इतिहास / History

टायनवी की इतिहास मीमांसा | टायनवी की इतिहास के विषय में अवधारणा

टायनवी की इतिहास मीमांसा | टायनवी की इतिहास के विषय में अवधारणा

टायनवी की इतिहास मीमांसा

टायनबी अपनी इतिहास की मीमांसा का वर्णन अपनी पुस्तक A Study of History में किया है। टॉयनबी का एक आधारभूत विचार यह था कि ‘ऐतिहासिक अध्ययन की सबसे छोटी सुबोधगम्य इकाई संपूर्ण समाज होता है न कि एकपक्षीय रूप से निर्धारित उनके कुछ अंश जैसे आधुनिक युग के राष्ट्र-राज्य अथवा यूनानी-रोमन युग के नगर-राज्य।’ टॉयनबी के कार्य का एक और महत्त्वपूर्ण विचार यह है कि सभी सभ्यताओं का इतिहास कुछ निश्चित संदर्भो में समानान्तर और समसामयिक होता है’, लेकिन उसका कहना है कि ‘जब मैंने सभ्यताओं की उत्पत्ति से सम्बन्धित अपने प्रश्न के उत्तर स्वरूप में स्पेंग्लर की पुस्तक को देखा, तो पाया कि स्पेंग्लर बिना अपनी स्थापनाओं को प्रकासित किए हुए नितान्त मताग्रही और नियतिवादी था।’ जबकि जर्मन प्रागनुभव पद्धति निरर्थक सिद्ध हुई, हमें यह देखना होगा कि अंग्रेज अनुभववाद से क्या उपलब्ध होता है। लेकिन हमें टॉयनबी के अनुभववाद से संबंधित दावे का सर्वथा सत्य रूप में ग्रहण करने की आवश्यकता नहीं है। अनुभववाद दर्शन के बजाए एक अवस्थान-भङ्गी मात्र है, अदिक से अधिक यह शोध की एक पद्धति है। अंग्रेज दार्शनिक स्वभावतः बुद्धिवाद की तुलना में अनुभववाद का विरोध करते हैं, बुद्धिवाद की तुलना वे हीगलवाद से करते हैं। टॉयनबी महसूस करता है कि वह हीगलवादी नहीं है, वह यह भी सोचता है कि वह अपने आपको ईमानदारी से अनुभववादी की संज्ञा प्रदान कर सकता है।

टॉयनबी ने सभ्यताओं की समसामयिकता तब समझी जब 1914 में वह अपने विद्यार्थियों को थ्यूसिडाइडिस पढ़ा रहा था । उल्लेखनीय है कि थ्यूसिडाइडिस ने ‘हिस्ट्री ऑफ पेलोपोनीशियन वॉर’ लिखी थी। टॉयनबी इस तिथि को हेलेनिक समाज के विघटन की तिथि मानता है। उसने लिखा है ‘वह अनुभव जो हम आधुनिक विश्व में अर्जित कर रहे थे। (1914 की घटनाओं के रूप में) उन्हें थ्यूसिडाइडिस ने अपने समय में अनुभूत किया था।’ ऐसा प्रतीत होता है कि थ्यूसिडाइडिस ने अपने समय में अनुभूत किया था।’ ऐसा प्रतीत होता है कि थ्यूसिडाइडिस इससे पहले इस धरातल पर हो चुका था। वह और उसकी पीढ़ी उन ऐतिहासिक अनुभवों की दृष्टि से मुझसे व मेरी पीढ़ी, दोनों से आगे थे. जिन तक हम पहुँचे, वस्तुतः उसका वर्तमान मेरा भविष्य रहा था। इस स्थिति से काल-क्रम निर्धारण की उस व्यवस्था को निरर्थक ठहरा दिया जिसके अन्तर्गत मेरा युग ‘आधुनिक’ और थ्यूसिडाइडिस का युग ‘प्राचीन’ था। काल-क्रम कुछ भी कहे दार्शनिक स्तर पर थ्यूसिडाइडिस का युग और मेरा युग समकालीन सिद्ध हो चुके हैं। यदि यूनानी-रोमन और पश्चिमी सभ्यताओं के बीच इस प्रकार का सामयिक संबंध हो सकता था तो शेष अन्य सभ्यताओं के बीच इस प्रकार का संबंध क्यों नहीं स्थापित हो सकता ? जैसा कि इस उद्धरण से स्पष्ट होता है ‘टायनबी यूनानी-रोमन सभ्यता के इतिहास को सभ्यताओं के तुलनात्मक अध्ययन के प्रतिमान के रूप में ग्रहण करता है। यद्यपि एक पृथक कोटि के रूप में सभ्यताओं का उदय आज से 6,000 वर्ष पूर्व हुआ था,खगोलीय काल-क्रम की दृष्टि से सभी सभ्यताएँ समसामयिक हैं।’

