मध्य गंगा घाटी का सांस्कृतिक अनुक्रम | अनु-पुरापाषाण काल | आरम्भिक मध्य पाषाण काल | परवर्ती मध्य पाषाण काल | सराय नाहर राय | गंगाघाटी के सांस्कृतिक अनुक्रम की विवेचना

मध्य गंगा घाटी का सांस्कृतिक अनुक्रम | अनु-पुरापाषाण काल | आरम्भिक मध्य पाषाण काल | परवर्ती मध्य पाषाण काल | सराय नाहर राय | गंगाघाटी के सांस्कृतिक अनुक्रम की विवेचना

मध्य गंगा घाटी का सांस्कृतिक अनुक्रम

गंगा का विशाल, चौरस मैदान हिमालय पर्वत तथा दक्षिण के पठारी भाग के बीच में स्थित है। यह मैदान यमुना-गंगा और उनकी अनेक सहायक नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़क (कॉप) मिट्टी से निर्मित है। इस मैदान में जलोढ़क मिट्टी का बहुत मोटा जमाव है। भूतात्विक दृष्टि से गांगेय क्षेत्र की जलोढ़क मिट्टी को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  1. भाँगर, 2. खादर। .

भाँगर अपेक्षाकृत पुराना, जलोढ़क जमाव है जिसका निर्माण प्रातिनूतन काल में हुआ। इसमें सोडियम तथा कैल्शियम अधिक मात्रा में मिलता है। बड़े-बड़े कंकड़ इस जमाव में काफी मिलते हैं। जिस समय भाँगर के ऊपरी स्तर का निर्माण हो रहा था, उसी समय मध्य गंगा घाटी में मध्य पाषाण काल के मानव का पदार्पण हुआ। उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र में जलवायु के परिवर्तन तथा जनसंख्या में वृद्धि के फलस्वरूप मध्य पाषाणिक मानव को मध्य मंगा घाटी में आने के लिए बाध्य होना पड़ा होगा।

खादर में वनस्पतियों के अंश का आधिक्य है तथा फॉस्फोरस आदि कार्बनिक तत्त्वों की न्यूनता है। मध्य पाषाण काल के अनुसंधान की दृष्टि से इस जमाव का कोई विशेष महत्त्व नहीं है।

गंगा के मैदान को भौगोलिक बनावट की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. ऊपरी गंगा घाटी,
  2. मध्य गंगा घाटी तथा
  3. निचली गंगा घाटी।

इनमें से केवल मध्य गंगा घाटी में ही मध्य पाषाण काल के लघु पाषाण उपकरणों के सम्बन्ध में अनुसंधान हुआ है। अन्य क्षेत्रों में भी अन्वेषण करने पर मध्य पाषाण काल के पुरावशेषों के मिलने की संभावना है। मध्य गंगा घाटी में गंगा-गोमती के बीच में स्थित क्षेत्र में अनेक गोखर झीलें विद्यमान हैं। इन झीलों का निर्माण गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के मार्ग-परिवर्तन के फलस्वरूप परित्यक्त सर्पिल मोड़ों से हुआ है। अनेक झीलें कालान्तर में निक्षेपण के पलस्वरूप पूरित हो गई हैं लेकिन कतिपय आज भी विद्यमान हैं। मध्य गंगा घाटी की इन्हीं झीलों के तटों अथवा उनके समीपवर्ती स्थानों को मध्य पाषाण काल के मानव ने अपने प्रवास-स्थलों (Camp-sites) के रूप में चुना था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग ने मध्य गंगा घाटी में सन् 1971-72 ईसवी से लेकर अब तक जो अन्वेषण एवं उत्खनन किये हैं उनसे मध्य गंगा घाटी के मध्य पाषाण काल के विषय में प्रकाश पड़ा है। अन्वेषण के फलस्वरूप मध्य पाषाण काल के 198 पुरास्थलों के विषय में जानकारी प्राप्त हुई है जिनको उपकरणों के आकार-प्रकार तथा निर्माण की तकनीक में भिन्नता के आधार पर तीन उपकालों में विभाजित किया गया है-

  1. अनु-पुरापाषाण काल (Epi-Palaeolithic),
  2. आरम्भिक मध्य पाषाण काल (Early Mesolithic),
  3. परवर्ती मध्य पाषाण काल (Late Mesolithic)।

