विपणन प्रबन्ध / Marketing Management

कीमत नीति का अर्थ | कीमत नीति की परिभाषा | कीमत निर्धारण के लिए कीमत नीतियाँ

कीमत नीति का अर्थ | कीमत नीति की परिभाषा | कीमत निर्धारण के लिए कीमत नीतियाँ | Meaning of Pricing Policy in Hindi | Definition of Pricing Policy in Hindi | Pricing Policies for Pricing in Hindi

कीमत नीति का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Price Policy)

कीमत नीति वह आधारभूत ढाँचा या खाका होता है जिनके अन्तर्गत कीमत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उचित कीमत निर्णय लिये जाते हैं। अतः कीमत नीतियाँ वे निर्देशिकायें होती हैं जिनके अन्तर्गत कीमत नीति नीतियों का विकास किया जाता है। सरल शब्दों में, उत्पाद की कीमत निर्धारण करने की नीति को कीमत नीति कहते हैं। मूल्य निर्धारण के उद्देश्यों को तय कर लेने के बाद ही मूल्य नीतियों पर विचार किया जाता है और ऐसी मूल्य नीतियों को चुना जाता है जो उद्देश्यों के अनुरूप हो।

कण्डिफ एवं स्टिल के शब्दों में, “कीमत नीतियाँ निर्देश प्रदान करती हैं जिनके अन्तर्गत कीमत रीति-नीति निश्चित की जाती है और क्रियान्वित की जाती हैं।”

कीमत निर्धारण के लिए कीमत नीतियाँ

(Pricing Policies for Price Determination)

एक फर्म वस्तु की कीमत निर्धारण के लिए निम्नलिखित कीमत नीतियों का प्रयोग कर सकती है-

  1. प्रतिस्पर्धा मिलन कीमत नीति- इस प्रकार की कीमत नीति के अन्तर्गत एक फर्म अपनी वस्तु की कीमत प्रायः प्रतिस्पर्धियों की कीमत के अनुसार ही निर्धारित करती है। जिससे की कीमत विहीन प्रतिस्पर्धा का सामना किया जा सके।
  2. प्रतिस्पर्धा से ऊँची कीमत नीति- इस नीति का प्रयोग किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। प्रायः कुछ क्रेता वस्तु की कीमत को ही उस वस्तु की किस्म या गुण का प्रतीक मानते हैं कि यदि वस्तु की कीमत अधिक है तो वस्तु अच्छी होगी। अतः वस्तु की कीमत प्रतिस्पर्धियों की कीमत से ऊँची होने पर उनके मनोविज्ञान पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यह बात विशेषकर उन वस्तुओं पर अधिक लागू होती है जो प्रतिष्ठावान वस्तुएँ होती हैं या जिन वस्तु के तकनीकी गुणों और विशेषताओं की पहचान करना सामान्य क्रेताओं के लिए कठिन होता है। अतः अपनी वस्तु को उच्च गुण व विशेषता वाली सिद्ध करने के लिए कभी कभी प्रतिस्पर्धा से ऊंची कीमत निर्धारित करने की नीति अपनायी जाती है।
  3. प्रतिस्पर्धा से निम्न कीमत नीति- कुछ निर्माता या उत्पादक प्रतिस्पर्धा से कम कीमत निर्धारित करने की नीति को अधिक प्राथमिकता देते हैं। उनका तर्क यह है कि वस्तु की कम कीमत निर्धारण करके आसानी से प्रतिस्पर्धा का सामना किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त विज्ञापन के अभाव या इस पर कम व्यय, कम लाभ प्राप्त करने की इच्छा तथा बड़े पैमाने के उत्पादन की मितव्ययितायें प्राप्त करने के लिए भी वस्तु की कीमत निर्धारित की जाती है।
  4. लागत सम्बन्ध नीतियाँ – प्रायः अनेक कम्पनियाँ कीमत और लागत सम्बन्ध के आधार पर अपनी वस्तु की कीमत निर्धारित करती है। दीर्घकाल के लिए ऐसी कीमत निर्धारित करनी चाहिए जिससे कि सभी लागतों को वसूल किया जा सके जबकि अल्पकाल के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अल्पकाल की सभी लागतों को वसूल किया जाये। यदि मन्दी का समय है या बहुत प्रतिस्पर्धा है तो अल्पकाल में परिवर्तनशील ललागतो के आधार पर भी कीमत निर्धारित की जा सकती है। अतः कीमत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पूर्ण लागत या सीमान्त लागत नीति को अपनाया जा सकता है।
  5. एक कीमत बनाम परिवर्तनशील कीमत नीति – प्रायः विपणनकर्त्ता किसी वस्तु की एक कीमत निश्चित करना अधिक पसन्द करते हैं। ऐसा करने से प्रमुख रूप से तीन लाभ होते हैं – प्रथम, इससे प्रत्येक विक्रय से एक समान प्रतिफल प्राप्त होता है और इस नीति से कुल विक्रय मात्रा और लाभ की भविष्यवाणी करने में न्यूनतम कठिनाई होती है। द्वितीय, विभिन्न ग्राहकों से कीमत में सौदेबाजी न करने के कारण विक्रय समय और विक्रय लागतों में कमी आती है। तृतीय, विभिन्न ग्राहकों से अलग-अलग कीमत न प्राप्त करने से उनमें (भेदभाव) वैमनस्य उत्पन्न नहीं होता है।

