हो सकती थी। इसका औद्योगिक स्तर केवल दस्तकारी तक ही सीमित था। बैंकिंग के साधन सीमित थे। औद्योगिक विकास और आपिएकार सम्बन्धित कार्य नाम मात्र के ही थे। इटली के पिछड़े हुए औद्योगिक स्वरुप के पीछे एक बड़ा कारण वहाँ आवागमन के साधनों का अभाव होना था। सामूहिक इटली में जल मार्गों का अभाव था। इटली का जनसम्पर्क केवल तटीय जल मार्गों द्वारा था।

अठारहवीं शताब्दी के अंत से पूर्व कुछ विचारकों ने, जिनमें फर्डिनेडों मालियानी, सीजारे बैकारिया, पीटरों बैरी इत्यादि प्रमुख थे, आर्थिक सुधारों की ओर इटली का ध्यान आकर्षित करना प्रारम्भ कर दिया था। 1730 ई. से1733 ई. के मध्य से कारलों एमेनुअल तृतीय ने सार्डीनिया में और 1790 ई. से !829 ई. के मध्य फर्डिनेंड तृतीय ने टस्कनी में आर्थिक एवं औद्योगिक सुधार लागू कर दिये थे। इटली के परवर्ती अर्थशास्त्रियों- गियन डोमिनिकों रोमोग्नोसी फेडेरिकों कानफलेनिरी, कार्लो फैटेनियों ने भी आर्थिक सुधारों की दलील दी। उन्होंने आर्थिक क्षेत्र में स्वतंत्रता, राष्ट्रीय बचत तथा विनियोग को प्रोत्साहन देने, आवागमन के अच्छे साधनों को विकसित करने और यूरोप के विकसित औद्योगिक देशों से तकनीकी धान के आयात की माँग की। इन अर्थशास्त्रियों की यह देन थी कि इटलीवासी आर्थिक सहयोग एकता में इटली के एकीकरण का भविष्य देखने लगे।

उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में पूँजी के आधार पर कृषि के विकास में इटलीवासियों में केवल नवीन आर्थिक चेतना ही उत्पन्न नहीं की वरन् इटली के औद्योगिक विकास में उसकी भूमिका उल्लेखनीय रही। कृषि सम्बन्धी नई मेडियों में आवागमन के नये साधनों की आवश्यकता का अनुभव किया।

उत्तरी व मध्य इटली में शीघ्र ही रेलवे लाइनों का बिछाना शुरू हो गया और भाप के इंजन का प्रयोग आरम्भ हुआ।ह उल्लेखनीय है कि इटली में रेलवे का विकास फ्रांस व जर्मनी की अपेक्षा कम था। फिर भी धीरे-धीरे रेलवे लाइन बिछाने का काम चलता रहा। 1861 ई. तक इटली में 1623 किमी. लम्बी रेलवे लाइन बिछ चुकी थी और यह कार्य केवल तीस वर्षों में हुआ था। इटली ने आरम्भ में इंजन इंग्लैण्ड से खरीदे किन्तु बाद में स्वयं बनाने लगे। 1854 ई. में इटली ने पहला रेलवे इंजन जेनोआ में बनाया। इटली के एकीकरण में रेलवे के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। इसका केवल इटली की आर्थिक व्यवस्था पर ही प्रभाव नहीं पड़ा अपितु इसने राजनीतिक चेतना के विकास में भी योगदान दिया।

इटली में गिल्ड अर्थव्यवस्था 1815 ई. से पहले ही विखण्डित होना आरम्भ हो गई थी और 1845 ई. तक पूर्णरूपेण समाप्त हो चुकी थी। इससे भी इटली के आर्थिक स्वरूप में परिवर्तन आया । इटलीवासी अब यह मानने लग गए थे कि औद्योगिक विकास के लिए पुरातन व्यवस्था को समाप्त करना आवश्यक है क्योंकि ऐसा करने पर ही नये उद्यमी जन्म ले सकते हैं और आर्थिक क्रियाओं को प्रोत्साहन मिल सकता है।

