इतिहास / History

फासीवाद का अर्थ | इटली में फाँसीवाद के उदय के कारण | मुसोलिनी का उत्कर्ष | मुसोलिनी तथा फाँसीवाद का अन्त | मुसोलिनी के पतन के कारण | इटली में फाँसीवाद का विकास

फासीवाद का अर्थ | इटली में फाँसीवाद के उदय के कारण | मुसोलिनी का उत्कर्ष | मुसोलिनी तथा फाँसीवाद का अन्त | मुसोलिनी के पतन के कारण | इटली में फाँसीवाद का विकास

फासीवाद का अर्थ

फासीवाद को साम्यवाद, पूंजीवाद साम्राज्यवाद और सैनिकवाद का मिश्रण कहा जा सकता है। फासीवाद के अन्तर्गत समस्त शक्ति राज्य में निहित होती है तथा एक डिक्टेटर होता है, जो उन शक्तियों का अपनी इच्छानुसार प्रयोग करता है फासीवाद में आर्थिक साधनों, शिक्षा पर राज्य का पूर्व नियन्त्रण रहता है, यद्यपि कुछ पूँजीपतियों को उनके कल-कारखानों का मालिक रहने दिया जाता है, किन्तु उन्हें समस्त कार्य राज्य के आदेशानुसार करने होते हैं। फासीवाद में मौलिक अधिकार, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, प्रेस की स्वतन्त्रता, राजनीतिक दल बनाने की स्वतन्त्रता आदि का अस्तित्व नहीं होता, इसके अन्तर्गत केवल एक (शासक) दल ही होता है। फासीवाद में संसद होती है, इसके लिए चुनाव भी कराये जाते हैं, किन्तु यह दल कोरा दिखावा होता है।

फासीवाद राज्य को एकमात्र महत्व देता है और इसके गौरव को बढ़ाने के लिए युद्ध करना नैतिक कर्तव्य समझता है। यह हिंसा पर आधारित विचारधारा है जिसमें विरोधियों को निर्दयतापूर्वक कुचल दिया जाता है। प्रथम महायुद्ध के बाद इटली, जर्मनी, पोलैण्ड, आस्ट्रिया, स्पेन, पुर्तगाल आदि में फासीवाद का उदय हुआ। फासीवाद के जन्मदाता प्लेटों, हींगल, नीत्शें आदि दार्शनिक माने जाते हैं।

इटली में फाँसीवाद के उदय के कारण

इटली में फाँसीवाद का उदय बेनितों मुसोलिनी के नेतृत्व में हुआ, जो आरम्भ में समाजवादी था, परन्तु बाद में कट्टर राष्ट्रवादी और साम्राज्यवादी बन गया। जो कारण इटली में फाँसीवाद के उदय में सहायक हुए, वे निम्नलिखित है-