अनु-पुरापाषाण काल के अभि तक 5 पुरास्थल ज्ञात हैं। इन पुरास्थलों में से अहिरी इलाहाबाद जिले में, गढ़वा वाराणसी जिले में, मन्दाह, साल्हीपुर तथा सुलेमान-पर्वतपुर प्रतागढ़ जिले में स्थित है। अनु-पुरापाषाण काल के उपकरण अपेक्षाकृत बड़े एवं मोटे आकार के हैं। इनमें से समानान्तर तथा कुण्ठित पार्श्व वाले ब्लेड, बेधक (प्वाइन्ट्स), चान्द्रिक, खुरचनी (स्क्रेपर), छिद्रक तथा ब्यूरिन आदि प्रमुख उपकरण हैं। इन उपकरणों का निर्माण मुख्यतः चर्ट पर हुआ है। प्रथम वर्ग के इन उपकरणों को उच्च पुरापाषाण काल एवं मध्य पाषाण काल के मध्यवर्ती संक्रमण काल में रखा गया है इसलिए इन उपकरणों को अनु- पुरापाषाण काल के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया है।

आरम्भिक मध्य पाषाण काल के अभी तक 172 पुरास्थल ज्ञात हैं। इन वर्ग के पुरास्थलों से अज्यामितीय लघु पाषाण उपकरण मिले हैं। समानान्तर एवं कुण्ठित पार्श्व वाले ब्लेड, बेधक, खुरचनी, चान्द्रिक आदि प्रमुख लघु पाषाण उपकरण हैं जिनका निर्माण चर्ट, चाल्सेडनी, अगेट तथा कार्नेलियन आदि पर किया गया है। द्वितीय वर्ग के उपकरण प्रथम वर्ग के उपकरणों की तुलना में छोटे हैं।

तृतीय वर्ग में परवर्ती मध्य पाषाण काल को रखा गया है। इस वर्ग के 21 पुरास्थल ज्ञात हैं। प्रतापगढ़ जिले में स्थित सराय नाहर राय, महदहा, दमदमा (बारीकलाँ), इलाहाबाद जिले में स्थित बिछिया और जौनपुर जिले में लोहिना, नगोली तथा पुरा गंभीरशाह आदि परवर्ती मध्य पाषाण काल के प्रमुख पुरास्थल हैं। अन्य लघु पाषाणिक उपकरणों के अतिरिक्त त्रिभुज एवं समलम्ब चतुर्भुज आदि ज्यामितीय उपकरण मिले हैं जिनके निर्माण में चर्ट, चाल्सेडनी, अगेट, कार्नेलियन, जैस्पर आदि का प्रयोग किया गया है। पत्थर के लघु पाषाण उपकरणों के अतिरिक्त पशुओं की हड्डियों तथा सींगों के उपकरण तथा आभूषण भी सराय नाहर राय, महदहा तथा दमदमा नामक इन तीन उत्खनित पुरास्थलों से मिले हैं। मिट्टी के बर्तनों के अवशेष किसी भी पुरास्थल से नहीं मिले हैं। सराय नाहर राय, महदहा तथा दमदमा के उत्खनन से मानव कंकाल मिले हैं। उत्खनित पुरास्थलों से पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं।

मध्य गंगा घाटी के प्रतापगढ़ जिले में स्थित सराय नाहर राय, महदहा तथा दमदमा का उत्खनन हुआ है जिसके उत्खनन के परिणामस्वरूप मध्य गंगा घाटी के मध्य पाषाण काल के विषय में उल्लेखनीय जानकारी प्राप्त हुई है। लघु पाषाण उपकरण, पशुओं के सींग के बने हुए उपकरण एवं आभूषण, वन्य पशुओं की हड्डियाँ और मानव कंकाल उपर्युक्त इन तीनों पुरास्थलों से मिले हैं। मध्य गंगा घाटी में मध्य पाषाण काल की खोज का इस प्रकार अनेक दृष्टियों से महत्त्व है।

सराय नाहर राय-

नामक मध्य पाषाणिक पुरास्थल प्रतापगढ़ के जनपद मुख्यालय से 15 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में सूखी हुई एक गोखुर झील के किनारे पर स्थित है। यद्यपि झील लगभग पूरित हो गई है तथापि इसकी रूपरेखा स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है। इस पुरास्थल की खोज सन् 1969 में उत्तर प्रदेश शासन के पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन निदेशक स्वर्गीय के०सी० ओझा ने किया था। सन् 1970 में उत्तर प्रदेश के पुरातत्त्व विभाग ने भारतीय नृतत्त्व सर्वेक्षण के पी० सी० दत्त के सहयोग से एक मानव कंकाल का उत्खनन कराया था। तत्पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग ने उत्तर प्रदेश शासन के वित्तीय सहयोग से सन्1971-72 तथा 1972-73 में अपेक्षाकृत बड़े पैमाने पर सराय नाहर राय का उत्खनन कराया था। स्वर्गीय जी० आर० शर्मा के निर्देशन में आर० के० वर्मा, वी०डी० मिश्र आदि ने उत्खनन कार्य का संचालन किया था।

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