(iii) प्रारम्भिक विद्रोह-

गुप्त संस्थाओं द्वारा प्रदर्शित क्रांतिकारी आन्दोलन का एक क्रम उन्नीसवीं शताब्दी के द्वितीय दशक से आरम्भ हुआ, जो तीस वर्षों तक चलता रहा। 1820 ई. के स्पेन के विद्रोह नेपिल्स एवं पीडमान्ट की जनता ने वहाँ के शासकों से संविधान की स्थापना की मांग की। सबसे पहला विद्रोह नेपिल्स में हुआ किन्तु आल्ट्रिया द्वारा सैनिक हस्तक्षेप के कारण यह असफल रहा। अभी नेपिल्स के विद्रोह को दबाया भी न जा सका था कि पीडमोन्ट और लोम्बार्डी में हलचल प्रारम्भ हो गयी। पुनः आस्ट्रिया की सेनाओं ने विद्रोह को दबा दिया। इस प्रकार इटली में एक बार फिर राजतंत्र को सुरक्षित किया गया परन्तु जनता की संविधान की मांग को दबाने से इटली में राजतंत्र के निरंकुश तथा रूढ़िवादी स्वरूप के विरुद्ध इटली की भावनाएँ उग्र हो गई। राजतंत्र जितना रुढ़िवादी तथा प्रतिक्रियावादी होता गया इटली उतना ही उदारवादी तथा देशभक्ति से प्रेरित राष्ट्रवादी होता गया।

फ्रांस में 1830 ई. की क्रांति होते ही इटली में एक बार फिर विद्रोह शुरू हो गया। पोप की रियासतों में उग्र प्रदर्शन हुए। परमा और मोडेना के राज्यों से उसके शासक निकाल दिये गये। इन विद्रोहों के विरुद्ध आस्ट्रिया ने तुरन्त कठोर कार्रवाई की और अपदस्थ शासकों को पुनः अपने-अपने सिंहासनों पर आरुढ़ कराया। इस प्रकार आस्ट्रिया ने दो बार इटलीवासियों की राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता प्राप्ति की अभिलाषा को कुचल दिया। फिर भी इन असफल प्रयत्नों ने भविष्य की आशा जगायी। 1830 ई. की क्रांति को सफलता नहीं मिली, तो उसका सबसे बड़ा कारण अभी भी लोगों की राजनीतिक उद्देश्यों के बारे में अनिश्चितता थी। अब यह स्पष्ट हो गया कि बिना व्यापक संगठन और योजना के केवल स्थानीय स्तर पर विद्रोह करने से इटली में नये युग का सूत्रपात असम्भव है। 1820 ई. और1830 ई. के विद्रोहों की असफलता से इटली के नेताओं का यह भी ज्ञात हो गया की जब तक आस्ट्रिया के अधिपत्य का अंत नहीं हो जाता, तब तक उनके स्वतंत्रता और एकता के प्रत्यन निरर्थक होंगे।

(iv) लेखकों के प्रयास-

इटली के पुनर्जागरण के इतिहास में राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक तत्वों के साथ सांस्कृतिक क्षेत्र में लेखकों, दार्शनिकों तथा आलोचकों का योगदान भी सराहनीय रहा। 1821 ई. में ही फास्कोल तथा रासेटी नामक महान् लेखकों को उनकी देशभक्ति की भावनाओं के कारण देश निकाला दे दिया गया। 1832 ई. में सिल्वियों पोलिकों ने आस्ट्रिया के जेलखानों का दस वर्षीय वृत्तान्त ‘ल मि प्रिजियोनी’ नामक पत्रिका में लिखा। इसका प्रभाव इटली पर बहुत अधिक पड़ा। इटलीवासियों को इस लेख से यह पक्का विश्वास हो गया कि अत्याचारी आस्ट्रिया से इटली को मुक्त कराना आवश्यक है। 1843 ई. में जियोवर्ती एक दार्शनिक एवं देशभक्ति ने अपनी पुस्तक ‘इटली की नैतिक और नागरिक श्रेष्ठता’ में इटली के राज्यों के संघ की वकालत की थी। वह चाहता था, आस्ट्रिया को इटली से निकालने के बाद पोप की अध्यक्षता में इटालियन राज्यों का संघ बने। कुछ ऐसे भी लेखक थे, जिनका विचार था कि सारे राज्यों का सार्जीनिया में विलय हो जाय,तो एक शक्तिशाली और संगठित राजतंत्र के रूप में इटली का प्रादुर्भाव निश्चित है।

