शिक्षाशास्त्र / Education

माध्यमिक शिक्षा आयोग का प्रतिवेदन | मुदालियर कमीशन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य | माध्यमिक शिक्षा से सम्बन्धित मुदालियर आयोग के सुझाव | तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के दोष

माध्यमिक शिक्षा आयोग का प्रतिवेदन | मुदालियर कमीशन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य | माध्यमिक शिक्षा से सम्बन्धित मुदालियर आयोग के सुझाव | तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के दोष

माध्यमिक शिक्षा आयोग का प्रतिवेदन

(Report of the Secondary Education Commission)

आयोग ने भारत के विभिन्न प्रान्तों की तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा का अध्ययन करने तथा उसम सुधार के लिए सुझाव देने हेतु दो अध्ययन प्रणालियों को अपनाया-

(1) प्रथम, प्रश्नावली प्रणाली,

(2) द्वितीय, साक्षात्कार प्रणाली,।

(1) सर्वप्रथम, आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित एक विस्तृत प्रश्नावली (Questionnaire) तैयार कर उसकी प्रतियों को देश के विभिन्न भागों के कुछ माध्यमिक शिक्षकों एवं प्रधानाचार्यों और कुछ उच्च शिक्षा शिक्षकों एवं शिक्षाविदों के पास भेजा। तत्पश्चात् उसने प्राप्त प्रश्नावलियों के मतों और सुझावों का सांख्यिकीय विवरण तैयार किया।

(2) द्वितीय, अयोग ने सम्पूर्ण देश का भ्रमण कर कतिपय माध्यमिक स्कूलों का निरीक्षण किया, उनके शिक्षकों और प्रधानाचार्यों से भेंट की और यथासम्भव शिक्षाविदों से भेंट कर उनके विचारों को ज्ञात कर इन सबको लेखाबद्ध किया।

तत्पश्चात् आयोग ने इन दोनों अध्ययनों के आधार पर विचार-विमर्श कर अपनी रिपोर्ट तैयार कर उसे 29 अगस्त, 1953 को भारत सरकार को प्रेषित कर दिया। यह प्रतिवेदन 244 पृष्ठों का एक बड़ा दस्तावेज है।

मुदालियर कमीशन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

(Aims of Education According to Mudaliar Commission)

मुदालियर कमीशन ने भारत की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर आयोग में शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये हैं-

(1) व्यावसायिक कुशलता में उन्नति (Improvement in Vocational Efficiency)- माध्यमिक शिक्षा का पहला उद्देश्य छात्रों में व्यावसायिक कुशलता की उन्नति करना होना चाहिए। अत: माध्यमिक शिक्षा में औद्योगिक एवं व्यावसायिक विषयों को स्थान दिया जाना चाहिये। इन विषयों की शिक्षा से छात्रों और देश दोनों का हित होगा। छात्र अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् किसी व्यवसाय को स्वतन्त्र रूप से ग्रहण कर सकेंगे। अत: उनको नौकरी खोजने के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। देश का हित यह होगा कि उसे अपने विभिन्न उद्योगों तथा व्यवसायों के लिये प्रशिक्षित व्यक्ति सरलता से मिल जायेंगे।

(2) नेतृत्व का विकास (Development of Leadership)- माध्यमिक शिक्षा का दूसरा उद्देश्य छात्रों में नेतृत्व ग्रहण करने की क्षमता का विकास करना होना चाहिए। अत: माध्यमिक शिक्षा का आयोजन इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे छात्र सामाजिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक, व्यावसायिक और राजनीतिक क्षेत्रों में नेतृत्व का दायित्व ग्रहण कर सकें। प्रजातन्त्र तभी सफल हो सकता है, जब इन क्षेत्रों से नेतृत्व का दायित्व ग्रहण करने वाले व्यक्ति उपलब्ध हों।