  1. वर्साय की सन्धि से असन्तोष- प्रथम महायुद्ध में इटली ने मित्र राष्ट्रों के समर्थन में भाग लिया था, यद्यपि वह जर्मनी और आस्ट्रिया के गुट से बँधा हुआ था। मित्र राष्ट्रों ने लन्दन की सन्धि (जो गुप्त रखी गई थी) द्वारा इटली को अपने पक्ष में कर लिया था, जिसके अनुसार युद्ध में प्राप्त करने के पश्चात् इटली को अनेक यूरोपीय प्रदेश व उपनिवेश देने का आश्वासन दिया गया था। यद्यपि इटली के प्रधानमंत्री आरलैण्डों को शन्ति सम्मेलन में चार बड़ों के साथ रखा गया था, जब इटली को लन्दन की सन्धि के अनुसार भी प्राप्तियाँ नहीं हुई तो वहाँ की जनता में बहुत असन्तोष उत्पन्न हो गया और वह अपनी शासकों और शासन व्यवस्था को दोष देने लगी ऐसी स्थिति में फाँसीवाद को पनपने का अवसर मिला।
  2. देश की आर्थिक दुर्दशा- प्रथम महायुद्ध में भाग लेने के कारण इटली की आर्थिक दशा बहुत ही शोचनीय हो गयी थी। युद्ध के संचालन और अस्त्र-शस्त्र के निर्माण पर उसे बहुत धन व्यय करना पड़ा था। इटली की मुद्रा का मूल्य गिरने लगा, उत्पादन बहुत गिर गया, कीमतें बहुत बढ़ गई और बेकारी की समस्या ने उग्र रूप धारण कर लिया। इन सब कारणों ने जनता में असन्तोष और अधिक बढ़ा दिया जिसका लाभ फाँसीवादियों ने उठाकर अपने आन्दोलन की प्रगति की।
  3. राष्ट्रवादियों में असन्तोष- इटली के राष्ट्रवादी अपनी देश में प्राचीन गौरव स्थापितकर उसे विश्व का एक प्रमुख राज्य बनाना चाहते थे, परन्तु वर्साय सन्धि ने उन्हें क्रोधित कर दिया। इटली की सरकार फ्यूम पर अधिकार करने में असफल रही तो राष्ट्रवादियों का असन्तोष और अधिक बढ़ गया। उन्होंने कुछ समय के लिए फ्यूम पर अधिकार भी कर लिया था। ये ही राष्ट्रवादी फिसीवाद आन्दोलन में आगे रहे, क्योंकि उन्होंने इसके द्वारा ही इटली को महान राष्ट्र बनाना सम्भव समझा।
  4. सैनिकों में असन्तोष- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इटली की सेना को जर्मनी द्वारा रणक्षेत्रों पर पराजित कर दिया गया था, जिससे उसकी प्रतिष्ठा बहुत गिर गई थी। सैनिक नेताओं और सैनिकों ने इसके लिए अपने देश की सरकार और शासन व्यवस्था को दोषी समझा । सैनिकों के असन्तोष का फाँसीवादियों ने लाभ उठाया। इसके अतिरिक्त सेना से हटाए जाने पर बहुत से सैनिकों बेकार हो गये थे जिससे उनमें असन्तोष बढ़ गया था। वे ही बेकार सैनिक मुसोलिनी के काले कुर्ती दल के उत्साही सदस्य बन गए।
  5. सरकारी की निर्बलता- इटली की सरकार देश की आन्तरिक समस्याओं के समाधान के स्थान पर मिश्रित मन्त्रिमण्डल बनाने और किसी प्रकार सत्ता को अपने हाथों में बनाये रखने में ही अपनी शक्ति नष्ट करते रहते थे।1919 से 1922 के बीच इटली में चार मन्त्रिमण्डलों का गठन और विघटन हुआ। ये चारों मन्त्रिमण्डल इटली में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने तथा इटली की आर्थिक व सामाजिक स्थिति को सुधारने में असफल रहे। अतः देश में चारों ओर अशान्ति एवं अराजकता फैली हुई थी। जिससे इटलीवासियों में तीव्र असन्तोष व्याप्त था।
  6. साम्यवाद का भय- इटली की जनता के असन्तोष का लाभ उठाकर यहाँ के साम्यवादियों ने अपना प्रचार जोर-शोर से शुरू कर दिया था। यह देखकर इटली के शासक प्रतिक्रियावादी और पूँजीपति चिन्तित हो उठे। उन्होंने इसी कारण मुसोलिनी को आर्थिक व अन्य प्रकार की सहायता दी, क्योंकि उसने अपने को साम्यवाद का शत्रु नम्बर एक घोषित कर दिया था। इसके अतिरिक्त फाँसीवाद आन्दोलन को अनेक बुद्धिजीवियों और छात्रों का पर्याप्त सहयोग मिला।

मुसोलिनी का उत्कर्ष

मुसोलिनी के उत्कर्ष को निम्नलिखित सूत्रों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