(v) मेजिनी और युवा इटली-

इटली की एकता के लिए जो भी प्रयत्न 1830 ई. तक हुए वे सब असफल रहे। आस्ट्रिया की शक्ति के सामने इटली के देशभक्तों को हारना पड़ा। इसी समय इटली में एक महान विभूति का प्रादुर्भाव हुआ, जिसने इटली के राष्ट्रीय जीवन में नई चेतना जाग्रत की। ऐसी विभूति ज्यूसप मेजिनी के अतिरिक्त और कौन हो सकती है? वह स्वप्न देखा करता था कि कभी न कभी इटली का भी उन्धार होगा। शून्य क्षितिज से मानों उसे आह्वान मिला था कि तुम्हारे ही हाथों से इटली का कल्याण होगा और तुम्ही स्वतंत्र इटली का नेतृत्व करोगे। अपनी मनोरंजक किन्तु अपूर्व आत्मकथा में मेजिनी ने अपने विद्यार्थी जीवन के क्षणों के बारे में लिखा है। “मेरे चारों ओर विद्यार्थियों के जीवन का कोलहाल एवं शोरगुल था किन्तु उनके मध्य भी मैं सदैव गम्भीर और आत्मलीन दिखाई देता और ऐसा लगता था कि मैं सहसा बूढ़ा हो गया हूँ। बालकों की भाँति मैंने संकल्प किया था कि मैं सदैव गम्भीर और आत्मलीन दिखाई देता और ऐसा लगता कि मैं अपने देश की दुर्दशा पर विलाप कर रहा हूँ।” 1830 ई. की क्रांति के पूर्व वह कार्बोनरी का सदस्य था। उसने भी क्रांति में भाग लिया था। क्रांति का दमन हो जाने पर उसे बंदी बनाकर सैब्रोना के दुर्ग में भेज दिया गया और बाद में इटली से निष्कासित कर दिया गया। देश विदेश में घूमने के बाद वह 1831 ई. में फ्रांस पहुँचा। वहाँ उसने ‘युवा इटली’ (यंग इटली)नामक एक संस्था की स्थापना की, जिसने इटली के राष्ट्रीय आन्दोलन में शीघ्र ही कार्बीनरी का स्थान ले लिया। ‘युवा इटली’ के उद्देश्यों के विषय में मेजिनी ने कहा यंग इटली इटलीवासियों में भाईचारा उत्पन्न करने वाली ऐसी संस्था है। जो प्रगति और कर्तव्यपारयणता के सिद्धान्तों में विश्वास करती है और इस बात से पूर्णतया सहमत है कि इटली शीघ्र ही एक सुसंगठित राष्ट्र बनेगा। सदस्य संस्था में इस पक्के निर्णय से सम्मिलित हुए है कि इटली ऐसा प्रभुता-सम्पन्न राष्ट्र बन सकें, जहाँ सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान हो, मेजिनी के दिमाग में संयुक्त इटली का स्वरूप जितना स्पष्ट और निश्चित था। उतना अन्य किसी व्यक्ति के दिमाग में नहीं था। उसका उद्देश्य था, इटली के लोगों को शिक्षित कर यह अनुभव करवाना कि इटली की जनता पुकारते चले आ रहे है। हमारे देश की सीमाएं प्राकृतिक है और बिल्कुल स्पष्ट है…..हम एक ही भाषा बोलते है। हमारा धर्म एक है, शिष्टाचार एक है, आदतें एक है। हमको अपनी उन राजनीतिक, वैधानिक और कला परम्पराओं पर अभियान है, जो यूरोप के इतिहास को अलंकृत करती है। …..किन्तु न हमारे पास राष्ट्रीय झण्डा है और न कोई राजनीतिक नाम है।……हम आठ रियासतों में तितर-बितर हो रहे है…..हमें किसी तरह की कोई आजादी नहीं, जो भावनाएं हमारे अन्दर उबल रही है, उनको प्रकट करने का कोई साधन हमारे पास नहीं है। इन सब का कारण है कि विदेशी लोग हमें गुलाम बना रहे है।”

इटली के इतिहास में मेजिनी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उसने इस बात को समझा कि इटली का एकीकरण का कार्य पूरा हो सकता है। अपना यह विश्वास अपने कई लेखों द्वारा जनता तक पहुँचाया। इंग्लैण्ड और फ्रांस में भटकता जिनी लगातार लिखता रहा तथा लेनिन की तरह विदेशों से अपने देशवासियों को सम्बोधित एवं प्रेरित करता रहा । युवा इटली भी एक तरह की गुप्त संस्था ही थी क्योंकि उसे स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने की इजाजत नहीं थी लेकिन वह कार्बोनरी की तरह अस्पष्ट विचारों वाली संस्था नहीं थी। युवा इटली के पास इटली के भविष्य की कल्पना थी और उसे प्राप्त करने के लिए सुनिश्चित कार्यक्रम था।

