खजुराहो के मन्दिर | खजुराहो के मन्दिरों के प्रमुख विशेषताएं | खजुराहो के मन्दिरों पर एक विस्तृत टिप्पणी

खजुराहो के मन्दिर | खजुराहो के मन्दिरों के प्रमुख विशेषताएं | खजुराहो के मन्दिरों पर एक विस्तृत टिप्पणी

खजुराहो के मन्दिर

बुंदेलखंड में स्थित चंदेलों का बनवाया हुआ खजुराहो का मंदिर समूह बहुत ही प्रसिद्ध है। वहाँ छोटे बड़े पचासों जैन और हिंदू मंदिर है। इनमें कंदरियानाथ महादेव का विशाल मंदिर मुख्य है (फलक-२६)। जमीन से एक सौ सोलह फुट ऊँचा उठकर जिस सुंदरता से यह खड़ा है वह देखने ही की वस्तु है। कारीगर ने इसकी विशाल कुर्सी के तले जो भारी चबूतरा दे दिया है उससे इसकी शान और भी बड़ गई है। इसके क्रमशः छोटे होते हुए एक के ऊपर दूसरे शिखर-समूह बड़े ही भव्य मालूम होते हैं जो कला में कैलाश की अभिव्यक्ति के अनुपम नमूने हैं। प्रदक्षिणापथ में सुंदर स्तंभों की योजना है और उसमें (प्रदक्षिणा पथ में) चारों ओर भव्य ऊँचे झरोखे बने हैं। मंदिर का चप्पा-चप्पा सुंदर मूर्तियों तथा आलंकारिक अभिप्रायों से ढका है, किंतु इनमें बहुत-सी कामशास्त्र संबंधी अश्लील मूर्तियाँ भी हैं जिनका मंदिर के पवित्र वातावरण से कोई संबंध नहीं। यद्यपि हमारी मूर्तिकला में आरंभ ही से अमरयुग्म, वृक्षिकाओं तथा यक्षों के अंकन में शृंगारिका रहती थी, पर उनमें अश्लीलता नहीं आने पाती थी, किंतु इस काल में तंत्र की प्रेरणा से कला में भी अश्लीलता का प्रदर्शन हुआ। जिस उद्देश्य से तांत्रिकों ने धर्म की ओट लेकर कुत्सित कर्मों का समर्थन किया उसी उद्देश्य से प्रेरित होकर इस समय की कला में भी अश्लीलता आई। आजकल के कुछ विद्वान् इसकी आध्यात्मिक व्याख्या करने पर उतारू हुए हैं, किंतु ऐसा प्रयल सर्वथा बालिश है।

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खजुराहो के चतुर्भुज विष्णु के और जैन तीर्थकर आदिनाथ के मंदिरों की भी बिल्कुल यही शैली है। केवल उन मूर्तियों की विभिन्नता से जो सारे मंदिर पर उत्कीर्ण हैं, उनमें भेद जान पड़ता है। जैन मंदिरों में अश्लील मूर्तियों का अभाव है। बुंदेलखंड में ललितपुर सब डिविजन के चाँदपुर दुधही और मदनपुर में भी चंदेलों के बनवाए अनेक मंदिर हैं जो आज भी उनकी सुसंस्कृति की साख भर रहे हैं।

खजुराहो के मन्दिरों को सुगमता पूर्वक तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है.-

(1) पश्चिमी, (2) पूर्वी तथा (3) दक्षिणी ।

पश्चिमी श्रेणी के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधियों में प्रथम चौसठ योगिनियों का मन्दिर है। इसके भीतर का आंगन 104 x 60 फीट है, जिसके चारों ओर 65 कमरे हैं। इनमें से केवल 35 ही अवशिष्ट हैं। यह मन्दिर नवीं शताब्दी का है।

दूसरा मन्दिर है कंडरिया महादेव का। यह चौसठ योगिनियों के मन्दिर के उत्तर में स्थित है। और सभी मन्दिरों से विशालकाय है। इसके प्रवेशद्वार का तोरण अभिनन्दनीय है। इस पर देवी-देवताओं, गन्धर्वो आदि का अंकन है। अर्धमण्डप और मण्डप की छतें अनोखी कला से परिपूरित हैं। इनकी चित्रकारी और बेलबूटे का काम आबू के जैन मन्दिरों से किसी कदर कम नहीं है। मण्डप से आगे जाने पर महामण्डप मिलता है। इसकी छत की सुन्दरता का बखान शब्दों से परे है। सम्पूर्ण छत चौकोर आकार वाली है ठीक मध्य में एक बड़ा-सा वृत्त है। इसके चारों ओर आठ अन्य वृत्त है। इन आठों वृत्तों के भीतर ताश के चिड़ी के पत्तों से सुन्दर चिन्ह अंकित हैं। इन वृत्तों के बाहर मुग्धकारी बेलबूटे अंकित किये गये हैं। इस अलंकरण के पश्चात् आता है एक दीर्घवृत्त, जो इन सब वृत्तों को अपने अंतर में समेटे है। इस दीर्घ वृत्त के चारों कोनों पर अनोखी बेले हैं जो समूचे दीर्घवृत्त की शोभा में चार चांद लगा देती है। तदनंतर एक चतुर्भुज बना है, जो छत के मध्य भाग को देदीप्यमान किए है। इस चतुर्भुज के दोनों ओर तीन-तीन मंगलकर्ता पुष्प हैं, जो सरसों के बसंती पुष्पों की भांति खिले हुये छत का श्रृंगार किये हैं। छत की कोरों में और मध्य में कुछ छोटी-छोटी मूर्तियां हैं। सब मिलाकर छत वर्णनातीत है और वे दर्शक धन्य हैं, जिनके नेत्र इस छत वाले कंडरिया मंदिर की प्रदक्षिणा कर आये हैं।

