करारोपण के प्रभाव | करारोपण का उत्पादन पर प्रभाव | करारोपण का वितरण पर प्रभाव | करारोपण का आर्थिक स्थायित्व पर प्रभाव
करारोपण के प्रभाव | करारोपण का उत्पादन पर प्रभाव | करारोपण का वितरण पर प्रभाव | करारोपण का आर्थिक स्थायित्व पर प्रभाव
करारोपण के प्रभाव
करारोपण के प्रभावों का सामान्य आँकलन करें तो विदित होता है कि करों का आर्थिक प्रभाव एक व्यक्ति विशेष पर नहीं अपितु सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। यही कारण है कि इस युग में सरकार कर लगाने से पूर्व करारोपण के प्रभावों का उचित आँकलन करके न्यायपूर्ण करारोपण के प्रयास करती है। इस सन्दर्भ में डॉ0 डाल्टन का मत है कि, आर्थिक दृष्टि से सर्वोत्तम कर प्रणाली वही है जो समाज पर सबसे अच्छे या कम खराब आर्थिक प्रभाव डालती हो।” लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि करारोपण किसी भी उद्देश्य से क्यों न किया जाये ? उसके प्रभाव तो निश्चय ही अनुकूल या प्रतिकूल होंगे।
डॉ० डाल्टन ने करारोपण के प्रभावों को निम्न चार शीर्षकों में विश्लेषित किया है-
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करारोपण का उत्पादन पर प्रभाव-
करारोपण का उत्पादन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है क्योंकि सरकार जब नये कर लगाती है तो करदाता पर ही करों का प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि अनेक प्रकार से उत्पादन प्रभावित होता है। इसलिए करारोपण कभी उत्पादन को प्रोत्साहित करता है तो कभी हतोत्साहित करता है। डॉल्टन ने करारोपण उत्पादन सम्बन्धी प्रभावों को तीन भागों में वर्गीकृत किया है-
(क) कार्य एवं बचत की योग्यता- करारोपण का लोगों की कार्य करने एवं बचत करने की क्षमता पर सामान्यतः प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लेकिन आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न लोगों पर करारोपण का अलग प्रभाव परिलक्षित होता है। अध्ययन की सरलता के लिए इसे निम्न प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
(अ) लोगों की कार्य करने की क्षमता पर प्रभाव- करारोपण का लोगों की कार्यक्षमता पर सामान्यतः विपरीत प्रभाव पड़ता है, क्योंकि कर लगाने से गरीब वर्ग की क्रय शक्ति कम रह जाती है, वे अनिवार्य वस्तुओं तक में कटौती करने को बाध्य होते हैं। फलतः उनकी कार्यक्षमता घटती है जो उत्पादन के लिए अत्यन्त घातक होती है, इसीलिए निर्धन वर्ग पर करारोपण अन्यायपूर्ण है।
लेकिन अर्थशास्त्रियों का मत है कि धनी वर्ग पर करारोपण का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि धनी वर्ग से ज्यों ही करारोपण किया जाता है, वे सर्वप्रथम विलासितापूर्ण वस्तुओं में कटौती करते हैं। तत्पश्चात् आरामदायक वस्तुओं का उपभोग से हटाने लगते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि विलासितमुक्त व आरामदायक वस्तुओं के उपभोग से वंचित होने के कारण कार्यक्षमता में वृद्धि करते हैं।
(ब) लोगों की बचत करने की क्षमता पर प्रभाव- करारोपण का लोगों की बचत करने की क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। क्योंकि करों से लोगों की आय का एक हिस्सा जो बचत के लिए सुरक्षित किया जाता है, वह क्रय शक्ति घटने पर बचत में कटौती करता है। परिणामस्वरूप उपभोग पर भले ही प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, किन्तु बचत की दर घट जाती है। सरकार जब प्रत्यक्ष कर लगाती है तो आय का एक हिस्सा जो बचत हेतु सुरक्षित होता है, वह करों में भुगतान कर दिया जाता है। लेकिन अप्रत्यक्ष करों में बढ़ोत्तरी से वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है, जब उपभोक्ता पूर्व की भाँति उपभोग करता है तो उसकी व्यय मात्रा में वृद्धि होती है, जिससे करदाता की बचत क्षमता घट जाती है। परिणामस्वरूप निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(ख) कार्य एवं बचत की इच्छा पर प्रभाव- करारोपण का लोगों की कार्य एवं बचत की इच्छा पर विशेष प्रभाव पड़ता है। क्योंकि कार्य एवं बचत की इच्छा एक मानसिक परिस्थिति है। इस प्रकार लोगों की कार्य एवं बचत की इच्छा का आँकलन अत्यन्त कठिन है। अर्थशास्त्रियों ने कार्य एवं बचत की इच्छा के निम्कन प्रकार मूल्यांकित किया है-
