मजदूरी सिद्धान्त | लाभ सिद्धांत | रिकाडों के मजदूरी तथा कर सम्बन्धी सिद्धांत की व्याख्या
मजदूरी सिद्धान्त | लाभ सिद्धांत | रिकाडों के मजदूरी तथा कर सम्बन्धी सिद्धांत की व्याख्या
मजदूरी सिद्धान्त
(Theory of Wages)
रिकाओं का मजदूरी सिद्धान्त एक प्रकार से जीवन निर्वाह’ सिद्धान्त (Subsistence Theory) है, जिसके अनुसार मजदूरी को प्राकृतिक सापा र दर पमिक को जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक न्यूनतम आवश्यकताओं द्वारा निर्धारित होती है। श्रम की प्रकृति ठीक अन्य उन वस्तुओं के समान है, जिनका बाजार में क्रय विक्रय किया जाता है एवं जिनकी पूर्ति में कमी की जा सकती है। अम का प्राकृतिक मूल्य (वेतन) यह मूल्य है, जो श्रमिकों की पूर्ति को स्थिर बनाये रखने के लिए श्रमिकों को निश्चित रूप से प्राप्त होना चाहिए। यदि वेतन की वास्तविक दर इस प्राकृतिक मूल्य से कम होगी तो प्राकृतिक कारणों से श्रमिकों की पूर्ति कम हो जायेगी और परिणामस्वरूप वेतन दर बढ़कर प्राकृतिक मूल्य के बराबर हो जायेगी। इसके विपरीत, यदि वास्तविक वेतन प्राकृतिक वेतन से अधिक है, तो श्रमिक कम आयु में ही विवाह करके अधिक बच्चे पैदा करके मजदूरों की पूर्ति में वृद्धि करेंगे, जिससे आगे चलकर वास्तविक वेतन दर प्राकृतिक वेतन दर के बराबर हो जायेगी। इस तरह से दीर्घकाल में वास्तविक वेतन दर की प्रकृति प्राकृतिक वेतन दर के बराबर होने की रहती है।
जीवन निर्वाह स्तर के बारे में रिकार्डो का यह विचार अधिक सटीक प्रतीत होता है कि जीवन-निर्वाह स्तर में देश, काल एवं समय के साथ परिवर्तित होता रहता है। इसका निर्धारण लोगों की आदतों तथा रीति-रिवाजों द्वारा होता है।
यद्यपि रिकार्डो ने मजदूरी निर्धारण में जीवन निर्वाह सिद्धान्त को प्रमुखता दी है, तथापि उनका विश्वास था कि आर्थिक विकास के साथ पूँजी का अधिक प्रयोग होने से श्रमिकों की मांग में वृद्धि हो जाने के फलस्वरूप श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी दर अनिश्चित काल तक उनकी प्राकृतिक वेतन दर से अधिक हो सकती है।
आलोचना-
इस सिद्धान्त की आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) यह सिद्धान्त एक पक्षीय है, क्योंकि यह अमिकों के पूर्ति पक्ष पर अधिक ध्यान देता है तथा माँग पक्ष को उपेक्ष करता है।
(2) इस सिद्धान्त का दृष्टिकोण निराशावादी है, क्योंकि सिद्धान्त के अनुसार वास्तविक मजदूरी दर कभी भी प्राकृतिक मजदूरी दर से अधिक नहीं हो सकती।
(3) इस सिद्धान्त की यह धारणा भ्रमात्मक है कि अधिक मजदूरी प्राप्त होने पर श्रमिक भोग -विलास का जीवन व्यतीत करते हुए अधिक बच्चे पैदा करेंगे।
लाभ सिद्धांत
(Theory of Profit)
रिकार्डों ने लाभ और ब्याज दोनों को ही पूजी का प्रतिफल माना है। रिकार्डों के अनुसार, आधिक प्रगति होने पर लाभ की मात्रा में कमी होने की प्रवृत्ति रहती है, क्योंकि समाज में धन की प्रगति के साथ-साथ लगान और श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि होने लगती है इसलिये लाभ की मात्रा कम हो जाती है। रिकार्डों का विचार था कि कुल उत्पादन में से लगान, जो जनसंख्या में वृद्धि होने तथा कृषि में हास्समान प्रतिफल नियम लागू होने के कारण निरन्तर बढ़ता रहता है, निकाल कर शेष भाग