शिक्षाशास्त्र / Education

पब्बजा तथा उपसम्पदा संस्कार में अन्तर | प्रवज्या तथा उपसम्पदा संस्कार में अन्तर | Difference between Pabajja and Upsampada Sanskar in Hindi

पब्बजा तथा उपसम्पदा संस्कार में अन्तर | प्रवज्या तथा उपसम्पदा संस्कार में अन्तर | Difference between Pabajja and Upsampada Sanskar in Hindi

पब्बजा (प्रवज्या) तथा उपसम्पदा संस्कार में अन्तर

(Difference between Pabajja and Upsampada Sanskar)

पब्बजा तथा उपसम्पदा संस्कार में अन्तर स्पष्ट करने के लिये दोनों संस्कारों का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है जिससे इनका अन्तर स्पष्ट हो जायेगा-

पवज्जा संस्कार

पवज्जा का शाब्दिक अर्थ है ‘बाहर जाना’ (Going Out) इस संस्कार का अभिप्राय था बालक अपने परिवार एवं पूर्व स्थिति का परित्याग करके संघ में प्रवेश करता था, जिनके जीवन का उद्देश्य बौद्ध भिक्षु बनना था। यह संस्कार 8 वर्ष की आयु से पहले सम्पन्न नहीं हो सकता था। पवज्जा संस्कार के समय विद्यार्थी अपने केश मुँडाकर पीले वस्त्र धारण कर लेता था। विनय पटक के अनुसार- “बालक अपने सिर को मुँडाता था, पीले वस्त्र धारण करता था, प्रवेश करने वाले मठ के भिक्षओं के चरणों को अपने मस्तक से स्पर्श करता था और उनके सामने पालथी मारकर भूमि पर बैठ जाता था। मठ का सबसे बड़ा भिक्षु उससे तीन बार यह शपथ लेने को कहता था-

“बुद्धं शरणं गच्छामि

धर्मं शरणं गच्छामि

संघ शरणं गच्छामि ॥”

उपसम्पदा संस्कार

इस संस्कार में 12 वर्ष की आयु से 22 वर्ष की आयु तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् छात्र, को मठ छोड़ना अनिवार्य होता था परन्तु वह उपसम्पदा संस्कार सम्पादित करके पूर्ण भिक्षु के रूप में संघ में रहने का अधिकारी बन जाता था। संघ में रहने का अधिकारी छात्र भिक्षुकों के निर्णय के अनुसार बनता था। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् छात्र अपने प्राचार्य के साथ श्रेष्ठ भिक्षुकों के समक्ष उपस्थित होता था। भिक्षुगण छात्र से प्रश्न पूछते थे। यदि छात्र, इस परंक्षा में सफल हो जाता था तो उसका उपसम्पदा संस्कार किया जाता था। उपसम्पदा संस्कार करते समय भिक्षु को संघ में रहने के लिये कतिपय नियमों का पालन करना पड़ता था।

संक्षेप में इनके अन्तर को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता

पब्बजा संस्कार

उपसंपदा संस्कार

पब्बजा संस्कार बालक की प्राथमिक शिक्षा प्रारंभ करने से पूर्व किया जाता था। इस संस्कार 8 को वर्ष की आयु में कराया जाता था।

यह संस्कार शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् भिक्षु शिक्षा प्राप्त करने के व्यक्तियों के लिए था। इसकी आय 20 वर्ष थी।

इसमें बालक सिर मुंडाकर, पीले वस्त्र पहनकर, भिक्षुओं के सम्मुख तीन बार दोहराता था-

बुद्धं शरणं गच्छामि

धम्मं शरणं गच्छामि

संघं शरणं गच्छामि।

इसमें छात्र से कई भिक्षु अलग-अलग प्रश्न पूछते थे और सफल होने पर उसे (छात्र को) भिक्षु शिक्षा में प्रवेश मिल जाता था।

इसमें छात्र को 10 नियमों का पालन अनिवार्य था –

1. चोरी न करना।

2. जीव हत्या न करना।

3. असत्य न बोलना।

5. ऊँचे बिस्तर पर न सोना।

4. मादक वस्तुओं का सेवन न करना।

6. वर्जित समय में भोजन न करना।

7. अशुद्धता से दूर रहना।

8. नृत्य संगीत आदि से दूर रहना।

9. श्रृंगार प्रसाधनों का प्रयोग न करना।

10. सोने, चाँदी का दान न लेना।

इसमें 10 नियमों के अलावा 6 अन्य नियमों का पालन अनिवार्य था-

1. वृक्ष के नीचे निवास करना।

2. भिक्षा माँगकर भोजन करना।

3. स्त्री समागम न करना।

4. अलौकिक शक्तियों का दावा न करना।

5. साधारण वस्त्र धारण करना।

6. औषधि के रूप में गौमूत्र लेना।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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