(अ) लोगों की कार्य करने की इच्छा पर प्रभाव- करारोपण का लोगों की कार्य करने की इच्छा पर प्रभाव कर की प्रकृति एवं करदाता की मनोवैज्ञानिक दशा पर निर्भर करता है। अब करों की प्रकृति का विवेचन करें तो विदित होता है कि जैसी करों की प्रकृति एवं स्वभाव होगा, वैसा लोगों की काम करने की इच्छा पर प्रभाव पड़ता है। यदि प्रत्यक्ष करों की मात्रा अधिक है तो निश्चित ही लोगों की कार्य करने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष करों का लोगों की काम करने की इच्छा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। यदि सरकार लोगों की कार्य करने की इच्छा में वृद्धि चाहती है तो करों में छूट देनी पड़ती है। ऐसे करों को प्रेरक करारोपण कहते हैं।
करदाता की मनोवैज्ञानिक दशा भी उत्पादन को प्रभावित करती है। सामान्यतः करदाता की मानसिक दशा का कार्य करने की इच्छा पर इतना गहरा प्रभाव डालता है कि यदि करदाता का एक निश्चित आय पाने का लक्ष्य है तो वह कितनी ही प्रत्यन करे वह उतनी आय प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करता है। इस दशा को आय की बेलोच माँग कहते हैं।
(ब) लोगों की बचत करने की इच्छा पर प्रभाव- करारोपण का लोगों की बचत करने की इच्छा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, क्योंकि प्रत्यक्ष करों से लोगों की आय का एक हिस्सा सरकार के कोष में जाता है, ऐसी दशा में लोगों की बचत का भाग न्यून रह जाता है। अतः करदाता उपयोग व्यय में कोई कटौती न करके बचत को कम कर देते हैं। जबकि कुछ करदाता उपभोग में कटौती करके बचत को यथावत रखते हैं, क्योंकि वे भविष्य के प्रति सजग एवं स्पष्ट हैं। इसी प्रकार अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि से वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, अतः करदाताओं की क्रय शक्ति कम हो जाती है। ऐसी दशा में बचत करने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। डॉल्टन का मत है कि, “करारोपण व्यक्तिगत बचत एवं निवेश दोनों को निरुत्साहित करता है।”
(ग) करारोपण का आर्थिक संसाधनों के स्थानान्तरण पर प्रभाव- करारोपण आर्थिक संसाधनों के स्थानान्तरण अथवा पुनर्वितरण को प्रभावित करते हैं। लेकिन यह मिथ्या पूर्ण है कि करारोपण सदैव आर्थिक साधनों के स्थानान्तरण पर विपरीत प्रभाव ही डालते हैं। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों का मत था कि जब किसी उत्पादन के साधन को प्राकृतिक उपयोग से हटाकर नये उपयोग में स्थापित किया जाता है, तो वह उत्पत्ति की दृष्टि से विशेष लाभप्रद नहीं रह जाते हैं।
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करारोपण का वितरण पर प्रभाव-
समाजवादी समाज की रचना में करारोपण का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। सामान्यतः देशों में धन का असमान वितरण है। ऐसी दशा में करारोपण के माध्यम से धन का समान वितरण करने में मदद मिलती है। यदि सरकार धनी वर्ग पर ऊँचे कर वसूलती है और गरीब वर्ग को करों में छूट देती है तो आर्थिक वितरण की विषमता का उन्मूलन होता है। इसीलिए सरकार प्रगतिशील कर व्यवस्था लागू करती है। लेकिन प्रतिगामी कर व्यवस्था से धन का असमान वितरण प्रोत्साहित होता है। जिससे सरकार से विवेकपर्ण