अन्त में महामण्डप पार करके गर्भ गृह आता है। इसके प्रवेश द्वार पर लता चित्रों के साथ-साथ तपस्वियों और योगियों के ध्यानावस्थित चित्र भी प्रदर्शित किये गये हैं। पार्श्वस्तम्भों पर गंगा और यमुनां नदियां अपने-अपने वाहनों सहित विराजती हैं-गंगा का वाहन मगर यमुना का कच्छप । गर्भगृह में संगमरमर निर्मित एक शिवलिंग है, जो देखने में दूध जैसा श्वेत और स्पर्श में हिमानी जैसा शीतल लगता है। मन्दिर की बहिर्मुख दीवारों पर नीचे आठों दिकपालों की मूर्तियां हैं। मंदिर के उत्तरी दक्षिणी तथा पश्चिमी कोनों पर स्तम्भ धारित बड़े-बड़े आलय हैं, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की साक्षात मूर्तियां अथवा उनके अवतारों की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर भर में अप्सराओं और किन्नरियों की अनेक विध नृत्य मुद्राएं और भाव भंगियों का दिग्दर्शन है। ऐसा लगता है कि मानो वे अपने लुभावने सौंदर्य से मुनियों और तपस्वियों को आकर्षित कर रही हैं और उन्हें उनकी ध्यान समाधि से डिगाने का प्रयत्न कर रही हैं। मंदिर के शिखरों पर क्रमशः अमलक बड़े होते चले गए हैं। सर्वोच्च शिखर पर छोटे अमलक पर गगरी के आकार का एक अमृत घट शोभायमान है, जो दूर से देखने में बड़ा मंगलमय मालूम होता है।

दूसरा महत्वपूर्ण मन्दिर है लक्ष्मण मन्दिर, जो कंडरिया के दक्षिण पूर्व में स्थित है। इसकी निर्माणकला की तुलना में भारतवर्ष का कोई मन्दिर नहीं ठहरता है। इस मन्दिर के एक स्थान पर गुरू और उसके चारों ओर बैठे हुये विद्यार्थियों का दृश्य दिखाया गया है। लक्ष्मण मन्दिर के तीन ओर प्रदक्षिण पथ है।

अत्यन्त पवित्र मन्दिर मतंगेश्वर महादेव का है। इसमें मतेगंश्वर की 4 फुट 5 इंच ऊंची शिवलिंग मूर्ति है और इसका व्यास 20 फुट 4 इंच है। इसकी चमक अद्भुत है। मूर्ति पर कई अभिलेख उत्कीर्ण है, जिनमें एक की भाषा है तथा शेष की नागरी । इसी मन्दिर के सामने की वराह मूर्ति 8 फुट 9 इंच x 5 फुट 9 इंच के आयत की है और एक ही शिलाखण्ड से गढ़ी गयी है। कुछ काल पूर्व वराह मूर्ति के बायें दात पर अवस्थित माता पृथ्वी की मूर्ति भी थी, जिसके अवशेष आधार शिला पर उनके पद चिन्ह हैं।

पूर्वी श्रेणी के महत्वपूर्ण मन्दिरों में हनुमान मन्दिर है। इस पर हर्षकालीन राज्यवर्ष 316-922 ई० का एक अभिलेख है। यह मन्दिर अत्यन्त प्राचीन है।

दूसरा मन्दिर हैं जवारि । इसके गर्भगृह में चतुर्भुज भगवान् विष्णु की शुचितामयी मूर्ति है। दक्षिणी श्रेणी के मन्दिरों में दूला देव मन्दिर प्रसिद्ध है। इसका वास्तु विधान सराहनीय है। इसका दूला देव नाम क्यों पड़ा, यह विवादपूर्ण विषय है। कहा जाता है कि एक समय एक बरात इस मन्दिर के पास ज्यों ही गुजरी, त्यों ही वर सवारी पर से नीचे गिर पड़ा और परम गति को प्राप्त हो गया। तभी से मन्दिर को दूला देव का मन्दिर कहा जाने लगा।

इस श्रेणी में जत्कारि मन्दिर की विष्णु मूर्ति 9 फीट ऊँची है और अभय मुद्रा में है। खजुराहो के मन्दिर शिल्प कला के पहान् प्रतीक हैं। शिल्पकला की सूझबूझ, विशाल, सदाशयता तथा टांकी का यह अनुपम उदाहरण है।

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