(3) जनतन्त्रीय नागरिकता का विकास (Development of Democratic Citizenship)- माध्यमिक शिक्षा का तीसरा उद्देश्य छात्रों में जनतन्त्रीय नागरिकता का विकास करना होना चाहिये। अतः माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार की जानी चाहिये, जिससे छात्रों में अनुशासन, देश-प्रेम सहयोग, सहिष्णुता, स्पष्ट विचार आदि गुणों का विकास हो। इन गुणों से सम्पन्न होकर छात्र इस देश के योग्य नागरिक बनेंगे तथा भारत में धर्म-निरपेक्ष गणतन्त्र की स्थापना में योगदान देंगे। इसी गणतन्त्र की स्थापना करना भारत का उद्देश्य है।

(4) व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality)- माध्यमिक शिक्षा का चौथा और अन्तिम उद्देश्य छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना होना चाहिये। अत: माध्यमिक शिक्षा का संगठन इस प्रकार किया जाना चाहिये, जिससे छात्रों का साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक विकास हो। इस विकास के फलस्वरूप छात्र अपनी सांस्कृतिक विरासत के महत्त्व को समझ सकेंगे और उसकी वृद्धि में योगदान दे सकेंगे।

माध्यमिक शिक्षा से सम्बन्धित मुदालियर आयोग के सुझाव

(Suggestions of Mudaliar Commission)

मुदालियर आयोग ने अपने प्रतिवेदन में सर्वप्रथम तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के दोषों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया और तत्पश्चात् उन्हें दूर करने और माध्यमिक शिक्षा को और अधिक सार्थक बनाने के लिए पूरी रूप-रेखा प्रस्तुत की। इनका विवरण निम्न प्रकार है-

तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के दोष

(Defects in the Contemporary Secondary Education)

आयोग ने पूरे देश की माध्यमिक शिक्षा का विस्तृत सर्वेक्षण कर उसके निम्नलिखित दोष प्रकट किए-

(1) एकपक्षीय (One-Sided)- प्रायः सभी प्रान्तों में माध्यमिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल विश्वविद्यालयी शिक्षा में प्रवेश पाना है। यह छात्रों में सहयोग, अनुशासन और नेतृत्व आदि गुणों का विकास नहीं करती, यह एकपक्षीय है।

(2) अव्यावहारिक (Impracticable)-  माध्यमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम अव्यावहारिक है क्योंकि इसका बच्चों के वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है।

(3) संकीर्ण (Narrow)- माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम संकीर्ण है। अतएव यह बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं करते।

(4) अंग्रेजी पर बल (Emphasis on English) अंग्रेजी पाठ्यक्रम का अनिवार्य विषय बनी हुई है, कुछ प्रान्तों में अंग्रेजी अभी तक शिक्षा का माध्यम भी है।

(5) दोषपूर्ण (Defective)- शिक्षण विधियाँ दोषपूर्ण हैं। उतम शिक्षण विधियों का प्रयोग नहीं किया जाता।

(6) अनुपयुक्त समय सारणी (Improper Time-Table)- स्कूलों की समय-सारणी भी उपयुक्त नहीं है।

(7) अत्यधिक छात्र संख्या (Excessive Students Number)-  स्कूलों में छात्रों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण शिक्षक और छात्रों के मध्य निकट के सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाते।

(8) योग्य शिक्षकों का अभाव (Lack of Able Teachers)-  स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के उचित मापदण्ड नहीं है। परिणामतः प्राय: योग्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होती।

(9) सहपाठ्याचारी क्रियाओं का अभाव (Absence of Extra-Curricular Activities)- स्कूलों में जापाव्यकारी क्रियाओं की उचित व्यवस्था का सर्वथा अभाव है।

(10) दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली (Defective Examination system)- माध्यमिक स्तर पर प्रयोग की जाने वाली परीक्षा प्रणाली भी दोषपूर्ण है, इससे बच्चों के ज्ञान एवं कौशल की सही परख नहीं होती।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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