  1. फाँसीवाद की स्थापना- प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद मुसोलिनी ने अपने अनुयायियों को संगठित किया और 1919 में फाँसीवाद की स्थापना की। इस दल का राष्ट्रीय आधार राष्ट्रीयता और साम्यवाद का विरोध था। अतः राष्ट्रवादियों ने बहुत उत्साहपूर्वक इस आन्दोलन में भाग लिया। इस दल ने राजनीतिक कार्यों में भाग लेना आरम्भ कर दिया तथा एक अर्द्ध-सैनिक स्वयंसेवी दल का गठन किया, जिसका कार्य सड़कों और गलियों में साम्यवादियों से भिड़ना था। मुसोलिनी इस दल का सर्वोच्च नेता था। वह एक कुशल तथा चतुर वक्ता था।
  2. फाँसीवाद की प्रगति व सफलता- धीरे-धीरे फासीवाद की शक्ति का विस्तार होने लगा और इटली के लगभग सभी नगरों में इसकी शाखाएँ स्थापित हो गयी। 1919 में इस दल के केवल 22 सदस्य ही थे, किन्तु कुछ ही समय में इसकी सदस्य संख्या हजारों में पहुँच गई। 1921 में फासिस्ट दल के सदस्यों की संख्या 3 लाख तक पहुँच गई थी।
  3. रोम पर चढ़ाई- अक्टूबर, 1922 में नेपतस में फासिस्ट दल का सम्मेलन हुआ जिसमें 40 हजार फासिस्ट स्वयंसेवकों ने भाग लिया। सम्मेलन में मुसोलिनी ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि “यो तो सरकार हमारे हाथ में सौंप दी जाए अथवा हम रोम पर आक्रमण करके स्वयं सत्ता छीन लेंगे।” जब इटली की सरकार ने मुसोलिनी की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया तो मुसोलिनी के नेतृत्व में हजारों फासिस्टों ने रोम की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने रेलवे स्टेशनों, डाकघरों तथा अन्य सरकारी कार्यालयों पर अधिकार कर लिया। प्रधानमंत्री फेफ्टा ने 28 अक्टूबर को त्याग पत्र दे दिया।
  4. मुसोलिनी का प्रधानमंत्री बनना- 29 अक्टूबर, 1922 को इटली के सम्राट विक्टर इमान्युल तृतीय ने मुसोलिनी को मन्त्रिमण्डल बनाने के लिए आमन्त्रित किया। 30 अक्टूबर, 1922 को मुसोलिनी इटली का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। इस प्रकार मुसोलिनी की सत्ता प्राप्ति की आकांक्षा पूरी हुई।
  5. फाँसीवादी सरकार का कार्य- सत्तारुढ़ होते ही मुसोलिनी ने अपनी डिक्टेटरशिप स्थापित कर दी, अन्य दलों को अवैध घोषित कर दिया गया और विरोधियों विशेषतया साम्यवादियों को जेल में लूंस दिया गया। आर्थिक साधनों पर राज्य का नियन्त्रण हो गया। फाँसीवाद के प्रचार के लिए शिक्षा, साहित्य और समाचार-पत्रों का सहारा लिया गया। व्यक्तिगत स्वतन्त्रतायें समाप्त कर दी गई। 1925-26 में ऐसे कानून पास किए गए जिनके अनुसार मुसोलिनी को शासन में सर्वोच्च अधिकार प्राप्त हो गया। स्थानीय शासन पर भी सरकार का पूर्ण नियन्त्रण हो गया। इसमें सन्देह नहीं कि इटली की फाँसीवादी सरकार ने उत्पादन में वृद्धि कर दी बेकारी कम कर दी, देश में अनुशासन स्थापित कर दिया और देश की आन्तरिक व्यवस्था सुदृढ़ कर दी, परन्तु इन सब काम के लिए इटली के नागरिकों को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इटली में लोकतन्त्र और उदारवाद का अन्त हो गया और देश में क्रुर अधिनायकवाद स्थापित हो गया, जिसने साम्राज्यवाद के पथ पर अग्रसर होकर अन्त में इटली को द्वितीय विश्व युद्ध में घसीट कर उसे अपार हानि पहुँचाई।

मुसोलिनी तथा फाँसीवाद का अन्त

1930 के बाद, जब इटली की आन्तरिक स्थिति सुदृढ़ हो चुकी थी, मुसोलिनी ने अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में रुचि लेना प्रारम्भ कर दिया। राष्ट्र संघ और विश्व जनमत की अवहेलना करते हुए उसने एबीसीनिया पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया और 1939 में अल्बानिया पर भी अधिकार कर लिया। 1940 में मुसोलिनी ने जर्मनी का साथ देते हुए मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध में इटली को सम्मिलित कर लिया। सितम्बर, 1943 में मुसोलिनी को अपदस्थ कर दिया गया। अप्रैल 1945 में इटली के निवासियों द्वारा ही वह मार डाला गया।

फाँसीवादी एवं मुसोलिनी के पतन के कारण- जैसा की उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि इटली में फाँसीवादका उदय प्रथम विश्व युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण हुआ। अपने शासन के प्रारम्भ में मुसोलिनी ने इटली की आर्थिक व्यवस्था को ठीक किया और देश में शांति, सुरक्षा वह इटली के लोगों के उनके प्राचीन गौरव को याद दिलाते हुए देश को पुनः महान् बनाने का प्रयत्न किया।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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