करारोपण की अपेक्षा होती है अतः प्रत्यक्ष करों से धन का समान वितरण सम्भव होता है। इसलिए आयकर, सम्पत्ति कर, मृत्यु क आदि की सीमा बढ़ाकर ही समाजवादी व्यवस्था लागू की जा सकती है। न्यायपूर्ण आर्थिक वितरण करने के लिए अप्रत्यक्ष कर उन्हीं वस्तुओं पर होने चाहिए, जिन्हें उच्च वर्ग उपभोग कर रहा है। यदि गरीब वर्ग के उपभोक्ता की वस्तुओं पर ऊँचे अप्रत्यक्ष कर निर्धारित हैं तो निश्चय ही गरीब वर्ग के जीवन स्तर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसी दशा में वितरण की समस्या अत्यन्त गहरा जाती है। इसीलिए संसार के सभी देश आवश्यक वस्तुएँ जिनका उपभोग सामान्य वर्ग करता है, उन पर न्यनूतम करारोपण होता है। अतः करारोपण समाज की आर्थिक दशा का निर्धारक मापदण्ड है।
प्रो० वेस्टेबल का मत है कि, “करारोपण की दृढ़ अवधारणा की विषमता को कम करने का एक साधन है, वित्तीय कला के अन्तर्गत कर की दरों को इस प्रकार चयनित करना चाहिए कि किसी वर्ग पर अनुचित दबाव डाले बगैर आवश्यक आगम प्राप्त हो सकें।” अतः अर्थशास्त्रियों का मत है कि सार्वजनिक व्यय एवं करारोपण दोनों ही धन की विषमता को कम करने के प्रभावशाली यन्त्र हैं।
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करारोपण का आर्थिक स्थायित्व पर प्रभाव-
आधुनिक युग में करारोपण का तात्पर्य सरकारी खजाने में बढ़ोत्तरी करना ही नहीं है बल्कि आर्थिक स्थायित्व प्रदान करना है। अतः किसी देश में करारोपण का अन्तिम लक्ष्य आर्थिक स्थायित्व देना है। इसीलिए कीमत नियंत्रण, रोजगार अवसरों में वृद्धि, उत्पादन में वृद्धि, वितरण की कुशलता एवं भुगतान को करारोपण के माध्यम से उचित मापदण्ड प्राप्त होते हैं। यदि आर्थिक स्थायित्व का विश्लेषण करें तो विदित होता है कि जब किसी देश में मुद्रा प्रसार में वृद्धि होती है तो वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं। ऐसी दशा में सरकार करों में बढ़ोत्तरी करके लोगों की आय करों के माध्यम से समेट लेती है। फलतः मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रित होती है तो कीमत वृद्धि पर नियंत्रण स्वाभाविक है। इसके विपरीत मुद्रा संकुचन (मन्दी) की स्थिति उत्पन्न होती है तो सरकार करों में कमी करती है एवं व्ययों में वृद्धि करती है जिससे आर्थिक स्थायित्व उत्पन्न होता है। आर्थिक स्थायित्व में यदि सरकार रोजगार अवसरों में वृद्धि करना चाहती है तो उसे उपभोग स्तर, बचत स्तर व आय स्तर को प्रोत्साहित करना होगा। फलतः करारोपण में कुछ छूट दी जाती है जिससे लोगों की बचत क्षमता प्रोत्साहित होती है जिसका प्रभाव निवेश में सम्भावित वृद्धि के रूप में उभरता है, इतना ही नहीं करों में छूट से लोगों के उपभोग में वृद्धि होती है। अतः वस्तुओं की बाजार में माँग बढ़ने पर उत्पादन प्रोत्साहित होता है, ऐसे में उद्योग स्थापित होकर पोषित होने लगते हैं। इससे रोजगार अवसरों में वृद्धि अवश्यम्भावी है।
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करारोपण के अन्य प्रभाव-
करारोपण से प्रभावित अन्य घटकों में मुख्य रूप से पूँजी निर्माण को समझा जाता है। क्योंकि करारोपण पूँजी निर्माण हेतु अति आवश्यक यंत्र है। क्योंकि अर्द्धविकसित देशों में पूँजी निर्माण की दर अत्यन्त भयावह है। यदि ऐसे देशों में पूँजी निर्माण दर में 12% से 5% तक वृद्धि नहीं होती है तो ऐसे राष्ट्र विकसित नहीं हो सकते हैं।
अतः करारोपण के माध्यम से बैंकिंग व्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकता है, यदि सरकार करों में छूट देकर बचतों को प्रोत्साहित करे तो निवेश को बल मिलता है, ऐसी दशा में पूँजी निर्माण सम्भव है।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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