को भू-स्वामी श्रमिकों तथा पूंजीपतियों को आपस में बांटने के लिए दे देता है। ऐसी स्थिति में यदि श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि होती है तो निश्चित रूप से पूंजीपतियों के लाभ में कमी होगी। इस तरह, रिकार्डो के अनुसार श्रमिक और पूँजीपति के हितों में पारस्परिक विरोधाभास है, जिसके परिणामस्वरूप उनमें सदैव ही संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। यहाँ रिकार्डो का यह मत अधिक महत्त्वपूर्ण है कि सामाजिक प्रगति के साथ लाभ की दर में कमी होते जाना दीर्घकाल में श्रमिकों के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है, क्योंकि लाभ को नीची दर से कुप्रभावित होकर विनियोग कम होंगे तथा रोजगार का स्तर नीचा रहने के कारण श्रमिकों की क्रयशक्ति नीची रहेगी।
आलोचना-
रिकार्डो के लाभ सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर की जाती है-
(1) रिकार्डो लाभ तथा ब्याज को एक ही मानते हैं जो यथार्थ में गलत है।
(2) रिकार्डों का यह मत भी गलत है कि प्रत्येक आर्थिक प्रगति के साथ अनाज के मूल्यों में वृद्धि हो जाती है।
(3) ऐतिहासिक प्रमाण द्वारा भी इस सिद्धान्त की पुष्टि नहीं होती।
अन्य सिद्धान्त
कराधान सम्बन्धी विचार
(Ideas Relating to Taxation)
डेविड रिकार्डो की प्रसिद्ध पुस्तक “Principles of Political Economy and Taxation” का एक तिहाई भाग कराधान की व्याख्या से सम्बन्धित है। रिकार्डो ने कराधान के सामान्य सिद्धान्तों तथा वर्गीकरण के सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा है। कर इस प्रकार का होना चाहिये कि अर्थव्यवस्था में पूँजी के संचय पर इसका न्यूनतम प्रभाव पड़े। इनका भार करदाताओं को आय पर पड़ना चाहिये, पूँजी के संचय पर नहीं। यदि करों का भार पूँजी पर पड़ेगा तो पूँजो के संचय में कमी होकर मजदूरी कोष का आकार कम हो जायेगा जिसके फलस्वरूप देश में भविष्य में उत्पादन में कमी हो जायेगी। कर वस्तुओं की कीमतों, लगान तथा लाभों पर लगाये जा सकते हैं। रिकार्डो मजदूरी पर कर लगाने के पक्ष में नहीं थे क्योंकि मजदूरी मजदूरों के जोवन निर्वाह स्तर के द्वारा निर्धारित होती है इस कारण श्रमिकों की करदान क्षमता शून्य होगी। रिकार्डो लगान पर कर लगाना इसलिये उचित समझते थे क्योंकि लगान भूस्वामी को प्राप्त परिश्रम रहित आय थी। इसके अतिरिक्त कच्चे माल पर लगाये कर को कृषकों पर लगाया जा सकता था क्योंकि इसका भार अधिकांशत: उपभोक्ता पर पड़ेगा। रिकार्डो की लाभों पर कर लगाने की व्याख्या दोषपूर्ण है। रिकार्डो ने कराधान के किसी सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया था।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन | माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त का महत्त्व
- माल्थस का अल्प उपभोग | माल्थस का अत्युत्पाद्न सिद्धान्त | अत्युपादन सिद्धान्त की विशेषताएँ | माल्थस के अत्युत्पादन सिद्धान्त का मूल्यांकन
- रिकार्डो का मूल्य सिद्धान्त | रिकार्डो के वितरण के सिद्धान्त | रिकार्डो का विश्लेषणात्मक मूल्य सिद्धान्त
- लगान सिद्धान्त | प्रकृतिवादियों तथा रिकार्डो के आर्थिक विचार
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- [email protected]