इस तुलनात्मक पद्धति की सामान्य आलोचनाओं में से एक आलोचना यह की जाती है कि यद्यपि सभ्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन सिद्धान्त में तो संभव है, परन्तु सामग्री की असाध्यता के कारण यह व्यवहार में असंभव है। सभ्यताओं के इतिहास मात्र ‘तथ्यों ‘घटनाओं’ की कड़ी है और प्रत्येक ऐतिहासिक तथ्य अविभाज्य रूप से विलक्षण है। अतः वह दूसरे तथ्य से निश्चित रूप से अतुलनीय है। इस आलोचना का टॉयनबी ने उत्तर दिया है। उसका कहना है कि यद्यपि कुछ स्थितियों में प्रत्येक ‘घटना’ विलक्षण और अतुलनीय है। वर्ग विशेष में आ सकती है। कोई भी दो जीवित शरीर-रचनाएँ तत्सम नहीं है, जैसे जानवर और पौधे, लेकिन इसके बावजूद प्राणी विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा मानव जाति-विज्ञान की वैदता समाप्त नहीं होती। अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिये टॉयनबी अरस्तु के कृतित्व का सहारा लेता है। अरस्तु के अनुसार मानव जीवन की घटनाओं और अपने विचार-बिन्दुओं को समझने की तीन पद्धतियाँ हैं-

  1. तथ्यों का सुनिश्चितीकरण और उनका संग्रह,
  2. तथ्यों के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा कुछ सामान्य नियमों की व्याख्या, और
  3. ‘कल्पना’ के रूप में तथ्यों की कलात्मक पुनर्रचना।

सामान्यतः यह स्वीकार किया जाता है कि तथ्यों का सुनिश्चितीकरण और उनका संग्रह इतिहासज्ञों की कला है और इस क्षेत्र की घटनाएँ सभ्यताओं की सामाजिक घटनाएँ हैं, सामान्य नियमों का निर्धारण विज्ञान की तकनीक है और मानव जीवन के अध्ययन में विज्ञान मानवशास्त्र है तथा इस क्षेत्र में अध्ययन की जाने वाली घटनाएँ आदि-समाजों की सामाजिक घटनाएँ हैं और अन्त में यह कि कल्पना विभिन्न व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन है। लेकिन अध्ययन के तीनों विभागों की तकनीकों के बीच यह अन्तर उतना सुस्पष्ट नहीं है जितना हम मान कर चलते हैं। उदाहरण के लिये, इतिहास का उद्देश्य मानव जीवन के समस्त तथ्यों का संग्रह नहीं और न ही मात्र तथ्यों का संग्रह ही उसका उद्देश्य है। इतिहास आदि-समाजों से सम्बन्धित सामाजिक जीवन के तथ्य मानवशास्त्र को सौंप देता है। यह कल्पना से भी मुक्ति नहीं पा सकता। इसके अतिरिक्त इतिहास तथ्य-संग्रह के साथ-साथ विधि का भी प्रयोग करता है। यही बात विज्ञान और कल्पना के ऊपर भी लागू होती है। वे सभी विषय जो अब विज्ञान में एक बार तथ्य-संग्रह की प्रारम्भिक अवस्था से होकर गुजर चुके हैं। उपन्यास और नाटक पूर्णतः कल्पना का प्रतिनिधित्व नहीं करते, उनकी पृष्ठभूमि में प्रामाणिक सामाजिक तथ्य होते हैं। कल्पना इस पृष्ठभूमि को पूर्वप्राप्त मान कर ही चलती है।

इसके बावजूद अरस्तु का वर्गीकरण सामान्यतः वैध है। यह उल्लेखनीय है कि ये तकनीकी विभिन्न प्रकार के तथ्यों का उपयुक्तता के संदर्भ में परस्पर भिन्न हैं। तथ्यों का सुनिश्चितीकरण और संग्रह उसी स्थिति में किया जा सकता है जबकि वे संख्या की दृष्टि से काफी कम हों। नियमों का निर्धारण उसी स्थिति में आवश्यक और संभव है जबकि तथ्य इतने बहुसंख्यक हों कि उनका संग्रह किया जा सके और कल्पना ही वह एकमात्र तकनीक है जो प्रयोग में लाने योग्य है और इस स्थिति में लाया जा सकता है जिनमें तथ्य बहुसंख्यक हों। सभ्यताओं में सामाजिक जीवन के अध्ययन से सम्बन्धित तथ्य अन्तःस्थ रूप से विलक्षण नहीं है बल्कि वे मात्र अस्थाई रूप से और संयोग से विलक्षण हैं। इस स्थिति में तथ्यों की एक मात्रा तक वृद्धि संभव हो सकती है जहाँ एक तुलनात्मक पद्धति द्वारा नियमों का निर्माण होता है। अतः प्रो० टॉयनबी का कहना है कि अब तक सभ्यताओं के अध्ययन में तथ्यों की खोज से सम्बन्धित तकनीक का अत्यधिक प्रयोग हुआ है। प्रो० टॉयनबी का विश्वास है कि सभ्यताओं के अध्ययन में यदि सामग्री में इसी प्रकार अनिश्चित रूप से वृद्धि होती रही तो नियम- निर्धारण-तकनीक का प्रयोग तो दुष्कर होगा ही बल्कि कल्पना के अतिरिक्त अन्य किसी तकनीकी का प्रयोग भी असंभव हो जाएगा।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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