इसके विपरीत, जहाँ पर व्यक्तिगत विक्रय बड़ी मात्रा और कम मात्रा दोनों में होता है वहाँ पर परिवर्तनशील कीमत अपनायी जा सकती है। ऐसी नीति सब प्रकार के ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए प्रयोग की जाती है।

  1. कीमत विभेद नीति- इस नीति में कीमत विभेद क्रय की मात्रा, ग्राहकों की भौगोलिक स्थिति, आदि के आधार पर किया जाता है, जैसे-

(1) परिमाण या मात्रा छूट – परिमाण बट्टा उन ग्राहकों को दिया जाता है जो कि एक निश्चित मात्रा से अधिक वस्तुयें क्रय करते हैं। उदाहरण के लिए 100 इकाइयां खरीदने पर कोई छूट नहीं लेकिन 100 से अधिक इकाइयाँ खरीदने पर 5% छूट दी जाएगी।

(2) नकद छूट- यह छूट उन क्रेताओं को दी जाती है जो नकद खरीदते हैं या तुरन्त भुगतान करते हैं। उदाहरण के लिए उधार माल खरीदने पर कोई छूट नहीं परन्तु नकद माल खरीदने पर 2% छूट दी जायेगी।

(3) व्यापारिक छूट- यह छूट मध्यस्थों द्वारा किये जाने वाले कार्यों या सेवाओं के आधार पर दी जाती है जैसे थोक विक्रेता अधिक माल का स्टॉक करते हैं और फुटकर विक्रेताओं को साख प्रदान करते हैं। अतः उन्हें अधिक छूट दी जाती है।

(4) गैर-मौसम छूट- ऐसी वस्तुयें जिनका उपयोग किसी विशिष्ट मौसम में ही किया जाता है तो उनकी प्रतिकूल मौसम में बिक्री बढ़ाने के लिए कीमत में छूट दी जाती है। जैसे- सर्दियों के मौसम में बिजली के पंखे, कूलर, फ्रिज आदि पर छूट दी जाती है।

(5) भौगोलिक छूट- भौगोलिक स्थिति के आधार पर ऐसी छूट दी जाती है। जैसे-जैसे निर्माण स्थल से बाजार की दूरी बढ़ती जाती है वैसे-वैसे यातायात की। यातायात के व्यय विक्रेता वहन करेगा।

  1. परम्परागत कीमतें- कुछ वस्तुओं के लिए परम्परागत कीमतों का प्रयोग किया जाता है, जैसे- एक टाफी की कीमत 15 पैसे। ऐसी कीमतों से विक्रेता और क्रेता दोनों परिचित होते हैं। ऐसी कीमतों में परिवर्तन का उपभोक्ता विरोध करते हैं। ऐसी वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन की अपेक्षा वस्तु के आकार या किस्म में परिवर्तन किये जाते हैं।
  2. पुनः विक्रय कीमत अनुरक्षण नीति- प्रायः उत्पादों या निर्माताओं का वस्तु की कीमत पर नियन्त्रण उस समय तक ही रहता है जब तक वे मध्यस्थों को वस्तुओं का विक्रय करते हैं। परन्तु कुछ निर्माता मध्यस्थों द्वारा अन्तिम उपभोक्ताओं को वस्तुयें विक्रय करते समय कीमतों पर नियन्त्रण रखना चाहते हैं अर्थात वे चाहते हैं कि मध्यस्थों द्वारा वस्तु का विक्रय उनके द्वारा निर्धारित की गई कीमतों पर ही किया जाये। ऐसी कीमत नीति को ‘पनः विक्रय कीमत अनरक्षण नीति’ कहा गया है। यह नीति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम सम्भावित पुनः विक्रय कीमतें एवं द्वितीय सन्नियम द्वारा समर्थित पुनः विक्रय कीमत अनुरक्षण कीमत नीति। प्रथम विधि के अन्तर्गत सम्बन्धित कीमतों के लिए कीमत सूचियों का प्रयोग किया जाता है। यह सूचियाँ मध्यस्थों का मार्ग दर्शन करती हैं। द्वितीय विधि के अनुसार निर्धारित की गई कीमतों का दृढ़ता से पालन किया जाता है और मध्यस्थों को उस कीमत में परिवर्तन करने का अधिकार नहीं होता।

निष्कर्ष –

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि एक फर्म के लिए अनेक कीमत नीतियाँ उपलब्ध हैं, जिनका प्रयोग कीमत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जा सकता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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