वास्तव में मेजिनी ने इटली के एकीकरण की आधारशिला रखी और इटली के लोगों में देश-प्रेम, त्याग और बलिदान के लिए विचार उत्पन्न किये। इसलिए साउथगेट ने उसका मूल्यांकन करते हुए लिखा है, “यह मेजिनी ही था, जिसने अपने देशवासियों में स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न की। यद्यपि वह कावूर की भाँति सेनानायक नहीं था परन्तु वह एक कवि, आदर्शवादी विचारक और क्रांति का अग्रदूत था।”

(vi) उदार राजतंत्रवादी-

कुछ देशभक्ति उदारवादी राजतंत्र के माध्यम से इटली को स्वतंत्र करना चाहते थे। वे खाडीनिया-पीड-मोन्ट के शासक चार्ल्स एल्बर्ट के नेतृत्व में इटली को विदेशी सत्ता से मुक्त करना चाहते थे। यद्यपि सार्डीनिया का राज्य पहले प्रतिक्रियावादी ही था किन्तु शनैः-शनैः चार्ल्स एल्बर्ट के समय उनकी नीति में परिवर्तन आ गया तथा उसने राज्य में अनेक आर्थिक और सैनिक सुधार किये और यह घोषणा की, “जब समय आयेगा तब मेरा जीवन, मेरा धन, मेरा सर्वस्व इटली के वेदी पर बलिदान किया जायेगा।” इस घोषणा से कई राष्ट्रवादियों का यह विश्वास होगया कि इटली की स्वाधीनता तथा एकीकरण का सच्चा नेतृत्व पीडमोन्ट का शासक ही करेगा। चार्ल्स एल्बर्ट के अस्थिर चरित्र के बावजूद सार्डीनिया पीडमोन्ट के अपनी सेना निर्माण में चार्ल्स की देन सराहनीय है।

(vii) पोप की उदारवादी नीति-

पोप ग्रेगरी 16वें के देहावसान (1846 ई.) के पश्चात् वापस नवम् पोप बना। पोप पापस नवम् दयालु और उदार प्रवृत्ति का था। बहुत दिनों बाद एक ऐसा व्यक्ति पोप हुआ था, जो अपने चरित्र और स्वभाव से लोगों को नेतृत्व प्रदान कर सकता था। उसे इटली में परिवर्तन चाहनेवालों से सहानुभूति थी। उसने स्वयं ही पहल की। उसकी रिसायतों में राजनीतिक बंदी छोड़ दिये गये और प्रशासन में कई तरह के सुधार किये गये। उसके उदारवादी प्रशासन का प्रभाव पोप के राज्यों तथा तस्कनी पर पड़ना प्रारम्भ हो गया। इससे मेटरनिरव भयभीत हो उठा। आस्ट्रिया की सेना पोप के नगर फेरार में घुस गयी तथा पोप पर दबाव डालने का प्रयास करने लगी। पोप ने इसे स्वीकार नहीं किया। कैथोलिक जगत् का ध्यान पोप ने आकर्षित किया। चार्ल्स एल्बर्ट ने योप की सहायतार्थ सेना भेजी। यूरोपीय कैथोलिकों के विरोध में मेटरनिख घबरा गया। उसने अपनी सेना हटा ली।

(vii) 1848 ई. की क्रांति और इटली-

फ्रांस की क्रांति (1848 ई.) का प्रभाव इटली पर भी पड़ना स्वाभाविक था। फलतः वहाँ भी राष्ट्रीय आन्दोलन आरम्भ हो गयी। इटली ने 1848 ई. में क्रांति का उद्देश्य उदारवादी आर्थिक सुधार एवं संवैधानिक प्रशासन लागू करना तथा येनकेन-प्रकारेण एकीकरण तथा स्वतंत्रता प्राप्त कराना था।

सबसे पहले नेपिल्स और सिसली के राज्यों में सुधारवादी नेताओं ने विद्रोह किया और संविधान की मांग की। अंत में नेपिल्स के शासक इटली के कन्धों में आस्ट्रिया का जुआ उत्तार फेंका जाये। वियना की सूचना पाकर मिलान में विद्रोह हो गया और वहाँ का वाइसराय भाग गया।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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